जानिए हमारा कानून
ग्राहकों की सुरक्षा का कानून Consumer Protection Act
ग्राहकों की सुरक्षा के उद्देश्य से Consumer Protection Act पार्लियामेंट द्वारा बनाया गया और उसे सारे भारत पर लागू किया गया। किसी भी बढ़ती हुई अर्थव्यवस्था के लिए यह आवश्यक है कि वहां उसके ग्राहकों के भी अधिकार सुनिश्चित होना चाहिए तथा एक ग्राहक के पास यह अधिकार होना चाहिए कि यदि वह कोई भी उत्पाद या सेवा को खरीद रहा है आश्वस्त होना चाहिए कि उसके सभी अधिकार सुरक्षित हैं तथा उसके साथ किसी भी प्रकार की ठगी नहीं की जाएगी। कुछ आलोचको ने इस अधिनियम को व्यापारी के विरुद्ध बताया परंतु यदि कोई व्यापारी...
राजस्थान न्यायालय शुल्क और वाद मूल्यांकन अधिनियम, 1961 की धारा 71, 72 और 73
राजस्थान न्यायालय शुल्क और वाद मूल्यांकन अधिनियम, 1961 राज्य में न्यायालयों और राजस्व न्यायालयों के समक्ष प्रस्तुत दस्तावेजों तथा वादों पर लगने वाले शुल्क को नियंत्रित करता है। यह अधिनियम यह सुनिश्चित करता है कि न्यायिक कार्यवाही में भाग लेने वाले पक्षकार उचित शुल्क अदा करें और यह शुल्क राज्य सरकार के राजस्व का हिस्सा बने।इस अधिनियम में विभिन्न प्रकार के शुल्क, शुल्क की वसूली की प्रक्रिया, शुल्क वापसी की स्थिति, मुद्रांक की व्यवस्था, और उनका विनिमय आदि का विस्तृत विवरण दिया गया है। अधिनियम की...
राजस्थान भू-राजस्व अधिनियम, 1956 की धारा 88 और 89 : राज्य की कब संपत्ति मानी जाएंगी
धारा 88 – सभी सड़कें, नाले, जल स्रोत तथा ऐसी अन्य भूमि जो किसी व्यक्ति की संपत्ति नहीं है, वे राज्य की संपत्ति मानी जाएंगीराजस्थान भू-राजस्व अधिनियम की धारा 88 यह स्पष्ट करती है कि वे सभी सड़कें, गलियाँ, रास्ते, पुल, नाले, नदी-नालों के किनारे की बाड़ें, नदियाँ, झीलें, तालाब, नहरें, जलधाराएँ, बहता हुआ अथवा जमा हुआ पानी और वे सभी भूमि जो किसी व्यक्ति या ऐसी संस्था की संपत्ति नहीं हैं जो कानूनन संपत्ति रखने की पात्र हो—वे राज्य सरकार की संपत्ति मानी जाएंगी। इसका मतलब यह हुआ कि जो जमीन या संपत्ति...
क्या केवल ऑफिस का होना किसी High Court को Article 226(2) के तहत Jurisdiction देने के लिए काफी है?
सुप्रीम कोर्ट ने State of Goa v. Summit Online Trade Solutions (P) Ltd. [2023 LiveLaw (SC) 184] के फैसले में भारतीय संविधान के Article 226(2) के तहत High Court की Territorial Jurisdiction (क्षेत्रीय अधिकारिता) से जुड़े एक अहम मुद्दे को सुलझाया।यह मामला writ petition (रिट याचिका) से जुड़ा था, जिसमें यह तय करना था कि किसी High Court के क्षेत्र में 'cause of action' (कारण का आधार) कब और कैसे उत्पन्न होता है। यह फैसला उन मामलों में विशेष रूप से मार्गदर्शक है, जहां एक राज्य द्वारा लिए गए फैसले का असर...
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 463 और 464: अन्य क्षेत्रों से जारी वारंटों की वैधता और सजा
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (Bhartiya Nagarik Suraksha Sanhita, 2023) एक नई प्रक्रिया संहिता है जो 1 जुलाई 2024 से पूरे भारत में भारतीय दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC) के स्थान पर लागू हुई है। इस संहिता में अपराध से संबंधित दंडों के निष्पादन से जुड़ी एक संपूर्ण प्रक्रिया निर्धारित की गई है।संहिता के अध्याय XXXIV में "दंड का निष्पादन" (Execution of Sentences) से संबंधित प्रावधान शामिल हैं। इस अध्याय के भाग 'ग' (C – Levy of fine) में विशेष रूप से उस स्थिति की चर्चा की गई है जब किसी...
