हाईकोर्ट जमानत की शर्तों को संशोधित करने के लिए सीआरपीसी की धारा 482 के तहत निहित क्षेत्राधिकार का इस्तेमाल कर सकता है, सीआरपीसी की धारा 362 अवरोध नहीं: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

3 April 2022 11:45 AM GMT

  • हाईकोर्ट जमानत की शर्तों को संशोधित करने के लिए सीआरपीसी की धारा 482 के तहत निहित क्षेत्राधिकार का इस्तेमाल कर सकता है, सीआरपीसी की धारा 362 अवरोध नहीं: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट

    Madhya Pradesh High Court

    High Court Can Exercise Inherent Jurisdiction U/S 482 CrPC To Modify Bail Conditions

    मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने हाल ही में कर चोरी के आरोपी दो व्यक्तियों की जमानत की एक शर्त में संशोधन किया, जिसके परिणामस्वरूप उन्हें 'अपने व्यवसाय और पेशागत गतिविधियों को आगे बढ़ाने' के लिए विदेश यात्रा करने की अनुमति मिल जाएगी।

    न्यायमूर्ति शील नागू और न्यायमूर्ति एम.एस. भट्टी की खंडपीठ अनिवार्य रूप से केंद्रीय वस्तु एवं सेवा कर अधिनियम, 2017 की धारा 132(1)(ए) और 132(1)(i) के तहत अभियुक्त बनाये गये व्यक्तियों द्वारा सीआरपीसी की धारा 482 के तहत दायर एक आवेदन पर विचार कर रही थी, जिसमें जमानत की एक शर्त में संशोधन की मांग की गई थी, इसके तहत उन्हें व्यावसायिक उद्देश्यों के लिए जर्मनी की यात्रा करने की अनुमति मिलेगी।

    'अतुल शुक्ला बनाम म.प्र. सरकार एवं अन्य' मामले में सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों पर और 'इमरान खान एवं अन्य बनाम कर्नाटक सरकार वन विभाग' के मामले में कर्नाटक हाईकोर्ट के फैसले पर भरोसा जताते हुए अभियोजन एजेंसी ने दलील दी कि सीआरपीसी के तहत पारित किसी आदेश को सीआरपीसी की धारा 482 के तहत निहित शक्तियों का इस्तेमाल करके वापस लेने या संशोधन की अनुमति नहीं होती है।

    'इमरान खान मामले' का हवाला देते हुए, यह दलील दी गयी कि आवेदकों को जमानत देने के बाद, कोर्ट अधिकारहीन हो गया और सीआरपीसी की धारा 362 के तहत निहित निषेध को देखते हुए उसमें कोई संशोधन नहीं कर सकता।

    सरकार द्वारा प्रस्तुत किए गए तर्क से असहमत होकर, कोर्ट ने कहा कि चूंकि सीआरपीसी की धारा 439 (1) (ए) के तहत दी गई जमानत की शर्तों में संशोधन करने के लिए कोई विशेष प्रावधान नहीं है, इसलिए न्याय सुनिश्चित करने के लिए जमानत की एक शर्त में संशोधन करने/या इसे हटाने के लिए एकमात्र तरीका है- सीआरपीसी की धारा 482 के तहत कोर्ट की अंतर्निहित शक्तियों को लागू करना।

    सीआरपीसी की धारा 482 न्याय के उद्देश्यों को सुरक्षित करने के लिए अन्य बातों के साथ-साथ प्रयोग की जाने वाली इस कोर्ट की अंतर्निहित शक्तियों को बचाता है। न्याय का लक्ष्य केवल तभी सुरक्षित किया जा सकता है जब किसी भी स्पष्ट प्रावधान के अभाव में इस कोर्ट को सीआरपीसी की धारा 439 (1) (ए) के तहत पारित जमानत के आदेश के अधीन किसी भी शर्त को हटाने / संशोधित करने से नहीं रोका जाता है। यदि इस तरह की अंतर्निहित शक्तियां सीआरपीसी की धारा 482 के तहत इस कोर्ट को उपलब्ध नहीं हैं, तो सीआरपीसी की धारा 482 को सम्मिलित करने का उद्देश्य पराजित हो जाएगा और यह कोर्ट ''बिना दांत वाला बाघ'' बन जाएगा।

