झूठे दस्तावेज और जालसाजी के स्पष्टीकरण और उदाहरण: धारा 335 भारतीय न्याय संहिता, 2023 भाग III

Himanshu Mishra

30 Dec 2024 5:49 PM IST

  • झूठे दस्तावेज और जालसाजी के स्पष्टीकरण और उदाहरण: धारा 335 भारतीय न्याय संहिता, 2023 भाग III

    भारतीय न्याय संहिता, 2023 की धारा 335 में झूठे दस्तावेज (False Document) बनाने और जालसाजी (Forgery) के मामलों पर विस्तृत रूप से चर्चा की गई है। यह धारा दस्तावेजों की सत्यता को बनाए रखने और धोखाधड़ी (Fraud) रोकने का प्रयास करती है।

    इस लेख में धारा 335 के अंतर्गत दिए गए स्पष्टीकरणों (Explanations) और उदाहरणों (Illustrations) का सरल भाषा में विस्तार किया गया है। यह इस विषय पर तीसरा और अंतिम भाग है, जिसमें सभी प्रावधानों और उनके महत्व पर चर्चा की जाएगी।

    स्पष्टीकरण 1: अपने नाम का हस्ताक्षर भी जालसाजी हो सकता है

    धारा 335 का पहला स्पष्टीकरण स्पष्ट करता है कि अगर कोई व्यक्ति अपने नाम का हस्ताक्षर (Signature) करता है और उसका उद्देश्य दूसरों को गुमराह करना या धोखा देना है, तो इसे भी जालसाजी माना जाएगा। इस स्पष्टीकरण का मुख्य बिंदु वह इरादा (Intention) है, जिसके तहत हस्ताक्षर किए गए हैं।

    उदाहरण (a): अपने नाम से धोखा देने का प्रयास

    इस उदाहरण में, A अपने नाम का हस्ताक्षर बिल ऑफ एक्सचेंज (Bill of Exchange) पर करता है, लेकिन उसका उद्देश्य यह है कि लोग यह मानें कि यह बिल किसी अन्य व्यक्ति द्वारा बनाया गया है, जिसका नाम भी A है। यह जालसाजी है क्योंकि A ने जानबूझकर गलत धारणा उत्पन्न की है।

    उदाहरण (b): खाली कागज पर झूठी स्वीकृति देन

    A एक खाली कागज पर "Accepted" लिखता है और Z के नाम से हस्ताक्षर करता है। इसका उद्देश्य यह है कि B बाद में इस कागज पर एक बिल ऑफ एक्सचेंज तैयार करे और इसे Z की स्वीकृति के रूप में पेश करे। A ने झूठा दस्तावेज बनाया, इसलिए वह जालसाजी का दोषी है। यदि B इस कागज का उपयोग करके धोखाधड़ी करता है, तो वह भी जालसाजी का दोषी होगा।

    उदाहरण (c): बिल ऑफ एक्सचेंज का दुरुपयोग

    A एक ऐसा बिल ऑफ एक्सचेंज उठाता है जो किसी अन्य व्यक्ति के नाम पर है, लेकिन उस व्यक्ति का नाम भी A के समान है। A उस बिल पर अपने नाम का हस्ताक्षर करता है ताकि यह लगे कि इसे सही व्यक्ति ने हस्ताक्षरित किया है। यह जालसाजी है क्योंकि यह धोखा देने के इरादे से किया गया कार्य है।

    उदाहरण (d): एंटीडेटेड (Antedated) दस्तावेज तैयार करना

    B, अपनी संपत्ति जब्त होने के बाद, Z के साथ मिलीभगत करके एक पट्टा (Lease) तैयार करता है, जिसमें तारीख छह महीने पुरानी दिखाई जाती है। हालांकि यह दस्तावेज B ने अपने नाम से हस्ताक्षरित किया है, लेकिन इसे एंटीडेटेड करने का उद्देश्य A को धोखा देना है। यह जालसाजी का स्पष्ट मामला है।

