Constitution में इमरजेंसी के जुड़े प्रावधान
Shadab Salim
30 Dec 2024 9:30 AM IST
भारत के कांस्टीट्यूशन के अंतर्गत आपातकालीन समय के लिए कुछ व्यवस्थाएं की गई हैं। इन व्यवस्थाओं के अंतर्गत आपातकालीन परिस्थितियों में भारत के कांस्टीट्यूशन की स्थिति बदल जाती है। भारत का कांस्टीट्यूशन एक संघीय कांस्टीट्यूशन है, राज्यों का एक संघ कहा जा सकता है। संघ को अलग शक्तियां और भारत के राज्यों को अलग शक्तियां दी गई है परंतु भारत के कांस्टीट्यूशन की बनावट से यह प्रतीत होता है कि यहां संघ अधिक शक्तिशाली है।
भारत के कांस्टीट्यूशन में एमरजेंसी प्रोविजन का समावेश कर संकटकाल में भारत का कांस्टीट्यूशन संघात्मक से एकात्मक कांस्टीट्यूशन में बदल जाता है। इसका उद्देश्य राज्यों की अपेक्षा समस्त भारत को अधिक महत्व देना है और राज्यों के हितों से अधिक भारत राष्ट्र के हितों पर ध्यान देना है। कुछ परिस्थितियां ऐसी है जिनमें एमरजेंसी प्रोविजन लागू किए जा सकते हैं। भारत का कांस्टीट्यूशन उन तीन प्रकार की परिस्थितियों को उल्लेखित करता है जो निम्नलिखित है-
युद्ध या बाहरी आक्रमण या सशस्त्र विद्रोह के उत्पन्न होने पर-
राज्यों में सांविधानिक तंत्र के विफल होने पर-
वित्तीय आपात पर-
भारत के कांस्टीट्यूशन के भाग-18 के अंतर्गत आर्टिकल 352 से लेकर 360 तक एमरजेंसी प्रोविजन पर प्रावधान किए गए हैं। समय-समय पर इस भाग में संशोधन किए जाते रहे हैं।
युद्ध या बाहरी आक्रमण की स्थिति में या फिर सशस्त्र विद्रोह के उत्पन्न हो जाने की स्थिति में राष्ट्रीय आपातकाल-
भारत के कांस्टीट्यूशन के आर्टिकल 352 के अंतर्गत 44वें कांस्टीट्यूशन संशोधन 1978 के बाद यह उपबंधित करता है कि यदि राष्ट्रपति को इस बात का समाधान हो जाए कि गंभीर संकट विधमान हो गया है जिससे युद्ध बाहरी आक्रमण या सशस्त्र विद्रोह से भारत या उसके किसी भाग की सुरक्षा में संकट है ऐसा संकट सन्निकट है तो वह उद्घोषणा द्वारा इस आशय की घोषणा संपूर्ण भारत के संबंध में या उसके किसी ऐसे भाग के संबंध में कर सकेगा।
जो उद्घोषणा उल्लिखित किए जाएं ऐसी घोषणा को राष्ट्रपति उत्तरवर्ती उद्घोषणा द्वारा वापस ले सकता है या परिवर्तित कर सकता है। राष्ट्रपति आपात उद्घोषणा तब ही जारी करेगा जब उसे मंत्रिमंडल का विनिश्चय लिखित रूप में सूचित किया जाएगा। पूरे मंत्रिमंडल के परामर्श से आपातकाल जारी किया जाएगा। ऐसी प्रत्येक उद्घोषणा संसद के प्रत्येक सदन के समक्ष रखी जाएगी और 1 महीने की समाप्ति पर यदि उस अवधि की समाप्ति से पहले संसद के दोनों सदनों के संकल्पों द्वारा अनुमोदित नहीं कर दिया जाता है तो प्रवर्तन में नहीं रहेगी।
यदि ऐसी कोई उद्घोषणा उस समय जारी की जाती है जब लोकसभा का विघटन हो गया है या उसका विघटन खंड 2 के अंतर्गत बिना कोई संकल्प के पारित किए 1 महीने की अवधि के भीतर हो जाता है जबकि राज्यसभा ने संकल्प का अनुमोदन कर दिया है तो उद्घोषणा पुनर्गठित लोक सभा की प्रथम बैठक की तारीख से 30 दिन की समाप्ति पर प्रवर्तन में नहीं रहेगी।
