हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

Shahadat

15 Nov 2025 11:45 PM IST

  • हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

    देश के विभिन्न हाईकोर्ट में पिछले सप्ताह (10 नवंबर, 2025 से 14 नवंबर, 2025) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं हाईकोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह हाईकोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।

    महाराष्ट्र में सहकारी समिति के विभाजन के लिए CIDCO से पूर्व अनुमति की आवश्यकता नहीं: बॉम्बे हाईकोर्ट

    बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा कि महाराष्ट्र सहकारी समिति अधिनियम, 1960 की धारा 18 के तहत किसी सहकारी समिति के विभाजन के लिए CIDCO से पूर्व अनुमति की आवश्यकता नहीं है। नवगठित समिति का पंजीकरण ही क़ानून द्वारा परिकल्पित परिसंपत्तियों और देनदारियों के आवश्यक हस्तांतरण को प्रभावित करता है। न्यायालय ने कहा कि जहां क़ानून मौन है, वहां बाहरी अनुमोदन की आवश्यकता लागू करना विधायी योजना के विपरीत होगा।

    जस्टिस अमित बोरकर बालाजी टावर सहकारी आवास समिति और अन्य द्वारा दायर रिट याचिकाओं पर सुनवाई कर रहे थे, जिसमें अपीलीय आदेश को चुनौती दी गई, जिसमें श्री गणेश सीएचएस लिमिटेड (प्रतिवादी नंबर 4) को दो अलग-अलग समितियों में विभाजित करने के संयुक्त रजिस्ट्रार के फैसले को रद्द कर दिया गया। याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि मूल समिति के दोनों खंड, व्यवहार में वर्षों से स्वतंत्र रूप से कार्य कर रहे थे, उनके पास अलग-अलग पहुंच, अलग-अलग बिजली और पानी के कनेक्शन, अलग-अलग रखरखाव खाते और कर निर्धारण थे। इसलिए यह तर्क दिया गया कि धारा 18 के तहत विभाजन उचित और वैध था। हालांकि, राज्य और सिडको ने तर्क दिया कि CIDCO की पूर्व अनुमति आवश्यक है, क्योंकि यह भूमि CIDCO की स्वीकृत लेआउट और विकास योजनाओं का हिस्सा है।

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    केवल इसलिए विभागीय कार्यवाही पर रोक नहीं लगाई जा सकती, क्योंकि आपराधिक मामला लंबित है, जब तक कि पूर्वाग्रह न दिखाया गया हो: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट

    जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने कहा कि केवल इसलिए विभागीय कार्यवाही नहीं रोकी जा सकती, क्योंकि उन्हीं आरोपों पर एक आपराधिक मामला लंबित है। हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि रोक तभी उचित है, जब आपराधिक मामला गंभीर प्रकृति का हो और उसमें तथ्य और कानून के जटिल प्रश्न शामिल हों, और जहां अनुशासनात्मक कार्रवाई जारी रखने से कर्मचारी के बचाव पर प्रतिकूल प्रभाव पड़े। कोर्ट सीमा सुरक्षा बल के अधिकारी द्वारा दायर दो रिट याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा था, जिसमें BSF नियमों के नियम 173 के तहत अपने निलंबन और विभागीय जांच को चुनौती दी गई थी। साथ ही एक संबंधित अवमानना ​​याचिका भी थी।

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    बर्खास्तगी केवल लंबित आपराधिक मामले के आधार पर हुई हो तो कर्मचारी को बरी होने के बाद बहाल किया जाना चाहिए: राजस्थान हाईकोर्ट

    राजस्थान हाईकोर्ट ने कहा कि यदि किसी कर्मचारी की बर्खास्तगी का मूल आधार उसके विरुद्ध लंबित आपराधिक मामला है। उस आपराधिक मामले के परिणामस्वरूप सक्षम आपराधिक न्यायालय द्वारा कर्मचारी को बरी कर दिया जाता है तो ऐसी बर्खास्तगी का आधार समाप्त हो जाता है और नियोक्ता को कर्मचारी को बहाल करना होगा।

