हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र
LiveLaw News Network
10 April 2022 10:00 AM IST
देश के विभिन्न हाईकोर्ट में पिछले सप्ताह (चार अप्रैल, 2022 से आठ अप्रैल, 2022) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं हाईकोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह हाईकोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।
नीति दिशानिर्देशों की व्याख्या से जुड़े विवाद को मध्यस्थता के लिए संदर्भित किया जा सकता है: गुजरात हाईकोर्ट
गुजरात हाईकोर्ट (Gujarat High Court) ने फैसला सुनाया है कि मामले को मध्यस्थता के लिए संदर्भित करने की याचिका को इस आधार पर खारिज नहीं किया जा सकता है कि विवाद में नीतिगत दिशानिर्देशों की व्याख्या शामिल है।
चीफ जस्टिस अरविंद कुमार की एकल पीठ ने माना कि कोई मध्यस्थता विवाद है या नहीं और क्या विवाद को तय करने के लिए मध्यस्थ न्यायाधिकरण का अधिकार क्षेत्र है, यह एक ऐसा मुद्दा है जिसे मध्यस्थ स्वयं मध्यस्थता और सुलह अधिनियम, 1996 की धारा 16 के तहत तय कर सकता है।
केस का शीर्षक: मेसर्स भारमल इंडेन सर्विस बनाम इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन लिमिटेड
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एनडीपीएस अधिनियम | एफएसएल रिपोर्ट के बिना चार्जशीट दोषपूर्ण नहीं, सीआरपीसी की धारा 167(2) के तहत डिफ़ॉल्ट जमानत का आधार नहीं: कर्नाटक हाईकोर्ट
कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा है कि नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सबस्टेंस एक्ट (एनडीपीएस) अधिनियम के तहत आरोपित व्यक्ति को सीआरपीसी की धारा 167 (2) के तहत डिफ़ॉल्ट जमानत का अधिकार सिर्फ इसलिए नहीं मिलता कि जांच के बाद पुलिस द्वारा एफएसएल रिपोर्ट के बिना आरोप पत्र / अंतिम रिपोर्ट दायर की गई है।
जस्टिस एम. नागप्रसन्ना की एकल पीठ ने कहा, "एफएसएल रिपोर्ट न दाखिल करने से आरोप पत्र सीआरपीसी की धारा 173(2) के विपरीत नहीं हो जाएगा।"
केस टाइटल: सैयद मोहम्मद @ नसीम बनाम कर्नाटक सरकार
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टीईटी पास नहीं करने वाले शिक्षक स्कूलों में सेवा जारी नहीं रख सकते: मद्रास हाईकोर्ट
मद्रास हाईकोर्ट ने गुरुवार को फैसला सुनाया कि जिन शिक्षकों के पास आरटीई एक्ट, 2009 से पहले टीईटी की न्यूनतम योग्यता नहीं थी, उन्हें नौ साल की अवधि के भीतर यानी 31.03.2019 तक इसे हासिल करना अनिवार्य था। इस प्रकार, जिन शिक्षकों के पास टीईटी में पास की न्यूनतम योग्यता नहीं है, वे स्कूलों/शैक्षणिक संस्थानों में अपनी सेवा जारी रखने के हकदार नहीं हैं।
जस्टिस डी कृष्णकुमार की पीठ एक शिक्षक की ओर से बीटी सहायक पदों में वार्षिक वेतन वृद्धि को मंजूरी और सभी परिणामी और अन्य परिचर लाभों के साथ शिक्षक पात्रता परीक्षा (टीईटी) उत्तीर्ण करने के संदर्भ के बिना, स्नातकोत्तर प्राप्त करने के लिए प्रोत्साहन वृद्धि के संबंध में दायर याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी।
केस शीर्षक: के वासुदेवन बनाम सरकार के प्रधान सचिव और अन्य
