POCSO Act | यदि पीड़िता की एकमात्र गवाही आरोपी को दोषी ठहराने के लिए विश्वसनीय है तो अन्य गवाहों की जांच करना आवश्यक नहीं: मेघालय हाईकोर्ट

Amir Ahmad

18 July 2024 4:17 PM IST

  • POCSO Act | यदि पीड़िता की एकमात्र गवाही आरोपी को दोषी ठहराने के लिए विश्वसनीय है तो अन्य गवाहों की जांच करना आवश्यक नहीं: मेघालय हाईकोर्ट

    पीड़िता की एकमात्र गवाही के आधार पर मेघालय हाईकोर्ट ने हाल ही में POCSO Act के तहत गंभीर यौन उत्पीड़न के अपराध को करने के लिए आरोपी की दोषसिद्धि बरकरार रखी।

    न्यायालय ने कहा कि यदि पीड़िता की गवाही विश्वसनीय, बेदाग और न्यायालय का विश्वास जगाने वाली पाई जाती है तो पीड़िता की एकमात्र गवाही के आधार पर आरोपी को दोषी ठहराया जा सकता है।

    इसके अलावा न्यायालय ने कहा कि एक बार जब पीड़िता की गवाही आरोपी के अपराध को साबित करने के लिए पर्याप्त हो जाती है तो अन्य महत्वपूर्ण गवाहों की जांच करने की कोई आवश्यकता नहीं है।

    चीफ जस्टिस एस. वैद्यनाथन और जस्टिस डब्ल्यू. डिएंगदोह की पीठ ने कहा,

    "हालांकि अपीलकर्ता के सीनियर एडवोकेट ने बताया कि इस मामले में कुछ महत्वपूर्ण गवाहों की जांच नहीं की गई लेकिन हिमाचल प्रदेश राज्य बनाम रघुबीर सिंह के मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के संदर्भ में यहां यह उल्लेख करना उचित है कि साक्ष्य को तौला जाना चाहिए, न कि गिना जाना चाहिए। पीड़िता की एकमात्र गवाही के आधार पर दोषसिद्धि दर्ज की जा सकती है, यदि उसका साक्ष्य विश्वास पैदा करता है और ऐसी परिस्थितियां नहीं हैं जो उसकी सत्यता के खिलाफ हों।"

    न्यायालय ने पाया कि अभियुक्त द्वारा पीड़ित लड़की के यौन शोषण को अभियोजन पक्ष द्वारा मेडिकल साक्ष्य के माध्यम से विधिवत स्थापित किया गया था। इस प्रकार, मेडिकल दस्तावेजों के साथ साक्ष्य की उचित पुष्टि हुई।

    अदालत ने कहा,

    "सबसे बढ़कर, धारा 313(l)(b) Cr.P.C. के तहत पूछताछ के दौरान अपीलकर्ता द्वारा दिया गया उत्तर केवल अपीलकर्ता का अपना बयान है और उसके द्वारा अभियोजन पक्ष और पीड़ित लड़की के बयान को गलत साबित करने का कोई प्रयास नहीं किया गया।"

    अभियोजन पक्ष द्वारा आरोपी के अपराध को संदेह से परे साबित करने के निर्णय के अलावा, अदालत ने पंजाब राज्य बनाम गुरमीत सिंह, (1996) 2 SCC 384 में रिपोर्ट किए गए मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा की गई टिप्पणियों को दोहराया।

    गुरमीत सिंह मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि शारीरिक यौन उत्पीड़न न केवल सबसे बुरी यादें छोड़ता है, बल्कि पीड़ित के पूरे जीवन को भी बर्बाद कर देता है और जहां हत्या व्यक्ति के शरीर को तोड़ देती है। वहीं बलात्कार एक असहाय/महान प्राणी की व्यक्तिगत स्वतंत्रता का विनाश करता है।

    तदनुसार, अदालत ने अपील खारिज कर दी और आरोपी की सजा बरकरार रखी।

    केस टाइटल- ट्रेडा सुंगोह बनाम मेघालय राज्य

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