जानिए दानपत्र से संबंधित कानून

Shadab Salim

19 Oct 2024 2:05 PM IST

  • जानिए दानपत्र से संबंधित कानून

    किसी भी संपत्ति का अंतरण अनेक प्रकारों से किया जा सकता है। उन प्रकारों में एक प्रकार दान भी है। दान में बगैर किसी प्रतिफल के संपत्ति का अंतरण कर दिया जाता है। ऐसे व्यवहार में जो दस्तावेज तैयार होता है उसे दानपत्र कहा जाता है। दान की परिभाषा संपत्ति अंतरण अधिनियम की धारा 122 के अंतर्गत प्रस्तुत की गई है, जहां पर दान के कुछ तत्व बताए गए हैं।

    दान में पक्षकारों का सक्षम होना आवश्यक होता है। पक्षकारों का सक्षम होना संविदा अधिनियम के अंतर्गत माना जाता है। संविदा अधिनियम में कोई व्यक्ति संविदा करने हेतु कब सक्षम होता है इसका उल्लेख किया गया है। जैसे कोई व्यक्ति पागल नहीं हो, दिवालिया नहीं हो और बालिग़ हो गया हो तब उसे सक्षम पक्षकार माना जाता है। दान के लिए ऐसे ही सक्षम पक्षकारों की जरूरत होती है। अगर कोई नाबालिक पक्षकार है तब उसकी ओर से दान लेने और देने का कार्य उसके संरक्षक द्वारा किया जाता है।

    दान में दानदाता की स्वीकृति ही जरूरी नहीं है बल्कि उस व्यक्ति की स्वीकृति भी चाहिए जिस व्यक्ति को दान किया जा रहा है। किसी भी व्यक्ति को उसकी बगैर स्वीकृति के दान नहीं दिया जा सकता।

    दान में किसी भी प्रकार का प्रतिफल नहीं होता है।जैसे कि जब भी कोई संविदा की जाती है तब उसमें कोई प्रतिफल निर्धारित किया जाता है, दान में प्रतिफल की जरूरत नहीं होती, वहां प्रतिफ़ल होता भी नहीं है क्योंकि दान को ऐसा माना जाता है कि वह प्राकृतिक प्रेम और स्नेह में दिया जाता है। इसलिए वहां कोई प्रतिफल नहीं होता है।

    आजकल अचल संपत्ति जैसे कोई मकान जमीन इत्यादि का दान पत्र बनाया जाता है, दान की संविदा आमतौर से घर के पारिवारिक सदस्यों के बीच होती है। जैसे पिता पुत्र के बीच, माता पुत्री के बीच और पति पत्नी के बीच। ऐसे घनिष्ठ रिश्तों में लोग एक दूसरों को संपत्ति दान करते हैं। बाहर के मामले में संपत्ति बहुत कम दान की जाती है। किसी धार्मिक ट्रस्ट या फिर खैराती ट्रस्ट को कोई संपत्ति जरूर दान की जाती है लेकिन साधारण लोगों को आमतौर से कोई संपत्ति दान नहीं की जाती है।

    जब घर के सदस्य एक दूसरे को कोई संपत्ति दान करते हैं तब उन्हें ऐसी संविदा में बहुत कम स्टांप ड्यूटी देना होती है, संपत्ति का रजिस्ट्रेशन भी हो जाता है। जैसे कि एक पिता अपने नाम पर रजिस्टर्ड कोई मकान अपने बेटे को देना चाहता है तब पिता दानपत्र को उप पंजीयक के कार्यालय में रजिस्टर्ड करवा सकता है। ऐसे रजिस्ट्रेशन पर बहुत कम स्टांप ड्यूटी लगती है क्योंकि इन व्यवहारों में किसी भी प्रकार का धन का लेनदेन नहीं होता है, लेकिन यह ध्यान रखना चाहिए कि परिवार के सदस्यों के बीच होने वाले दान के व्यवहार में ही कम स्टांप ड्यूटी लगती है।

    बाहर के किसी व्यक्ति को कोई संपत्ति दान करने पर स्टांप ड्यूटी विक्रय जितनी ही लगती है। लोगों ने स्टांप ड्यूटी से बचने के लिए विक्रय के स्थान पर दान की संविदा बनाने का काम शुरू कर दिया था और झूठ बोलकर विक्रय को दान बता देते थे। इस समस्या से निपटने के लिए यह प्रावधान किया गया है कि अगर परिवार के सदस्य एक दूसरे को कोई संपत्ति दान करते हैं तब स्टांप ड्यूटी कम लगेगी। यदि बाहर के किसी व्यक्ति को कोई संपत्ति दान की जाएगी तब उसके रजिस्ट्रेशन में विक्रय जितनी ही स्टांप ड्यूटी लगेगी।

    एक बार दान हमेशा दान

    किसी भी चल और अचल संपत्ति का दान किया जा सकता है। चल संपत्ति के दान में दान पत्र का रजिस्ट्रेशन आवश्यक नहीं होता है लेकिन अचल संपत्ति के मामले में दान पत्र का रजिस्टर्ड होना बेहद जरूरी है। बगैर रजिस्ट्रेशन के कोई भी दान पत्र वैलिड नहीं माना जाता है। अगर किसी व्यक्ति ने किसी दूसरे व्यक्ति को किसी संपत्ति का दान कर दिया है और उसका रजिस्टर्ड दान पत्र तैयार कर लिया गया है तब इसका खंडन नहीं किया जा सकता। अब दान देने वाले दाता किसी भी स्थिति में संपत्ति को वापस प्राप्त नहीं कर सकता है। वसीयत की तरह दान का खंडन नहीं किया जा सकता। वसीयत का कोई भी व्यक्ति बार-बार खंडन कर सकता है जबकि दान का खंडन नहीं होता है। एक बार यदि दान लिख दिया गया तब वह दान सदा सदा के लिए माना जाएगा।

    कोई भी भारयुक्त संपत्ति जिस पर किसी प्रकार का कोई कर्ज है, कोई योजना है ऐसी संपत्ति का दान नहीं किया जा सकता। पहले उस संपत्ति का कर्ज चुकाया जाएगा फिर उस संपत्ति का दान किया जाएगा। अगर संपत्ति पर कोई भार है और उसका दान कर दिया जाता है तब ऐसा दान अवैध माना जाएगा।

    दान पत्र में दाता के संबंध में संपूर्ण जानकारी जैसे उसका नाम पता इत्यादि। उस संपत्ति का उल्लेख जिसे दान किया जाना है, यह संपत्ति दाता को कहां से प्राप्त हुई है इसकी पूर्ण जानकारी।

    जिस व्यक्ति को संपत्ति दान की जा रही है उस व्यक्ति की संपूर्ण जानकारी और इसी के साथ दोनों की स्वतंत्र सहमति का उल्लेख दान पत्र में किया जाना चाहिए। ऐसे दान पत्र को रजिस्टर्ड करवाने के लिए जिस जिले में संपत्ति स्थित है वहां के उप पंजीयक कार्यालय में प्रस्तुत किया जा सकती है।

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