    दंड प्रक्रिया संहिता को अधिनियमित करते समय विधायिका कभी भी ऐसी स्थिति को मंजूरी नहीं दे सकती थी जहां यह ऊपरी कोर्ट बाध्यकारी परिस्थितियों की मौजूदगी के बावजूद सीआरपीसी के प्रावधानों की गैर-मौजूदगी के कारण सीआरपीसी की धारा 439 (1) (ए) के तहत लगाई गई शर्त को संशोधित करने/ हटाने के लिए अपनी अंतर्निहित शक्तियों का प्रयोग करने में पंगु हो।

    कोर्ट ने कहा कि उसे निहित शक्तियां प्रदान करने के पीछे का उद्देश्य पूर्ण न्याय करना और किसी को न्याय से वंचित रखने से रोकना था। इसने आगे उल्लेख किया कि निहित शक्तियों को कोर्ट के पास ऐसी परिस्थितियों में प्रयोग करने के लिए बचाया गया था, जहां पूर्ण न्याय करने या न्याय की विफलता को रोकने का कारण मौजूद था, लेकिन सीआरपीसी में कोई स्पष्ट प्रावधान नहीं था।

    इस प्रकार, कोर्ट ने कहा, संवैधानिक न्यायालयों को सक्षम प्रावधान के अभाव में बाधित या अक्षम किए बिना पूर्ण न्याय करने के लिए ऐसी अंतर्निहित शक्तियों से ही बचाया जाता है।

    उपरोक्त टिप्पणियों के साथ, कोर्ट ने माना कि वह 'इमरान खान' मामले में कर्नाटक हाईकोर्ट के फैसले के साथ सम्मानजनक असहमत है। तदनुसार, न्यायालय ने आवेदकों के आवेदन की अनुमति दे दी और उनकी जमानत की उस शर्त में निम्नलिखित शर्तों के साथ संशोधन किया, जिसमें आवेदकों को निचली अदालत के समक्ष अपना पासपोर्ट जमा कराने को कहा गया था-

    (1) याचिकाकर्ता विदेश यात्रा के प्रस्थान और वापसी की तारीख का खुलासा करते हुए ट्रायल कोर्ट के समक्ष एक लिखित वचन पत्र दाखिल करेंगे और भारत लौटने के बाद यथाशीघ्र ट्रायल कोर्ट को सूचित करेंगे।

    (2) याचिकाकर्ता विदेश मंत्रालय और संबंधित दूतावास के समक्ष भी पूर्ण विवरण के साथ उनके खिलाफ अपराध के लम्बित होने के तथ्य का खुलासा करते हुए एक समान वचन पत्र दायर करेंगे और ऐसी शर्त का पालन करने के बाद ही याचिकाकर्ताओं को विदेश जाने की अनुमति दी जा सकती है, बशर्ते कानून के अन्य सभी प्रासंगिक प्रावधान भी संतुष्ट हों।

    (3) याचिकाकर्ता आज से 30 दिनों के भीतर ट्रायल कोर्ट में 10 लाख रुपये की सावधि जमा रसीद के रूप में अतिरिक्त प्रतिभूति भी प्रस्तुत करेंगे, जो इस आदेश या जमानती बांड में निहित किसी भी शर्त के उल्लंघन की स्थिति में जब्त हो जाएगी।

    कोर्ट ने आगे अभियोजन एजेंसी के वकील को निर्देश दिया कि वह गृह और विदेश मंत्रालय को आदेश के बारे में सूचित करें।

    केस शीर्षक: जगदीश अरोड़ा एवं अन्य बनाम भारत सरकार

    आदेश की प्रति डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें




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