केवल इसलिए विभागीय कार्यवाही पर रोक नहीं लगाई जा सकती, क्योंकि आपराधिक मामला लंबित है, जब तक कि पूर्वाग्रह न दिखाया गया हो: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट

Shahadat

15 Nov 2025 7:33 PM IST

  • केवल इसलिए विभागीय कार्यवाही पर रोक नहीं लगाई जा सकती, क्योंकि आपराधिक मामला लंबित है, जब तक कि पूर्वाग्रह न दिखाया गया हो: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट

    जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने कहा कि केवल इसलिए विभागीय कार्यवाही नहीं रोकी जा सकती, क्योंकि उन्हीं आरोपों पर एक आपराधिक मामला लंबित है।

    हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि रोक तभी उचित है, जब आपराधिक मामला गंभीर प्रकृति का हो और उसमें तथ्य और कानून के जटिल प्रश्न शामिल हों, और जहां अनुशासनात्मक कार्रवाई जारी रखने से कर्मचारी के बचाव पर प्रतिकूल प्रभाव पड़े।

    कोर्ट सीमा सुरक्षा बल के अधिकारी द्वारा दायर दो रिट याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा था, जिसमें BSF नियमों के नियम 173 के तहत अपने निलंबन और विभागीय जांच को चुनौती दी गई थी। साथ ही एक संबंधित अवमानना ​​याचिका भी थी।

    जस्टिस संजय धर की पीठ ने याचिकाओं को खारिज करते हुए कहा,

    "यह नहीं कहा जा सकता कि विभागीय कार्यवाही को आपराधिक मामले के फैसले तक स्थगित रखा जाना आवश्यक है, जब तक कि यह साबित न हो जाए कि याचिकाकर्ता के खिलाफ आपराधिक मामला गंभीर प्रकृति का होने के साथ-साथ कानून और तथ्य के जटिल प्रश्न से जुड़ा है। याचिकाकर्ता के खिलाफ विभागीय कार्यवाही जारी रखने से उसके बचाव पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।"

    यह मामला तब उठा जब BSF में सहायक कमांडेंट के रूप में कार्यरत याचिकाकर्ता पर बल की एक महिला ASI द्वारा दर्ज कराई गई शिकायत के आधार पर भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 376 के तहत आपराधिक मामला दर्ज किया गया। एक आरोप पत्र दायर किया गया और नई दिल्ली स्थित सक्षम न्यायालय में आपराधिक मुकदमा चल रहा है।

    इसके बाद BSF अधिकारियों ने उसी ASI द्वारा बल को सौंपी गई शिकायत के आधार पर BSF नियमों के नियम 173 के तहत विभागीय कार्यवाही शुरू की। कदाचार के आरोपों की जांच के लिए एक स्टाफ कोर्ट ऑफ इन्क्वायरी का आदेश दिया गया।

    याचिकाकर्ता ने विभागीय कार्यवाही शुरू करने को चुनौती दी और अपने निलंबन को बार-बार बढ़ाए जाने पर भी सवाल उठाया। उन्होंने तर्क दिया कि आरोप व्यक्तिगत मामले हैं, यदि विभागीय कार्यवाही जारी रही तो आपराधिक मामले में उनका बचाव पक्ष पूर्वाग्रह से ग्रस्त होगा, और उनका लंबा निलंबन अनुचित था।

    कोर्ट ने एक साथ आपराधिक और विभागीय कार्यवाही को नियंत्रित करने वाले कानूनी ढांचे की जांच की। राजस्थान राज्य बनाम बी.के. मीणा, कैप्टन एम. पॉल एंथनी बनाम भारत गोल्ड माइंस लिमिटेड, और डिपो मैनेजर, एपीएसआरटीसी बनाम मोहम्मद यूसुफ मिया में सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों पर भरोसा करते हुए कोर्ट ने दोहराया कि दोनों मामलों में एक साथ कार्यवाही करने पर कोई कानूनी रोक नहीं है।

    कोर्ट ने कहा कि स्थगन केवल तभी आवश्यक हो सकता है, जब आपराधिक आरोप गंभीर प्रकृति का हो और उसमें तथ्य और कानून के जटिल प्रश्न शामिल हों और जहां विभागीय कार्यवाही जारी रहने से आरोपी कर्मचारी के बचाव पक्ष को पूर्वाग्रह होने की संभावना हो।

    हालांकि, न्यायालय ने माना कि यह आरोप कि शिकायतकर्ता को शादी का झूठा वादा करके यौन संबंध बनाने के लिए प्रेरित किया गया, कानून या तथ्य के जटिल प्रश्नों से संबंधित नहीं था। इसने आगे कहा कि याचिकाकर्ता ने पहले ही रिट याचिकाओं, अभ्यावेदनों और यहां तक कि अपनी ज़मानत याचिका में भी अपने बचाव का खुलासा कर दिया, जिससे किसी भी तरह के पूर्वाग्रह की संभावना को खारिज कर दिया गया।

    खंडपीठ ने आपराधिक अभियोजन और अनुशासनात्मक कार्रवाई के अलग-अलग उद्देश्यों पर भी ज़ोर दिया और कहा कि सेवा में अनुशासन और दक्षता बनाए रखने के लिए विभागीय कार्यवाही आवश्यक है और इसमें अनावश्यक देरी नहीं होनी चाहिए।

    निलंबन के मामले में न्यायालय ने कहा कि याचिकाकर्ता द्वारा स्वयं प्राप्त अंतरिम आदेश के कारण विभागीय कार्यवाही पर रोक लगा दी गई। इसने माना कि याचिकाकर्ता अपने कार्यों के कारण पूर्वाग्रह या देरी का दावा नहीं कर सकता।

    तदनुसार, कोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि विभागीय कार्यवाही पर रोक लगाने या निलंबन आदेशों में हस्तक्षेप करने का कोई आधार नहीं बनता। दोनों रिट याचिकाओं में कोई दम न पाते हुए हाईकोर्ट ने उन्हें खारिज कर दिया और सभी अंतरिम निर्देशों को रद्द कर दिया।

    Case Title: Akhand Prakash Shahi v. Union of India & Another

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