Civil Rights Protection Act की धारा 5,6,और 7 के प्रावधान
यह एक्ट समाज के वंचित वर्ग के साथ होने वाले अत्याचार और क्रूरता को रोकने के उद्देश्य से बनाया गया है। इस एक्ट की धारा 5,6 और 7 के अंतर्गत भी अलग अलग कामों को अपराध बनाया गया है और उसमें सज़ा के प्रावधान किये गए हैं।धारा 5अस्पतालों आदि में व्यक्तियों को प्रवेश करने से इंकार करने के लिए दंड:-जो कोई "अस्पृश्यता" के आधार पर(क) किसी व्यक्ति को किसी अस्पताल, औषधालय, शिक्षा संस्था या में, यदि वह अस्पताल, औषधालय, शिक्षा संस्था या छात्रावास जन-साधारण या उसके किसी विभाग के फायदे के लिए स्थापित हो या चलाया...
Maintenance अदा नहीं किये जाने के परिणाम
किसी भी सक्षम व्यक्ति को अपने पर डिपेंड लोगों को मैंटेन करने की जिम्मेदारी होती है। अगर ऐसा व्यक्ति अपने पर डिपेंड लोगों का Maintenance नहीं करता है तब डिपेंड लोग अदालत के ज़रिये Maintenance मांगते हैं।Maintenance का हक़ डिपेंड लोगों को नागरिक सुरक्षा संहिता से मिलते हैं। जहां पत्नी बच्चे और माता पिता के भरण पोषण नहीं करने पर आश्रित संबंधित मजिस्ट्रेट को एक आवेदन देकर भरण पोषण प्राप्त कर सकते हैं।वर्तमान समय में माता पिता के मामले में भरण पोषण नहीं देने जैसी चीज कम देखने को मिलती है। लेकिन पत्नी...
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 463 और 464: अन्य क्षेत्रों से जारी वारंटों की वैधता और सजा
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (Bhartiya Nagarik Suraksha Sanhita, 2023) एक नई प्रक्रिया संहिता है जो 1 जुलाई 2024 से पूरे भारत में भारतीय दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC) के स्थान पर लागू हुई है। इस संहिता में अपराध से संबंधित दंडों के निष्पादन से जुड़ी एक संपूर्ण प्रक्रिया निर्धारित की गई है।संहिता के अध्याय XXXIV में "दंड का निष्पादन" (Execution of Sentences) से संबंधित प्रावधान शामिल हैं। इस अध्याय के भाग 'ग' (C – Levy of fine) में विशेष रूप से उस स्थिति की चर्चा की गई है जब किसी...
दक्षिण एशियाई देशों के बीच व्यापार को बढ़ावा देने वाला ऐतिहासिक समझौता: साप्टा की रूपरेखा, उद्देश्य और कानूनी विश्लेषण
SAARC (South Asian Association for Regional Cooperation) का उद्देश्य अपने सदस्य देशों के बीच सहयोग को बढ़ाना है। इसी दिशा में 1995 में SAPTA (SAARC Preferential Trading Arrangement) की शुरुआत हुई, जो दक्षिण एशिया में क्षेत्रीय व्यापार को प्रोत्साहित करने की पहली ठोस कोशिश थी।इस समझौते के तहत सदस्य देशों ने तय किया कि वे धीरे-धीरे आपसी व्यापार पर लगने वाले टैरिफ (Tariff – आयात-निर्यात पर लगने वाला शुल्क) में कटौती करेंगे और व्यापारिक रियायतें देंगे, जिससे आर्थिक एकीकरण (Economic...
राजस्थान भूमि राजस्व अधिनियम की धारा 79 से 87 : अपील, पुनर्विचार और पुनरीक्षण
भूमिकाराजस्थान भूमि राजस्व अधिनियम के अध्यायों में अपील, पुनर्विचार (Review), पुनरीक्षण (Revision) और आदेशों की प्रतिलिपि से संबंधित विस्तृत प्रावधान दिए गए हैं। इनका उद्देश्य न्यायिक प्रक्रियाओं में पारदर्शिता, न्याय की पुनः समीक्षा और अनुचित आदेशों पर नियंत्रण सुनिश्चित करना है। नीचे हम धाराओं 79 से 87 तक के प्रावधानों का विस्तार से सरल हिंदी में वर्णन कर रहे हैं, ताकि आम नागरिक या विधि विद्यार्थी भी इन्हें सहजता से समझ सके। धारा 79 – अपील की याचिका के साथ आदेश की प्रमाणित प्रति देना...
