एक बार अभ्यर्थियों को नियमित पदों पर समाहित कर लिया जाए तो प्रारंभिक नियुक्तियों में अनियमितता को ठीक मान लिया जाएगाः इलाहाबाद हाईकोर्ट

Shahadat

7 Jun 2025 11:50 AM

  • एक बार अभ्यर्थियों को नियमित पदों पर समाहित कर लिया जाए तो प्रारंभिक नियुक्तियों में अनियमितता को ठीक मान लिया जाएगाः इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने माना कि एक बार अपीलकर्ता-कर्मचारियों को नियमित पदों पर रिक्तियों के विरुद्ध समाहित कर लिया जाए तो उनकी प्रारंभिक नियुक्ति के समय जो भी अनियमितता रही होगी उसे ठीक मान लिया जाएगा।

    अस्वीकृत पदों पर नियुक्तियों के कारण कर्मचारियों की बाद में बर्खास्तगी के मामले में जस्टिस सिद्धार्थ वर्मा और जस्टिस डॉ. योगेंद्र कुमार श्रीवास्तव की खंडपीठ ने कहा कि अपीलकर्ताओं की कोई गलती नहीं थी, भले ही उनकी प्रारंभिक नियुक्तियों में अनियमितता थी।

    अपीलकर्ता-याचिकाकर्ताओं को क्रमशः 1987 और 1989 में एडहॉक आधार पर सहायक अध्यापक के रूप में नियुक्त किया गया। अंततः उन्हें 1989 में इस आधार पर बर्खास्त कर दिया गया कि जिन पदों पर उन्हें नियुक्त किया गया, वे स्वीकृत पदों से अधिक थे। याचिकाकर्ताओं ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया, जहां उनकी बर्खास्तगी को स्थगित रखते हुए अंतरिम आदेश पारित किया गया। वर्ष 2006 में याचिकाकर्ताओं को मूल पदों के विरुद्ध समाहित कर लिया गया। अंततः 2010 में रिट याचिका को खारिज कर दिया गया क्योंकि इस पर दबाव नहीं डाला गया।

    याचिकाकर्ता अपने कर्तव्यों का निर्वहन करते रहे। वर्ष 2017 में जिला विद्यालय निरीक्षक ने कॉलेज के प्रबंधन/प्रधानाचार्य से याचिकाकर्ताओं को दिए जा रहे वेतन का आधार स्पष्ट करने को कहा। प्राचार्य को दिए गए इस नोटिस को हाईकोर्ट में चुनौती दी गई, जहां इस पर रोक लगा दी गई। इसके बाद याचिकाकर्ताओं को रिट याचिका वापस लेने को कहा गया, जिससे उन्हें नियमित करने पर विचार किया जा सके। याचिकाकर्ताओं द्वारा वापस लेने के बाद अन्य कार्यवाही शुरू की गई और याचिकाकर्ताओं को काम करने से रोक दिया गया।

    प्रतिवादियों की इस कार्रवाई के खिलाफ याचिकाकर्ताओं ने फिर से हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। एकल जज ने रिट याचिका खारिज कर दी। याचिकाकर्ताओं ने आदेश के खिलाफ विशेष याचिका दायर की।

    मानसाराम बनाम एस.पी. पाठक एवं अन्य तथा मद्रास एल्युमिनियम कंपनी लिमिटेड बनाम तमिलनाडु इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड एवं अन्य में सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों पर भरोसा करते हुए तर्क दिया गया कि यदि नियुक्तियां अनियमित थीं, तो उचित समय के भीतर कार्रवाई की जानी चाहिए थी। यह तर्क दिया गया कि भले ही प्रारंभिक नियुक्तियां अवैध थीं, लेकिन 2006 में याचिकाकर्ताओं को नियमित पदों पर समाहित करके इसे सुधारा गया।

    राधेश्याम यादव एवं अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य पर भी भरोसा किया गया, जहां इसी तरह के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने माना कि याचिकाकर्ताओं को कई वर्षों के बाद कार्यवाही करके राज्य की गलती के लिए पीड़ित नहीं बनाया जा सकता।

    विनोद कुमार एवं अन्य बनाम भारत संघ एवं अन्य में सुप्रीम कोर्ट ने माना कि “यह न्यायालय अपीलकर्ताओं के तर्कों में योग्यता पाता है और मानता है कि समय के साथ विकसित हुई उनकी सेवा शर्तें अस्थायी से नियमित स्थिति में पुनर्वर्गीकृत होने की गारंटी देती हैं। उनकी भूमिकाओं की मूल प्रकृति और स्थायी कर्मचारियों के समान उनकी निरंतर सेवा को पहचानने में विफलता समानता, निष्पक्षता और रोजगार विनियमों के पीछे के इरादे के सिद्धांतों के विपरीत है।”

    जस्टिस वर्मा की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा,

    “अपीलकर्ताओं को मौजूदा रिक्तियों पर समायोजित किया गया, इसलिए उनकी नियुक्तियों में यदि कोई अनियमितता थी तो उसे सुप्रीम कोर्ट के उन निर्णयों के अनुसार ठीक कर दिया गया माना जाएगा, जिनका हवाला अपीलकर्ताओं के वकीलों ने दिया था, अर्थात मनसाराम (सुप्रा) और मद्रास एल्युमिनियम कंपनी लिमिटेड (सुप्रा)। इन निर्णयों के अनुसार, यदि कोई कार्रवाई की जानी थी तो उसे उचित समय के भीतर किया जाना चाहिए था और ऐसा न किए जाने के कारण अपीलकर्ताओं को अब दंडित नहीं किया जा सकता।”

    राधेश्याम यादव और विनोद कुमार के निर्णयों पर भरोसा करते हुए न्यायालय ने माना कि याचिकाकर्ता/अपीलकर्ताओं को नियमित कर दिया गया और यदि कोई अनियमितता थी तो उसे हटा दिया गया है और रिट याचिकाओं को अनुमति दी जानी चाहिए।

    न्यायालय ने माना कि अपीलकर्ताओं को नियमित किया गया था और वे रिटायर होने तक काम कर रहे थे, जिसका अर्थ है कि वे निरंतर सेवा में थे। तदनुसार, विशेष अपीलों को अनुमति दी गई।

    Case Title: Devendra Singh v. State Of Up And 4 Others [SPECIAL APPEAL No. - 167 of 2024]

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