BNS सेक्शन 85 पर सुप्रीम कोर्ट क्या कहता है?
Shadab Salim
24 Oct 2024 9:34 AM IST
भारतीय न्याय संहिता की धारा 85 पति और उसके घर के सदस्यों द्वारा पत्नी और बहू के साथ क्रूरता करने को अपराध बनाती है। इस धारा के अंतर्गत एक महिला अपने पति के साथ साथ सुसराल के अन्य लोगों के विरुद्ध भी प्रकरण पंजीबद्ध करवा सकती है यदि उसके साथ कोई अपराध घटा है।
इस धारा में पति और उसके रिश्तेदारों को 3 वर्ष तक की सजा से दंडित किए जाने का प्रावधान है। कोई भी पीड़ित महिला संबंधित थाना क्षेत्र में इस अपराध की सूचना पुलिस अधिकारियों को दे सकती है। अनेक मामलों में यह देखा गया है कि इस धारा का दुरुपयोग किया जा रहा है। अनेक शिकायतें इस धारा से संबंधित भारत के सुप्रीम कोर्ट के समक्ष गई है। यह धारा महिलाओं के लिए एक हथियार के रूप में इस्तेमाल होने वाली धारा बनकर रह गई। कानून का अर्थ किसी प्रकार से बदला लेना या फिर कोई सौदेबाजी करना नहीं है। इस धारा के मामले में देखा गया है कि पहले पुलिस थाने से इस धारा का केस दर्ज करवा दिया जाता है, फिर सौदेबाजी के माध्यम से इस धारा को कोर्ट से हटवा भी दिया जाता है। मामले के मुख्य गवाह पुलिस की कहानी से मुकर जाते हैं।
इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट ने भी यह टिप्पणी की थी कि धारा 85 सौदेबाजी का गढ़ बन गया है। इस धारा में परिवर्तन किए जाने नितांत आवश्यक है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहकशा कौसर बनाम स्टेट ऑफ़ बिहार के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने धारा 85 पुरानी धारा 498(ए) के मुकदमे के संबंध में टिप्पणी की है। इस टिप्पणी के बाद यह खबर फैला दी गई है कि धारा 498(ए) को भारत के सुप्रीम ने असंवैधानिक करार दे दिया है। जबकि यह बात पूरी तरह गलत है। धारा 498(ए) को सुप्रीम कोर्ट ने किसी भी प्रकार से समाप्त नहीं किया है। इस धारा में केवल सुधार करने हेतु कुछ दिशा निर्देश पारित किए हैं।
सुप्रीम कोर्ट के शब्दों को यदि आसान शब्दों में समझा जाए तब सुप्रीम कोर्ट ने कुछ यूं कहा है कि क्रूरता के मामले को जनरलाइज नहीं किया जा सकता। अगर किसी पीड़ित के साथ क्रूरता हुई है तो स्पष्ट रूप से क्रूरता करने वाले व्यक्तियों के संबंध में उल्लेख करना होगा। धारा 498(ए) के मामले में पीड़ित महिला थाने जाकर केवल यह कह देती है कि उसके साथ उसके पति और उसके ससुराल के लोग क्रूरता कर रहे हैं और ऐसी क्रूरता के आधार पर ही धारा 498(ए) का मुकदमा दर्ज कर दिया जाता है।
क्रूरता के भी कई अर्थ हैं। मानसिक और शारीरिक क्रूरता कब हुई और किस व्यक्ति द्वारा कारित की गई इस बात का उल्लेख होना चाहिए। इसी तरीके से शारीरिक क्रूरता है। शारीरिक क्रूरता का अर्थ होता है मारपीट। यदि किसी शादीशुदा महिला के साथ किसी प्रकार से मारपीट की जा रही है, उसे आए दिन मारा जा रहा है तब पीड़ित महिला को यह स्पष्ट बताना होगा कि किस समय, किस दिन, उसके साथ उसके पति और उसके ससुराल के किन लोगों ने किस तरह से शारीरिक मारपीट की है। केवल यह कह देने से की उसे परेशान किया जा रहा है इससे धारा 85 नहीं बनती है।
धारा 85 के प्रयोज्य होने के लिए यह आवश्यक है कि मानसिक और शारीरिक पूर्णता को स्पष्ट रूप से साबित किया जाए।
क्रूरता क्या होती है? इसके संबंध में सुप्रीम कोर्ट ने इससे पूर्व के अनेक निर्णयों यह बताया है कि क्रूरता के असल अर्थ क्या है। दहेज की मांग क्रूरता है, मारपीट करना क्रूरता है, किसी महिला को उसके रंग रूप के संबंध में बार-बार टिप्पणी करना क्रूरता है, किसी महिला की जाति के संबंध में टिप्पणी करना क्रूरता है, उसके साथ गाली गलौज करना क्रूरता है।
अगर किसी महिला के साथ कोई भी क्रूरता हुई है तब उसे स्पष्ट रूप से यह बताना होता है कि उसके साथ किस तरह की क्रूरता हुई है और ऐसी क्रूरता कब की गई है और किन-किन लोगों द्वारा ऐसी क्रूरता कारित की गई है। क्रूरता कारित करते समय किन-किन लोगों की क्या क्या भूमिका रही थी।
अगर एक महिला को किसी दिन उसकी सास द्वारा उसके रंग रूप के संबंध में कुछ कहा गया। उस समय स्थान का उल्लेख जरूरी होगा, ऐसा कहने के बाद अगर उस महिला के साथ उसका पति शारीरिक रूप से मारपीट करता है तब उस मारपीट किए जाने का समय भी उल्लेखित होना चाहिए। कुछ यूं समझा जाए कि अगर किसी सामान्य व्यक्ति के साथ मारपीट की जाती है तब उसे केवल मारपीट माना जाता है, लेकिन एक विवाहित महिला के साथ मारपीट की जाती है और ऐसी मारपीट उसके पति और उसके पति के रिश्तेदारों द्वारा की जा रही है, तब इसे धारा 85 के तहत क्रूरता माना जाएगा। फिर यह सामान्य मारपीट नहीं होगी बल्कि पति और उसके नातेदारों द्वारा मारपीट होगी जिसे क्रूरता की श्रेणी में रखा जाएगा।