महाराष्ट्र पब्लिक ट्रस्ट एक्ट के तहत एक ही मंदिर के लिए दो अलग-अलग ट्रस्ट पर रजिस्ट्रेशन करना मान्य नहीं: बॉम्बे हाईकोर्ट
Amir Ahmad
2 Jun 2025 3:14 PM IST

बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा कि महाराष्ट्र पब्लिक ट्रस्ट एक्ट की योजना के तहत एक ही मंदिर के लिए दो अलग-अलग ट्रस्ट रजिस्टर करना मान्य नहीं है।
जस्टिस माधव जे. जामदार की पीठ ने कहा कि यदि एक ही ट्रस्ट की संपत्तियों के संबंध में दो अलग-अलग पब्लिक ट्रस्ट के रजिस्ट्रेशन की अनुमति दी जाती है तो पब्लिक ट्रस्ट के प्रशासन में असंख्य समस्याएं होंगी। एक ही संपत्ति वाले एक ही मंदिर के संबंध में दो अलग-अलग और अलग-अलग पब्लिक ट्रस्ट के रजिस्ट्रेशन की अनुमति देना उक्त अधिनियम की योजना के तहत नहीं है।
इस मामले में पीठ के समक्ष मुद्दे थे:
1. क्या महाराष्ट्र पब्लिक ट्रस्ट एक्ट के तहत अधिकारियों द्वारा समीक्षा की शक्ति का प्रयोग किया जा सकता है, जबकि उक्त अधिनियम में समीक्षा की विशिष्ट वैधानिक शक्ति नहीं है?
2. क्या महाराष्ट्र पब्लिक ट्रस्ट एक्ट की योजना के तहत एक ही पब्लिक ट्रस्ट के लिए दो अलग-अलग ट्रस्ट रजिस्टर करना अनुमेय है?
याचिकाकर्ता ने दलील दी कि महाराष्ट्र पब्लिक ट्रस्ट एक्ट, 1950 द्वारा अधिकारियों को समीक्षा की कोई स्पष्ट शक्ति प्रदान नहीं की गई। इसलिए संयुक्त धर्मादाय आयुक्त को अपने स्वयं के आदेश की समीक्षा करने का कोई अधिकार नहीं है। उक्त अधिनियम में समीक्षा की स्पष्ट शक्ति प्रदान करने वाले किसी प्रावधान के अभाव में ऐसा नहीं किया जा सकता, इसलिए आरोपित आदेश अधिकारहीन, अवैध और अधिकार क्षेत्र से बाहर है।
इसके अलावा याचिकाकर्ता ने दलील दी कि उक्त अधिनियम की योजना एक ही धर्मादाय संस्था के दो ट्रस्टों के रजिस्ट्रेशन का प्रावधान करती है। इस दलील का समर्थन करने के लिए बॉम्बे पब्लिक ट्रस्ट रूल्स 1951 की धारा 50ए (2) का संदर्भ दिया गया।
प्रतिवादी ने दलील दी कि प्रतिवादी ने पुनर्विचार आवेदन दायर किया, क्योंकि उनके द्वारा प्रस्तुत दस्तावेजों पर विचार नहीं किया गया। चूंकि वे दस्तावेज महत्वपूर्ण थे और सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों के आधार पर संयुक्त धर्मादाय आयुक्त ने इस आधार पर अपने आदेश पर पुनर्विचार किया कि प्रक्रियागत अवैधता है जो मामले की जड़ तक जाती है। आरोपित आदेश पारित करने में कोई अवैधता नहीं की गई।
इसके अलावा प्रतिवादी ने तर्क दिया कि महाराष्ट्र लोक ट्रस्ट अधिनियम की योजना में एक मंदिर के संबंध में दो ट्रस्टों के पंजीकरण का प्रावधान नहीं है।
खंडपीठ ने बताया कि अधिनियम की योजना के तहत धर्मार्थ संस्था या मंदिर के संबंध में केवल लोक ट्रस्ट रजिस्टर्ड करने की अनुमति है और आरोपित आदेश की वैधता पर विचार करना आवश्यक है।
खंडपीठ ने कहा कि उसी मारुति मंदिर के संबंध में अन्य ट्रस्ट के रजिस्ट्रेशन का निर्देश देने वाला आदेश याचिकाकर्ताओं द्वारा धोखाधड़ी करके प्राप्त किया गया। इसलिए किसी पक्ष को धोखाधड़ी करने वाले या गलत बयानी करने वाले व्यक्तियों को लाभ पहुंचाने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए और ऐसी परिस्थितियों में न्यायालय को धोखाधड़ी को जारी नहीं रखना चाहिए।
खंडपीठ ने कहा कि ऐसी कार्यवाही में जो स्वयं किसी त्रुटि या भूल से दूषित हो गई हो, जो मामले की जड़ तक जाती है। पूरी कार्यवाही को अमान्य कर देती है, ऐसे मामलों में प्रक्रियात्मक समीक्षा की शक्ति का उपयोग किया जा सकता है।
खंडपीठ ने कहा,
“मौजूदा मामले में संयुक्त धर्मादाय आयुक्त द्वारा जिन दस्तावेजों पर विचार नहीं किया गया। वे वर्ष 1952 में समान संपत्तियों वाले उसी मंदिर के सार्वजनिक ट्रस्ट के रजिस्ट्रेशन को दर्शाते हैं। यह स्पष्ट है कि 19 जून, 2014 के आदेश द्वारा समान संपत्तियों वाले उसी मंदिर के लिए सार्वजनिक ट्रस्ट के रजिस्ट्रेशन की अनुमति देने और विद्वान संयुक्त धर्मादाय आयुक्त द्वारा 5 जनवरी, 2017 के आदेश द्वारा इसकी पुष्टि करने से प्रक्रियात्मक अवैधता होती है, जो मामले की जड़ तक जाती है और कार्यवाही को ही अमान्य करती है। परिणामस्वरूप उसमें पारित आदेश को भी अमान्य करती है।”
उपरोक्त के मद्देनजर पीठ ने इस याचिका को खारिज कर दिया।
केस टाइटल: हनुमान मारुति मंदिर देवस्थान ट्रस्ट, कुमशेत, तालुका - जुन्नार, जिला - पुणे और अन्य बनाम सौ. वीना योगेश डोके और अन्य

