हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र
Shahadat
6 Dec 2025 8:00 PM IST

देश के विभिन्न हाईकोर्ट में पिछले सप्ताह (01 दिसंबर, 2025 से 05 दिसंबर, 2025) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं हाईकोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह हाईकोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।
मजिस्ट्रेट इकोनॉमिक ऑफेंस विंग को कस्टोडियल टॉर्चर के आरोपों की जांच करने का निर्देश नहीं दे सकते: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट
जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने माना कि इकोनॉमिक ऑफेंस विंग, श्रीनगर के पास लागू नोटिफिकेशन के तहत कस्टोडियल टॉर्चर और हत्या से जुड़े आरोपों की जांच करने का कोई अधिकार नहीं है। कोर्ट ने कहा कि एक मजिस्ट्रेट को सिर्फ़ उस एजेंसी को जांच करने का निर्देश देने का अधिकार है, जिसके पास कथित अपराध का अधिकार क्षेत्र हो।
कोर्ट, इकोनॉमिक ऑफेंस विंग, कश्मीर के सीनियर सुपरिटेंडेंट ऑफ़ पुलिस की याचिका पर सुनवाई कर रहा था, जिसमें कस्टोडियल टॉर्चर और मौत के आरोपों के संबंध में FIR दर्ज करने और उक्त विंग द्वारा जांच करने के आदेश को चुनौती दी गई।
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सुप्रीम कोर्ट के 2016 के फैसले में 'सेंसिटिव' FIR को ज़रूरी ऑनलाइन अपलोडिंग से छूट, 'पीड़ित व्यक्ति' SP/CP से कॉपी मांग सकता है: इलाहाबाद हाईकोर्ट
'सेंसिटिव' मामलों में, जहां FIR ऑनलाइन अपलोड नहीं की जाती है, उनकी कॉपी पाने के तरीके को साफ़ करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि ऐसे मामलों में कोई "पीड़ित व्यक्ति" सीधे सुपरिटेंडेंट ऑफ़ पुलिस (SP) या कमिश्नर ऑफ़ पुलिस को अप्लाई कर सकता है, जैसा भी मामला हो, और FIR की कॉपी मांग सकता है।
हाईकोर्ट ने यूथ बार एसोसिएशन ऑफ़ इंडिया बनाम यूनियन ऑफ़ इंडिया और अन्य में सुप्रीम कोर्ट के 2016 के फैसले में दिए गए अपवादों का ज़िक्र किया, जो पुलिस को यौन अपराधों, बगावत और आतंकवाद से जुड़ी FIR को राज्य सरकारों की वेबसाइट पर अपलोड करने से रोकता है।
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'बिना NBW के तभी सही है, जब दोषी मर चुका हो या देश छोड़कर भाग गया हो; 1984 की अपील में पूरे भारत में उस आदमी का पता लगाएं': इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पुलिस से कहा
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि गिरफ्तारी का नॉन-बेलेबल वारंट (NBW) बिना तामील किए सिर्फ़ दो खास हालात में वापस किया जा सकता है: अगर भगोड़ा मर चुका हो या अगर वह इसे साबित करने के लिए ठोस सबूत के साथ देश छोड़कर भाग गया हो।
जस्टिस जेजे मुनीर और जस्टिस संजीव कुमार की डिवीजन बेंच ने यह देखते हुए मंगलवार को प्रयागराज के पुलिस कमिश्नर की उस रिपोर्ट को मानने से इनकार किया, जिसमें असल में कहा गया कि 41 साल पुरानी क्रिमिनल अपील में एक दोषी बिना किसी निशान के गायब हो गया था।
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भविष्य की फीस वसूलने के लिए स्टूडेंट्स के मूल दस्तावेज रोकना अवैध: राजस्थान हाईकोर्ट
राजस्थान हाईकोर्ट ने अहम फैसले में स्पष्ट किया कि यूनिवर्सिटी या शैक्षणिक संस्थान किसी स्टूडेंट के मूल दस्तावेजों को भविष्य की फीस वसूली के साधन के रूप में अपने पास नहीं रख सकते। अदालत ने कहा कि एडमिशन के समय जमा कराए गए दस्तावेज केवल सत्यापन और पात्रता जांच के उद्देश्य से होते हैं, न कि स्टूडेंट को फीस भुगतान के लिए बाध्य करने के उपकरण के रूप में।
