हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र
Shahadat
14 Jan 2024 10:30 AM IST
देश के विभिन्न हाईकोर्ट में पिछले सप्ताह (09 जनवरी 2024 से 13 जनवरी 2024) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं हाईकोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह हाईकोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।
पत्नी का पूर्ण विवाह से इनकार करना मानसिक क्रूरता, तलाक का आधार बनेगा: मध्य प्रदेश हाइकोर्ट
मध्य प्रदेश हाइकोर्ट ने माना कि पत्नी द्वारा शादी से इनकार करना क्रूरता के समान होगा। यही नहीं यह हिंदू विवाह अधिनियम (Hindu Marriage Act) की धारा 13 (1)(i-a) के तहत तलाक का आधार बनेगा।
जस्टिस शील नागू और जस्टिस विनय सराफ की खंडपीठ ने कहा, "वैवाहिक मामलों में मानसिक क्रूरता का निर्धारण करने के लिए कभी भी कोई सीधा फॉर्मूला या पैरामीटर नहीं हो सकता। मामले को निपटाने का सही और उचित तरीका सभी चीजो को ध्यान में रखते हुए इसके अजीब तथ्यों और परिस्थितियों के आधार पर इसका मूल्यांकन करना होगा। अपीलकर्ता विवाह संपन्न हुआ। यह पहले से ही तय था कि वह कुछ ही समय में भारत छोड़ देगा। इस अवधि के दौरानअपीलकर्ता को शादी संपन्न होने की उम्मीद थी लेकिन प्रतिवादी ने इससे इनकार कर दिया। निश्चित रूप से प्रतिवादी का यह कार्य मानसिक क्रूरता के बराबर है। साथ ही धारा 13 (1) के तहत खंड में उल्लिखित तलाक का आधार बनाया गया। अपीलकर्ता तलाक की डिक्री का हकदार है।”
केस टाइटल-सुदीप्तो साहा बनाम मौमिता साहा।
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"पीड़ित" अविवाहित बेटी को DV Act के तहत भरण-पोषण का अधिकार, चाहे उसका धर्म और उम्र कुछ भी हो: इलाहाबाद हाईकोर्ट
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने माना कि अविवाहित बेटी को Domestic Violence Act, 2005 (DV Act) के तहत गुजारा भत्ता प्राप्त करने का अधिकार है। चाहे वह किसी भी धर्म और उम्र का हो। इसके लिए यह देखना होगा कि वह एक्ट की धारा 2 (ए) के तहत पीड़ित व्यक्ति की परिभाषा के अंतर्गत आती है, या नहीं। न्यायालय ने माना कि केवल भरण-पोषण की मांग करने वाले व्यक्ति के पास अन्य कानूनों के तहत सहारा है। हालांकि, यदि कोई व्यक्ति एक्ट के अनुसार "पीड़ित" है तो DV Act की धारा 20 के तहत उन्हें स्वतंत्र अधिकार उपलब्ध है।
केस टाइटल: नईमुल्लाह शेख और अन्य बनाम यूपी राज्य और 3 अन्य लाइव लॉ (एबी) 17/2024 [अनुच्छेद 227/2023 नंबर- 3046 के तहत मामले]
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पीड़ितों, चश्मदीदों या पुलिस सहित कोई भी व्यक्ति, जिसे अपराध की जानकारी हो, एफआईआर दर्ज करा सकता: इलाहाबाद हाईकोर्ट
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सीआरपीसी की धारा 154 और 155 को एक साथ पढ़ते हुए कहा कि अपराध के बारे में जानकारी रखने वाले किसी भी व्यक्ति को एफआईआर दर्ज करने का अधिकार है। अदालत ने कहा, "इसमें न केवल पीड़ित या प्रत्यक्षदर्शी शामिल है, बल्कि कोई भी व्यक्ति जो अपराध का संज्ञान लेता है, यहां तक कि स्वयं पुलिस अधिकारी भी शामिल हैं।"
केस टाइटल - अजय राय बनाम यूपी राज्य और 4 अन्य।
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विदेशी लोग भारत में रहने और बसने के अधिकार का दावा नहीं कर सकते, उनके मौलिक अधिकार अनुच्छेद 21 तक सीमित: दिल्ली हाइकोर्ट
दिल्ली हाइकोर्ट ने कहा कि विदेशी लोग भारत में निवास करने और बसने के अधिकार का दावा नहीं कर सकते। उनके मौलिक अधिकार भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन और स्वतंत्रता की सुरक्षा तक सीमित हैं। जस्टिस सुरेश कुमार कैत और जस्टिस मनोज जैन की खंडपीठ ने कहा, "हम यह भी ध्यान दे सकते हैं कि विदेशी नागरिक यह दावा नहीं कर सकते कि उन्हें भारत के संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (ई) के अनुसार भारत में रहने और बसने का अधिकार है।"
