Constitution में इमरजेंसी होने पर राष्ट्रपति शासन

Shadab Salim

30 Dec 2024 12:21 PM IST

  • Constitution में इमरजेंसी होने पर राष्ट्रपति शासन

    भारत के संविधान का आर्टिकल 356 उद्घोषणा की तरह ही यह उपबंधित करता है कि यदि किसी राज्य के राज्यपाल से प्रतिवेदन मिलने पर या अन्यथा राष्ट्रपति को समाधान हो जाए कि ऐसी स्थिति पैदा हो गई है जिसमें किसी राज्य का शासन संविधान के उपबंधों के अनुसार नहीं चलाया जा सकता तो राष्ट्रपति उद्घोषणा द्वारा-

    उस राज्य की सरकार के सभी या कोई कृत्य तथा राज्यपाल या राज्य के विधान मंडल से भिन्न राज्य के किसी निकाय प्राधिकारी में निहित या उसके द्वारा प्रयोग सभी या कोई शक्ति अपने हाथ में ले सकेगा।

    घोषित कर सकेगा कि राज्य के विधान मंडल की शक्तियां संसद के प्राधिकार के द्वारा या अधीन होगी।

    वह ऐसे प्रसंगिकता अनुषंगिक उपबंध बना सकेगा जो राष्ट्रपति की उद्घोषणा के उद्देश्य को प्रभावित करने के लिए आवश्यक दिखाई दे।

    ऐसी किसी उद्घोषणा को राष्ट्रपति उत्तरवर्ती उद्घोषणा द्वारा वापस ले सकता है या उससे परिवर्तन कर सकता है।

    आर्टिकल 356 में प्रयुक्त पदावली राज्यपाल से प्रतिवेदन पर या अन्यथा से यह स्पष्ट है कि राष्ट्रपति राज्य के राज्यपाल से कोई रिपोर्ट न मिलने पर भी कार्यवाही कर सकता है, इसके लिए केवल इतना ही पर्याप्त है कि राष्ट्रपति को इस बात का समाधान हो जाए कि किसी राज्य में संवैधानिक तंत्र विफल हो गया है। ऐसा संभव है कि राज्यपाल राज्य के मुख्यमंत्री से मिल जाए और राष्ट्रपति को संबोधित तंत्र की विफलता की सूचना न भेजें। ऐसी स्थिति में केंद्र को अपने कर्तव्य का पालन करना होगा और स्वयं कार्य करना होगा। आर्टिकल 356 के राष्ट्रपति का समाधान मंत्रिमंडल का समाधान होता है, उसका अपमान समाधान नहीं है। आर्टिकल 356 प्रयुक्त शब्द राज्य का शासन संविधान के अनुसार नहीं चला चलाया जा सकता बहुत व्यापक अर्थ रखता है।

    आर्टिकल 356 के अधीन जारी की गई उद्घोषणा संसद के प्रत्येक सदन के समक्ष रखी जाएगी और यदि वह पूर्ववर्ती उद्घोषणा द्वारा वापस नहीं कर दी गई तो 2 महीने की समाप्ति पर प्रवर्तन में नहीं रहेगी। यदि उस अवधि की समाप्ति से पूर्व संसद के दोनों सदनों द्वारा संकल्प द्वारा उसका अनुमोदन नहीं कर दिया जाता किंतु यदि कोई उदघोषणा ऐसे समय की जाती है जब लोकसभा का विघटन हो गया है या 2 माह की अवधि के दौरान हो जाता है।

    पूर्व राज्यसभा द्वारा अनुमोदन का संकल्प पारित कर दिया गया है किंतु लोकसभा द्वारा अनुमोदित नहीं किया गया है तो पुनर्गठन के पश्चात लोक सभा की प्रथम बैठक से 30 दिन की समाप्ति पर प्रवर्तन में नहीं रहेगी।

    लोकसभा द्वारा इस अवधि के भीतर अनुमोदन करने वाला प्रस्ताव पारित नहीं कर दिया जाता है इसके अंदर संसद उद्घोषणा का अनुमोदन कर देती है तो वह 6 माह तक प्रवर्तन में रहेगी। संकल्प द्वारा एक बार में अवधि को 6 माह के लिए बढ़ाया जा सकता है किंतु कोई भी ऐसी उद्घोषणा किसी भी दशा में 3 वर्ष से अधिक प्रवर्तन नहीं रहेगी। आर्टिकल 356 के अधीन उद्घोषणा की अधिकतम अवधि 3 वर्ष है, इस अवधि की समाप्ति के पश्चात न तो राष्ट्रपति और न ही संसद उद्घोषणा को बनाए रख सकते हैं। इस अवधि के भीतर ही चुनाव कराकर जनता के प्रतिनिधियों को शासन सौंप दिया जाएगा।

    एसआर बोम्मई बनाम भारत संघ 1994 के मामले में सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने अपने निर्णय में यह अभिनिर्धारित किया कि आर्टिकल 356 के अधीन राज्यों में राष्ट्रपति शासन लागू करने और विधानसभा को भंग करने की राष्ट्रपति की शक्ति सशर्त है। यह आत्यंतिक शक्ति नहीं है। वह न्यायिक पुनर्विलोकन के अधीन हैं, यदि विधानसभा का भंग किया जाना अवैध पाया जाता है तो न्यायालय उसे पुनर्जीवित कर सकता है।

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