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मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत आपसी सहमति से शादी खत्म करने की इजाजत: बॉम्बे हाई कोर्ट
बॉम्बे हाईकोर्ट ने यह देखते हुए कि एक फैमिली कोर्ट मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत आपसी सहमति से एक मुस्लिम जोड़े के विवाह को भंग कर सकता है, ने फैमिली कोर्ट की याचिका में दंपति के सौहार्दपूर्ण समझौते के आधार पर पति के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही को रद्द कर दिया।
अदालत ने कहा कि मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) अधिनियम 1937 की धारा 2 के तहत मुसलमानों से संबंधित सभी संपत्ति, विवाह, शादी का विघटन, मुबरात, गुजाराभत्ता, दहेज, गॉर्जियनशिप गिफ्ट, ट्रस्ट और ट्रस्ट की संपत्ति अधिनियम द्वारा शासित है।
केस शीर्षक: शेख तस्लीम शेख हकीम बनाम महाराष्ट्र राज्य और अन्य
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नियमित कार्य प्रभारित प्रतिष्ठान में कार्यरत व्यक्ति के परिवार को पेंशन से वंचित नहीं किया जा सकता है: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट, ग्वालियर की खंडपीठ ने हाल ही में कहा कि मप्र पेंशन नियम, 1979 के नियम 4ए, 6 (3) और मप्र सिविल सेवा (पेंशन) नियम, 1976 के नियम 47 के सामंजस्यपूर्ण पठन से पता चलता है कि एक नियमित कार्यभारित प्रतिष्ठान में कार्यरत व्यक्ति के परिवार को उस पेंशन से वंचित नहीं किया जा सकता है, जिसके लिए वह नियम, 1979 के नियम 4ए के आधार पर हकदार होगा।
जस्टिस रोहित आर्य और जस्टिस एमआर फड़के की खंडपीठ रिट कोर्ट द्वारा पारित आदेश के खिलाफ अपीलकर्ता द्वारा दायर एक रिट अपील का निस्तारण कर रही थी, जिसमें राज्य को उसे पारिवारिक पेंशन प्रदान करने का निर्देश देने की उसकी प्रार्थना खारिज कर दी गई थी।
केस शीर्षक: श्रीमती कला देवी बनाम मध्य प्रदेश राज्य और अन्य
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जहां संदेह के लाभ के आधार पर बरी किया गया हो, वहां सरकारी कर्मचारी के निलंबन की अवधि को 'ऑन ड्यूटी' नहीं माना जाएगाः बॉम्बे हाईकोर्ट
बॉम्बे हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि अगर किसी सरकारी कर्मचारी को गंभीर अपराध के आरोप में निलंबित किया जाता है, और अगर बाद में उसे संदेह का लाभ देकर बरी कर दिया जाता है तो भी उसे ड्यूटी पर मानकर निलंबन की अवधि को नियमित नहीं किया जा सकता है। इस संबंध में विवेकाधिकार सक्षम प्राधिकारी का है।
जस्टिस एएस चंदुरकर और जस्टिस जीए सनप की बेंच ने यह निर्णय दिया। ऑर्डनेंस फैक्टरी में कार्यरत याचिकाकर्ता के खिलाफ आईपीसी की धारा 419 और 34 के तहत एफआईआर दर्ज हुई थी, जिसके मद्देनजर उसे केन्द्रीय सिविल सेवा (वर्गीकरण, नियंत्रण और अपील) नियम, 1965 (सीसीए रूल्स, 1965) के नियम 10(1)(बी) के तहत 12/11/2009 को निलंबित कर दिया गया।
केस शीर्षक: रवींद्र प्रसाद मुन्नेश्वर प्रसाद बनाम यूनियन ऑफ इंडिया और अन्य