    जस्टिस डॉ. पुष्पेंद्र सिंह भाटी और जस्टिस अनुरूप सिंघी की खंडपीठ ने श्रम न्यायालय और सिंगल जज की पीठ के उस आदेश को बरकरार रखा, जिसमें उस कर्मचारी के पक्ष में फैसला सुनाया गया था, जिसे एक लंबित आपराधिक मामले के कारण बर्खास्त कर दिया गया और बरी होने के बाद भी उसे बहाल करने से इनकार कर दिया गया।

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    अधिग्रहण अधिसूचना के बाद निष्पादित विक्रय-पत्रों का उपयोग भूमि मूल्य बढ़ाने के लिए नहीं किया जा सकता: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट

    हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने कहा कि अधिग्रहण अधिसूचना जारी होने के बाद निष्पादित विक्रय-पत्रों का उपयोग बाजार मूल्य निर्धारित करने के लिए नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने टिप्पणी की कि उचित बाजार मूल्य के आकलन के लिए केवल अधिग्रहण अधिसूचना से पहले निष्पादित विक्रय-पत्रों पर ही भरोसा किया जा सकता है। बाद में निष्पादित विक्रय-पत्र अक्सर भूमि की बढ़ी हुई कीमतों को दर्शाने के उद्देश्य से होते हैं।

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    यूपी की ट्रायल अदालतें फैसले हिंदी या अंग्रेजी में लिख सकती हैं, लेकिन दोनों भाषाओं का मिश्रित जजमेंट नहीं: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि उत्तर प्रदेश की ट्रायल अदालतें अपने फैसले या तो पूरी तरह हिंदी में लिखें या पूरी तरह अंग्रेजी में, लेकिन दोनों भाषाओं को मिलाकर लिखा गया जजमेंट स्वीकार्य नहीं है। अदालत ने आगरा की सत्र अदालत द्वारा दिए गए एक बरी करने के फैसले को “क्लासिक उदाहरण” बताते हुए इसकी प्रति मुख्य न्यायाधीश और पूरे राज्य के न्यायिक अधिकारियों को भेजने का निर्देश दिया।

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    नाबालिग को बिना लाइसेंस वाहन चलाने देना बीमा पॉलिसी का मूल उल्लंघन: मध्यप्रदेश हाईकोर्ट

    मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि यदि वाहन मालिक लापरवाही बरतते हुए किसी नाबालिग को बिना वैध ड्राइविंग लाइसेंस के वाहन चलाने की अनुमति देता है या ऐसा होने देता है तो यह बीमा पॉलिसी की मूल शर्तों का गंभीर उल्लंघन माना जाएगा। जस्टिस हिमांशु जोशी की एकल पीठ ने कहा कि यह बड़ों का दायित्व है कि नाबालिगों को उन रास्तों पर जाने से रोका जाए, जो उनकी उम्र के अनुकूल नहीं हैं विशेष रूप से वाहन चलाने जैसे कार्य जिसके लिए परिपक्वता और कानूनी अनुमति दोनों आवश्यक हैं।

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    क्रिमिनल ट्रायल के दौरान बिना अनुमति विदेश जाने पर भी पासपोर्ट नवीनीकरण से इनकार नहीं किया जा सकता: राजस्थान हाईकोर्ट

    आपराधिक मामले के लम्बित रहने पर भी दस वर्ष के लिए पासपोर्ट जारी करने के आदेश देते हुए राजस्थान हाईकोर्ट ने कहा कि न्यायालय की बिना अनुमति के आरोपी के विदेश जाने पर विचारण न्यायालय जमानत के संबंध में समुचित आदेश पारित कर सकता है, लेकिन पासपोर्ट नवीनीकरण से इनकार नहीं कर सकता।

    डीडवाना निवासी रहीस खान की ओर से एडवोकेट रजाक खान हैदर ने आपराधिक विविध याचिका दायर कर हाईकोर्ट में कहा कि उसके खिलाफ वर्ष 2019 में मारपीट के आरोप में आपराधिक प्रकरण संस्थित हुआ था, जिसका विचारण अपर मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, डीडवाना के समक्ष चल रहा है। जिसमें वर्ष 2019 में सेशन न्यायालय ने उसे जमानत पर रिहा कर दिया था।

