पीड़िता के गुप्तांगों को लिंग से छूना गंभीर यौन उत्पीड़न का अपराध: मेघालय हाईकोर्ट
Amir Ahmad
15 July 2024 12:00 PM IST
हाल ही में मेघालय हाईकोर्ट ने पाया कि पीड़िता के गुप्तांगों को लिंग से छूना गंभीर यौन उत्पीड़न का अपराध है, जो POCSO Act 2012 की धारा 6 के तहत दंडनीय है।
न्यायालय ने कहा कि योनि में प्रवेश किए बिना पीड़िता के गुप्तांगों को लिंग से छूने का आरोपी का कृत्य यौन उत्पीड़न (POCSO Act की धारा 7 के तहत) नहीं बल्कि गंभीर यौन उत्पीड़न माना जाएगा।
चीफ जस्टिस एस. वैद्यनाथन और जस्टिस डब्ल्यू. डिएंगदोह की खंडपीठ ने कहा,
“POCSO Act 2012 की धारा 7 का हवाला देकर अपीलकर्ता की ओर से यह प्रयास किया गया कि उसकी योनि में कोई प्रवेश नहीं हुआ था और आरोपी ने केवल अपने लिंग से उसके निजी अंग को छुआ। इसलिए आरोपी को अधिकतम POCSO Act 2012 की धारा 7 के तहत ही दंडित किया जा सकता है। यदि इस व्याख्या को स्वीकार कर लिया जाता है तो यह दूसरों को गलत संकेत देगा कि महिला के निजी अंग को लिंग से छुआ जा सकता है और केवल योनि में प्रवेश ही अस्वीकार्य है, जो अकेले अपराध के बराबर होगा, जो POCSO Act, 2012 के प्रावधानों का उद्देश्य नहीं है।”
धारा 5 के तहत गंभीर प्रवेश यौन उत्पीड़न का अपराध करने की सजा 20 वर्ष से कम नहीं है, जिसे आजीवन कारावास तक बढ़ाया जा सकता है। जबकि धारा 7 के तहत यौन उत्पीड़न का अपराध करने की अधिकतम सजा 5 वर्ष है।
चीफ जस्टिस एस. वैद्यनाथन द्वारा लिखे गए फैसले में स्पष्ट किया गया कि आरोपी धारा 7 के तहत लगाए गए कम दंड का लाभ नहीं उठा सकता, क्योंकि उसमें प्रवेश की क्रिया नहीं की गई। अदालत के अनुसार योनि में लिंग को प्रवेश कराने का प्रयास गंभीर प्रवेश यौन हमले के समान होगा। धारा 7 के तहत यौन हमला तब कहा जाता है, जब यौन इरादे से पीड़िता के निजी अंगों को छूने का प्रयास किया जाता है। यौन हमला करने के लिए प्रवेश की आवश्यकता नहीं होती है।
पीड़िता की गवाही की पुष्टि मेडिकल रिपोर्ट जैसे अन्य साक्ष्य से न होने के बारे में आरोपी द्वारा आपत्ति जताई गई। हालांकि अदालत ने आरोपी की दलील खारिज कर दी, क्योंकि पाया गया कि पीड़िता का बयान विश्वसनीय था और आरोपी को दोषी ठहराने के लिए केवल उसी पर भरोसा किया जा सकता था।
इसके अलावा, न्यायालय ने पाया कि अभियुक्त ने अपने विरुद्ध लगाए गए अपराध के अनुमान को पर्याप्त रूप से पूरा नहीं किया, क्योंकि जब उससे CrPc की धारा 313 के तहत प्रश्न पूछे गए तो उसने अपराध न करने के लिए स्पष्टीकरण नहीं दिया।
तदनुसार न्यायालय ने अपील को खारिज कर दिया और अभियुक्त को दोषी ठहराने वाले ट्रायल कोर्ट के आदेश की पुष्टि की।
केस टाइटल- थौरा डेमी बनाम मेघालय राज्य लोक अभियोजक के माध्यम से