सुप्रीम कोर्ट ने चेक बाउंस मामलों में त्वरित सुनवाई और राहत पर क्या निर्देश दिए?

Himanshu Mishra

18 Oct 2024 6:20 PM IST

  • सुप्रीम कोर्ट ने चेक बाउंस मामलों में त्वरित सुनवाई और राहत पर क्या निर्देश दिए?

    Meters and Instruments Pvt. Ltd. बनाम Kanchan Mehta (2017) मामले में सुप्रीम कोर्ट ने नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स अधिनियम, 1881 (Negotiable Instruments Act, 1881) के अंतर्गत चेक बाउंस (Cheque Dishonour) से जुड़े मामलों पर महत्वपूर्ण मुद्दों का विश्लेषण किया।

    कोर्ट ने चेक बाउंस मामलों के त्वरित निपटान (Speedy Disposal) की आवश्यकता पर जोर दिया और बताया कि अधिभारित न्यायपालिका (Overburdened Judiciary) से निपटने के लिए समय पर न्याय दिलाना क्यों जरूरी है। कोर्ट ने यह भी कहा कि इन अपराधों के प्रतिपूरक और नियामक (Compensatory and Regulatory) स्वभाव को दंडात्मक उपायों से अधिक महत्व दिया जाना चाहिए ताकि अनावश्यक देरी से बचा जा सके।

    नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स अधिनियम के प्रमुख प्रावधान (Key Provisions of the Negotiable Instruments Act)

    कोर्ट ने बताया कि धारा 138 (Section 138) के अंतर्गत चेक बाउंस होने पर चेक जारीकर्ता (Drawer) को दंड का सामना करना पड़ता है, जिससे वित्तीय लेन-देन की विश्वसनीयता सुनिश्चित की जा सके। धारा 139 (Section 139) के तहत यह मान्यता होती है कि चेक वैध ऋण (Valid Debt) के लिए जारी किया गया था, और इसका खंडन करने का बोझ (Burden of Proof) आरोपी पर होता है।

    सुप्रीम कोर्ट ने धारा 147 (Section 147) पर भी चर्चा की, जो अपराधों के समझौते (Compounding) की अनुमति देती है, बशर्ते दोनों पक्ष सहमत हों। धारा 143 (Section 143) के तहत त्वरित सुनवाई (Summary Trials) का प्रावधान है, ताकि मामलों का जल्द निपटारा हो सके। इन प्रावधानों का उद्देश्य केवल दंड देना नहीं है, बल्कि यह सुनिश्चित करना है कि चेक का भुगतान करके शिकायतकर्ता की स्थिति बहाल हो सके।

    मामले में दिए गए प्रमुख फैसलों का संदर्भ (Key Judgments Referenced in the Case)

    1. Damodar S. Prabhu बनाम Sayed Babalal H. (2010) – इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने अपराध के शुरुआती चरण में समझौते (Compounding) को प्रोत्साहित किया, ताकि विवाद जल्द समाप्त हो सके। कोर्ट ने इस बात पर भी जोर दिया कि देर से समझौते की स्थिति में आरोपियों पर अधिक लागत (Higher Costs) लगाई जा सकती है।

    2. JIK Industries Ltd. बनाम Amarlal Jumani (2012) – इस मामले में कोर्ट ने कहा कि समझौता तभी मान्य होगा जब दोनों पक्ष आपसी सहमति से समझौते के लिए सहमत हों। केवल आरोपी द्वारा भुगतान कर देने से मामला बंद नहीं किया जा सकता, जब तक कि शिकायतकर्ता भी इस पर सहमत न हो।

    3. Indian Bank Association बनाम Union of India (2014) – इस फैसले में कोर्ट ने चेक बाउंस मामलों के सरलीकरण (Simplification of Procedure) के लिए कई दिशानिर्देश जारी किए। कोर्ट ने एफिडेविट आधारित साक्ष्य (Affidavit-Based Evidence) और ई-मेल द्वारा सम्मन (Summons by E-mail) का उपयोग करने की सलाह दी ताकि प्रक्रिया को तेज किया जा सके।

