"पीड़ित" अविवाहित बेटी को DV Act के तहत भरण-पोषण का अधिकार, चाहे उसका धर्म और उम्र कुछ भी हो: इलाहाबाद हाईकोर्ट
Shahadat
13 Jan 2024 11:46 AM IST
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने माना कि अविवाहित बेटी को Domestic Violence Act, 2005 (DV Act) के तहत गुजारा भत्ता प्राप्त करने का अधिकार है। चाहे वह किसी भी धर्म और उम्र का हो। इसके लिए यह देखना होगा कि वह एक्ट की धारा 2 (ए) के तहत पीड़ित व्यक्ति की परिभाषा के अंतर्गत आती है, या नहीं।
न्यायालय ने माना कि केवल भरण-पोषण की मांग करने वाले व्यक्ति के पास अन्य कानूनों के तहत सहारा है। हालांकि, यदि कोई व्यक्ति एक्ट के अनुसार "पीड़ित" है तो DV Act की धारा 20 के तहत उन्हें स्वतंत्र अधिकार उपलब्ध है।
जस्टिस ज्योत्सना शर्मा ने कहा,
"मेरे विचार में इस एक्ट को लागू करते समय विधायिका के मन में यह अहसास था कि हालांकि कानून के मौजूदा प्रावधान पात्र व्यक्तियों को भरण-पोषण का अधिकार प्रदान करते हैं, लेकिन प्रक्रियात्मक देरी मूल उद्देश्य को विफल कर देती है।"
न्यायालय ने माना कि DV Act उन लोगों को त्वरित और प्रभावी न्याय प्रदान करने के उद्देश्य से लाया गया, जो घरेलू संबंधों में किसी भी प्रकार के शारीरिक, मानसिक, यौन, मौखिक, भावनात्मक या आर्थिक शोषण का शिकार हुए थे।
कोर्ट ने आगे कहा,
“यह एक्ट त्वरित राहत देने का प्रयास करता है, जहां पीड़ित महिला घरेलू हिंसा का शिकार हुई और प्रतिवादी के साथ घरेलू संबंध में थी। यह "महिलाओं के लिए अधिक प्रभावी सुरक्षा" शब्दों के उपयोग की व्याख्या करता है, इसलिए यह माना जा रहा है कि जहां पीड़ित को आपराधिक कानून या सिविल कानून या व्यक्तिगत कानून में दिए गए भरण-पोषण प्राप्त करने का अधिकार है और वह किसी ऐसे व्यक्ति द्वारा घरेलू हिंसा का शिकार हुई है, जो घरेलू संबंध में है, वह DV Act की धारा 12 के तहत राहत प्राप्त करने के लिए त्वरित तरीके का सहारा ले सकती है।
तथ्यात्मक पृष्ठभूमि
याचिकाकर्ता की बेटियों ने घरेलू हिंसा से महिलाओं की सुरक्षा अधिनियम, 2005 की धारा 12 के तहत अंतरिम भरण-पोषण देने के लिए आवेदन के साथ भरण-पोषण का दावा करते हुए आवेदन दायर किया। दावा किया गया कि फरवरी 2015 में उनकी असली मां की मौत के बाद उनके पिता और सौतेली मां ने उनके साथ मारपीट की और उन्हें पढ़ाई करने से रोक दिया।
मजिस्ट्रेट के समक्ष आपत्तियों में याचिकाकर्ता ने दलील दी कि उसकी बेटियां स्वस्थ हैं और उनके पास आय का स्वतंत्र स्रोत है। आगे कहा गया कि वह वित्तीय कठिनाइयों का सामना कर रहे हैं। चूंकि बेटियां उसके साथ रह रही हैं, इसलिए वह उनका सारा खर्च उठा रहा है।
न्यायिक मजिस्ट्रेट, एफ.टी.सी., कोर्ट नंबर 2, देवरिया ने 3000 रुपये प्रतिमाह का अंतरिम भरण-पोषण प्रदान किया, जिसे याचिकाकर्ता ने इस आधार पर चुनौती दी कि निचली अदालत इस बात पर विचार करने में विफल रही कि बेटियां वयस्क हो गई हैं। अपीलीय न्यायालय ने अपील खारिज कर दी।
याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि निचली अदालतों ने इस तथ्य को पूरी तरह से नजरअंदाज किया कि याचिकाकर्ता बूढ़ा, अशक्त और बेरोजगार व्यक्ति है, जो पहले से ही अपनी बेटियों का भरण-पोषण कर रहा है। उनके मामा के आदेश पर गुजारा भत्ता देने के लिए आवेदन दायर किया गया। यह तर्क दिया गया कि बेटियों ने उचित शिक्षा प्राप्त की और ट्यूशन कक्षाएं लेकर कमाई कर रही हैं। इसलिए बेटियां भरण-पोषण का दावा नहीं कर सकतीं।
