यूपी की ट्रायल अदालतें फैसले हिंदी या अंग्रेजी में लिख सकती हैं, लेकिन दोनों भाषाओं का मिश्रित जजमेंट नहीं: इलाहाबाद हाईकोर्ट
Praveen Mishra
14 Nov 2025 5:44 PM IST

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि उत्तर प्रदेश की ट्रायल अदालतें अपने फैसले या तो पूरी तरह हिंदी में लिखें या पूरी तरह अंग्रेजी में, लेकिन दोनों भाषाओं को मिलाकर लिखा गया जजमेंट स्वीकार्य नहीं है।
अदालत ने आगरा की सत्र अदालत द्वारा दिए गए एक बरी करने के फैसले को “क्लासिक उदाहरण” बताते हुए इसकी प्रति मुख्य न्यायाधीश और पूरे राज्य के न्यायिक अधिकारियों को भेजने का निर्देश दिया।
हाईकोर्ट ने पाया कि विवादित फैसला 54 पन्नों का था, जिसमें 63 पैराग्राफ अंग्रेजी में, 125 हिंदी में और 11 पैराग्राफ दोनों भाषाओं के मिश्रण में थे, जिससे साधारण हिंदी भाषी व्यक्ति फैसला समझ नहीं सकता। कोर्ट ने कहा कि जजमेंट एक ही भाषा में लिखा जाना चाहिए, हालांकि सुप्रीम कोर्ट/हाईकोर्ट के अंग्रेजी अंश या हिंदी में दर्ज dying declaration जैसे उद्धरण अपनी मूल भाषा में दिए जा सकते हैं, बशर्ते उनका अनुवाद भी दिया जाए। मामले के मेरिट पर, हाईकोर्ट ने 2021 की दहेज मृत्यु में पति की बरी को सही ठहराते हुए कहा कि अभियोजन दहेज मांग से जुड़ी क्रूरता साबित नहीं कर सका।
मृतका की मृत्यु सात वर्ष के भीतर और अप्राकृतिक (एल्यूमिनियम फॉस्फाइड विषाक्तता) थी, लेकिन PW-1 और PW-2 के बयान विरोधाभासी थे और कोई “soon before death” क्रूरता सिद्ध नहीं हुई। रिकॉर्ड से यह भी सामने आया कि पति ने पत्नी को अस्पताल पहुँचाया, बिल भरे और अंतिम संस्कार किया, जो उसके “सद्भावपूर्ण आचरण” को दर्शाता है। हाईकोर्ट ने कहा कि ट्रायल कोर्ट का फैसला साक्ष्यों की सही सराहना पर आधारित है और अपील खारिज कर दी।