    4. J.V. Baharuni बनाम State of Gujarat (2014) – इस फैसले में कहा गया कि चेक बाउंस मामलों में संक्षिप्त सुनवाई (Summary Trial) को प्राथमिकता दी जानी चाहिए और जहां संभव हो, अदालतों को जल्द समझौता प्रोत्साहित करना चाहिए। कोर्ट ने यह भी कहा कि इन मामलों का उद्देश्य दंड के बजाय प्रतिपूर्ति (Compensation) होना चाहिए।

    मामले में कोर्ट द्वारा उठाए गए प्रमुख मुद्दे (Fundamental Issues Addressed by the Court)

    सुप्रीम कोर्ट ने चेक बाउंस मामलों में दंड और प्रतिपूर्ति (Punishment and Compensation) के बीच संतुलन की आवश्यकता पर जोर दिया। कोर्ट ने कहा कि इस कानून का मुख्य उद्देश्य वित्तीय लेन-देन की सुरक्षा करना और शिकायतकर्ता को जल्द से जल्द न्याय दिलाना है।

    न्यायिक प्रक्रिया को लंबे समय तक खींचने से बचने के लिए अदालतों को जल्द से जल्द समझौता और निपटान (Settlement) प्रोत्साहित करना चाहिए।

    इस फैसले में यह भी बताया गया कि चेक बाउंस मामलों का न्यायिक डैकेट (Judicial Docket) पर भारी बोझ है, जिसमें लगभग 20% लंबित मामले इसी प्रकार के हैं। अदालत ने यह सुझाव दिया कि इन मामलों में आधुनिक तकनीक का उपयोग किया जाए और ऐसे मामलों में ऑनलाइन प्रक्रिया को बढ़ावा दिया जाए, जहां जटिल कानूनी प्रश्न शामिल न हों।

    समझौता और न्यायिक विवेकाधिकार (Compounding and Judicial Discretion)

    सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि समझौता (Compounding) के लिए दोनों पक्षों की सहमति आवश्यक है, लेकिन कोर्ट के पास यह अधिकार है कि अगर शिकायतकर्ता को उचित रूप से मुआवजा मिल गया हो, तो वह मामले को समाप्त कर सके।

    अदालत ने कहा कि यदि आरोपी चेक की राशि, ब्याज और कानूनी खर्च चुका देता है, तो मजिस्ट्रेट को उसे निर्वहन (Discharge) का आदेश देने का अधिकार है। यह निर्णय कानून के उद्देश्य के अनुरूप है, जो न्याय तक पहुंच को सुगम बनाने के लिए है।

    तकनीक का उपयोग और प्रशासनिक सुधार (Use of Technology and Administrative Reforms)

    अदालत ने आधुनिक तकनीक के उपयोग पर जोर दिया, ताकि चेक बाउंस मामलों को अधिक प्रभावी ढंग से निपटाया जा सके। ई-मेल द्वारा सम्मन भेजने और ऑनलाइन फाइलिंग जैसी सुविधाओं का सुझाव दिया गया ताकि मामलों में देरी न हो।

    अदालत ने उच्च न्यायालयों से यह भी कहा कि वे ऐसे मामलों की पहचान करें, जिन्हें पूरी तरह या आंशिक रूप से ऑनलाइन निपटाया जा सके, जिससे पक्षकारों की भौतिक उपस्थिति की आवश्यकता कम हो और मामलों का तेजी से निपटान हो सके।

    सुप्रीम कोर्ट का Meters and Instruments Pvt. Ltd. बनाम Kanchan Mehta का फैसला चेक बाउंस मामलों के निपटान में प्रगतिशील दृष्टिकोण दर्शाता है। कोर्ट ने कहा कि इन मामलों में प्रतिपूर्ति को दंड से अधिक प्राथमिकता दी जानी चाहिए और जल्द से जल्द समझौता किया जाना चाहिए।

    इस फैसले ने न्यायपालिका पर बोझ को कम करने, वित्तीय अनुशासन को बढ़ावा देने और न्याय को समय पर उपलब्ध कराने की आवश्यकता पर जोर दिया। यह निर्णय यह सुनिश्चित करता है कि न्याय प्रणाली प्रभावी और सुगम हो, जिससे सभी पक्षों को त्वरित और निष्पक्ष न्याय मिल सके।

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