हाईकोर्ट का फैसला
DV Act की की धारा 20 का अवलोकन करते हुए न्यायालय ने माना कि DV Act की धारा 20 (1)(डी) किसी भी पीड़ित व्यक्ति को किसी भी कानून के तहत भरण-पोषण का दावा करने का अधिकार प्रदान करती है, जिससे उसे भरण-पोषण करने के लिए वास्तविक अधिकार मिलता है।
DV Act की धारा 20(1)(डी) का जिक्र करते हुए कोर्ट ने कहा,
“जिस तरह से प्रावधान को कहा गया, वह स्पष्ट संकेत देता है कि DV Act की धारा 12 अनिवार्य रूप से प्रक्रियात्मक कानून है, जिसका सहारा कोई भी पीड़ित व्यक्ति ले सकता है, जो किसी अन्य कानून से भरण-पोषण का वास्तविक अधिकार प्राप्त करता है, चाहे वह सीआरपीसी की धारा 125 के तहत हो या पार्टियों पर लागू व्यक्तिगत कानून या उस समय लागू कोई अन्य कानून हो। इस प्रकार कानून इस हद तक बिल्कुल स्पष्ट है कि भरण-पोषण का दावा किसी भी कानून के तहत किया जा सकता है, जो इसका प्रावधान करता है।''
न्यायालय ने माना कि DV Act प्रक्रियात्मक औपचारिकताओं को कम करके कार्यवाही की बहुलता को कम करने में मदद करता है और त्वरित राहत प्रदान करने की सुविधा प्रदान करता है। इस प्रकार, एक्ट लाने के उद्देश्य को समझाने के लिए DV Act की प्रस्तावना में "महिलाओं के लिए अधिक प्रभावी सुरक्षा" शब्दों का उल्लेख किया गया।
इसके अलावा, न्यायालय ने माना कि DV Act की धारा 2(ए) के तहत पीड़ित व्यक्ति होने के लिए आवश्यक आवश्यकताओं में शारीरिक, मानसिक, यौन, मौखिक, भावनात्मक या आर्थिक शोषण शामिल है। पीड़ित व्यक्ति को भी साझा घर में रहना चाहिए या किसी भी समय, प्रतिवादी के साथ साझा घर में साथ रहना चाहिए, जो उससे शादी, गोद लेने, सगोत्र संबंध या संयुक्त परिवार में साथ रहने से संबंधित है।
इसके बाद, न्यायालय के समक्ष प्रश्न यह था कि "क्या मौद्रिक राहत के लिए स्वतंत्र वास्तविक अधिकार DV Act की धारा 20 से आता है, या क्या DV Act, 2005 की धारा 12 के सपठित धारा 20 केवल प्रक्रिया प्रदान करती है और इससे अधिक नहीं?"
कोर्ट ने नूर सबा खातून बनाम मोहम्मद कासिम पर भरोसा किया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने माना कि हिंदू पारिवारिक संरचनाओं के समान मुस्लिम माता-पिता के बच्चों को सीआरपीसी की धारा 125 के तहत रखरखाव का दावा करने का स्वतंत्र अधिकार है। कानून के स्पष्ट प्रावधानों के अलावा रखरखाव का दावा करने का अधिकार छीना नहीं जा सकता।
इसके अलावा जगदीश जुगतावत बनाम मंजू लता और अन्य पर भरोसा किया गया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने माना कि हिंदू दत्तक ग्रहण और भरण-पोषण अधिनियम, 1956 की धारा 20(3) के तहत नाबालिग लड़की अपनी शादी तक वयस्क होने के बाद भी भरण-पोषण की हकदार है।
न्यायालय ने अजय कुमार बनाम लता @ शारुति और अन्य में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भरोसा करते हुए कहा कि DV Act का दायरा बहुत व्यापक है। न्यायालय ने माना कि DV Act उन लोगों को त्वरित राहत प्रदान करने के लिए बनाया गया है, जो किसी भी घरेलू रिश्ते में अपने धर्म और उम्र की परवाह किए बिना घरेलू हिंसा का शिकार हुए हैं।
तदनुसार, भारत के संविधान के अनुच्छेद 227 के तहत याचिका खारिज कर दी गई।
केस टाइटल: नईमुल्लाह शेख और अन्य बनाम यूपी राज्य और 3 अन्य लाइव लॉ (एबी) 17/2024 [अनुच्छेद 227/2023 नंबर- 3046 के तहत मामले]
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