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विशेष अवधि के भीतर सुनवाई शुरू नहीं होने पर आरोपी जमानत का हकदार होने की कोई शर्त नहीं: केरल हाइकोर्ट
एनडीपीएस अधिनियम (NDPS ACT) के तहत दो आरोपियों को जमानत देने से इनकार करते हुए हाल के फैसले में केरल हाइकोर्ट ने स्पष्ट किया कि "NDPS ACT की धारा 37 में कोई शर्त नहीं है कि यदि विशेष अवधि में मुकदमा शुरू नहीं होता है तो आरोपी जमानत पर रिहा होने का हकदार है।" इसके अतिरिक्त आरोपी को जमानत पर रिहा होने के लिए एक्ट की धारा 37 के अलावा सीआरपीसी की धारा 439 के तहत दोहरी शर्तों को पूरा करना होगा।
केस टाइटल- जसीर एसएम बनाम केरल राज्य
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मजिस्ट्रेट के संतुष्ट न होने तक अभियुक्त अभियोजन पक्ष के उस गवाह को दोबारा नहीं बुला सकता, जिससे उसने क्रॉस एक्जामिनेशन की: इलाहाबाद हाईकोर्ट
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने माना कि सीआरपीसी की धारा 243(2) के तहत मजिस्ट्रेट का यह दायित्व है कि वह अभियोजन पक्ष के उन गवाहों को दोबारा पेश होने के लिए मजबूर न करे, जिनकी पहले ही आरोपी ने जांच कर ली है, जब तक कि मजिस्ट्रेट संतुष्ट न हो जाए कि न्याय के लक्ष्यों को पूरा करने के लिए यह आवश्यक है।
जस्टिस ज्योत्सना शर्मा ने बचाव पक्ष के गवाहों को बुलाने का आवेदन खारिज करने वाले ट्रायल कोर्ट के आदेश पर विचार करते हुए कहा कि जो गवाह अभियोजन साक्ष्य के समय पहले ही उपस्थित हो चुके हैं और अभियुक्तों द्वारा उनसे क्रॉस एक्जामिनेशन (Cross-Examination) की जा चुकी है, उन्हें तब तक दोबारा नहीं बुलाया जाना चाहिए, जब तक कि मजिस्ट्रेट संतुष्ट न हो जाए कि न्याय के उद्देश्य को पूरा करने के लिए ऐसे गवाहों को बुलाना आवश्यक है।
केस टाइटल: दिवाकर सिंह बनाम यूपी राज्य। [अनुच्छेद 227/2023 नंबर- 5914 के तहत मामले]
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अप्रमाणित अवैध संबंध के आरोप पत्नी को भरण-पोषण देने से इनकार करने का कोई आधार नहीं: दिल्ली हाइकोर्ट
दिल्ली हाइकोर्ट ने हाल ही में कहा कि केवल अवैध संबंध के आरोपों के आधार पर पत्नी को घरेलू हिंसा अधिनियम 2005 (Domestic Violence Act 2005) के तहत अंतरिम भरण-पोषण के लाभ से वंचित नहीं किया जा सकता है। अभी यह मुकदमे के दौरान साबित होना बाकी है।
जस्टिस अनूप कुमार मेंदीरत्ता ने निचली अदालत के आदेश के खिलाफ पति की याचिका खारिज कर दी। इसमें पत्नी को किराए के लिए प्रति माह 6000 रुपये साथ ही 11,460 रुपये का मासिक अंतरिम रखरखाव और दोनों नाबालिग बेटियों के खर्च के लिए 9,800 रुपये देने के लिए निर्देश दिया गया था।
केस टाइटल: ए बनाम बी
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परित्याग के आधार पर तलाक चाहने वाले पति या पत्नी पर सबूत का बोझ संभावना की प्रबलता में से एक: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट
पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने यह स्पष्ट कर दिया कि परित्याग के आधार पर तलाक चाहने वाले पति या पत्नी पर सबूत का बोझ "संभावना की प्रधानता" है। जस्टिस सुधीर सिंह और जस्टिस सुमीत गोयल की खंडपीठ ने कहा, "सबूत का भार तलाक चाहने वाले पति या पत्नी पर है, लेकिन आवश्यक सबूत की डिग्री प्रबलता की है और उचित संदेह से परे नहीं है।"
केस टाइटल: एक्स बनाम वाई
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आईपीसी की धारा 174-ए के तहत अपराध केवल संबंधित न्यायालय की लिखित शिकायत के आधार पर संज्ञेय; पुलिस एफआईआर दर्ज नहीं कर सकती: इलाहाबाद हाईकोर्ट
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने माना है कि भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 174ए के तहत किसी अपराध का संज्ञान केवल संबंधित न्यायालय की लिखित शिकायत पर ही लिया जा सकता है। पुलिस के पास ऐसे मामले में एफआईआर दर्ज करने की कोई शक्ति नहीं है। आईपीसी की धारा 174ए का उल्लेख किया गया, जिसे 2005 में पेश किया गया था। उक्त धारा निर्दिष्ट स्थान और समय पर घोषित अपराधियों की गैर-उपस्थिति को अपराध मानती है।
