चार्जशीट व संज्ञान आदेश रिकॉर्ड पर न होने पर धारा 528 BNSS के तहत FIR रद्द नहीं की जा सकती : इलाहाबाद हाईकोर्ट
Praveen Mishra
4 Dec 2025 7:46 PM IST

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में BNSS की धारा 528 के तहत दायर एक आवेदन को खारिज कर दिया, जिसमें मात्र FIR को रद्द करने की मांग की गई थी। कोर्ट ने कहा कि जब आरोपपत्र (Chargesheet) और संज्ञान आदेश (Cognizance Order) रिकॉर्ड पर नहीं लाए गए हों, तब धारा 528 BNSS के तहत दायर ऐसी याचिका रखरखाव योग्य नहीं है।
जस्टिस जितेन्द्र कुमार सिन्हा की एकल पीठ ने स्पष्ट किया कि यदि आवेदक केवल FIR को चुनौती देता है और चार्जशीट व संज्ञान आदेश दाखिल नहीं करता, तो धारा 528 BNSS का प्रयोग नहीं किया जा सकता। यह निर्णय सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले Pradnya Pranjal Kulkarni vs. State of Maharashtra & Anr., 2025 LiveLaw (SC) 875 पर आधारित है।
सुप्रीम कोर्ट का सिद्धांत
इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि—
- संज्ञान लेने से पहले FIR या चार्जशीट को अनुच्छेद 226 के तहत रद्द किया जा सकता है।
- लेकिन संज्ञान लिए जाने के बाद, FIR/चार्जशीट और संज्ञान आदेश—तीनों को चुनौती देने का सही उपाय धारा 528 BNSS (पुरानी धारा 482 CrPC) के तहत ही है।
मामला क्या था?
आवेदक विश्व बंधु ने IPC की धारा 420, 467, 468 और 471 के तहत दर्ज FIR को रद्द करने के लिए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। मुख्य आधार यह था कि समान तथ्यों पर दर्ज दूसरी FIR कानून का दुरुपयोग है, जैसा कि सुप्रीम कोर्ट ने T.T. Antony vs. State of Kerala में कहा था।
राज्य का पक्ष और कोर्ट की राय
राज्य ने आपत्ति उठाते हुए कहा कि जांच चरण में FIR को चुनौती देने का उचित उपाय अनुच्छेद 226 के तहत रिट याचिका है, न कि धारा 528 BNSS।
कोर्ट ने इस आपत्ति को सही ठहराते हुए कहा:
“आवेदक ने केवल FIR को रद्द करने की मांग की है। उन्होंने न तो चार्जशीट और न ही सक्षम अदालत द्वारा लिए गए संज्ञान आदेश को रिकॉर्ड पर रखा है। सुप्रीम कोर्ट के Pradnya Pranjal Kulkarni फैसले के अनुसार, जब चार्जशीट व संज्ञान रिकॉर्ड पर नहीं हों, तो धारा 528 BNSS का प्रयोग कर FIR रद्द नहीं की जा सकती। अतः आवेदन अखंडनीय (not maintainable) है।”
1989 के Full Bench निर्णय पर चर्चा
दिलचस्प रूप से, 1989 के प्रसिद्ध Ram Lal Yadav फैसले के सिद्धांतों को इसी साल जस्टिस अरुण कुमार सिंह देशवाल ने “पुराना” बताते हुए सवालों के घेरे में रखा था।
उन्होंने कहा था:
“फुल बेंच के Ram Lal Yadav के निर्णय में स्थापित सिद्धांत अब हालिया सुप्रीम कोर्ट के फैसलों के बाद लागू नहीं रह गए हैं… परंतु न्यायिक अनुशासन के तहत मामला नौ-जजों की बड़ी पीठ को संदर्भित किया जाता है।”
यह संदर्भ वर्तमान में लंबित है।

