Constitution में एंग्लो इंडियन, बैकवर्ड क्लास और माइनॉरिटी के लिए प्रावधान

Shadab Salim

30 Dec 2024 9:33 AM IST

  • Constitution में एंग्लो इंडियन, बैकवर्ड क्लास और माइनॉरिटी के लिए प्रावधान

    एंग्लो इंडियन समुदाय हैं जो भारत से आए ब्रिटिश लोगों के वंश के हैं तथा स्वतंत्रता के बाद ब्रिटिश लोगों के भारत से जाने के पश्चात भी यह लोग भारत में निष्ठा रखकर स्वतंत्र भारत में बने रहे। इन लोगों को भारत के कांस्टीट्यूशन में कुछ आरक्षण दिए हैं। यदि राष्ट्रपति की राय में लोकसभा में आंग्ल भारतीय समुदाय का प्रतिनिधित्व पर्याप्त नहीं है तो वह इस समुदाय से अधिक से अधिक 2 सदस्यों को लोकसभा में नामजद कर सकता है।

    इसी प्रकार किसी राज्य का राज्यपाल यह कर सकता है कि राज्य की विधानसभा में आंग्ल भारतीय समुदाय का पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं है तो समुदाय के एक सदस्य को विधानसभा में नामजद कर सकता है। कांस्टीट्यूशन के साथ प्रारंभ की गई यह सुविधा प्रारंभ में 10 वर्ष के लिए की गई थी 8 वें कांस्टीट्यूशन संशोधन द्वारा 20 वर्ष के लिए बढ़ा दी गई फिर 30 वर्ष के लिए बढ़ा दी गई।

    45 वें संशोधन द्वारा इसे बढ़ाकर 40 वर्ष तक के लिए कर दिया गया है। भारतीय कांस्टीट्यूशन एंग्लो इंडियन के कांस्टीट्यूशन पूर्व अधिकारों और विशेष अधिकारों को भी संरक्षण प्रदान करता है। आर्टिकल 336 कहता है कि कांस्टीट्यूशन के प्रारंभ के पश्चात प्रथम 2 वर्ष में संघ की रेल,सीमा शुल्क, डाक संबंधित सेवाओं में पदों के लिए आंग्ल भारतीय समुदाय के लोगों की नियुक्तियां 15 अगस्त 1947 ईस्वी के पूर्व वाले आधार पर की जाएगी। इसके पश्चात प्रत्येक 2 वर्ष के बाद उक्त समुदाय के लिए आरक्षित पदों की संख्या 10% कम हो जाएगी और कांस्टीट्यूशन के प्रारंभ से 10 वर्ष के बाद ऐसे सब आरक्षणों का अंत हो जाएगा।

    कांस्टीट्यूशन के लागू होने के बाद प्रथम 2 वर्षों में आंग्ल भारतीय समुदाय के लिए शिक्षा के संबंधों में संघ द्वारा वही अनुदान दिए जाएंगे 31 मार्च 1947 ईस्वी तक दिए जाते रहे थे। ऐसा कोई अनुदान अगले 3 वर्षों बाद 10% कम होता जाएगा और कांस्टीट्यूशन के प्रारंभ से 10 वर्ष के बाद समाप्त हो जाएगा पर आंग्ल भारतीय समुदाय द्वारा चलाई जाने वाली किसी शिक्षा संस्था को अनुदान पाने का हक तब तक न होगा जब तक कि उसके वार्षिक प्रवेशों में कम से कम 40% दूसरे समुदाय के लोगों को प्रवेश दिया गया हो।

    बैकवर्ड क्लॉस

    भारत के कांस्टीट्यूशन में ऐसा कुछ नहीं मिलता है कि वहां पिछड़े वर्ग और अनुसूचित वर्ग हो। इस प्रकार के शब्द भारत के कांस्टीट्यूशन में उपलब्ध नहीं है। ऐसे वर्गों में कौन जन शामिल है इसको उल्लेखित करने की शक्ति संघ तथा राज्य सरकार के पास है अर्थात कौन पिछड़े वर्ग का है इसे उल्लेखित करने की शक्ति भारत के संघ और राज्य के पास है। आर्टिकल 340(1) के अंतर्गत राष्ट्रपति को सामाजिक और शैक्षणिक दृष्टि से पिछड़े वर्गों की दशा तथा उनकी कठिनाइयों के अनुसंधान के लिए आयोग की नियुक्ति करने की शक्ति है।