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समझौते की अस्वीकृति से दुर्भावना पैदा हो सकती है, मुकदमे के लंबित रहने से करियर और खुशी प्रभावित होती है: पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट
पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने हाल ही में याचिकाकर्ता-आरोपी के खिलाफ शिकायतकर्ता-पीड़ित को खतरनाक हथियारों से कथित रूप से चोट पहुंचाने के मामले में दर्ज एक एफआईआर को रद्द कर दिया, जो कि धारा 324 आईपीसी के तहत दंडनीय नॉन कंपाउंडेबल अपराध है।
जस्टिस अनूप चितकारा की पीठ ने कहा कि समझौते को अस्वीकार करने से दुर्भावना हो सकती है। इसके अलावा, मुकदमे के लंबित रहने से करियर और खुशी प्रभावित हो सकती है।
केस टाइटल: जगदेव सिंह और अन्य बनाम पंजाब राज्य और अन्य।
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अनुकंपा नियुक्ति अप्रत्याशित लाभ की स्थिति नहीं, अधिकार के रूप में दावा नहीं कर सकते: इलाहाबाद हाईकोर्ट
इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) ने हाल ही में अनुकंपा नियुक्तियों (Compassionate Appointment) से संबंधित विभिन्न पहलुओं पर विचार करते हुए कहा कि अनुकंपा नियुक्तियों का कोई सामान्य या निहित अधिकार नहीं है और इसे अप्रत्याशित लाभ की स्थिति (Bonanza) के रूप में नहीं माना जा सकता है।
यह टिप्पणी न्यायमूर्ति एस पी केसरवानी और न्यायमूर्ति जयंत बनर्जी की पीठ ने एकल न्यायाधीश के फैसले को चुनौती देने वाले इकबाल खान द्वारा दायर एक विशेष अपील को खारिज करते हुए की।
केस टाइटल - इकबाल खान बनाम द स्टेट ऑफ यू.पी. एंड 2 अन्य
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जब वादी की दलीलों से पता चलता है कि मुकदमा समय बाधित है, तब बिना मुकदमा चलाए उसे खारिज किया जा सकता हैः दिल्ली हाईकोर्ट
दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि जब वादी की दलीलों से पता चलता है कि मुकदमा समय बाधित है, तब ट्रायल कोर्ट पर उसी आधार पर, बिना मुकदमा चलाए, मुकदमे को खारिज करने पर कोई प्रतिबंध नहीं है।
जस्टिस सी हरि शंकर ने अपीलकर्ता (मूल वादी) की इस दलील को खारिज कर दिया कि परिसीमा को, तथ्य और कानून का मिश्रित प्रश्न होने के कारण ट्रायल के बाद ही तय किया जाना चाहिए था। पीठ एक मार्ग संबंधित विवाद का निस्तारण कर रही थी, जो अपीलकर्ता के अनुसार, उसके स्वामित्व वाली संपत्ति के साथ-साथ अन्य आस-पास के भूखंडों में प्रवेश और निकासी का एकमात्र तरीका था।
केस शीर्षक: ज्ञान चंद बंसीवाल बनाम दिल्ली विकास प्राधिकरण और अन्य
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शादी के झूठे वादे पर बलात्कार का अनुमान केवल इसलिए नहीं लगाया जा सकता क्योंकि आरोपी ने अभियोक्ता के साथ यौन संबंध के बाद दूसरी महिला से शादी कर ली: केरल हाईकोर्ट
केरल हाईकोर्ट ने एक उल्लेखनीय फैसला सुनाया है, जिसमें बताया गया है कि शादी के वादे पर बना यौन संबंध कब बलात्कार की श्रेणी में आ सकता है। शादी के झूठे वादे पर बलात्कार के अपराध के आरोप में एक व्यक्ति की सजा को खारिज करते हुए, अदालत ने स्पष्ट किया कि आरोपी ने पीड़िता के साथ यौन संबंधों के तुरंत बाद दूसरी शादी कर ली, यह सहमति की कमी के अनुमान को जन्म नहीं दे सकता।