जब तक की उपर्युक्त 30 दिन की अवधि की समाप्ति के पूर्व उद्घोषणा का अनुमोदन करने वाला संकल्पना न पारित किया गया हो। उद्घोषणा का अनुमोदन करने वाला संकल्प सदन के विशेष बहुमत से पारित किया जाना चाहिए अर्थात कुछ सदस्यों के बहुमत से उपस्थित तथा मत देने वाले सदस्यों के दो तिहाई मत से पारित होना चाहिए। 44 वें संशोधन के पूर्व ऐसा संकल्प सदन के साधारण बहुमत से पारित किया जा सकता था।
संसद द्वारा अनुमोदित हो जाने पर आपात घोषणा दूसरे संकल्प के पारित होने की तिथि से 6 महीने की अवधि तक प्रवर्तन में रहेगी। यदि इसके पहले प्रतिसंहरण न कर दी गई हो। 6 महीने की अवधि से अधिक जारी रखने के लिए प्रत्येक 6 महीने पर संसद का अनुमोदन आवश्यक होगा। यदि 6 महीने की अवधि के दौरान आपात उद्घोषणा का अनुमोदन किए बिना लोकसभा का गठन हो जाता है तो उद्घोषणा चुनाव के पश्चात नई लोक सभा की प्रथम बैठक से 30 दिन की समाप्ति पर प्रवर्तन में न रहेगी। यदि इस अवधि के पूर्व उद्घोषणा का सदन द्वारा अनुमोदन न कर दिया गया हो यहां भी उद्घोषणा के अनुमोदन का संकल्प विशेष बहुमत से पारित किया जाता है।
आपात उद्घोषणा का क्षेत्रीय विस्तार-
42 वें कांस्टीट्यूशन संशोधन अधिनियम 1976 द्वारा आर्टिकल 352 में संशोधन करके यह स्पष्ट कर दिया गया है कि आपात उद्घोषणा देश के किसी भी भाग में पर सीमित की जा सकती है या यदि संपूर्ण भारत में लागू हो तो उसे किसी एक भाग से हटाया जा सकता है जहां स्थिति सामान्य हो गई है। इस संशोधन के पूर्व आपात की घोषणा संपूर्ण भारत के संबंध में ही की जा सकती थी।
44 वें संशोधन 1978 के द्वारा संसद के अनुमोदन के बाद आपात उद्घोषणा 6 महीने के लिए प्रवर्तन में रहेगी। इस अवधि को बढ़ाने के लिए संसद का अनुमोदन आवश्यक होगा। इस संशोधन के पूर्व संसद के अनुमोदन के पश्चात यह निश्चितकाल के लिए प्रवर्तन में रह सकती थी।
आर्टिकल 352 राष्ट्रपति को पर्याप्त व्यापक शक्ति प्रदान करता है। विश्व के किसी भी संघात्मक कांस्टीट्यूशन में ऐसे उपबंधों का समावेश नहीं किया गया है। कांस्टीट्यूशन सभा में इस विषय पर विचार विमर्श के समय कुछ सदस्यों ने यह आशंका व्यक्त की थी कि राष्ट्रपति द्वारा इस व्यापक शक्ति का दुरुपयोग किया जा सकता है।
इस तर्क के विपरीत यह तर्क दिए गए कि राष्ट्रपति अपनी शक्ति का प्रयोग मंत्रिमंडल की सहायता और परामर्श से कर सकता है जो जनता के निर्वाचित प्रतिनिधि होते हैं। लोकसभा के बाद भी मंत्रिपरिषद राष्ट्रपति को परामर्श देने के लिए बनी रहती है।
आपात उद्घोषणा को शीघ्र अति शीघ्र संसद के समक्ष प्रस्तुत करना पड़ेगा और उसके अनुमोदन के बिना 2 महीने से अधिक समय के लिए प्रवर्तन में नहीं रह सकती।
1975 में घटी घटनाओं के परिणामस्वरूप 44 वा कांस्टीट्यूशन संशोधन अधिनियम 1978 लाया गया जिसके अंतर्गत इन उपबंध में आमूल चूल परिवर्तन किए गए। 1975 में लगाए गए आपातकाल के दुष्परिणामों से सबक लेते हुए भारत की संसद ने 1978 में संशोधन कर सशस्त्र शब्द को एमरजेंसी प्रोविजन के संबंध में समाविष्ट किया गया और इसके स्थान पर 'आभ्यांतरिक' शब्द को हटाया गया।