हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

Shahadat

26 March 2023 4:30 AM GMT

  • हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

    देश के विभिन्न हाईकोर्ट में पिछले सप्ताह (20 मार्च, 2023 से 24 मार्च, 2023) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं हाईकोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह हाईकोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।

    केवल डीएनए टेस्ट रिपोर्ट पर दोषसिद्धि के लिए पूरी तरह से भरोसा नहीं किया जा सकता: बॉम्बे हाईकोर्ट

    बॉम्बे हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि केवल डीएनए टेस्ट रिपोर्ट पर दोषसिद्धि के लिए पूरी तरह से भरोसा नहीं किया जा सकता है। जस्टिस विभा कंकनवाड़ी और जस्टिस खोब्रागड़े की औरंगाबाद बेंच ने एक व्यक्ति की बलात्कार की सजा को ये कहते हुए खारिज कर दिया कि पीड़िता ने अपनी गवाही बदल दी और डीएनए सबूत विश्वसनीय नहीं हैं।

    अभियोजन पक्ष के अनुसार पीड़िता 27 वर्षीय मानसिक रूप से विक्षिप्त महिला है जो ठीक से बोल नहीं पाती है। वह अपने भाई व परिवार के अन्य सदस्यों के साथ रहती थी। उसके भाई को गांव के सरपंच ने बताया कि वो करीब 5 से 6 महीने से गर्भवती है। इसलिए भाई ने प्राथमिकी दर्ज कराई। ट्रायल कोर्ट ने अपीलकर्ता को आईपीसी की धारा 376 के तहत दोषी ठहराया था।

    केस टाइटल - सुरेश पुत्र देवीदास माल्चे बनाम महाराष्ट्र राज्य

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    एकतरफा नियुक्ति को लेकर पक्षकार को आर्बिट्रेटर के समक्ष आपत्ति जताना जरूरी नहीं, एक्ट की धारा 34 के तहत याचिका में आपत्ति उठाई जा सकती है: बॉम्बे हाईकोर्ट

    बॉम्बे हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि जब विवाद के किसी पक्षकार के पास एकमात्र आर्बिट्रेटर नियुक्त करने की अत्यधिक और एकतरफा शक्ति होती है तो वह इस तरह की नियुक्ति को पूरी तरह से समाप्त कर देता है, क्योंकि यह सातवीं अनुसूची के सपठित मध्यस्थता और सुलह अधिनियम, 1996 (ए एंड सी एक्ट) की धारा 12(5) से प्रभावित होती है।

    ए एंड सी एक्ट की धारा 34 के तहत दायर याचिका पर विचार करते हुए न्यायालय ने कहा कि याचिकाकर्ता के लिए आर्बिट्रेटर के समक्ष एकतरफा नियुक्ति के संबंध में आपत्ति उठाना आवश्यक नहीं है, जिससे वह एक्ट की धारा 34 याचिका में इसे उठा सके। आर्बिट्रेटर अवार्ड को चुनौती दें।

    केस टाइटल: हनुमान मोटर्स प्राइवेट लिमिटेड और अन्य बनाम मैसर्स टाटा मोटर्स फाइनेंस लिमिटेड

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    आदेश XLVII सीपीसी | कानून का गलत दृष्टिकोण पुनर्विचार का आधार नहीं: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट

    जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने दोहराया कि कानून का गलत दृष्टिकोण पुनर्विचार के लिए आधार नहीं है और अदालत पुनर्विचार के माध्यम से गलत फैसले को फिर से नहीं सुन सकती और उसे सही नहीं कर सकती।

    जस्टिस संजय धर की पीठ ने पिछले साल 23 दिसंबर, 2022 को अपने द्वारा पारित फैसले के पुनर्विचार की मांग वाली याचिका के दौरान अवलोकन पारित किया, जिसमें याचिकाकर्ताओं द्वारा अतिरिक्त जिला न्यायाधीश, श्रीनगर द्वारा पारित फैसले और बर्खास्त डिक्री के खिलाफ दायर सिविल प्रथम अपील की गई थी।

    केस टाइटल: हलीमा एवं अन्य बनाम दिलशादा एवं अन्य।

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    सीआरपीसी की 167(5) | मजिस्ट्रेट छह महीने की अवधि समाप्त होने पर जांच को रोकने के लिए बिना किसी और चीज के स्वत: आदेश जारी नहीं कर सकता: कलकत्ता हाईकोर्ट