राजस्थान न्यायालय शुल्क अधिनियम 1961 की धारा 69 और 70 : स्टाम्प विक्रेताओं के लिए दंडात्मक प्रावधान
राजस्थान न्यायालय शुल्क और वाद मूल्यांकन अधिनियम, 1961 एक ऐसा कानून है जो राज्य के भीतर न्यायालयों में प्रस्तुत होने वाले विभिन्न प्रकार के दस्तावेजों, याचिकाओं, अपीलों और अन्य कार्यवाहियों पर लगने वाले शुल्क (कोर्ट फीस) को नियंत्रित करता है।इस अधिनियम के पिछले अध्यायों में यह बताया गया है कि किन मामलों में शुल्क देना आवश्यक है, किस दस्तावेज पर कितना शुल्क लगेगा, और कौन से दस्तावेज शुल्क से मुक्त होंगे। अधिनियम की धारा 66, 67 और 68 में इस बात पर विशेष बल दिया गया है कि सभी शुल्क मुद्रांक द्वारा...
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 461 और 462 : जुर्माने की वसूली और वारंट की प्रभावशीलता से जुड़ी प्रक्रिया
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 के अध्याय XXXIV में दंड निष्पादन से संबंधित महत्वपूर्ण प्रक्रियाएँ दी गई हैं। इस अध्याय के अंतर्गत “अंश – 'ग' : जुर्माना वसूल करना” (Levy of Fine) में धारा 461 और 462 में बताया गया है कि जब किसी अभियुक्त पर जुर्माना लगाया गया हो, लेकिन वह भुगतान नहीं करता है, तो उस जुर्माने की वसूली किस प्रकार की जाएगी। इसके साथ ही, इन धाराओं में यह भी स्पष्ट किया गया है कि जुर्माना वसूल करने हेतु जारी किए गए वारंट की क्षेत्रीय सीमा क्या होगी और उसे कैसे लागू किया जाएगा।यह लेख...
राजस्थान भूमि राजस्व अधिनियम, 1956 की धाराएँ 72 से 78: सिविल न्यायालय में अपील और वाद पर रोक
धारा 72 - सिविल न्यायालय में अपील और वाद पर रोकधारा 72 के अंतर्गत यह स्पष्ट किया गया है कि यदि किसी विवाद को मध्यस्थता (arbitration) के माध्यम से सुलझाया गया है और उस पर राजस्व न्यायालय या अधिकारी ने निर्णय दे दिया है, तो उस निर्णय को तुरंत लागू किया जाएगा। उस निर्णय के विरुद्ध सामान्य रूप से अपील की अनुमति नहीं है। लेकिन कुछ विशेष परिस्थितियाँ हैं जिनमें अपील संभव है: 1. यदि न्यायालय द्वारा दिया गया निर्णय मध्यस्थ के निर्णय से अधिक है या उसके अनुरूप नहीं है। 2. यदि यह तर्क दिया जाता है कि जो...
शिमला समझौता 1971: भारत-पाकिस्तान के बीच शांति की डोर और उसका कानूनी महत्व
2 जुलाई 1972 को भारत और पाकिस्तान के बीच एक ऐतिहासिक समझौता हुआ जिसे शिमला समझौता कहा जाता है। यह समझौता 1971 के युद्ध के बाद हुआ था जिसमें भारत की जीत हुई थी और बांग्लादेश एक नया देश बनकर उभरा था।इस समझौते का उद्देश्य यह था कि भारत और पाकिस्तान भविष्य में अपने सभी विवाद (Disputes) आपसी बातचीत (Bilateral Talks) से सुलझाएँगे और किसी तीसरे देश या संस्था की मदद नहीं लेंगे। आज यह समझौता एक बार फिर चर्चा में है क्योंकि दोनों देशों के बीच हाल ही में बढ़े तनाव (Tension) के कारण इसकी वैधता (Validity) और...
राजस्थान न्यायालय शुल्क अधिनियम, 1961 की धारा 66 से 68 : Stamp के निरस्तीकरण की प्रक्रिया
राजस्थान न्यायालय शुल्क और वाद मूल्यांकन अधिनियम, 1961 (Rajasthan Court Fees and Suits Valuation Act, 1961) एक महत्वपूर्ण कानून है जो विभिन्न वादों और अपीलों में लगने वाले न्यायालय शुल्क को नियंत्रित करता है। इस अधिनियम के अध्याय आठ (Chapter VIII – Miscellaneous) में कुछ विविध लेकिन अत्यंत उपयोगी नियमों को शामिल किया गया है, जो न्यायालय शुल्क की वसूली की प्रक्रिया, दस्तावेजों में त्रुटि सुधार, और मुद्रांक (Stamp) के निरस्तीकरण से संबंधित हैं। यह अध्याय धारा 66, 67 और 68 में विभाजित है और इनका...