हाईकोर्ट ने माना कि आरोपी की ओर से सहमति को प्रभावित करने वाले भौतिक तथ्यों का खुलासा न करना एक महिला की यौन स्वायत्तता का उल्लंघन होगा। यदि विवाह अनिश्चित था, तो आरोपी महिला के समक्ष इसका खुलासा करने के लिए बाध्य है।
केस शीर्षक: रामचंद्रन @ चंद्रन बनाम केरल राज्य और अन्य
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सरकारी नौकरी के लिए लीगल प्रैक्टिस को स्वेच्छा से निलंबित करने वाले एडवोकेट बार के सदस्य नहीं माने जाएंगे: केरल हाईकोर्ट
केरल हाईकोर्ट (Kerala High Court) ने हाल ही में फैसला सुनाया कि एक सेवारत सरकारी कर्मचारी, जिसने पहले एक वकील के रूप में नामांकन प्राप्त किया था और बाद में उपरोक्त सरकारी नौकरी लेने के लिए अपने लीगल प्रैक्टिस को निलंबित कर दिया, को सहायक लोक अभियोजक ग्रेड II के रूप में चयन और नियुक्ति के उद्देश्य के चलते "बार सदस्य" के रूप में नहीं माना जा सकता है।
न्यायमूर्ति अलेक्जेंडर थॉमस और न्यायमूर्ति विजू अब्राहम की खंडपीठ ने कहा कि ऐसा इसलिए क्योंकि अधिवक्ता अधिनियम और बार काउंसिल ऑफ इंडिया के नियमों के अनुसार, एक व्यक्ति जिसे शुरू में एक वकील के रूप में नामांकित किया गया था और बाद में स्वेच्छा से लीगल प्रैक्टिस से निलंबित हो गया, वह एक अधिवक्ता के रूप में प्रैक्टिस करने का हकदार नहीं है।
केस का शीर्षक: सौम्या एम.एस. बनाम केरल राज्य एंड अन्य
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किसी विशेष ट्रेडमार्क के रजिस्ट्रेशन के लिए आवेदन करने वाले पक्ष को यह दावा करने से रोका गया कि यह एक 'डिस्क्रिप्टिव' मार्क है: दिल्ली हाईकोर्ट
दिल्ली हाईकोर्ट ने हाल ही में ट्रेडमार्क उल्लंघन के मुकदमे में बेबी केयर एंड पर्सनल केयर उत्पादों की बिक्री और वितरण में शामिल एक संस्था "प्लांट पावर्ड" के पक्ष में दिए गए एक पक्षीय निषेधाज्ञा की पुष्टि की।
न्यायालय ने प्रतिवादी की इस दलील को खारिज कर दिया कि समान वस्तुओं के लिए एक व्यापारिक शैली के रूप में 'प्लांट पावर्ड' नाम का उपयोग करने के लिए कहा गया। कहा गया कि आक्षेपित शब्द एक डिस्क्रिप्टिव मार्क है और उस पर कोई एकाधिकार नहीं हो सकता।
केस शीर्षक: मदर स्पर्श बेबी केयर प्राइवेट लिमिटेड बनाम आयुष गुप्ता और अन्य।
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धारा 91 सीआरपीसी के तहत आवेदन का निस्तारण करने का आदेश अनंतिम प्रकृति का, इसके खिलाफ कोई संशोधन नहीं: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने हाल ही में निचली अदालत के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें सीआरपीसी की धारा 91 के तहत आवेदन की अस्वीकृति के खिलाफ पुनरीक्षण की अनुमति दी गई थी। कोर्ट ने दोहराया कि आक्षेपित आदेश अनंतिम प्रकृति (interlocutory in nature) का है, इसलिए इसके खिलाफ कोई पुनरीक्षण नहीं होगा।
जस्टिस अतुल श्रीधरन सीआरपीसी की धारा 482 के तहत एक आवेदन पर विचार कर रहे थे। आवेदक ने जिसे निचली अदालत के उस आदेश से व्यथित होकर दायर किया था, जिसमें उनकी पत्नी की ओर से सीआरपीसी की धारा 91 के तहत दायर एक आवेदन की अस्वीकृति के खिलाफ पुनरीक्षण की अनुमति दी गई थी।
