अनुच्छेद 14 और 16 का उल्लंघन करके नियुक्त कर्मचारियों को सुनवाई के बिना हटाया जा सकता है: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट

Amir Ahmad

15 July 2024 6:36 AM GMT

  • अनुच्छेद 14 और 16 का उल्लंघन करके नियुक्त कर्मचारियों को सुनवाई के बिना हटाया जा सकता है: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट

    जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने माना कि संविधान के अनुच्छेद 14 और 16 का उल्लंघन करके नियुक्त कर्मचारियों को सुनवाई का अवसर दिए बिना हटाया जा सकता है।

    विभिन्न नगर समितियों द्वारा नियुक्त कर्मचारियों को बिना किसी विज्ञापन नोटिस जारी किए हटाने के मामले को बरकरार रखते हुए जस्टिस जावेद इकबाल वानी ने कहा,

    “यदि प्रतिवादियों ने याचिकाकर्ताओं को नोटिस जारी किया होता या उन्हें हटाने से पहले सुनवाई का अवसर दिया होता, तो उपरोक्त स्वीकृत तथ्यों के आधार पर ऐसा नोटिस जारी करने या याचिकाकर्ताओं को सुनवाई का अवसर देने से मामले में स्वीकृत स्थिति में कोई बदलाव नहीं होता, क्योंकि याचिकाकर्ताओं को संविधान के अनुच्छेद 14 और 16 के अधिदेश के विरुद्ध नियुक्त किया गया।”

    मामले की पृष्ठभूमि:

    याचिकाकर्ता शमीम अहमद शाह और अन्य को हाजिन सुंबल और बांदीपोरा की नगर समितियों में मृत्यु एवं जन्म रिपोर्टर, कंप्यूटर सहायक, कार्य पर्यवेक्षक और अन्य सहित विभिन्न पदों पर नियुक्त किया गया। उनकी नियुक्तियां, 2005-2009 में नगर समितियों के अध्यक्ष द्वारा अन्य सामान्य भत्तों के साथ 2250-3200 रुपये के वेतनमान में स्पष्ट रिक्तियों के विरुद्ध की गईं।

    2014 में याचिकाकर्ताओं ने प्रतिवादियों द्वारा प्रतिस्थापन और वेतन रोके जाने की धमकी का सामना करने के बाद न्यायालय का दरवाजा खटखटाया।

    न्यायालय ने शुरू में 2015 में उनके वेतन जारी करने का निर्देश दिया। निर्देश के बावजूद, प्रतिवादियों ने वेतन रोकना जारी रखा और अंततः 2017 में उनके निष्कासन आदेश जारी किए। याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि 2017 में उनका निष्कासन अवैध था, क्योंकि यह बिना किसी नोटिस या सुनवाई का अवसर दिए किया गया, जो प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन था। उन्होंने भेदभाव का भी दावा किया यह दावा करते हुए कि इसी तरह की स्थिति वाले अन्य कर्मचारियों को भी निष्कासित नहीं किया गया।

    डिप्टी-एडवोकेट जनरल रईसुद्दीन गनी द्वारा प्रतिनिधित्व किए गए प्रतिवादियों ने तर्क दिया कि याचिकाकर्ताओं की नियुक्तियां कानून के विरुद्ध थीं, क्योंकि उन्हें उचित चयन प्रक्रिया के बिना किया गया। उन्होंने तर्क दिया कि सुनवाई का अवसर प्रदान करना अनावश्यक था, क्योंकि नियुक्तियां मूल रूप से त्रुटिपूर्ण थीं।

    न्यायालय की टिप्पणियां:

    प्रतिद्वंद्वी दलीलों पर विचार करने के बाद जस्टिस वानी ने कहा कि इस बात पर कोई विवाद नहीं है कि याचिकाकर्ताओं को उनके संबंधित पदों के विरुद्ध संबंधित नगर पालिका समितियों के तत्कालीन अध्यक्ष द्वारा बिना किसी विज्ञापन नोटिस जारी किए या याचिकाकर्ताओं को चयन की किसी प्रक्रिया के अधीन किए बिना नियुक्त किया गया।

    जस्टिस वानी ने कहा कि क्योंकि याचिकाकर्ताओं को अनुच्छेद 14 और 16 के संवैधानिक आदेशों का पालन किए बिना नियुक्त किया गया, जिसके लिए पारदर्शी और निष्पक्ष चयन प्रक्रिया की आवश्यकता होती है।

    न्यायालय ने तर्क दिया,

    “उपर्युक्त स्वीकृत तथ्यों के आधार पर याचिकाकर्ताओं को सुनवाई का अवसर प्रदान करने से स्वीकृत स्थिति में कोई बदलाव नहीं होता।”

    न्यायालय ने उड़ीसा राज्य और अन्य बनाम ममता मोहंती और बसुदेव तिवारी बनाम सिदो कान्हू यूनिवर्सिटी और अन्य में सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों का हवाला देते हुए दोहराया कि उचित चयन प्रक्रियाओं के बिना की गई नियुक्तियां नियुक्तियों को कोई अधिकार नहीं दे सकतीं।

    यह निष्कर्ष निकालते हुए कि याचिकाकर्ताओं को नोटिस जारी करने या अवसर प्रदान करने से यह मौलिक तथ्य नहीं बदलेगा कि उनकी नियुक्तियां अवैध थीं। जस्टिस वानी ने कहा कि अनुच्छेद 14 में नकारात्मक समानता की परिकल्पना नहीं की गई, जिसका अर्थ है कि केवल इसलिए कि अन्य कर्मचारियों को गलती से रखा गया, यह याचिकाकर्ताओं को बनाए रखने का औचित्य नहीं है।

    इन टिप्पणियों के आलोक में न्यायालय ने याचिका खारिज कर दी।

    केस टाइटल- शमीम अहमद शाह बनाम जम्मू-कश्मीर केंद्र शासित प्रदेश

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