हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

Shahadat

21 July 2024 4:30 AM GMT

  • हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

    देश के विभिन्न हाईकोर्ट में पिछले सप्ताह (15 जुलाई, 2024 से 19 जुलाई, 2024) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं हाईकोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह हाईकोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।

    पत्नी के साथ 'अप्राकृतिक यौन संबंध' के लिए पति को IPC की धारा 377 के तहत दोषी नहीं ठहराया जा सकता: उत्तराखंड हाईकोर्ट

    उत्तराखंड हाईकोर्ट ने कहा है कि यदि पति और पत्नी के बीच कोई कृत्य आईपीसी की धारा 375 के तहत अपवाद 2 के संचालन के कारण दंडनीय नहीं है, तो पति को पत्नी के साथ 'अप्राकृतिक यौन संबंध' के लिए आईपीसी की धारा 377 के तहत दोषी नहीं ठहराया जा सकता है।

    कोर्ट ने कहा, "पति और पत्नी के संबंध में धारा 377 आईपीसी को पढ़ते समय आईपीसी की धारा 375 के अपवाद 2 को इसमें से नहीं हटाया जा सकता है। यदि पति और पत्नी के बीच कोई कृत्य आईपीसी की धारा 375 के अपवाद 2 के संचालन के कारण दंडनीय नहीं है, तो वही कार्य धारा 377 आईपीसी के तहत अपराध नहीं हो सकता है।

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    POCSO Act | बच्चे को प्राइवेट पार्ट दिखाना, गंदी फिल्में दिखाना प्रथम दृष्टया 'यौन उत्पीड़न': उत्तराखंड हाईकोर्ट

    उत्तराखंड हाईकोर्ट ने कहा कि बच्चे को प्राइवेट दिखाना, उसे गंदी फिल्में दिखाना, प्रथम दृष्टया बच्चे का 'यौन उत्पीड़न' माना जाएगा। यह POCSO Act की धारा 11 के साथ धारा 12 के तहत अपराध है।

    जस्टिस रवींद्र मैथानी की पीठ ने हरिद्वार के एडिशनल सेशन जज/स्पेशल जज (POCSO) का आदेश बरकरार रखते हुए यह टिप्पणी की। उक्त आदेश में व्यक्ति/याचिकाकर्ता को अपने बेटे का कथित रूप से यौन उत्पीड़न करने के लिए POCSO Act की धारा 11/12 के तहत आरोपों ठहराया गया।

    केस टाइटल- डॉ. कीर्ति भूषण मिश्रा बनाम उत्तराखंड राज्य और अन्य

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    धोती उठाना और नाबालिग से लिंग मापने के लिए कहना यौन उत्पीड़न के समान: केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने माना कि किसी व्यक्ति का गुप्तांग किसी बच्चे को दिखाना और उससे उसका माप लेने के लिए कहना यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण अधिनियम (POCSO Act) के तहत यौन उत्पीड़न का अपराध माना जाएगा।

    जस्टिस ए. बदरुद्दीन ने कहा, "इस मामले में जैसा कि मैंने पहले ही बताया, अपने गुप्तांग दिखाने के लिए धोती उठाना और फिर पीड़ित से उसका लिंग मापने के लिए कहना आरोप हैं। यह सीधे तौर पर PCSO Act की धारा 11(1) के साथ-साथ IPC की धारा 509 के तहत भी लागू होगा।"

    केस टाइटल- XX बनाम केरल राज्य और अन्य

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    दाऊद इब्राहिम व्यक्तिगत तौर पर आतंकवादी, उसके साथ गिरोह का संबंध UAPA के तहत दंडनीय नहीं: बॉम्बे हाईकोर्ट

    बॉम्बे हाईकोर्ट ने माना कि केंद्र सरकार ने अपनी शक्तियों के तहत अंडरवर्ल्ड गैंगस्टर दाऊद इब्राहिम को उसकी "व्यक्तिगत हैसियत" में आतंकवादी घोषित किया है। इस प्रकार उसके या डी-कंपनी के साथ किसी भी व्यक्ति का संबंध गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (UAPA Act) की धारा 20 के तहत आतंकवादी संगठन का सदस्य होने के लिए दंडनीय नहीं होगा।

    जस्टिस भारती डांगरे और जस्टिस मंजूषा देशपांडे की खंडपीठ ने डी-कंपनी के साथ कथित संबंधों और ड्रग्स जब्ती मामले में उनकी संलिप्तता के लिए गिरफ्तार किए गए दो लोगों को जमानत दे दी।

