मजिस्ट्रेट इकोनॉमिक ऑफेंस विंग को कस्टोडियल टॉर्चर के आरोपों की जांच करने का निर्देश नहीं दे सकते: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट

Shahadat

6 Dec 2025 3:33 PM IST

  • मजिस्ट्रेट इकोनॉमिक ऑफेंस विंग को कस्टोडियल टॉर्चर के आरोपों की जांच करने का निर्देश नहीं दे सकते: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट

    जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने माना कि इकोनॉमिक ऑफेंस विंग, श्रीनगर के पास लागू नोटिफिकेशन के तहत कस्टोडियल टॉर्चर और हत्या से जुड़े आरोपों की जांच करने का कोई अधिकार नहीं है।

    कोर्ट ने कहा कि एक मजिस्ट्रेट को सिर्फ़ उस एजेंसी को जांच करने का निर्देश देने का अधिकार है, जिसके पास कथित अपराध का अधिकार क्षेत्र हो।

    कोर्ट, इकोनॉमिक ऑफेंस विंग, कश्मीर के सीनियर सुपरिटेंडेंट ऑफ़ पुलिस की याचिका पर सुनवाई कर रहा था, जिसमें कस्टोडियल टॉर्चर और मौत के आरोपों के संबंध में FIR दर्ज करने और उक्त विंग द्वारा जांच करने के आदेश को चुनौती दी गई।

    जस्टिस संजय धर की सिंगल बेंच ने मामले की सुनवाई करने और संबंधित रिकॉर्ड की जांच करने के बाद कहा:

    “शिकायत में रेस्पोंडेंट नंबर 1 का आरोप पुलिस स्टेशन, नौगाम की पुलिस द्वारा उसके बेटे को टॉर्चर करने और कस्टोडियल किलिंग के बारे में है। इस तरह के अपराध का ज़िक्र S.O. 232 के एनेक्सर में बताए गए अपराधों की लिस्ट में नहीं है, जो 09.05.2022 को जारी किया गया। इसलिए ट्रायल मजिस्ट्रेट को इकोनॉमिक ऑफेंस विंग, श्रीनगर को FIR दर्ज करने और मामले की जांच करने का निर्देश देने का अधिकार नहीं था, क्योंकि यह उक्त जांच एजेंसी के अधिकार क्षेत्र से बाहर है।”

    यह मामला तब उठा, जब रेस्पोंडेंट ने ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट के सामने शिकायत दर्ज कराई कि उसके बेटे को पुलिस स्टेशन नौगाम के अधिकारियों ने टॉर्चर करके मार डाला। मजिस्ट्रेट ने पुलिस स्टेशन क्राइम ब्रांच (अब इकोनॉमिक ऑफेंस विंग, श्रीनगर) को FIR दर्ज करने और एक कुशल पुलिस अधिकारी के ज़रिए मामले की जांच करने का निर्देश दिया।

    इस निर्देश को हाईकोर्ट में चुनौती देते हुए पिटीशनर ने कहा कि सरकार द्वारा जारी संबंधित नोटिफिकेशन के तहत इस तरह के अपराधों की जांच करने के लिए इकोनॉमिक ऑफेंस विंग के पास अधिकार नहीं है।

    हाईकोर्ट ने सरकार द्वारा जारी नोटिफिकेशन S.O. 232 तारीख 09.05.2022 की जांच की, जिसमें श्रीनगर में इकोनॉमिक ऑफेंस विंग के ऑफिस को पुलिस स्टेशन घोषित किया गया। साथ ही इसके सुपरिंटेंडेंट ऑफ पुलिस को स्टेशन हाउस ऑफिसर की शक्तियां दी गईं।

    कोर्ट ने कहा कि नोटिफिकेशन के साथ दिए गए अटैचमेंट में उन अपराधों की खास कैटेगरी बताई गईं, जिन्हें उक्त एजेंसी द्वारा रजिस्टर और जांचा जा सकता है।

    कोर्ट ने पाया कि हिरासत में टॉर्चर और हत्या के आरोप अपराधों की नोटिफाइड लिस्ट में नहीं आते हैं। इसलिए बेंच ने कहा कि एक मजिस्ट्रेट ऐसे पुलिस स्टेशन द्वारा जांच का निर्देश नहीं दे सकता, जिसके पास शिकायत के विषय पर नोटिफिकेशन-आधारित अधिकार नहीं है। कोऑर्डिनेट बेंच के पहले के उदाहरण का हवाला देते हुए कोर्ट ने दोहराया कि मजिस्ट्रेट किसी खास पुलिस स्टेशन के ऑफिसर-इन-चार्ज को जांच का आदेश दे सकता है, लेकिन यह अधिकार उस स्टेशन के कथित अपराध की जांच करने के अधिकार क्षेत्र पर निर्भर करता है। बाकी सभी मामलों में, निर्देश सिर्फ़ सक्षम अधिकार क्षेत्र वाले पुलिस स्टेशन को ही जारी किए जाने चाहिए।

    इसलिए मजिस्ट्रेट का आदेश कानून के खिलाफ पाया गया, जो इकोनॉमिक ऑफेंस विंग की बताई गई शक्तियों के दायरे से बाहर था।

    याचिका मंज़ूरी देते हुए कोर्ट ने मजिस्ट्रेट का आदेश रद्द कर दिया और सक्षम अधिकार क्षेत्र वाले पुलिस अधिकारियों को निर्देश देकर शिकायत को कानून के अनुसार नए सिरे से विचार के लिए वापस भेज दिया।

    Case Title: Senior Superintendent of Police, Economic Offences Wing, Kashmir v. Shafiqa Muneer & Another

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