जस्टिस अनुरूप सिंघी की सिंगल बेंच एक पूर्व MBBS स्टूडेंट की याचिका पर सुनवाई कर रही थी। स्टूडेंट ने अदालत से अपने मूल दस्तावेज वापस दिलाने का निर्देश देने की मांग की, जो उसने वर्ष 2022 में MBBS पाठ्यक्रम में एडमिशन लेते समय यूनिवर्सिटी में जमा कराए थे। वह प्रथम और द्वितीय वर्ष की पढ़ाई पूरी कर चुकी थी और तृतीय वर्ष की फीस भी जमा कर चुकी थी।
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भूमि पासबुक जारी होने के बाद आवंटी का अधिकार व स्वामित्व तब तक बना रहता है, जब तक रद्द न किया जाए : गुवाहाटी हाईकोर्ट
गुवाहाटी हाईकोर्ट ने एक अहम फैसले में स्पष्ट किया कि जब सरकारी भूमि के आवंटन का हस्तांतरण सक्षम प्राधिकारी द्वारा अनुमोदित हो जाता है और आवंटी के पक्ष में भूमि पासबुक जारी हो जाती है तो वह व्यक्ति उस भूमि पर अधिकार और स्वामित्व बनाए रखता है। यह अधिकार तब तक बना रहता है, जब तक कि सक्षम प्राधिकारी द्वारा विधिवत रूप से आवंटन को रद्द या वापस न लिया जाए।
जस्टिस अंजन मोनी कलिता ने यह टिप्पणी अपील खारिज करते हुए की। उन्होंने कहा कि यह दलील स्वीकार्य नहीं है कि भूमि पासबुक केवल राजस्व भुगतान या वित्तीय रिकॉर्ड के लिए होती है और उससे आवंटी को किसी प्रकार का अधिकार या स्वामित्व प्राप्त नहीं होता। कोर्ट ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि सरकारी भूमि आवंटन के बाद जारी की गई पासबुक को केवल राजस्व रिकॉर्ड मानकर जमाबंदी, पट्टा या खाता जैसी प्रविष्टियों से अलग करके खारिज नहीं किया जा सकता।
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उच्च मेरिट पाने वाले आरक्षित वर्ग के अभ्यर्थी को सामान्य वर्ग में समायोजित करना अनिवार्य: राजस्थान हाईकोर्ट
राजस्थान हाईकोर्ट ने एक बार फिर स्पष्ट किया कि यदि किसी आरक्षित वर्ग के अभ्यर्थी ने शुल्क छूट के अतिरिक्त किसी भी प्रकार की आरक्षण-सुविधा का लाभ नहीं लिया और उसके अंक सामान्य वर्ग की अंतिम चयन कट-ऑफ से अधिक हैं तो उसे अनिवार्य रूप से सामान्य वर्ग में समायोजित किया जाना चाहिए। ऐसे मामलों में मेरिट माइग्रेशन का सिद्धांत लागू होता है, जिसके तहत खुली श्रेणी (जनरल कैटेगरी) में सभी समुदायों के योग्य अभ्यर्थियों को समान अवसर मिलता है।
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चार्जशीट व संज्ञान आदेश रिकॉर्ड पर न होने पर धारा 528 BNSS के तहत FIR रद्द नहीं की जा सकती : इलाहाबाद हाईकोर्ट
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में BNSS की धारा 528 के तहत दायर एक आवेदन को खारिज कर दिया, जिसमें मात्र FIR को रद्द करने की मांग की गई थी। कोर्ट ने कहा कि जब आरोपपत्र (Chargesheet) और संज्ञान आदेश (Cognizance Order) रिकॉर्ड पर नहीं लाए गए हों, तब धारा 528 BNSS के तहत दायर ऐसी याचिका रखरखाव योग्य नहीं है।
जस्टिस जितेन्द्र कुमार सिन्हा की एकल पीठ ने स्पष्ट किया कि यदि आवेदक केवल FIR को चुनौती देता है और चार्जशीट व संज्ञान आदेश दाखिल नहीं करता, तो धारा 528 BNSS का प्रयोग नहीं किया जा सकता। यह निर्णय सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले Pradnya Pranjal Kulkarni vs. State of Maharashtra & Anr., 2025 LiveLaw (SC) 875 पर आधारित है।
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हाईकोर्ट ने रायबरेली से राहुल गांधी के लोकसभा चुनाव को चुनौती देने वाली याचिका की खारिज
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक वकील की याचिका खारिज की, जिसमें विपक्ष के नेता राहुल गांधी के रायबरेली लोकसभा सीट से चुनाव लड़ने के मामले में उनके खिलाफ क्वो वारंटो रिट की मांग की गई थी। याचिकाकर्ता अशोक पांडे ने दावा किया था कि "सभी चोरों का सरनेम मोदी क्यों है" वाली टिप्पणी पर क्रिमिनल मानहानि केस में गांधी को दोषी ठहराए जाने के कारण उन्हें सांसद चुने जाने के लिए अयोग्य घोषित कर दिया गया था।
