जमानत याचिका पर विचार करते हुए न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा दर्ज किए गए गवाह के बयान की सत्यता का अनुमान लगाया जाना चाहिए: जेकेएल हाईकोर्ट
LiveLaw News Network
4 April 2022 5:09 PM IST
जम्मू और कश्मीर और लद्दाख हाईकोर्ट ने माना है कि जमानत आवेदन पर विचार करते समय, अदालत को मामले की जांच के दरमियान दर्ज किए गए गवाह के बयान की सत्यता का अनुमान लगाना होता है, खासकर जब उक्त बयान न्यायिक मजिस्ट्रेट ने दर्ज किया हो।
जस्टिस संजय धर की खंडपीठ ने यह टिप्पणी एक फैसले में की, जिसमें उन्होंने एक बलात्कार आरोपी को अग्रिम जमानत देने से इनकार कर दिया। उन्होंने फैसले में नोट किया आरोपी अपनी गिरफ्तारी से बच रहा था, जांच एजेंसी को चकमा दे रहा था और जांच के लिए खुद को जांच एजेंसी के समक्ष पेश नहीं कर रहा था।
मामला
दरअसल कोर्ट शाहिद अहमद शेख की अग्रिम जमानत याचिका पर सुनवाई कर रहा था। उसने धारा 366, 376, और 109 आईपीसी के तहत अपराधों के मामले में गिरफ्तारी की प्रत्याशा में जमानत के लिए हाईकोर्ट में आवेदन किया था।
एफआईआर अभियोक्ता के पिता की गई शिकायत के आधार पर दर्ज की गई थी, जिसमें यह आरोप लगाया गया था कि 26 जनवरी, 2021 को याचिकाकर्ता ने 22 वर्षीय पीड़िता का अपहरण कर लिया था।
मामले की जांच के दरमियान 18.02.2021 को अभियुक्त/याचिकाकर्ता की हिरासत से अभियोक्ता को बरामद किया गया और सीआरपीसी की धारा 164 के तहत न्यायिक मजिस्ट्रेट, प्रथम श्रेणी, बीरवाह ने उसका बयान दर्ज किया।
पीड़िता ने अपने बयान में कहा कि जब वह अपने घर से नलकूप से पानी लेने के लिए निकली थी तो याचिकाकर्ता पीछे से आया, उसके मुंह पर कपड़ा बांध दिया और उसे जबरन एक गाड़ी पर चढ़ा दिया और उसे उठा ले गया। पीड़िता को 10/15 दिनों तक एक अज्ञान स्थान पर रखा गया, जहां उसके साथ बलात्कार किया गया।
दूसरी ओर याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि अभियोक्ता ने अपनी इच्छा याचिकाकर्ता के साथ विवाह किया था और इस तरह, एफआईआर में लगाए गए आरोप बिल्कुल झूठे हैं। याचिकाकर्ता ने इन तर्कों को प्रमाणित करने के लिए विवाह समझौते की एक प्रति और निकाहनामा की एक प्रति भी रिकॉर्ड पर रखी।
टिप्पणियां
शुरुआत में, अदालत ने कहा कि अभियोक्ता ने अपने बयान में सीआरपीसी की धारा 164 के तहत दर्ज किया है। पी सी ने दो मौकों पर याचिकाकर्ता को स्पष्ट रूप से यह कहते हुए फंसाया कि उसके द्वारा उसका अपहरण कर लिया गया था और उसके बाद उसे किसी अज्ञात स्थान पर ले जाया गया और जबरन यौन उत्पीड़न के अधीन किया गया।
याचिकाकर्ता के इस दावे के बारे में कि पीड़िता/अभियोक्ता ने उससे शादी की थी, अदालत ने कहा कि अभियोक्ता ने अपने किसी भी बयान में याचिकाकर्ता के साथ अपनी शादी को स्वीकार नहीं किया था, इसलिए अदालत ने कहा कि यह नहीं कहा जा सकता कि याचिकाकर्ता के खिलफ शुरु हुआ अभियोजन फर्जी है।
इस संबंध में कोर्ट ने जोर देकर कहा कि जमानत अर्जी पर विचार करते समय कोर्ट को मामले की जांच के दौरान दर्ज किए गए गवाह के बयान के सही होने का अनुमान लगाना होगा, खासकर तब जब उक्त बयान न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा दर्ज किया गया हो।
अंत में, यह देखते हुए कि याचिकाकर्ता जांच एजेंसी को चकमा दे रहा है और उसने खुद को जांच एजेंसी के समक्ष पेश नहीं किया है, अगर उसे अग्रिम जमानत दी जाती है तो इस बात की पूरी संभावना है कि वह न्याय से भाग सकता है। इसलिए अदालत ने उसकी अग्रिम जमानत याचिका खारिज कर दी।
केस शीर्षक - शाहिद अहमद शेख बनाम केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर