हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र
Shahadat
8 Jun 2025 10:00 AM IST

देश के विभिन्न हाईकोर्ट में पिछले सप्ताह (02 जून, 2025 से 06 जून, 2025) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं हाईकोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह हाईकोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।
एक बार अभ्यर्थियों को नियमित पदों पर समाहित कर लिया जाए तो प्रारंभिक नियुक्तियों में अनियमितता को ठीक मान लिया जाएगाः इलाहाबाद हाईकोर्ट
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने माना कि एक बार अपीलकर्ता-कर्मचारियों को नियमित पदों पर रिक्तियों के विरुद्ध समाहित कर लिया जाए तो उनकी प्रारंभिक नियुक्ति के समय जो भी अनियमितता रही होगी उसे ठीक मान लिया जाएगा। अस्वीकृत पदों पर नियुक्तियों के कारण कर्मचारियों की बाद में बर्खास्तगी के मामले में जस्टिस सिद्धार्थ वर्मा और जस्टिस डॉ. योगेंद्र कुमार श्रीवास्तव की खंडपीठ ने कहा कि अपीलकर्ताओं की कोई गलती नहीं थी, भले ही उनकी प्रारंभिक नियुक्तियों में अनियमितता थी।
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SC/ST के उम्मीदवारों को पदोन्नति में आरक्षण देने से पहले क्रीमी लेयर को बाहर रखा जाए: हरियाणा सरकार से हाईकोर्ट
पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने राज्य सरकार की सेवाओं में समूह 'ए' और 'बी' पदों पर पदोन्नति में अनुसूचित जाति के उम्मीदवारों को आरक्षण देने के हरियाणा सरकार का निर्देश बरकरार रखते हुए "क्रीमी लेयर" को बाहर रखने का निर्देश दिया।
जस्टिस जगमोहन बंसल ने कहा, "इस न्यायालय को लगता है कि प्रतिवादी ने भारत के संविधान के अनुच्छेद 16(4ए) के साथ-साथ सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित कानून का विधिवत अनुपालन किया। इसलिए दिनांक 07.10.2023 (अनुलग्नक पी-2) के आरोपित निर्देश वैध हैं। इसके द्वारा उन्हें बरकरार रखा जाता है। फिर भी प्रतिवादी आरोपित निर्देशों को लागू करने से पहले क्रीमी लेयर से संबंधित कर्मचारियों को बाहर रखेगा।"
Title: Deepak Bamber v. State of Haryana and Ors [along with other decisions]
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आपत्तिजनक वीडियो मामले में लॉ स्टूडेंट शर्मिष्ठा पनोली को मिली अंतरिम जमानत
कोलकाता हाईकोर्ट ने गुरुवार (6 जून) को लॉ स्टूडेंट शर्मिष्ठा पनोली को अंतरिम राहत देते हुए अंतरिम जमानत दी। पनोली को आपत्तिजनक वीडियो पोस्ट करने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था, जिसमें मुसलमानों को लेकर 'ऑपरेशन सिंदूर' के संदर्भ में कथित रूप से आपत्तिजनक बातें कही गई थीं। इससे पहले की सुनवाई में अदालत ने पनोली को अंतरिम जमानत देने से इनकार कर दिया था और कहा था कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का मतलब यह नहीं है कि आप दूसरों की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँचा सकते हैं।
केस टाइटल: Shamishta Panoli @ Sharmishta Panoli Raj बनाम राज्य पश्चिम बंगाल व अन्य
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बिना आरोप पत्र के पासपोर्ट जब्त करना मौलिक अधिकारों का उल्लंघन, केवल FIR दर्ज करना 'लंबित कार्यवाही' नहीं: J&K हाईकोर्ट
जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने संवैधानिक अधिकारों की पवित्रता की पुष्टि करते हुए, फैसला सुनाया कि केवल आपराधिक मामला दर्ज करना पासपोर्ट अधिनियम की धारा 10(3) के खंड (ई) के तहत निर्धारित कार्यवाही नहीं है। जस्टिस सिंधु शर्मा ने कहा कि आपराधिक न्यायालय के समक्ष कार्यवाही को लंबित मानने के लिए, केवल एफआईआर नहीं बल्कि आरोप पत्र दायर किया जाना चाहिए।
ये टिप्पणियां सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी सज्जाद अहमद खान द्वारा दायर एक रिट याचिका में आईं, जिसमें विशेष न्यायाधीश, भ्रष्टाचार निरोधक (सीबीआई मामले), जम्मू द्वारा उनका पासपोर्ट जारी करने से इनकार करने और उसके बाद क्षेत्रीय पासपोर्ट अधिकारी, श्रीनगर द्वारा पारित जब्ती आदेश को चुनौती दी गई थी।
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Child Custody | माता-पिता द्वारा नाबालिग को जबरन नए स्थान पर ले जाना, उन्हें संरक्षकता प्रदान करने के लिए 'सामान्य निवासी' नहीं बनाता: दिल्ली हाईकोर्ट
दिल्ली हाईकोर्ट ने हाल ही में स्पष्ट किया कि जब किसी नाबालिग बच्चे को उसके माता या पिता में से कोई एक जबरन शिफ्ट करता है, जबकि वे उस बच्चे की कस्टडी के लिए एक दूसरे से संघर्षरत हैं, तो ऐसी शिफ्टिंग ऐसे अभिभावक को संरक्षकता प्रदान करने के लिए क्षेत्रीय अधिकार क्षेत्र प्रदान नहीं करेगा।
संरक्षक एवं प्रतिपाल्य अधिनियम (Guardians & Wards Act) की धारा 9 में निर्धारित किया गया है कि जिस स्थान पर नाबालिग 'सामान्य रूप से रहता है', वहां अधिकार क्षेत्र रखने वाले जिला न्यायालय को नाबालिग की संरक्षकता के संबंध में आवेदन पर विचार करने का अधिकार क्षेत्र होगा।
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केरल हाईकोर्ट ने ट्रांसजेंडर माता-पिता को पिता या माता के बजाय 'माता-पिता' के रूप में दर्शाने की अनुमति दी
केरल हाईकोर्ट ने देश के पहले ट्रांसजेंडर माता-पिता जाहद और जिया द्वारा अपने बच्चे के जन्म प्रमाण पत्र में पिता और माता से माता-पिता के रूप में उनका विवरण बदलने के लिए दायर याचिका को अनुमति देते हुए कहा कि कानून को समाज में होने वाले परिवर्तनों के साथ विकसित होना चाहिए। कोर्ट ने कहा, “कानून स्थिर नहीं रह सकता है, लेकिन इसे समाज में होने वाले परिवर्तनों और समाज के सदस्यों की जीवन शैली के अनुसार विकसित होना चाहिए।”
केस टाइटल: ज़हाद और अन्य बनाम केरल राज्य और अन्य
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सुप्रीम कोर्ट ने भले ही समलैंगिक विवाह को वैध न बनाया हो, लेकिन ऐसे जोड़े परिवार बना सकते हैं: मद्रास हाईकोर्ट
मद्रास हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि 'परिवार' की अवधारणा को व्यापक रूप से समझना होगा और विवाह परिवार शुरू करने का एकमात्र तरीका नहीं है। जस्टिस जीआर स्वामीनाथन और जस्टिस वी लक्ष्मीनारायण की बेंच ने कहा कि भले ही सुप्रियो @ सुप्रिया चक्रवर्ती बनाम भारत संघ में सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने समलैंगिक विवाह को वैध न बनाया हो, लेकिन ऐसे जोड़े परिवार बना सकते हैं।
कोर्ट ने कहा, 'परिवार' शब्द को व्यापक अर्थ में समझना होगा। सुप्रियो @ सुप्रिया चक्रवर्ती बनाम भारत संघ (2023 आईएनएससी 920) ने भले ही समलैंगिक जोड़ों के बीच विवाह को वैध न बनाया हो, लेकिन वे परिवार बना सकते हैं। विवाह परिवार बनाने का एकमात्र तरीका नहीं है। 'चुने हुए परिवार' की अवधारणा अब LGBTQIA+ न्यायशास्त्र में अच्छी तरह से स्थापित और स्वीकृत हो चुकी है। याचिकाकर्ता और हिरासत में लिए गए लोग परिवार बना सकते हैं।”
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पर्सनल लोन या EMI स्वैच्छिक वित्तीय दायित्व, पत्नी के भरण-पोषण के लिए पति के दायित्व को प्रभावित नहीं कर सकते: दिल्ली हाईकोर्ट
दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि पर्सनल लोन या EMI स्वैच्छिक दायित्व हैं, जो कमाने वाले पति या पत्नी के दूसरे पति या बच्चे के भरण-पोषण के दायित्व को प्रभावित नहीं कर सकते। जस्टिस नवीन चावला और जस्टिस रेणु भटनागर की खंडपीठ ने कहा कि मकान का किराया, बिजली शुल्क, पर्सनल लोन का पुनर्भुगतान, जीवन बीमा के लिए प्रीमियम या स्वैच्छिक उधार के लिए EMI जैसी कटौती भरण-पोषण के उद्देश्य से वैध कटौती के रूप में योग्य नहीं हैं।
केस टाइटल: एक्स बनाम वाई
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पति की मौत के बाद भी पत्नी को साझा घर में रहने का अधिकार: केरल हाईकोर्ट
केरल हाईकोर्ट ने एक महिला के निवास के अधिकार की पुष्टि करते हुए एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि पति की मृत्यु के बाद भी पत्नी को उसके वैवाहिक घर से बाहर नहीं निकाला जा सकता। जस्टिस एमबी स्नेहलता द्वारा दिया गया यह फैसला एक महिला के साझा घर में रहने के अधिकार को रेखांकित करता है, जिससे पारिवारिक विरोध के बावजूद उसकी सुरक्षा और गरिमा सुनिश्चित होती है।
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आयकर अधिनियम की धारा 148 के तहत उचित कारण बताए बिना नोटिस जारी नहीं किया जा सकता: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट
हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने माना कि आयकर 1961 की धारा 148 के तहत पुनर्मूल्यांकन कार्यवाही शुरू करने के लिए मूल्यांकन अधिकारी द्वारा उचित कारण बताए बिना नोटिस जारी नहीं किया जा सकता। “धारा 148 मूल्यांकन अधिकारी को पुनर्मूल्यांकन कार्यवाही शुरू करने में सक्षम बनाती है, जहां माना जाता है कि कर योग्य आय मूल्यांकन से बच गई है”।
जस्टिस तरलोक सिंह चौहान और जस्टिस सुशील कुकरेजा ने कहा, “मूल्यांकन अधिकारी को यह समझने की आवश्यकता है कि धारा 148 के तहत नोटिस के गंभीर नागरिक या बुरे परिणाम होते हैं और इसे इतनी आसानी से पारित नहीं किया जा सकता है और इसके लिए आदेश में ही कारण दर्ज किए जाने...
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अगर एक पति या पत्नी एक साल के भीतर दूसरे के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज कराता है तो आपसी सहमति से विवाह विच्छेद किया जा सकता है: इलाहाबाद हाईकोर्ट
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि यदि एक पति या पत्नी द्वारा दूसरे के विरुद्ध आपराधिक मामला दायर करने के पश्चात, पक्षकार आपसी सहमति से तलाक के लिए न्यायालय में जाते हैं, तो हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 14 (1) के प्रावधान को लागू करके तलाक की अनुमति दी जानी चाहिए। हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13-बी आपसी सहमति से तलाक का प्रावधान करती है।
अधिनियम की धारा 14 के अनुसार विवाह के एक वर्ष के भीतर किसी भी न्यायालय में तलाक की याचिका प्रस्तुत नहीं की जा सकती। धारा 14 (1) के प्रावधान के अनुसार, यदि जिस न्यायालय में याचिका दायर की गई है, वहां यदि याचिका प्रस्तुत करने वाले पक्षकार को कोई अपवादात्मक कठिनाई का सामना करना पड़ रहा है या प्रतिवादी की ओर से असाधारण भ्रष्टता है, तो इस तरह के आवेदन पर विचार किया जा सकता है।
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मजिस्ट्रेट संज्ञान लेने के बाद भी CrPC की धारा 173(8) के तहत आगे की जांच का निर्देश दे सकते हैं: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट
हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने कहा कि जब न्यायालय को लगता है कि उचित जांच नहीं की गई है, तो मजिस्ट्रेट मामले का संज्ञान लेने के बाद भी पुलिस को आगे की जांच करने का निर्देश देने के लिए सीआरपीसी की धारा 173(8) के तहत स्वप्रेरणा से शक्ति का प्रयोग कर सकता है। जस्टिस सुशील कुकरेजा ने कहा, "संज्ञान लेने के बाद भी मजिस्ट्रेट पुलिस को आगे की जांच करने का निर्देश देने के लिए सीआरपीसी की धारा 173(8) के तहत स्वप्रेरणा से शक्ति का प्रयोग कर सकता है"।
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अस्पताल नाबालिग बलात्कार पीड़ितों से जुड़े MTP मामलों में निदान के लिए पहचान प्रमाण पर जोर नहीं दे सकते: दिल्ली हाईकोर्ट
दिल्ली हाईकोर्ट ने एक फैसले में कहा कि अस्पताल, अदालतों द्वारा आदेशित गर्भावस्था की चिकित्सा समाप्ति (एमटीपी) के मामलों में निदान उद्देश्यों या अल्ट्रासाउंड के लिए नाबालिग बलात्कार पीड़ितों की पहचान प्रमाण पर जोर नहीं दे सकते।
जस्टिस स्वर्ण कांता शर्मा ने कहा कि अस्पतालों और चिकित्सा संस्थानों को इस बात के प्रति संवेदनशील होना चाहिए कि यौन उत्पीड़न के पीड़ितों, विशेष रूप से नाबालिग लड़कियों से जुड़े मामलों में अधिक संवेदनशील और संवेदनशील दृष्टिकोण की आवश्यकता होती है।
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महाराष्ट्र पब्लिक ट्रस्ट एक्ट के तहत एक ही मंदिर के लिए दो अलग-अलग ट्रस्ट पर रजिस्ट्रेशन करना मान्य नहीं: बॉम्बे हाईकोर्ट
बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा कि महाराष्ट्र पब्लिक ट्रस्ट एक्ट की योजना के तहत एक ही मंदिर के लिए दो अलग-अलग ट्रस्ट रजिस्टर करना मान्य नहीं है। जस्टिस माधव जे. जामदार की पीठ ने कहा कि यदि एक ही ट्रस्ट की संपत्तियों के संबंध में दो अलग-अलग पब्लिक ट्रस्ट के रजिस्ट्रेशन की अनुमति दी जाती है तो पब्लिक ट्रस्ट के प्रशासन में असंख्य समस्याएं होंगी। एक ही संपत्ति वाले एक ही मंदिर के संबंध में दो अलग-अलग और अलग-अलग पब्लिक ट्रस्ट के रजिस्ट्रेशन की अनुमति देना उक्त अधिनियम की योजना के तहत नहीं है।
केस टाइटल: हनुमान मारुति मंदिर देवस्थान ट्रस्ट, कुमशेत, तालुका - जुन्नार, जिला - पुणे और अन्य बनाम सौ. वीना योगेश डोके और अन्य
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स्त्रीधन की वापसी का निर्णय हिंदू विवाह अधिनियम की कार्यवाही में ही होना चाहिए, अलग आवेदन पर नहीं: इलाहाबाद हाईकोर्ट
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने निर्णय दिया कि पति-पत्नी की संपत्तियों के वितरण, जिसमें 'स्त्रीधन' की वापसी भी शामिल है, उसका निर्धारण हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की कार्यवाही के अंतर्गत ही किया जाना चाहिए, न कि धारा 27 के तहत अलग से दिए गए आवेदन पर। जस्टिस अरिंदम सिन्हा और जस्टिस अवनीश सक्सेना की खंडपीठ ने कहा, 'स्त्रीधन' की वापसी एक मुद्दा होना चाहिए, जिसे अधिनियम के तहत चल रही कार्यवाही के ट्रायल में तय किया जाए, न कि धारा 27 के तहत स्वतंत्र रूप से दिए गए आवेदन पर।"
केस टाइटल: कृष्ण कुमार गुप्ता बनाम प्रीति गुप्ता