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डेब्ट रिकवरी ट्रिब्यूनल किसी व्यक्ति के विदेश यात्रा पर रोक नहीं लगा सकता या उस पर शर्तें नहीं थोप सकता: मध्यप्रदेश हाईकोर्ट
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने मंगलवार (2 दिसंबर) को कहा कि चूंकि डेट्स रिकवरी ट्रिब्यूनल के पास किसी व्यक्ति के विदेश यात्रा के मौलिक अधिकार पर रोक लगाने की शक्ति नहीं है, इसलिए वह ऐसी यात्रा के लिए कोई शर्त भी नहीं लगा सकता। यह बात मेटलमैन इंडस्ट्रीज लिमिटेड के पूर्व डायरेक्टर द्वारा दायर याचिका में कही गई, जिसमें रिकवरी ऑफिसर के 22 अगस्त, 2025 के आदेश को चुनौती दी गई। इस आदेश में याचिकाकर्ता की यात्रा पर यह शर्त लगाई गई कि वह बैंक के लिए गारंटी के तौर पर एक ऑफिशियल अकाउंट में 50,00,00,000 जमा करेगा।
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'संविधान के साथ धोखाधड़ी, ईसाई धर्म में कोई जाति व्यवस्था नहीं': इलाहाबाद हाईकोर्ट ने धर्म बदलने वालों के SC स्टेटस बनाए रखने की पूरे राज्य में जांच के निर्देश दिए
एक अहम आदेश में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश की पूरी एडमिनिस्ट्रेटिव मशीनरी को यह पक्का करने का निर्देश दिया कि राज्य में जो लोग ईसाई बन गए, वे अनुसूचित जातियों (SC) के लिए बने फ़ायदे लेना जारी न रखें। यह देखते हुए कि धर्म बदलने के बाद SC स्टेटस बनाए रखना "संविधान के साथ धोखाधड़ी" है, कोर्ट ने राज्य के सभी डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट के लिए ऐसी घटनाओं की पहचान करने और उन्हें रोकने के लिए कानून के अनुसार काम करने के लिए चार महीने की सख्त डेडलाइन तय की।
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1,200 मासिक मानदेय भ्रमात्मक: पुलिस थानों में कार्यरत अंशकालिक सफाइकर्मी भी न्यूनतम मजदूरी के हकदार : इलाहाबाद हाईकोर्ट
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक अहम फैसले में स्पष्ट किया कि पुलिस थानों में काम करने वाले अंशकालिक सफाईकर्मियों को भी न्यूनतम मजदूरी अधिनियम, 1948 के तहत तय वेतन पाने का अधिकार है भले ही उनकी नियुक्ति अस्थायी या पार्ट-टाइम आधार पर ही क्यों न हो। अदालत ने कहा कि वर्ष 2019 के सरकारी आदेश से तय किया गया 1,200 प्रतिमाह का मानदेय भ्रमात्मक है और यह वैधानिक अधिकारों को खत्म नहीं कर सकता।
जस्टिस जे.जे. मुनिर की पीठ ने ललितपुर जिले के मदनपुर और बर्रार नरहट पुलिस थानों में कार्यरत दो सफाईकर्मियों की याचिका स्वीकार करते हुए पुलिस महानिदेशक समेत अधिकारियों को आदेश दिया कि याचिकाकर्ताओं को न्यूनतम मजदूरी अधिनियम के अनुसार वेतन दिया जाए और नियुक्ति की तिथि से बकाया राशि भी अदा की जाए।
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मुस्लिम महिला तलाक एक्ट के तहत फाइल किए गए आवेदन पर 3 साल का लिमिटेशन पीरियड लागू होगा: केरल हाईकोर्ट
केरल हाईकोर्ट ने फिर से स्पष्ट किया कि लिमिटेशन एक्ट, 1963 का आर्टिकल 137, मुस्लिम महिला (तलाक पर अधिकारों का संरक्षण) एक्ट, 1986 की धारा 3 के तहत फाइल किए गए आवेदन पर लागू होता है।
डॉ. जस्टिस ए के जयशंकरन नांबियार और जस्टिस जोबिन सेबेस्टियन की डिवीजन बेंच ने यह ऑर्डर एक इंट्रा-कोर्ट रेफरेंस में दिया, जो तब शुरू हुआ जब एक सिंगल जज ने हसैनर बनाम रजिया (1993 (2) KLT 805) में पहले के उदाहरण के सही होने पर सवाल उठाया, जिसमें कहा गया कि 1986 एक्ट की धारा 3 के तहत फेयर और रीजनेबल प्रोविजन और मेंटेनेंस के क्लेम पर तीन साल का लिमिटेशन पीरियड लागू होता है।