केस शीर्षक : दधिबल प्रसाद जायसवाल बनाम श्रीमती सुनीता जायसवाल
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जमानत याचिका पर विचार करते हुए न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा दर्ज किए गए गवाह के बयान की सत्यता का अनुमान लगाया जाना चाहिए: जेकेएल हाईकोर्ट
जम्मू और कश्मीर और लद्दाख हाईकोर्ट ने माना है कि जमानत आवेदन पर विचार करते समय, अदालत को मामले की जांच के दरमियान दर्ज किए गए गवाह के बयान की सत्यता का अनुमान लगाना होता है, खासकर जब उक्त बयान न्यायिक मजिस्ट्रेट ने दर्ज किया हो।
जस्टिस संजय धर की खंडपीठ ने यह टिप्पणी एक फैसले में की, जिसमें उन्होंने एक बलात्कार आरोपी को अग्रिम जमानत देने से इनकार कर दिया। उन्होंने फैसले में नोट किया आरोपी अपनी गिरफ्तारी से बच रहा था, जांच एजेंसी को चकमा दे रहा था और जांच के लिए खुद को जांच एजेंसी के समक्ष पेश नहीं कर रहा था।
केस शीर्षक - शाहिद अहमद शेख बनाम केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर
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"मृत व्यक्ति के साथ कोई समझौता नहीं हो सकता, आईपीसी की धारा 306 के तहत एफआईआर को समझौते के आधार पर रद्द नहीं किया जा सकता": पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट
पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने एक अप्रैल, 2022 को एक समझौते के आधार पर आईपीसी की धारा 306 के तहत दर्ज एफआईआर को रद्द करने की मांग वाली याचिका को खारिज कर दिया।
जस्टिस गुरविंदर सिंह गिल की पीठ ने याचिकाकर्ताओं द्वारा सीआरपीसी की धारा 482 के तहत दायर एक याचिका को खारिज कर दिया। धारा 306 के तहत आत्महत्या के लिए उकसाने की एफआईआर रद्द करने की मांग दावा इस आधार पर किया गया था कि मृतक के परिवार और आरोपी के बीच समझौता हो गया है।
केस टाइटल: नीलम देवी और अन्य बनाम पंजाब राज्य और अन्य
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हाईकोर्ट जमानत की शर्तों को संशोधित करने के लिए सीआरपीसी की धारा 482 के तहत निहित क्षेत्राधिकार का इस्तेमाल कर सकता है, सीआरपीसी की धारा 362 अवरोध नहीं: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने हाल ही में कर चोरी के आरोपी दो व्यक्तियों की जमानत की एक शर्त में संशोधन किया, जिसके परिणामस्वरूप उन्हें 'अपने व्यवसाय और पेशागत गतिविधियों को आगे बढ़ाने' के लिए विदेश यात्रा करने की अनुमति मिल जाएगी।
न्यायमूर्ति शील नागू और न्यायमूर्ति एम.एस. भट्टी की खंडपीठ अनिवार्य रूप से केंद्रीय वस्तु एवं सेवा कर अधिनियम, 2017 की धारा 132(1)(ए) और 132(1)(i) के तहत अभियुक्त बनाये गये व्यक्तियों द्वारा सीआरपीसी की धारा 482 के तहत दायर एक आवेदन पर विचार कर रही थी, जिसमें जमानत की एक शर्त में संशोधन की मांग की गई थी, इसके तहत उन्हें व्यावसायिक उद्देश्यों के लिए जर्मनी की यात्रा करने की अनुमति मिलेगी।
केस शीर्षक: जगदीश अरोड़ा एवं अन्य बनाम भारत सरकार