हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र
LiveLaw News Network
26 Dec 2021 11:30 AM IST
देश के विभिन्न हाईकोर्ट में पिछले सप्ताह (20 दिसंबर, 2021 से 24 दिसंबर, 2021) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं हाईकोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह हाईकोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।
"कोई यौन इरादा नहीं था": दिल्ली कोर्ट ने नाबालिग लड़के को जबरदस्ती चुमने के मामले में सिज़ोफ्रेनिया से पीड़ित आरोपी व्यक्ति को बरी किया
दिल्ली हाईकोर्ट ने हाल ही में POCSO मामले के आरोपी पैरानॉयड सिज़ोफ्रेनिया से पीड़ित एक व्यक्ति को यह कहते हुए बरी कर दिया है कि वह मानसिक स्थिति में नहीं है कि वह मेन्स री बना सके और न ही उसका कोई यौन इरादा था।
अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश आशुतोष कुमार कहा कि वह व्यक्ति मानसिक बीमारी से इस हद तक पीड़ित है कि वह अपने कृत्यों के परिणामों को समझने में असमर्थ है या अपराध करने के समय कोई पुरुष कारण या यौन आशय बनाने में असमर्थ है।
केस का शीर्षक: राज्य बनाम साहिल गुलेरी
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'यदि कोई व्यक्ति हिरासत में है और उसके रिहा होने की कोई संभावना नहीं है तो प्रिवेंटिव डिटेंशन की शक्ति का प्रयोग नहीं किया जाना चाहिए': इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एनएसए के तहत डिटेंशन के आदेश को रद्द किया
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम, 1980 के तहत शक्तियों का प्रयोग करके हत्या के आरोपी के खिलाफ पारित डिटेंशन के आदेश को रद्द किया। कोर्ट ने देखा कि यदि कोई व्यक्ति हिरासत में है और उसके रिहा होने की कोई संभावना नहीं है तो प्रिवेंटिव डिटेंशन की शक्ति का प्रयोग नहीं किया जाना चाहिए।
न्यायमूर्ति महेश चंद्र त्रिपाठी और न्यायमूर्ति सुभाष विद्यार्थी की खंडपीठ ने एक अभय राज गुप्ता की बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका के साथ, जो वर्तमान में सेंट्रल जेल, बरेली में हिरासत में है, ने अपनी मां के माध्यम से 23 जनवरी, 2021 को डिटेंशन के आदेश को चुनौती दी।
केस का शीर्षक - अभयराज गुप्ता बनाम अधीक्षक, सेंट्रल जेल, बरेली
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घरेलू हिंसा का मामला तलाक के मामले के साथ सुनवाई के लिए फैमिली कोर्ट में ट्रांसफर किया जा सकता है: बॉम्बे हाईकोर्ट
बॉम्बे हाईकोर्ट ने घरेलू हिंसा के एक मामले को मेट्रोपॉलिटन कोर्ट से फैमिली कोर्ट में स्थानांतरित करने के एक पति के आवेदन को स्वीकार कर लिया है। कोर्ट ने कहा है कि दोनों मामले अनिवार्य रूप से "सामान्य और जुड़े प्रश्नों" को जन्म देंगे। पति पर घरेलू हिंसा का मामला पत्नी ने दर्ज कराया है।
जस्टिस सीवी भडांग ने पिछले सप्ताह पारित एक आदेश में, पत्नी द्वारा उठाए गए विभिन्न अन्य तर्कों को भी खारिज कर दिया -जिसमें एक तर्क यह था कि घरेलू हिंसा मामले में मेट्रोपॉलिटन कोर्ट के आदेश का सम्मान नहीं करने के लिए पति और ससुराल वालों के खिलाफ उसके मामले की सुनवाई उसी अदालत द्वारा की जानी चाहिए जो घरेलू हिंसा मामले की सुनवाई कर रही थी।
केस शीर्षक: अनिरुद्ध अजयकुमार गर्ग बनाम महाराष्ट्र राज्य
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यौन संबंधों के बाद शादी से सिर्फ इनकार करना धोखाधड़ी नहीं : बॉम्बे हाईकोर्ट
बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा कि सेक्स के लिए शादी के वादे की धोखाधड़ी का कोई सबूत नहीं है तो लंबे रिश्ते के बाद किसी महिला से शादी करने से इनकार करना भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 417 के तहत 'धोखा' नहीं माना जाएगा।
न्यायमूर्ति अनुजा प्रभुदेसाई ने कहा कि उदाहरण के लिए इस मामले में दंपति ने तीन साल से अधिक समय तक यौन संबंध बनाए। महिला की गवाही से यह संकेत नहीं मिला कि वह शादी के वादे के बारे में गलत धारणा पाले हुए थी। इसके अलावा, शुरू से ही उससे शादी नहीं करने के लिए आदमी के इरादा का भी कोई सबूत नहीं है।
केस टाइटल: काशीनाथ नारायण घरत बनाम द स्टेट ऑफ महाराष्ट्र
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पत्नी कमाने में सक्षम है, यह अंतरिम भरण-पोषण से इनकार करने का आधार नहीं, कई बार पत्नियां केवल परिवार के लिए अपना करियर छोड़ देती हैं: दिल्ली हाईकोर्ट
दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि तथ्य यह है कि पत्नी कमाने में सक्षम है, यह अंतरिम भरण-पोषण से इनकार करने का आधार नहीं है क्योंकि कई बार पत्नियां केवल परिवार के लिए अपना करियर छोड़ देती हैं।
न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद ने यह भी देखा कि सीआरपीसी की धारा 125 का उद्देश्य एक ऐसी महिला की पीड़ा और वित्तीय पीड़ा को कम करने के लिए है जो अपना वैवाहिक घर छोड़ चुकी है और उसे और उसके बच्चे के भरण-पोषण के लिए कुछ व्यवस्था की जा सके।
केस का शीर्षक: कर्नल रामनेश पाल सिंह बनाम सुगंधी अग्रवाल
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नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट दंडात्मक कानून होने के कारण सख्त कार्रवाई होनी चाहिए: दिल्ली हाईकोर्ट
दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि परक्राम्य लिखत अधिनियम (नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट), 1881 एक दंडात्मक कानून होने के कारण सख्त कार्रवाई होनी चाहिए।
न्यायमूर्ति मनोज कुमार ओहरी ने कहा कि एक आपराधिक शिकायत में विशिष्ट अभिकथन जो अधिनियम की धारा 141 की आवश्यकताओं को पूरा करता है, प्रकृति में अनिवार्य हैं। नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट की धारा 141 में कंपनियों द्वारा किए गए अपराधों के बारे में बात की गई है।
केस का शीर्षक: आर विजय कुमार बनाम आईएफसीआई फैक्टर्स लिमिटेड एंड ओआरएस।
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दिल्ली हाईकोर्ट ने सेक्शन 377 आईपीसी के तहत दोषसिद्धि को बरकरार रखा; 'प्राकृतिक व्यवस्था के खिलाफ शारीरिक संभोग' के अवयवों को निर्धारित किया
दिल्ली हाईकोर्ट ने माना है कि नाबालिग के साथ किया गया शारीरिक संपर्क, जिसमें निम्न अवयव शामिल हैं, दरअसल सेक्शन 377, आईपीसी के तहत 'प्राकृतिक व्यवस्था के खिलाफ शारीरिक संबंध' होगा-
केस शीर्षक: कमल बनाम राज्य
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मजाकिया होने का अधिकार अनुच्छेद 19(1)(ए) में देखा जा सकता है': मद्रास हाईकोर्ट ने मजाकिया फेसबुक पोस्ट पर दर्ज एफआईआर रद्द की
मद्रास हाईकोर्ट ने सीपीआई (एमएल) के उस पदाधिकारी के खिलाफ दर्ज एफआईआर रद्द कर दी है, जिसने छुट्टियों की तस्वीरें अपलोड की थीं और उस पर कैप्शन दिया था- , 'शूटिंग प्रैक्टिस के लिए सिरुमलाई की यात्रा। एफआईआर रद्द करते हुए मद्रास हाईकोर्ट की मदुरै पीठ ने 'हंसने के कर्तव्य' और 'मजाकिया होने के अधिकार' पर कुछ दिलचस्प टिप्पणियां कीं।
जस्टिस जीआर स्वामीनाथन ने 62 वर्षीय आरोपी के खिलाफ एफआईआर को रद्द करते हुए कहा कि वाडीपट्टी पुलिस की ओर से दर्ज किया गया 'राज्य के खिलाफ युद्ध छेड़ने की तैयारी' का मामला 'बेतुका और कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग' है।
केस शीर्षक : मथिवानन बनाम पुलिस निरीक्षक और अन्य।
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डिफॉल्ट जमानत का अधिकार "उसी समय" चार्जशीट दाखिल करने से समाप्त नहीं होता : मद्रास हाईकोर्ट
एक प्रासंगिक फैसले में, मद्रास हाईकोर्ट की मदुरै पीठ ने वैधानिक प्रावधानों और मिसालों में गहराई से विचार किया है जो सीआरपीसी की धारा 167 (2) और एनडीपीएस अधिनियम की धारा 36 (ए) (4) के तहत डिफ़ॉल्ट जमानत के चार कोनों को निर्धारित करते हैं।
इस प्रकार, अदालत ने अभियुक्तों को डिफ़ॉल्ट जमानत के अधिकार का लाभ उठाने के लिए और अदालत के समक्ष चार्जशीट दाखिल करने के लिए जांच एजेंसी के लिए लागू समय की कमी के बारे में लंबे समय से चल रहे भ्रम को स्पष्ट किया है।
केस: के मुथुइरुल बनाम पुलिस निरीक्षक
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पत्नियों के साथ असमान व्यवहार करना, मुस्लिम महिलाओं के लिए तलाक का एक वैध आधारः केरल हाईकोर्ट
केरल हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि दूसरी शादी के बाद एक मुस्लिम व्यक्ति का अपनी पहली पत्नी के साथ वैवाहिक दायित्वों को निभाने से इनकार करना तलाक के लिए एक उचित आधार है।
जस्टिस ए. मोहम्मद मुस्तक और जस्टिस सोफी थॉमस की खंडपीठ ने अपने आदेश में कहा किः ''पहली पत्नी के साथ सहवास करने और वैवाहिक दायित्वों को निभाने से इनकार करना कुरान के आदेशों के उल्लंघन के समान है, जो पति द्वारा एक से अधिक विवाह करने पर पत्नियों के समान व्यवहार करने का आदेश देता है। ऐसी परिस्थितियों में, हमें यह मानने में कोई संकोच नहीं है कि अपीलकर्ता-पत्नी इस आधार पर भी तलाक की डिक्री प्राप्त करने की हकदार है।''
केस का शीर्षक- रामला बनाम अब्दुल राहुफ़