    कलकत्ता हाईकोर्ट ने गुरुवार को कहा कि सीआरपीसी की धारा 167 (5) के तहत गिरफ्तारी की तारीख से छह महीने की समाप्ति पर आगे की जांच को रोकने के लिए मजिस्ट्रेट द्वारा स्वचालित आदेश जारी नहीं किया जा सकता।

    सुगातो मजूमदार की एकल न्यायाधीश पीठ ने कहा, "सीआरपीसी की धारा 167 (5) में स्पष्ट रूप से कहा गया कि मजिस्ट्रेट आकस्मिकता पर जांच रोक सकता है कि जांच अधिकारी मजिस्ट्रेट को संतुष्ट करने में विफल रहा है कि विशेष कारणों से और न्याय के हित में छह महीने की अवधि से आगे की जांच जारी रखना जरूरी है। गिरफ्तारी की तारीख से छह महीने की अवधि समाप्त होने पर बिना किसी और चीज के कोई स्वत: आदेश नहीं हो सकता।"

    केस टाइटल: कमल घोष और अन्य बनाम पश्चिम बंगाल राज्य और अन्य।

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    बहू से सास का यह कहना कि उसे घरेलू काम में अधिक निपुणता की आवश्यकता है, क्रूरता नहीं: आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट

    आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने कहा है, "एक विवाहित महिला को उसकी सास कह रहा है कि उसे घरेलू काम करने में अधिक पूर्णता की आवश्यकता है, इसे कभी भी क्रूरता या उत्पीड़न नहीं कहा जा सकता है।" जस्टिस डॉ वीआरके कृपा सागर की पीठ आईपीसी की धारा 304बी (दहेज हत्या) के तहत दोषसिद्धी और दस साल के सश्रम कारावास की सजा से व्यथित एक सास और उसके बेटे की अपील पर सुनवाई कर रही थी।

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    "हिंदू कानून के तहत विवाह संस्कार है, अनुबंध नहीं", पत्नी को मातृत्व से वंचित करने के लिए शादी की पूर्व शर्त लागू नहीं की जा सकती: छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट

    छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने हाल ही में फैसला सुनाया कि पत्नी को खुद के बच्चे पैदा करने से वंचित करने के लिए शादी के लिए पूर्व शर्त निर्धारित करना कानून में लागू नहीं किया जा सकता।

    जस्टिस गौतम भादुड़ी और जस्टिस एनके चंद्रवंशी की खंडपीठ ने कहा, “शादी की पूर्व शर्त के रूप में एक महिला को मातृत्व से वंचित करने को प्राथमिकता नहीं दी जा सकती। पति द्वारा निर्धारित की गई स्थिति केवल एक बच्चे द्वारा खुश करने के बजाय विवाहित जीवन में एक उदास माहौल जोड़ती है। इसलिए, पत्नी द्वारा पति से बच्चा पैदा करने की मांग को क्रूरता के रूप में नहीं देखा जा सकता।”

    केस टाइटल: पी. वेंकट राव बनाम पी. पद्मावती

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    नेशनल हाइवे एक्ट के तहत आर्बिट्रेटर को 1 वर्ष के भीतर अवार्ड देना होता है, विफलता के परिणामस्वरूप शासनादेश की समाप्ति हो सकती है: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट

    हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने माना कि नेशनल हाइवे एक्ट, 1956 के तहत आर्बिट्रेशन की कार्यवाही मध्यस्थता और सुलह अधिनियम, 1996 द्वारा शासित होती है। इस प्रकार, केंद्र सरकार द्वारा नेशनल हाइवे की धारा 3 जी (ए) के तहत आर्बिट्रेटर नियुक्त किया जाता है। अधिनियम ए एंड सी एक्ट के प्रावधानों का पालन करने के लिए बाध्य है।

    जस्टिस सुशील कुकरेजा की पीठ ने कहा कि ए एंड सी एक्ट की धारा 29 (ए) के संदर्भ में आर्बिट्रेटर को संदर्भ दर्ज करने की तारीख से 1 वर्ष के भीतर निर्णय देना अनिवार्य है और इस प्रावधान का पालन न करने पर आर्बिट्रेटर के जनादेश बर्खास्त हो जाएगा।