    आयोग वर्गों की कठिनाइयों को दूर करने के उपायों के बारे में या उनके दिए गए अनुदान या अनुदान के बारे में राज्य सरकारों को अपनी सिफारिश भेजेगा और वह अनुसंधान करेगा। उसकी रिपोर्ट राष्ट्रपति को भेजेगा। राष्ट्रपति आयोग द्वारा दिए गए प्रतिवेदन को उस पर की गई कार्यवाहियों सहित संसद के प्रत्येक सदन के समक्ष रख पाएगा। आयोग के प्रतिवेदन प्राप्त होने के पश्चात राष्ट्रपति आदेश द्वारा पिछड़े वर्गों को उल्लेखित करेगा। अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजातियां, आदिम जातियों के लिए नियुक्त विशेष पदाधिकारी पिछड़े वर्गों के लिए भी कार्य करेंगे।

    आर्टिकल 15(4) के अंतर्गत राज्य को सामाजिक और आर्थिक दृष्टि से पिछड़े वर्गों के लिए प्रावधान बनाने की शक्ति प्राप्त है। आर्टिकल 16(4) के अंतर्गत राज्य को इन वर्गों के लिए सरकारी नौकरियों में स्थान पर आरक्षित करने की शक्ति प्राप्त है। कांस्टीट्यूशन में पिछड़े वर्ग की कोई परिभाषा नहीं दी गई है। सरकार को श्रेणी में आने वाले लोगों को लिखित करने की शक्ति प्राप्त है।

    रामकृष्ण बनाम मैसूर राज्य के मामले में सरकार ने एक आदेश द्वारा राज्य की जनसंख्या के 25% भाग को पिछड़ा वर्ग घोषित कर दिया। यह वर्गीकरण आर्थिक सामाजिक पिछड़ेपन के आधार पर नहीं बल्कि जातियों धर्म के आधार पर किया गया था। मैसूर हाईकोर्ट ने उक्त आदेश को अवैध घोषित कर दिया। कोर्ट ने कहा कि पिछड़े वर्गों को उल्लेखित करने वाला सरकारी आदेश न्यायिक जांच के अधीन है।

    इस विषय में सरकार का निर्णय अंतिम नहीं है। कोर्ट इस बात की मांग कर सकते हैं कि सरकार का निर्णय किसी युक्तियुक्त सिद्धांत पर आधारित है या नहीं। कोर्ट इस बात की भी जांच कर सकते हैं कि किसी पद के लिए आरक्षित स्थानों नियुक्त है या नहीं।

    अखिल भारतीय कर्मचारी संघ के मामले में दिए गए निर्णय के परिणाम स्वरुप देवदासन का निर्णय विवक्षित रूप से उलट दिया गया। उक्त मामलों में निर्णय लिया गया कि 50% का नियम कोई सर्वमान्य नियम नहीं है। आरक्षण तथ्यों परिस्थितियों के अनुसार इससे अधिक भी हो सकता है किंतु अत्यंत अधिक नहीं होना चाहिए।

    माइनॉरिटी

    भाषागत अल्पसंख्यक वर्ग में वे लोग शामिल है जिन की भाषा राज्य के किसी भाग के बहुसंख्यक में भिन्न-भिन्न है। भारतीय कांस्टीट्यूशन के हितों के संरक्षण के लिए भी उत्पन्न करता है। भारत के कांस्टीट्यूशन का आर्टिकल 350 प्रत्येक राज्य पर कर्तव्य आरोपित करता है कि वह भाषागत अल्पसंख्यक वर्गों के बालकों को शिक्षा की प्रथम अवस्था में मातृभाषा में शिक्षा देने के लिए पर्याप्त सुविधाएं देने का प्रयास करें। राष्ट्रपति ऐसी सुविधाओं का उपबंध सुनिश्चित कराने के लिए किसी राज्य को ऐसे निर्देश दे सकता है जिसे वह आवश्यक या उचित समझता है।

    भारत के कांस्टीट्यूशन का आर्टिकल 343, 347 उपबंधित करता है कि इस विषय पर मांग की जाने पर यदि राष्ट्रपति को समाधान हो जाए कि किसी राज्य की जनसंख्या का 14 वां भाग अपने द्वारा बोली जाने वाली किसी भाषा के प्रयोग की मांग करता है तो राष्ट्रपति निदेश दे सकता है कि ऐसी भाषा भी उस राज्य में या उसके किसी भाग में ऐसे प्रयोजन के लिए जैसा कि वह लिखित करें सरकारी रूप में मान्यता दी जाएगी।

    आर्टिकल 350 के अंतर्गत प्रत्येक व्यक्ति को अपनी किसी व्यथा के निवारण के लिए संघ राज्य के किसी पदाधिकारी या अधिकारी को संघ या राज्य के प्रयोग होने वाली किसी भाषा में अभ्यावेदन देने का अधिकार प्राप्त है। अल्पसंख्यक समुदाय के लिए एक विशेष पदाधिकारी नियुक्त किया जा सकता है, ऐसा पदाधिकारी कांस्टीट्यूशन द्वारा इन वर्गों को आरक्षणों से संबंधित विषयों का अनुसंधान करेगा और राष्ट्रपति को जैसा वह निर्दिष्ट करें प्रतिवेदन भेजेगा।

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