'वकील को इंटरव्यू के लिए भेजना उसकी गरिमा का हनन': सुप्रीम कोर्ट ने सीनियर डेजिग्नेशन के लिए अंक-आधारित प्रणाली क्यों खत्म की?
सुप्रीम कोर्ट ने माना कि वरिष्ठ वकीलों के पद के लिए 100-बिंदु आधारित मूल्यांकन तंत्र, जो इंदिरा जयसिंह के 2017 और 2023 के निर्णयों (इंदिरा जयसिंह-1 और 2) में स्थापित किया गया था, पिछले साढ़े सात सालों में अपने इच्छित उद्देश्यों को प्राप्त करने में विफल रहा है।जस्टिस अभय ओक, जस्टिस उज्जल भुइयां और जस्टिस एसवीएन भट्टी की पीठ ने कहा -"पिछले साढ़े सात वर्षों के अनुभव से पता चलता है कि अंक आधारित प्रारूप के आधार पर पद के लिए आवेदन करने वाले वकीलों की योग्यता, बार में उनकी स्थिति और कानून में उनके...
Civil Rights Protection Act की धारा 3 और 4
संविधान में स्पष्ट उल्लेख कर छुआछूत को खत्म करने के लिए प्रावधान किए गए और इसके साथ ही एक आपराधिक कानून भी बनाया गया जिसका नाम 'सिविल अधिकार संरक्षण अधिनियम, 1955' यह कानून 8 मई 1955 को बनकर तैयार हुआ। इस कानून के अंतर्गत कुछ ऐसे कार्यों को अपराध घोषित किया गया जो छुआछूत से संबंधित है। इस प्रथक विशेष कानून को बनाए जाने का उद्देश्य छुआछूत का अंत करना तथा छुआछूत को प्रसारित करने वाले व्यक्तियों को दंडित करना था।इस अधिनियम का विस्तार संपूर्ण भारत पर है। इस समय अधिनियम संपूर्ण भारत पर विस्तारित होकर...
Schedule Tribe को मिलने वाला Forest Right
Schedule Tribe को वनों के उपभोग का अधिकार प्राप्त है। एक प्रकार से वनों की मालिक राज्य है परंतु उनके उपभोग का अधिकार अनुसूचित जनजातियों को प्राप्त है।इस उद्देश्य से भारत की संसद द्वारा 'अनुसूचित जनजाति और अन्य परंपरागत वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम, 2006 पारित किया गया। यह अधिनियम का विस्तार संपूर्ण भारत पर है। यह अधिनियम अनुसूचित जनजाति के वन अधिकारों को मान्यता देता है। वन में निवास करने वाली अनुसूचित जनजातियों और अन्य परम्परागत, वन निवासियों के मान्यताप्राप्त अधिकारों में,...
अंतरराष्ट्रीय संधि और उल्लंघन के प्रभाव: International Law
अंतरराष्ट्रीय संधियाँ (Treaties) देशों के बीच विश्वास और सहयोग की नींव होती हैं। जब देश अपनी संधि के नियमों (Rules) और शर्तों (Conditions) का पालन करते हैं, तो विश्व में स्थिरता (Stability) और शांति (Peace) बनी रहती है। लेकिन यदि कोई राज्य (State) अपनी संधि का उल्लंघन (Violation) करता है, तो इससे कानूनी (Legal), राजनीतिक (Political) और आर्थिक (Economic) समस्याएँ पैदा होती हैं। इस लेख में हम सरल हिंदी में समझेंगे कि संधि क्या होती है, संधि उल्लंघन क्यों होता है, और अंतरराष्ट्रीय कानून...
राजस्थान न्यायालय शुल्क अधिनियम, 1961 की धारा 63 से 65B : गलती के आधार पर शुल्क वापसी
राजस्थान न्यायालय शुल्क अधिनियम, 1961, न्यायालयों में दायर किए गए वादों (Suits), अपीलों (Appeals), आवेदन-पत्रों (Applications) आदि पर देय शुल्क (Fees) से संबंधित एक महत्वपूर्ण कानून है। इस अधिनियम का अध्याय VII विशेष रूप से "शुल्क वापसी और रियायतों" (Refunds and Remissions) को लेकर है। हमने पहले धारा 61 और 62 को समझा।अब हम धारा 63 से लेकर 65B तक का विस्तृत विश्लेषण करेंगे। ये प्रावधान उन स्थितियों को स्पष्ट करते हैं जिनमें व्यक्ति शुल्क की वापसी के पात्र हो सकते हैं, कुछ दस्तावेजों को शुल्क से...




