    केस टाइटल: गंगा राम बनाम विशेष भूमि अधिग्रहण अधिकारी, आरबी केस नंबर 36/2023

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    पक्षकार लिमिटेशन एक्ट के विपरीत आर्बिट्रेशन लागू करने के लिए परिसीमा अवधि को प्रतिबंधित नहीं कर सकते: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि भारतीय अनुबंध अधिनियम, 1872 की धारा 28 के मद्देनजर, किसी पक्ष को कानून द्वारा प्रदान की गई परिसीमा अवधि के उल्लंघन में आर्बिट्रेशन लागू करने के लिए परिसीमा अवधि को प्रतिबंधित करने की अनुमति नहीं दी जा सकती।

    न्यायालय ने पाया कि पक्षकारों के बीच कॉन्ट्रैक्ट के तहत प्रदान की गई परिसीमा की कम अवधि एक्ट की धारा 28 से प्रभावित होगी। मध्यस्थता और सुलह अधिनियम, 1996 (ए एंड सी एक्ट) की धारा 37 के तहत दायर अपील पर कार्रवाई करते हुए अदालत ने अपीलकर्ता/अवार्ड देनदार के इस तर्क को खारिज कर दिया कि दावेदार द्वारा उठाए गए दावे समय-बाधित थे।

    केस टाइटल: दिल्ली नगर निगम बनाम नटराज कंस्ट्रक्शन कंपनी

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    जामिया हिंसा मामले में शरजील इमाम, अन्य को आरोपमुक्त करने के आदेश के खिलाफ दिल्ली पुलिस की याचिका पर हाईकोर्ट ने आदेश सुरक्षित रखा

    दिल्ली हाईकोर्ट ने 2019 जामिया हिंसा मामले में शारजील इमाम, सफूरा जरगर, आसिफ इकबाल तन्हा और आठ अन्य को आरोप मुक्त करने के निचली अदालत के आदेश के खिलाफ दिल्ली पुलिस की ओर से दायर पुनरीक्षण याचिका पर गुरवार को आदेश सुरक्षित रख लिया। जस्टिस स्वर्ण कांता शर्मा ने अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल संजय जैन और आरोपमुक्त हुए उत्तरदाताओं की ओर से पेश वकीलों की सुनवाई के बाद आदेश सुरक्षित रख लिया।

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    हिंदू महिला विभाजित संपत्ति की 'पूर्ण स्वामी' बन जाती है, ऐसी संपत्ति भाई-बहनों को हस्तांतरित नहीं होती, बल्‍कि उत्तराधिकार के अधीन होती है: कर्नाटक हाईकोर्ट

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने एक फैसले में माना कि एक हिंदू महिला विभाजन विलेख (Partition Deed) के जर‌िए , जिस पर परिवार में सहमति बन चुकी थी, संपत्ति के अधिग्रहण पर संपत्ति की पूर्ण स्वामी बन जाती है और संपत्ति को विरासत के जर‌िए अधिग्रहण नहीं कहा जा सकता है। इस प्रकार उसकी मृत्यु पर संप‌त्ति भाई-बहनों की वापस नहीं की जाएगी।

    कलबुरगी में बैठी जस्टिस सी एम जोशी सिंगल जज बेंच ने बसनगौड़ा नामक व्यक्ति की ओर से दायर अपील की अनुमति दी। साथ ही ट्रायल कोर्ट और प्रथम अपीलीय अदालत के आदेशों को खारिज कर दिया, जिन्होंने माना था कि हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम की धारा 15 (2) उस संपत्ति, जिस पर वादी की पत्नी ईश्वरम्मा का अधिकार था, से जुड़े मुकदमे में लागू होगा। पत्नी को संपत्ति एक विभाजन विलेख के जरिए आवंटित हुई थी, और इस प्रकार यह उनके भाई-बहनों को वापस मिल जाएगी।

    केस टाइटल: बसनगौड़ा और मुद्दनगौड़ा और अन्य

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    अपीलीय अदालत मुख्य अपील का निस्तारण करने के बाद निषेधाज्ञा आवेदन पर फैसला नहीं कर सकती: गुवाहाटी हाईकोर्ट