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    APAR न रखने की विभागीय चूक पर कर्मचारी को सज़ा नहीं दी जा सकती: राजस्थान हाईकोर्ट

    राजस्थान हाईकोर्ट ने महत्त्वपूर्ण फैसले में साफ किया कि कर्मचारी की वार्षिक गोपनीय आख्या (ACR/APAR) संरक्षित न रख पाने की गलती यदि स्वयं विभाग की हो तो उसके आधार पर संशोधित आश्वस्त करियर प्रगति योजना (MACP) का लाभ नहीं रोका जा सकता। अदालत ने केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण (कैट) का आदेश बरकरार रखा, जिसमें कर्मचारी के पक्ष में निर्णय दिया गया।

    जस्टिस विनीत कुमार माथुर और जस्टिस बिपिन गुप्ता की खंडपीठ ने कहा कि APAR को संधारित करना पूर्णतः नियोक्ता का दायित्व है और कर्मचारी का इस पर कोई नियंत्रण नहीं होता। ऐसे में विभाग अपनी ही चूक का फायदा उठाकर उस लाभ से कर्मचारी को वंचित नहीं कर सकता, जिसका वह हकदार है। अदालत ने यह भी टिप्पणी की कि जब रिकॉर्ड विभाग के पास ही नहीं हैं तो दोष कर्मचारी पर डालना कानूनन अनुचित है।

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    सेल डीड और भूमि अधिग्रहण अधिसूचना के बीच कम अंतराल होने पर मूल्य में कोई संचयी वृद्धि दर नहीं दी जा सकती: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट

    हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने कहा कि जब बिक्री लेनदेन की तिथि और भूमि अधिग्रहण अधिसूचना के बीच कम अंतराल हो तो भूमि के बाजार मूल्य का आकलन करते समय संचयी वृद्धि दर नहीं दी जा सकती। कोर्ट ने टिप्पणी की कि चूंकि सेल डीड और अधिग्रहण अधिसूचना नौ महीने की अवधि के भीतर जारी की गई थी, इसलिए बाजार मूल्य का आकलन करते समय संचयी वृद्धि दर की अनुमति नहीं दी जा सकती।

    जस्टिस कुकरेजा ने टिप्पणी की: "अतः, अधिसूचना जारी करने की तिथि और सेल डीड के निष्पादन की तिथि के बीच बहुत कम अंतराल को देखते हुए भूमि के बाजार मूल्य का आकलन करते समय संचयी वृद्धि दर नहीं दी जा सकती।"

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    जेल सुपरिंटेंडेंट स्वास्थ्य विभाग से प्रतिनियुक्ति पर आए मेडिकल अधिकारी के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही शुरू नहीं कर सकते: राजस्थान हाईकोर्ट

    राजस्थान हाईकोर्ट ने माना कि केंद्रीय कारागार के सुपरिंटेंडेंट, एक अलग प्रशासनिक विभाग होने के नाते मेडिकल एवं स्वास्थ्य विभाग से प्रतिनियुक्त चिकित्सा अधिकारी के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही शुरू करने का कोई अधिकार या क्षमता नहीं रखते हैं।

    जस्टिस फरजंद अली की पीठ ने याचिकाकर्ता के स्थानांतरण आदेशों को रद्द करते हुए ये टिप्पणियां कीं, जिनमें राजस्थान सिविल सेवा (वर्गीकरण, नियंत्रण एवं अपील) नियम, 1958 ("नियम") के तहत जेल अधीक्षक को उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही शुरू करने का निर्देश भी शामिल था।

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    घूस की रकम लौटाने के लिए जारी चेक के बाउंस पर धारा 138 लागू नहीं: मद्रास हाईकोर्ट

    मद्रास हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि घूस की रकम वापस करने के लिए जारी किया गया चेक बाउंस होने पर नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट की धारा 138 के तहत मुकदमा नहीं चलाया जा सकता, क्योंकि यह कानूनी रूप से वसूली योग्य ऋण (legally enforceable debt) नहीं माना जाता।