    केस टाइटल: परवेज वैद बनाम महाराष्ट्र राज्य (आपराधिक अपील 1138/2023)।

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    विशेष पुलिस अधिकारी वैधानिक नियमों द्वारा विनियमित सिविल पदों पर नहीं होते, इसलिए वे नियमित अधिकारियों की सेवा शर्तों के हकदार नहीं: जम्म एंड कश्मीर हाईकोर्ट

    जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया है कि विशेष पुलिस अधिकारी (एसपीओ) वैधानिक नियमों द्वारा विनियमित सिविल पदों पर नहीं होते हैं और इसलिए वे नियमित पुलिस अधिकारियों को दी जाने वाली सेवा शर्तों से संबंधित शक्तियों, विशेषाधिकारों और सुरक्षा के हकदार नहीं हैं।

    केस टाइटलः ऐजाज राशिद खांडे बनाम जम्मू-कश्मीर राज्य और अन्य

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    धारा 67 एनडीपीएस एक्ट | सह-आरोपी के कबूलनामे पर कार्रवाई करने से पहले अतिरिक्त साक्ष्य आवश्यक: जम्मू एंड कश्मीर हाईकोर्ट

    जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने अभियोजन पक्ष द्वारा अभियुक्त के खिलाफ मामला स्थापित करने के लिए एनडीपीएस अधिनियम की धारा 67 के तहत इकबालिया बयानों के साथ-साथ पुष्टि करने वाले साक्ष्य की आवश्यकता को रेखांकित किया है।

    जस्टिस राजेश सेखरी की पीठ ने दोहराया है कि सह-अभियुक्त के इकबालिया बयान को अभियुक्त की सजा के लिए तब तक ध्यान में नहीं रखा जा सकता, जब तक अभियोजन पक्ष द्वारा अपराध के कमीशन में उसकी संलिप्तता को इंगित करने के लिए कुछ अन्य सामग्री प्रस्तुत नहीं की जाती है।

    केस टाइटलः यूनियन ऑफ इंडिया बनाम रविंदर सिंह

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    धारा 27 के तहत इकबालिया बयान तब तक विश्वसनीय नहीं माना जाएगा, जब तक कि इसकी सत्यता की पुष्टि करने के लिए कोई सबूत न मिल जाए: राजस्थान हाईकोर्ट

    राजस्थान हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1872 की धारा 27 के तहत एकत्रित की गई किसी भी जानकारी को पुलिस अधिकारी के समक्ष अभियुक्त द्वारा किए गए इकबालिया बयान को सत्यापित करने के लिए उस जानकारी के अनुसरण में कुछ बरामद करने या खोजने के द्वारा पुष्टि और समर्थन किया जाना आवश्यक है, जो अपराध के कमीशन से स्पष्ट रूप से संबंधित हो।

    अधिनियम की धारा 27 में प्रावधान है कि जब किसी पुलिस अधिकारी की हिरासत में किसी अभियुक्त से प्राप्त जानकारी के परिणामस्वरूप कोई तथ्य पता चलता है तो ऐसी जानकारी जो खोजे गए तथ्य से स्पष्ट रूप से संबंधित हो साबित की जा सकती है।

    केस टाइटल- धीरप सिंह बनाम राजस्थान राज्य

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    अनजान महिला से नाम और पता पूछना अनुचित, प्रथम दृष्टया यौन उत्पीड़न नहीं: गुजरात हाईकोर्ट

    गुजरात हाईकोर्ट ने कहा कि किसी अनजान महिला से नाम, पता और मोबाइल नंबर पूछना अनुचित हो सकता है, प्रथम दृष्टया भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 354ए के तहत यौन उत्पीड़न नहीं माना जा सकता।

    यह टिप्पणी जस्टिस निरजर देसाई ने गांधीनगर के व्यक्ति समीर रॉय से जुड़े मामले में की, जिस पर अनजान महिला से ये सवाल पूछने के आरोप में आईपीसी की धारा 354ए के तहत मामला दर्ज किया गया था।

    केस टाइटल- समीर रॉय बनाम गुजरात राज्य और अन्य।

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    दहेज हत्या के लिए दोषी ठहराए गए पति को हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के तहत मृतक पत्नी की संपत्ति नहीं मिल सकती: बॉम्बे हाईकोर्ट

    बंबई हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि दहेज हत्या के लिए दोषी ठहराए गए पति को हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम की धारा 25 के तहत मृतक पत्नी की संपत्ति विरासत में नहीं मिल सकती।