    गुवाहाटी हाईकोर्ट ने हाल ही में मुख्य टाइटल अपील के निपटारे के 5 दिन बाद एक जिला न्यायाधीश द्वारा निषेधाज्ञा आवेदन खारिज कर दिया गया, जो कानून की दृष्टि से खराब है। जस्टिस पार्थिव ज्योति सैकिया की एकल न्यायाधीश पीठ ने देखा, “टाइटल अपील का निस्तारण 23.02.2022 को किया गया और संबंधित निषेधाज्ञा याचिका का निस्तारण 5 दिन बाद यानी 28.02.2022 को किया गया। 23.02.2022 को फैसले के वितरण के साथ जिला न्यायाधीश की पहली अपीलीय अदालत फंकटस ऑफ़िसियो बन गई। इसलिए पांच दिन की निषेधाज्ञा याचिका का निपटान कानून की दृष्टि से खराब है।

    केस टाइटल: बिमल चंद्र बिस्वास बनाम अरूप कर्मकार

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    सूरत कोर्ट ने राहुल गांधी को 'मोदी उपनाम' टिप्पणी पर मानहानि मामले में दोषी ठहराया, 2 साल की जेल की सजा सुनाई

    गुजरात के सूरत जिले की एक अदालत ने अप्रैल 2019 में करोल में राजनीतिक अभियान के दौरान की गई अपनी टिप्पणी "सभी चोर मोदी उपनाम वाले क्यों होते हैं" के लिए मानहानि के मामले में कांग्रेस नेता और सांसद राहुल गांधी को दोषी ठहराया। मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट एचएच वर्मा की अदालत ने उन्हें दो साल कैद की सजा सुनाई। इस मामले में उन्हें जमानत भी मिल गई है।

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    MSMED एक्ट के तहत फैसिलिटेशन काउंसिल के पास कार्य अनुबंध के तहत उत्पन्न होने वाले आर्बिट्रेशन विवाद का संचालन करने का कोई अधिकार क्षेत्र नहीं है: बॉम्बे हाईकोर्ट

    बॉम्बे हाईकोर्ट ने फैसिलिटेशन काउंसिल द्वारा सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम विकास अधिनियम, 2006 (MSMED एक्ट) की धारा 18(3) के तहत वैधानिक आर्बिट्रेशन लागू करके पारित मध्यस्थ निर्णय रद्द कर दिया है, जबकि यह मानते हुए कि काउंसिल कार्य अनुबंध के तहत उत्पन्न होने वाले विवाद में आर्बिट्रेशन करने के लिए अधिकार क्षेत्र का प्रयोग नहीं कर सकती। जस्टिस मनीष पिटाले की पीठ ने टिप्पणी की कि कार्य अनुबंध MSMED एक्ट के प्रावधानों के अधीन नहीं है, इसलिए MSMED एक्ट को दावेदार/अवार्ड धारक द्वारा लागू नहीं किया जा सकता।

    केस टाइटल: नेशनल टेक्सटाइल कॉर्पोरेशन लिमिटेड बनाम एलिक्सिर इंजीनियरिंग प्राइवेट लिमिटेड और अन्य।

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    हाई स्पीड में गाड़ी चलाना रैश ड्राइविंग या लापरवाही नहीं: बॉम्बे हाईकोर्ट

    “हाई स्पीड में गाड़ी चलाना रैश ड्राइविंग या लापरवाही से गाड़ी चलाने की श्रेणी में नहीं आता।“ एक कार ड्राइवर को लापरवाही से गाड़ी चलाने और रैश ड्राइविंग के आरोपों से बरी करते हुए बॉम्बे हाईकोर्ट ने ये टिप्पणी की। जस्टिस एसएम मोदक की सिंगल बेंच ने कहा कि लापरवाही से गाड़ी चलाने और रैश ड्राइविंग के अपराध के लिए ड्राइवर की लापरवाही और रैश को संतुष्ट करने की जरूरत है. हाई स्पीड शब्द का मतलब लापरवाही या रैश ड्राइविंग नहीं है।

    केस टाइटल: कुलदीप सुभाष पवार बनाम महाराष्ट्र राज्य

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    शराब पॉलिसी मामला: दिल्ली कोर्ट ने मनी लॉन्ड्रिंग मामले में मनीष सिसोदिया को न्यायिक हिरासत में भेजा