    जस्टिस के. मुरली शंकर ने कहा कि नौकरी दिलाने के लिए पैसे लेना-देना एक ऐसा समझौता है जो शुरू से ही अवैध (void ab initio) है और भारतीय अनुबंध अधिनियम की धारा 23 के तहत गैरकानूनी माना जाता है। इसलिए, ऐसी अवैध राशि लौटाने के लिए जारी चेक पर धारा 138 लागू नहीं होगी।

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    बिजली अधिनियम की धारा 151 के तहत अनधिकृत व्यक्ति द्वारा दर्ज शिकायत पर संज्ञान लेने से पूरी कार्यवाही अमान्य: बॉम्बे हाईकोर्ट

    बॉम्बे हाईकोर्ट ने एक महत्त्वपूर्ण निर्णय में कहा कि यदि किसी अदालत द्वारा बिजली अधिनियम 2003 की धारा 151 के तहत अनधिकृत व्यक्ति द्वारा दायर शिकायत पर संज्ञान लिया जाता है तो यह केवल एक प्रक्रियात्मक त्रुटि नहीं बल्कि मूलभूत अवैधता है, जो पूरे मुकदमे को निष्फल कर देती है। जस्टिस एम. एम. नेर्लिकर की एकल पीठ राज्य सरकार की उस आपराधिक अपील पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें ट्रायल कोर्ट द्वारा आरोपी को बरी किए जाने के आदेश को चुनौती दी गई थी।

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    विवाहित संतान को पिता की संपत्ति पर अधिकार नहीं, बिना अनुमति रहने का हक नहीं : राजस्थान हाईकोर्ट

    राजस्थान हाईकोर्ट ने महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि कोई भी वयस्क और विवाहित संतान अपने पिता की स्व-अर्जित संपत्ति में उसकी अनुमति के बिना रहने का अधिकार नहीं रखती। अदालत ने स्पष्ट किया कि यदि पिता ऐसी अनुमति वापस ले लेता है तो पुत्र या पुत्री को संपत्ति खाली करनी होगी, क्योंकि इस स्थिति में उनका कब्जा केवल प्रेम और स्नेहवश दिया गया, न कि किसी कानूनी अधिकार के तहत।

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    वैधानिक नियमों के तहत उत्तर प्रदेश पुलिस अधिकारी दो महीने के अनिवार्य नोटिस के बिना इस्तीफ़ा नहीं दे सकते: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि यदि कोई पुलिस अधिकारी इस्तीफ़ा मांगता है तो उसे पुलिस अधिनियम, 1961 के साथ उत्तर प्रदेश पुलिस विनियमावली के विनियम 505 के तहत विभाग को अनिवार्य दो महीने की नोटिस अवधि प्रदान करनी होगी। जस्टिस विकास बुधवार ने कहा कि उपर्युक्त प्रावधानों का पालन न करने पर इस्तीफ़ा दोषपूर्ण हो जाएगा।

    याचिकाकर्ता को 2010 में दिल्ली पुलिस में कांस्टेबल और बाद में 2017 में उत्तर प्रदेश पुलिस में सब-इंस्पेक्टर के पद पर नियुक्त किया गया। इसके बाद उन्होंने दिल्ली पुलिस में फिर से शामिल होने के लिए मेडिकल आधार पर कार्यमुक्ति की मांग की। उनका इस्तीफ़ा स्वीकार कर लिया गया और उनसे प्रशिक्षण लागत की वसूली शुरू कर दी गई।

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    हत्या के प्रयास का अपराध दर्ज करने के लिए चोट का होना ज़रूरी नहीं: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट

    मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने मंगलवार (11 नवंबर) को कहा कि भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 307/BNS की धारा 109(1) के तहत हत्या के प्रयास का अपराध दर्ज करने के लिए चोट का होना ज़रूरी नहीं है। अदालत ने आगे स्पष्ट किया कि यदि कोई भी कार्य इस इरादे या ज्ञान के साथ किया जाता है कि इससे मृत्यु हो सकती है तो हमलावर हत्या के प्रयास का दोषी होगा।