केस टाइटल - सुमित और अन्य बनाम यूपी राज्य और 2 अन्य।
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पड़ोसी राज्यों से सीटीईटी और टीईटी परीक्षा पास करने वाले निवासियों को झारखंड में शिक्षक नियुक्ति प्रक्रिया के लिए आवेदन करने की अनुमति है: झारखंड हाइकोर्ट
एक महत्वपूर्ण फैसले में, झारखंड हाइकोर्ट ने पड़ोसी राज्यों से केंद्रीय शिक्षक पात्रता परीक्षा (सीटीईटी) और शिक्षक पात्रता परीक्षा (टीईटी) सफलतापूर्वक पास करने वाले झारखंड के निवासियों को झारखंड में सहायक शिक्षक पदों के लिए भर्ती परीक्षा में भाग लेने की अनुमति दे दी है। अदालत ने यह निर्देश यह देखते हुए दिया कि झारखंड में कई वर्षों से सीटीईटी या टीईटी परीक्षा आयोजित नहीं हुई है, और राज्य को हर साल ऐसी परीक्षा आयोजित करने का निर्देश दिया।
केस टाइटल- झारखंड सीटीईटी उत्तरी अभियर्थी संघ बनाम झारखंड राज्य।
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POCSO Act | यौन इरादे से बच्चे का बार-बार पीछा करना, उस पर नजर रखना या उससे संपर्क करना यौन उत्पीड़न: झारखंड हाईकोर्ट
झारखंड हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि यौन इरादे से किसी बच्चे का लगातार पीछा करना, देखना या संपर्क करना यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम, 2012 (POCSO Act) की धारा 11(4) के तहत यौन उत्पीड़न है। जस्टिस सुभाष चंद ने कहा, “एफआईआर में ही कहा गया कि शिकायतकर्ता की नाबालिग पीड़ित लड़की का स्कूल के शिक्षक द्वारा यौन उत्पीड़न किया गया। वह उसे छेड़ता था। उस पर बुरी नजर भी थी, इसलिए उसके खिलाफ स्कूल के प्रिंसिपल से शिकायत की गई। उसे उस स्कूल से शिक्षक के पद से हटा दिया गया। इसके बाद उसने उन्हें देख लेने की धमकी दी।”
केस टाइटल : राहुल यादव @ हरि कुमार यादव बनाम झारखंड राज्य और अन्य
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जैविक माता-पिता की निजता का अधिकार, गोद लिए गए बच्चे के 'मूल खोज' के अधिकार पर हावी: कलकत्ता हाईकोर्ट
कलकत्ता हाईकोर्ट ने हाल ही में माना कि जैविक माता-पिता (Biological Parent) की निजता का अधिकार, विशेष रूप से अविवाहित मां, जिसने अपने बच्चे को गोद लेने के लिए छोड़ दिया था और बाद में उसका कोई पता नहीं चला, बच्चे का पता लगाने के लिए 'मूल खोज' करने के अधिकार पर हावी होगा।
जस्टिस सब्यसाची भट्टाचार्य की एकल पीठ ने इसके साथ ही स्विस नागरिक की उस याचिका खारिज कर दी। उक्त याचिका में उसने अपने जैविक मूल का पता लगाने के लिए त्याग विलेख की मांग की थी, जिसे गोद लेने वाली एजेंसी द्वारा निष्पादित किया गया, जिसने उसे गोद लेने की सुविधा दी थी। साथ ही यदि डीड को संरक्षित नहीं किया गया तो एजेंसी के खिलाफ कार्रवाई की मांग की।
केस टाइटल: फैबियन रिकलिन, उर्फ रणबीर बनाम पश्चिम बंगाल राज्य एवं अन्य।
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माता-पिता को अपहरण का दोषी नहीं ठहराया जा सकता, माता-पिता दोनों समान रूप से स्वाभाविक अभिभावक: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट
पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि माता-पिता को भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 361 के तहत अपहरण के अपराध के लिए दोषी नहीं ठहराया जा सकता, क्योंकि माता-पिता दोनों "समान प्राकृतिक अभिभावक" हैं।
जस्टिस हरप्रीत सिंह बराड़ ने अपनी 3 साल की बेटी के अपहरण के आरोप में मां के खिलाफ शिकायत मामला रद्द करते हुए कहा कि आईपीसी की धारा 361 के साथ-साथ हिंदू अल्पसंख्यक और संरक्षकता अधिनियम, 1956 (HMGA) की धारा 6 का अवलोकन यह संकेत देता है कि अपहरण का अपराध होना चाहिए।
केस टाइटल: एक्स बनाम हरियाणा राज्य और अन्य।