    उदाहरण (e): दिवालिया होने से पहले झूठा नोट बनाना

    A, एक व्यापारी, दिवालिया (Insolvent) होने की आशंका में B के पास संपत्ति जमा करता है। लेनदेन को वैध दिखाने के लिए, A एक प्रोमिसरी नोट (Promissory Note) तैयार करता है और इसे ऐसी तारीख पर लिखता है जो उसकी आर्थिक कठिनाई से पहले की प्रतीत हो। यह नोट एंटीडेटेड (Antedated) है और इसका उद्देश्य लेनदारों को धोखा देना है, इसलिए यह जालसाजी है।

    स्पष्टीकरण 2: काल्पनिक या मृत व्यक्तियों के नाम पर जालसाजी

    इस स्पष्टीकरण के तहत, यदि कोई दस्तावेज किसी काल्पनिक व्यक्ति (Fictitious Person) या मृत व्यक्ति के नाम पर तैयार किया गया है और इसका उद्देश्य यह विश्वास दिलाना है कि इसे किसी वास्तविक या जीवित व्यक्ति द्वारा बनाया गया है, तो यह जालसाजी होगी।

    उदाहरण: काल्पनिक व्यक्ति के नाम पर बिल ऑफ एक्सचेंज

    A एक काल्पनिक व्यक्ति के नाम पर बिल ऑफ एक्सचेंज तैयार करता है और फिर उस व्यक्ति के नाम से इसे धोखे से स्वीकार करता है। इसका उद्देश्य बिल को वैध रूप में प्रस्तुत करना है। यह जालसाजी है क्योंकि यह दस्तावेज एक काल्पनिक व्यक्ति के नाम पर बनाया गया है और इसका उद्देश्य धोखा देना है।

    स्पष्टीकरण 3: इलेक्ट्रॉनिक हस्ताक्षर और जालसाजी

    यह स्पष्टीकरण इलेक्ट्रॉनिक हस्ताक्षर (Electronic Signature) की परिभाषा को धारा 2(1)(d) सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 (Information Technology Act, 2000) से जोड़ता है। इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड (Electronic Record) पर बिना अधिकार या धोखाधड़ी के इलेक्ट्रॉनिक हस्ताक्षर करना जालसाजी में शामिल है।

    यह प्रावधान आधुनिक समय की धोखाधड़ी को संबोधित करता है, जहां इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड और हस्ताक्षर के माध्यम से झूठे दस्तावेज तैयार किए जाते हैं। यह दिखाता है कि कानून भौतिक और डिजिटल दोनों प्रकार के जालसाजी के मामलों से निपटने में सक्षम है।

    धारा 335 के व्यापक प्रभाव

    धारा 335 के अंतर्गत दिए गए स्पष्टीकरण और उदाहरण यह स्पष्ट करते हैं कि दस्तावेजों की सत्यता को बनाए रखना कितना महत्वपूर्ण है। चाहे वह भौतिक (Physical) दस्तावेज हों या डिजिटल (Digital), इस धारा का उद्देश्य धोखाधड़ी को रोकना और न्याय व्यवस्था को सुदृढ़ करना है।

    यह प्रावधान न केवल पारंपरिक जालसाजी को संबोधित करता है, बल्कि आधुनिक डिजिटल साधनों का उपयोग करके की जाने वाली धोखाधड़ी को भी रोकता है।

    धारा 335 के इस तीसरे और अंतिम भाग में इसके स्पष्टीकरण और उदाहरणों की विस्तार से व्याख्या की गई है। ये प्रावधान स्पष्ट करते हैं कि कैसे झूठे दस्तावेज तैयार किए जा सकते हैं और उनके कानूनी परिणाम क्या होंगे।

    चाहे वह तारीखों में बदलाव हो, खाली दस्तावेजों का दुरुपयोग हो, या काल्पनिक व्यक्तियों के नाम पर रिकॉर्ड तैयार करना हो, यह धारा सभी प्रकार की जालसाजी को गंभीर अपराध मानती है।

    यह प्रावधान आधुनिक डिजिटल युग में भी प्रासंगिक बना हुआ है, जहां इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड और हस्ताक्षर का व्यापक उपयोग होता है। धारा 335 न्याय और सत्यता को सुनिश्चित करने के लिए एक मजबूत विधिक उपकरण के रूप में कार्य करती है।

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