    जस्टिस गजेंद्र सिंह की पीठ ने कहा; "यह स्पष्ट है कि चोट का होना IPC की धारा 307 के तहत अपराध बनाने के लिए अनिवार्य शर्त नहीं है। यदि कोई कार्य इस आशय या ज्ञान के साथ किया जाता है कि यदि हमलावर उस कार्य से मृत्यु का कारण बनता है तो हमलावर हत्या का दोषी होगा तो ऐसा कार्य निश्चित रूप से IPC की धारा 307 के तहत दंडनीय होगा। इस प्रकार, चोटों की प्रकृति यह निर्धारित करने के लिए निर्णायक कारक नहीं है कि हमलावर का कार्य IPC की धारा 307 के तहत दंडनीय कार्य होगा या नहीं।"

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    कर्मचारी की सेवा से बर्खास्तगी के बाद कोई अनुशासनात्मक कार्यवाही शुरू नहीं की जा सकती: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट

    पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने कहा कि एक बार नियोक्ता और कर्मचारी का संबंध बर्खास्तगी के माध्यम से निर्णायक रूप से टूट जाने पर नियोक्ता पदेन हो जाता है। बर्खास्त कर्मचारी के विरुद्ध अनुशासनात्मक कार्यवाही शुरू करने या जारी रखने का अधिकार खो देता है।

    जस्टिस हरप्रीत सिंह बराड़ ने कहा, "अनुशासनात्मक अधिकार क्षेत्र को नियंत्रित करने वाला मूलभूत सिद्धांत स्वामी और सेवक, या नियोक्ता और कर्मचारी के बीच विद्यमान न्यायिक संबंध की अनिवार्य आवश्यकता है। यह अधिकार क्षेत्र संगठन के भीतर कर्मचारी की सक्रिय स्थिति पर स्वाभाविक रूप से निर्भर करता है।"

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    UAPA मामलों में 90 दिन से अधिक की हिरासत बढ़ाने का अधिकार सिर्फ स्पेशल या सेशंस कोर्ट को, मजिस्ट्रेट को नहीं: राजस्थान हाईकोर्ट

    राजस्थान हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण आदेश देते हुए मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट (CJM) द्वारा UAPA आरोपी की न्यायिक हिरासत को अतिरिक्त 90 दिन बढ़ाने के आदेश को अवैध, अधिकार क्षेत्र से बाहर और विकृत मानते हुए रद्द कर दिया। अदालत ने कहा कि इस तरह की हिरासत बढ़ाने का अधिकार केवल स्पेशल कोर्ट या उसकी अनुपस्थिति में सेशंस कोर्ट के पास है। मजिस्ट्रेट कोर्ट ऐसा आदेश पारित नहीं कर सकता।

    जस्टिस सुदेश बंसल की एकल पीठ ने स्पष्ट किया कि UAPA के तहत दर्ज अपराध NIA Act 2008 की अनुसूची में शामिल अपराध हैं। ऐसे मामलों से संबंधित सभी कार्यवाही स्पेशल कोर्ट के अधिकार क्षेत्र में आती हैं।

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    MV Act की धारा 140 के तहत चालक नहीं, वाहन मालिक अंतरिम मुआवज़े का जिम्मेदार : हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट

    हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने महत्वपूर्ण निर्णय में स्पष्ट किया कि मोटर वाहन अधिनियम, 1988 की धारा 140 के तहत नो–फॉल्ट सिद्धांत के आधार पर अंतरिम मुआवज़ा देने की जिम्मेदारी केवल वाहन मालिक की होती है। चालक को मालिक के साथ संयुक्त रूप से जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता। जस्टिस सुशील कुकेजा ने कहा कि चालक को मुआवज़े की राशि के लिए मालिक के साथ संयुक्त या पृथक रूप से उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता, क्योंकि कानून साफ तौर पर वाहन के मालिक को ही उत्तरदायी मानता है।

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