दिल्ली हाईकोर्ट ने सेक्‍शन 377 आईपीसी के तहत दोषसिद्धि को बरकरार रखा; 'प्राकृतिक व्यवस्‍था के खिलाफ शारीरिक संभोग' के अवयवों को निर्धारित किया

LiveLaw News Network

21 Dec 2021 1:13 PM GMT

  • दिल्ली हाईकोर्ट, दिल्ली

    दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने माना है कि नाबालिग के साथ किया गया शारीरिक संपर्क, जिसमें निम्न अवयव शामिल हैं, दरअसल सेक्‍शन 377, आईपीसी के तहत 'प्राकृतिक व्यवस्‍था के खिलाफ शारीरिक संबंध' होगा-

    a) यह शरीर और कामुकता से संबंधित हो, यानी यह शारीरिक होना चाहिए;

    b) व्यक्तियों के बीच संभोग होना चाहिए, इसे केवल मानव-से-मानव संभोग तक सीमित किए बिना;

    c) इसमें पीनाइल-वेजिनल पेनेट्रेशन के अलावा पेनेट्रेशन होना चाहिए, सेक्‍शन 377 की प्रकृति, इरादा और उद्देश्य के तहत, इसे अप्राकृतिक कार्य, जैसे 'पेनाइल-एनल पेनेट्रेशन', 'डिजिटल पेनेट्रेशन' या 'ऑब्जेक्ट पेनेट्रेशन' का उल्लेख करना चाहिए।

    जस्टिस सिद्धार्थ मृदुल और जस्टिस अनूप जे भंबानी ने माना-

    "उपरोक्त अवयवों की आवश्यकता के अधीन, हम हालांकि पूरी तरह से सहमत हैं कि 'प्राकृतिक व्यवस्‍था के खिलाफ शारीरिक संभोग' वाक्यांश को सटीक रूप से परिभाषित करने का प्रयास न तो संभव है, और शायद वांछनीय भी नहीं है। तदनुसार, हालांकि हम वाक्यांश 'प्राकृतिक व्यवस्‍था के खिलाफ शारीरिक संभोग' को विस्तृत अर्थ देने से संकोच करते हैं, हम मानते हैं कि कानून की विषयवस्तु के रूप में नाबालिग के साथ, उपरोक्त सभी अवयवों के साथ किया गया कोई भी शारीरिक संपर्क प्राकृतिक व्यवस्‍था के खिलाफ शारीरिक संभोग है।"

    कोर्ट ने यह भी माना कि एक मासूम बच्चे का यौन उत्पीड़न करना एक घृणित कार्य है; हालांकि, जब ऐसा" पिता-बेटी के रिश्ते" के भीतर होता है, जिसमें स्नेह की पवित्रता एक अनिवार्य शर्त है, तो यह कार्य भ्रष्टता की एक अलग गहराई तक उतरता है।

    कोर्ट ने ये टिप्प‌ण‌ियां दोषसिद्धि के एक सामान्य निर्णय और एक नाबालिग के खिलाफ यौन अपराध के मामले के संबंध में सजा के आदेश से पैदा हुई दो अपीलों पर विचार करते हुए की।

    आरोप यह था कि दोषियों में से एक अभियोक्ता के पिता और उसके दोस्त कमल, एक अन्य दोषी, ने मई से जुलाई 2012 के बीच आईपीसी की धारा 376(2)(g) और 377 के तहत दंडनीय अपराध किए।

    सीआरपीसी की धारा 164 के तहत अभियोक्ता द्वारा दिए गए बयान के साथ-साथ अदालत में उसके बयान को स्वीकार करते हुए, हाईकोर्ट ने दोहराया कि अदालत को अभियोजन पक्ष के बयान में मामूली विरोधाभासों या मामूली विसंगतियों से प्रभावित नहीं होना चाहिए, जो घातक नहीं हैं...।

    अदालत ने दोनों दोषियों को धारा 377 सहपठित धारा 34 आईपीसी के तहत अपराध का दोषी मानते हुए दोषसिद्धि का आदेश बरकरार रखा, हालांकि यह भी माना कि धारा 376(2)(g) के तहत अपराध के संबंध में निचली अदालत द्वारा तय किया गया निष्कर्ष त्रुटिपूर्ण है।

    तदनुसार, धारा 377 के साथ पठित धारा 34 आईपीसी के तहत अपराध के संबंध में दोषसिद्धि आदेश और सजा आदेश को बरकरार रखा गया और संशोधित किया गया।

    केस शीर्षक: कमल बनाम राज्य

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