    जस्टिस निजामुद्दीन जमादार की एकल पीठ ने वसीयत विभाग के उस तर्क को खारिज किया, जिसमें कहा गया कि दहेज हत्या (आईपीसी की धारा 304-बी के तहत) के लिए दोषी ठहराए गए व्यक्ति को हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम की धारा 25 के तहत 'हत्यारे' के बराबर नहीं माना जा सकता, क्योंकि कानून केवल हत्या के लिए दोषी ठहराए गए व्यक्ति (आईपीसी की धारा 302 के तहत) को ही अयोग्य ठहराता है।

    केस टाइटल: पवन जैन बनाम सेजल जैन (वसीयतनामा याचिका 807/2020)

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    POCSO Act | यदि पीड़िता की एकमात्र गवाही आरोपी को दोषी ठहराने के लिए विश्वसनीय है तो अन्य गवाहों की जांच करना आवश्यक नहीं: मेघालय हाईकोर्ट

    पीड़िता की एकमात्र गवाही के आधार पर मेघालय हाईकोर्ट ने हाल ही में POCSO Act के तहत गंभीर यौन उत्पीड़न के अपराध को करने के लिए आरोपी की दोषसिद्धि बरकरार रखी। न्यायालय ने कहा कि यदि पीड़िता की गवाही विश्वसनीय, बेदाग और न्यायालय का विश्वास जगाने वाली पाई जाती है तो पीड़िता की एकमात्र गवाही के आधार पर आरोपी को दोषी ठहराया जा सकता है।

    इसके अलावा न्यायालय ने कहा कि एक बार जब पीड़िता की गवाही आरोपी के अपराध को साबित करने के लिए पर्याप्त हो जाती है तो अन्य महत्वपूर्ण गवाहों की जांच करने की कोई आवश्यकता नहीं है।

    केस टाइटल- ट्रेडा सुंगोह बनाम मेघालय राज्य

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    छात्राओं की पीठ और गर्दन को अनुचित तरीके से छूना, उनके पहनावे पर टिप्पणी करना POCSO अधिनियम की धारा 7 के तहत आएगा: हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय

    हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने कहा कि शिक्षक द्वारा छात्राओं के साथ अनुचित शारीरिक संपर्क तथा उनके पहनावे पर टिप्पणी करना, यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण (POCSO) अधिनियम 2012 की धारा 7 के तहत अपराध माना जाएगा, जो 'यौन उत्पीड़न' के कृत्यों को दंडित करता है।

    जस्टिस राकेश कैंथला की पीठ ने कहा कि आरोपी शिक्षक द्वारा छात्राओं के साथ किया गया शारीरिक संपर्क तथा उसके द्वारा कहे गए शब्दों से केवल यही निष्कर्ष निकलता है कि यह स्पर्श यौन इरादे से किया गया था, जो 2012 अधिनियम की धारा 7 के लिए आवश्यक घटक है।

    केस टाइटलः राकेश कुमार बंसल बनाम हिमाचल प्रदेश राज्य और अन्य

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    आपराधिक मामलों का सामना कर रहे व्यक्ति को पासपोर्ट जारी करने के लिए अदालत की मंजूरी की आवश्यकता नहीं; विदेश यात्रा के मामले में अनुमति आवश्यक: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पिछले महीने कहा था कि भारतीय पासपोर्ट अधिनियम 1967 के तहत पासपोर्ट जारी करने के इच्छुक व्यक्ति को सक्षम न्यायालय से पूर्व अनुमति लेने की आवश्यकता नहीं है, भले ही उस व्यक्ति पर आपराधिक आरोप क्यों न लगे हों।

    जस्टिस आलोक माथुर और जस्टिस अरुण कुमार सिंह देशवाल की पीठ ने स्पष्ट किया कि 1967 के अधिनियम के तहत पासपोर्ट प्राधिकरण को धारा 5(2) के अनुसार पासपोर्ट जारी करने के लिए आवेदन पर विचार करना और निर्णय लेना होता है।

    केस टाइटलः उमापति बनाम यूनियन ऑफ इंडिया, सचिव, विदेश मंत्रालय, नई दिल्ली के माध्यम से और 3 अन्य 2024 लाइव लॉ (एबी) 439

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    केवल इसलिए कि समय के साथ प्यार खत्म हो जाता है, दो वयस्कों के बीच सहमति से किए गए कृत्य को बलात्कार नहीं कहा जा सकता: कर्नाटक हाईकोर्ट

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने दोहराया कि छह साल की लंबी अवधि तक प्रेम में रहे दो वयस्कों के बीच सहमति से किए गए कृत्य बलात्कार के अपराध को आकर्षित नहीं करेंगे।

    जस्टिस एम नागप्रसन्ना की एकल पीठ ने एक व्यक्ति द्वारा दायर याचिका को स्वीकार कर लिया और भारतीय दंड संहिता की धारा 376 और 417 के तहत दंडनीय अपराधों के लिए दर्ज मामले को रद्द कर दिया।

    केस टाइटल: XXX और कर्नाटक राज्य और ANR

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    'काम नहीं तो वेतन नहीं' का सिद्धांत पूर्ण दोषमुक्ति के बाद बहाल हुए यूपी सरकार के कर्मचारियों पर लागू नहीं: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने माना कि एक कर्मचारी जो अपने खिलाफ आरोपों से पूरी तरह से मुक्त हो गया है और बाद में बहाल हो गया है, वह वित्तीय पुस्तिका खंड-II (भाग II से IV) के नियम 54 के आधार पर उस अवधि के लिए पूर्ण वेतन पाने का हकदार है, जब वह सेवा से बाहर था।

    वित्तीय पुस्तिका खंड-II (भाग II से IV) के नियम 54 में प्रावधान है कि एक बर्खास्त कर्मचारी जो सभी आरोपों से पूरी तरह से मुक्त हो गया है, उसे बहाल होने के बाद बर्खास्तगी की अवधि के लिए पूर्ण वेतन पाने का हकदार है। इसमें आगे प्रावधान है कि बर्खास्तगी की ऐसी अवधि को सेवा में, ड्यूटी पर रहने की अवधि के रूप में माना जाएगा।

    केस टाइटलः दिनेश प्रसाद बनाम यूपी राज्य और 3 अन्य [रिट - ए नंबर- 5033/2024]

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    ऑनलाइन चाइल्ड पोर्नोग्राफी देखना आईटी अधिनियम की धारा 67बी के तहत अपराध नहीं होगा: कर्नाटक हाईकोर्ट

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने माना कि ऑनलाइन चाइल्ड पोर्नोग्राफ़ी सामग्री देखने वाले व्यक्ति पर सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 67बी के तहत अपराध का आरोप नहीं लगाया जा सकता।

    जस्टिस एम नागप्रसन्ना की एकल पीठ ने इनायतुल्ला एन के खिलाफ़ शुरू की गई कार्यवाही को रद्द कर दिया और कहा, "याचिकाकर्ता के खिलाफ़ आरोप यह है कि उसने एक अश्लील वेबसाइट देखी है। न्यायालय के विचार में, यह सामग्री का प्रकाशन या प्रसारण नहीं माना जाएगा, जैसा कि आईटी अधिनियम की धारा 67बी के तहत आवश्यक है।"

    केस टाइटलः इनायतुल्ला एन और राज्य, पुलिस उप निरीक्षक के माध्यम से

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    नए आपराधिक कानूनों के प्रवर्तन से पहले दर्ज FIR के लिए ट्रायल/ जांच CrPC द्वारा शासित होगी, न कि BNSS द्वारा: राजस्थान हाईकोर्ट

    राजस्थान हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया है कि जहां 1 जुलाई, 2023 से पहले CrPC की धारा 154 के तहत प्राथमिकी दर्ज की गई थी, यह भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023, की धारा 531 (2) (A) के तहत लंबित पूछताछ/जांच होगी। इसलिए, उस एफआईआर के संबंध में पूरी बाद की जांच प्रक्रिया और यहां तक कि परीक्षण प्रक्रिया सीआरपीसी द्वारा शासित होगी न कि बीएनएसएस द्वारा।

    पीठ ने कहा, 'हम यहां केवल उपधारा 531(2)(A) में निहित बचत उपबंध को लेकर चिंतित हैं। इसके अवलोकन से स्पष्ट रूप से पता चलता है कि न केवल लंबित मुकदमे, बल्कि बीएनएसएस के लागू होने से पहले चल रही जांच या जांच को भी सीआरपीसी, 1973 के प्रावधानों के अनुसार निपटाना होगा, न कि बीएनएसएस, 2023 के तहत।

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    'भारत विविध धर्मों और रीति-रिवाजों वाला देश है': मद्रास हाईकोर्ट ने दाढ़ी रखने के लिए दी गई मुस्लिम पुलिसकर्मी की सज़ा रद्द की

    मद्रास हाईकोर्ट ने हाल ही में पुलिस कांस्टेबल का बचाव किया, जिसे पैगंबर मोहम्मद के आदेशों का पालन करते हुए दाढ़ी रखने के लिए दंडित किया गया था।

