1,200 मासिक मानदेय भ्रमात्मक: पुलिस थानों में कार्यरत अंशकालिक सफाइकर्मी भी न्यूनतम मजदूरी के हकदार : इलाहाबाद हाईकोर्ट
Amir Ahmad
1 Dec 2025 12:48 PM IST

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक अहम फैसले में स्पष्ट किया कि पुलिस थानों में काम करने वाले अंशकालिक सफाईकर्मियों को भी न्यूनतम मजदूरी अधिनियम, 1948 के तहत तय वेतन पाने का अधिकार है भले ही उनकी नियुक्ति अस्थायी या पार्ट-टाइम आधार पर ही क्यों न हो। अदालत ने कहा कि वर्ष 2019 के सरकारी आदेश से तय किया गया 1,200 प्रतिमाह का मानदेय भ्रमात्मक है और यह वैधानिक अधिकारों को खत्म नहीं कर सकता।
जस्टिस जे.जे. मुनिर की पीठ ने ललितपुर जिले के मदनपुर और बर्रार नरहट पुलिस थानों में कार्यरत दो सफाईकर्मियों की याचिका स्वीकार करते हुए पुलिस महानिदेशक समेत अधिकारियों को आदेश दिया कि याचिकाकर्ताओं को न्यूनतम मजदूरी अधिनियम के अनुसार वेतन दिया जाए और नियुक्ति की तिथि से बकाया राशि भी अदा की जाए।
याचिकाकर्ताओं का कहना था कि जुलाई 2022 से वे सुबह 7 बजे से शाम 7 बजे तक अवकाश सहित कार्य करते हैं और नियमित चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों के समान ही दायित्व निभाते हैं, इसके बावजूद उन्हें मात्र ₹1,200 प्रतिमाह दिए जा रहे हैं, जो मनरेगा में मिलने वाली मजदूरी से भी कम है। दूसरी ओर, पुलिस अधीक्षक का तर्क था कि वे केवल लगभग डेढ़ घंटे प्रतिदिन काम करने वाले अंशकालिक कर्मचारी हैं इसलिए उन्हें 9 मार्च 2019 के सरकारी आदेश के तहत तय मानदेय से अधिक नहीं दिया जा सकता।
कामकाजी घंटों को लेकर विवाद के चलते हाईकोर्ट ने ललितपुर के सिविल जज (सीनियर डिवीजन) को आयुक्त नियुक्त कर निरीक्षण कराया। आयुक्त की रिपोर्ट में कहा गया कि दोनों थानों के परिसर को मात्र एक से डेढ़ घंटे में साफ करना व्यावहारिक रूप से संभव नहीं है और सार्वजनिक स्थान होने के कारण पूरे दिन निरंतर सफाई की आवश्यकता रहती है। निरीक्षण के दौरान पाई गई साफ-सफाई की स्थिति से यह निष्कर्ष निकाला गया कि सफाई का काम लगातार चल रहा होगा।
हालांकि उपस्थिति रजिस्टर और सीसीटीवी फुटेज उपलब्ध न होने से अदालत ने याचिकाकर्ताओं को पूरे समय के कर्मचारी घोषित नहीं किया लेकिन एक महत्वपूर्ण कानूनी प्रश्न पर निर्णय दिया क्या अंशकालिक श्रमिक न्यूनतम मजदूरी अधिनियम से बाहर हैं? इसका उत्तर नकारात्मक देते हुए जस्टिस मुनिर ने राज्य का यह तर्क पूरी तरह त्रुटिपूर्ण बताया कि याचिकाकर्ता विभागीय कर्मचारी नहीं हैं, इसलिए उन्हें न्यूनतम वेतन नहीं दिया जा सकता।
अदालत ने कहा कि चूंकि ये श्रमिक बाहरी रूप से श्रम सेवा प्रदान कर रहे हैं। इसलिए उन्हें अधिनियम, 1948 का संरक्षण मिलेगा। झाड़ू-पोंछा और सफाई को वर्ष 2005 में अनुसूचित रोजगार में शामिल किया जा चुका है और राज्य सरकार का प्रतिष्ठान होने के नाते पुलिस विभाग भी अधिनियम की धारा 2(ई) के तहत नियोक्ता है। 2019 का सरकारी आदेश केवल एक कार्यकारी आदेश है, जो न्यूनतम मजदूरी अधिनियम के तहत जारी वैधानिक अधिसूचना पर प्रभावी नहीं हो सकता।
हाईकोर्ट ने यह भी नोट किया कि अधिसूचनाओं के तहत अकुशल श्रमिक की प्रति घंटे न्यूनतम मजदूरी वर्ष 2022 में 62.45 से बढ़कर 2025 में 70.47 हो चुकी है। इस आधार पर भी याचिकाकर्ताओं को मिलने वाला मानदेय कानूनन तय दर से कम है।
आखिरकार, अदालत ने राज्य के सभी तर्क खारिज करते हुए निर्देश दिया कि याचिकाकर्ताओं को उनकी पूरी अवधि की सेवा के लिए न्यूनतम मजदूरी अधिनियम 1948 के अनुसार वेतन और बकाया राशि का भुगतान किया जाए।

