घूस की रकम लौटाने के लिए जारी चेक के बाउंस पर धारा 138 लागू नहीं: मद्रास हाईकोर्ट

Praveen Mishra

13 Nov 2025 5:45 PM IST

  • घूस की रकम लौटाने के लिए जारी चेक के बाउंस पर धारा 138 लागू नहीं: मद्रास हाईकोर्ट

    मद्रास हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि घूस की रकम वापस करने के लिए जारी किया गया चेक बाउंस होने पर नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट की धारा 138 के तहत मुकदमा नहीं चलाया जा सकता, क्योंकि यह कानूनी रूप से वसूली योग्य ऋण (legally enforceable debt) नहीं माना जाता।

    जस्टिस के. मुरली शंकर ने कहा कि नौकरी दिलाने के लिए पैसे लेना-देना एक ऐसा समझौता है जो शुरू से ही अवैध (void ab initio) है और भारतीय अनुबंध अधिनियम की धारा 23 के तहत गैरकानूनी माना जाता है। इसलिए, ऐसी अवैध राशि लौटाने के लिए जारी चेक पर धारा 138 लागू नहीं होगी।

    कोर्ट ने कहा:

    “चूंकि शिकायतकर्ता का मामला यह है कि TNSTC में नौकरी दिलाने के लिए पैसा दिया गया था और उसी रकम को वापस करने के लिए चेक जारी किया गया, इसलिए इसे कानूनी देनदारी नहीं माना जा सकता। अतः धारा 138 लागू नहीं होती।”

    मामले की पृष्ठभूमि:

    यह अपील एक फास्ट ट्रैक न्यायिक मजिस्ट्रेट कोर्ट के उस आदेश के खिलाफ दायर की गई थी, जिसमें आरोपी को धारा 138 के तहत बरी कर दिया गया था।

    शिकायतकर्ता का आरोप था कि आरोपी TNSTC, विरुधुनगर में मैकेनिकल सेक्शन में काम करता था और उसने यूनियन में अपने प्रभाव का उपयोग कर उसे नौकरी दिलाने का वादा किया था। इसके बदले उसने ₹3 लाख की मांग की, जो 10 फरवरी 2016 को दे दिए गए।

    लेकिन नौकरी न मिलने पर शिकायतकर्ता ने पैसे वापस मांगे। आरोपी ने SBI का एक चेक दिया, जो “पुराना और अवैध” बताकर बैंक ने लौटा दिया। फिर नया चेक जारी किया गया, जो “पर्याप्त राशि न होने” पर बाउंस हो गया।

    कानूनी नोटिस का जवाब न मिलने पर शिकायत दर्ज की गई। ट्रायल कोर्ट ने कहा कि चेक कानूनी रूप से वसूली योग्य देनदारी के लिए नहीं था, इसलिए आरोपी को बरी कर दिया गया।

    दोनों पक्षों की दलीलें

    • शिकायतकर्ता: आरोपी ने क्रॉस-एग्ज़ामिनेशन में रकम लेने की बात स्वीकार की थी; चेक एक अलग कारण से जारी हुआ था, इसलिए मामला धारा 138 के तहत बनता है।

    • आरोपी: यह राशि नौकरी दिलाने के अवैध सौदे से जुड़ी थी, इसलिए देनदारी कानूनी नहीं थी।

    कोर्ट का विश्लेषण

    कोर्ट ने “in pari delicto potior est conditio possidentis” सिद्धांत का हवाला दिया—

    जब दोनों पक्ष गलत हों या अनैतिक लेन-देन में शामिल हों, तो अदालत किसी की मदद नहीं करती।

    कोर्ट ने कहा—

    • नौकरी के बदले पैसे लेना अनैतिक और अवैध है

    • ऐसा समझौता शुरू से ही शून्य (void ab initio) होता है

    • धारा 65 (restitution) लागू नहीं होगी, क्योंकि यह उन समझौतों पर लागू होती है जो बाद में शून्य पाए जाते हैं, न कि जो शुरू से ही अवैध हों

    ट्रायल कोर्ट के आदेश में कोई त्रुटि नहीं पाई गई। इसलिए हाईकोर्ट ने अपील खारिज कर दी।

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