    यह कहते हुए कि भारत विविध धर्मों और रीति-रिवाजों की भूमि है, जस्टिस एल विक्टोरिया गौरी की पीठ ने कहा कि हालांकि पुलिस विभाग को सख्त अनुशासन बनाए रखना चाहिए लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि अल्पसंख्यक समुदाय से संबंधित कर्मियों को दाढ़ी रखने के लिए दंडित किया जा सकता है।

    केस टाइटल- जी.अब्दुल खादर इब्राहिम बनाम पुलिस आयुक्त

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    यदि एकपक्षीय तलाक डिक्री के अस्तित्व में रहते हुए दूसरी शादी की जाती है, जिसे बाद में रद्द कर दिया जाता है तो द्विविवाह का कोई अपराध नहीं माना जाएगा: केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने निर्धारित किया कि पहली शादी से तलाक की एकपक्षीय डिक्री के संचालन के दौरान दूसरी शादी करने के लिए IPC की धारा 494 के तहत कोई दंडात्मक परिणाम नहीं मिलेगा भले ही एकपक्षीय डिक्री को बाद की तारीख में रद्द कर दिया गया हो।

    जस्टिस ए. बदरुद्दीन ने कहा कि तलाक की एकपक्षीय डिक्री के संचालन के कारण जब दूसरी शादी हुई, तब पक्षों के बीच कोई कानूनी विवाह नहीं था भले ही इसे बाद में रद्द कर दिया गया हो।

    केस टाइटल- विवेक जॉय बनाम केरल राज्य और संबंधित मामला

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    अनुच्छेद 14 और 16 का उल्लंघन करके नियुक्त कर्मचारियों को सुनवाई के बिना हटाया जा सकता है: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट

    जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने माना कि संविधान के अनुच्छेद 14 और 16 का उल्लंघन करके नियुक्त कर्मचारियों को सुनवाई का अवसर दिए बिना हटाया जा सकता है।

    विभिन्न नगर समितियों द्वारा नियुक्त कर्मचारियों को बिना किसी विज्ञापन नोटिस जारी किए हटाने के मामले को बरकरार रखते हुए जस्टिस जावेद इकबाल वानी ने कहा, “यदि प्रतिवादियों ने याचिकाकर्ताओं को नोटिस जारी किया होता या उन्हें हटाने से पहले सुनवाई का अवसर दिया होता, तो उपरोक्त स्वीकृत तथ्यों के आधार पर ऐसा नोटिस जारी करने या याचिकाकर्ताओं को सुनवाई का अवसर देने से मामले में स्वीकृत स्थिति में कोई बदलाव नहीं होता, क्योंकि याचिकाकर्ताओं को संविधान के अनुच्छेद 14 और 16 के अधिदेश के विरुद्ध नियुक्त किया गया।”

    केस टाइटल- शमीम अहमद शाह बनाम जम्मू-कश्मीर केंद्र शासित प्रदेश

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    पीड़िता के गुप्तांगों को लिंग से छूना गंभीर यौन उत्पीड़न का अपराध: मेघालय हाईकोर्ट

    हाल ही में मेघालय हाईकोर्ट ने पाया कि पीड़िता के गुप्तांगों को लिंग से छूना गंभीर यौन उत्पीड़न का अपराध है, जो POCSO Act 2012 की धारा 6 के तहत दंडनीय है। न्यायालय ने कहा कि योनि में प्रवेश किए बिना पीड़िता के गुप्तांगों को लिंग से छूने का आरोपी का कृत्य यौन उत्पीड़न (POCSO Act की धारा 7 के तहत) नहीं बल्कि गंभीर यौन उत्पीड़न माना जाएगा।

    केस टाइटल- थौरा डेमी बनाम मेघालय राज्य लोक अभियोजक के माध्यम से

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    आरोपी को एफआईआर दर्ज होने से पहले सुनवाई का अधिकार नहीं: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट

    मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने माना कि कोई आरोपी एफआईआर दर्ज होने से पहले सुनवाई के अधिकार का दावा नहीं कर सकता। इसलिए इस आधार पर एफआईआर रद्द नहीं की जा सकती कि अपराध दर्ज होने से पहले आरोपी की सुनवाई नहीं की गई।

    जस्टिस गुरपाल सिंह अहलूवालिया की पीठ ने अभिषेक पांडे नामक व्यक्ति द्वारा दायर याचिका खारिज करते हुए यह टिप्पणी की। उक्त याचिका में स्कूल में जबरन घुसने और स्टाफ के साथ दुर्व्यवहार करने के आरोपों पर उसके खिलाफ दर्ज दो एफआईआर को चुनौती दी गई थी।

    केस टाइटल - अभिषेक पांडे बनाम मध्य प्रदेश राज्य और अन्य

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