    दिल्ली की एक अदालत ने राष्ट्रीय राजधानी की आबकारी नीति 2021-22 से जुड़े धनशोधन के एक मामले में आम आदमी पार्टी (आप) के नेता और पूर्व उपमुख्यमंत्री को बुधवार को न्यायिक हिरासत में भेज दिया। प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की हिरासत की अवधि समाप्त होने पर सिसोदिया को राउज एवेन्यू कोर्ट के विशेष न्यायाधीश एमके नागपाल के समक्ष पेश किया गया था। सीबीआई द्वारा जांच की जा रही भ्रष्टाचार के मामले में वह पहले से ही न्यायिक हिरासत में है।

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    POCSO एक्ट के तहत बलात्कार और छेड़छाड़ के मामलों को पीड़ित और अभियुक्त के बीच समझौते के आधार पर रद्द नहीं किया जा सकता : इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि नाबालिगों से बलात्कार और छेड़छाड़ जैसे जघन्य अपराध जो प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रन अगेंस्ट सेक्सुअल ऑफेंस (POCSO) एक्ट के तहत दंडनीय है, उसमें पीड़िता और आरोपी के बीच समझौते के आधार पर अभियोजन रद्द नहीं किया जा सकता।

    न्यायालय ने यह भी कहा कि इस तरह के अपराध से जुड़े मामले में न्यायालय का प्रयास आरोपों की सच्चाई का निर्धारण करना है और इसका उद्देश्य आरोपी को इस आधार पर न प्रताड़ित करना है और न ही उसे छोड़ना है कि शिकायतकर्ता के साथ उसके संबंध खराब हो गए।

    केस टाइटल - ओम प्रकाश बनाम यूपी राज्य और अन्य [आवेदन U/S 482 No. - 8514 of 2023]

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    बेटी का केवल इसलिए पारिवारिक संपत्ति में अधिकार खत्म नहीं हो जाता, क्योंकि उसकी शादी में दहेज दिया गया था: बॉम्बे हाईकोर्ट

    बॉम्बे हाईकोर्ट की गोवा पीठ ने कहा कि बेटी का पारिवारिक संपत्ति पर अधिकार सिर्फ इसलिए समाप्त नहीं हो जाता, क्योंकि उसे उसकी शादी में दहेज प्रदान किया गया था। जस्टिस एम एस सोनक ने अपीलकर्ता बहन की सहमति के बिना पारिवारिक संपत्ति को स्थानांतरित करने वाले भाइयों द्वारा किए गए ट्रांसफर डीड रद्द कर दी।

    अदालत ने कहा, "हालांकि, भले ही यह मान लिया जाए कि बेटियों को कुछ दहेज दिया गया था, इसका मतलब यह नहीं है कि बेटियों का पारिवारिक संपत्ति में कोई अधिकार नहीं रह जाता। बेटियों के अधिकारों को उस तरीके से समाप्त नहीं किया जा सकता, जिस तरह से पिता की मृत्यु के बाद भाइयों द्वारा करने का प्रयास किया गया है।"

    केस टाइटल- तेरेज़िन्हा मार्टिंस डेविड बनाम मिगुएल गार्डा रोसारियो मार्टिंस और अन्य।

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    [आरटीआई एक्ट] पीआईओ की दूसरी अपील सुनवाई योग्य, भले ही उसने धारा 19(1) के तहत पहली अपील दायर ना की हो: कर्नाटक हाईकोर्ट

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने कर्नाटक राज्य सूचना आयुक्त के एक आदेश को रद्द कर दिया है, जिसमें उन्होंने जन सूचना अधिकारी की ओर से दायर दूसरी अपील को इस आधार पर खारिज कर दिया था कि पीआईओ होने के कारण याचिकाकर्ता सूचना अधिनियम अधिकार की धारा 19(3) के तहत दूसरी अपील को कायम नहीं रख सकता।

    जस्टिस केएस हेमलेखा की सिंगल जज बेंच ने आंशिक रूप से कर्नाटक लोकायुक्त से जुड़े पीआईओ द्वारा दायर याचिका को स्वीकार कर लिया और आयुक्त द्वारा चार जनवरी 2018 को पारित आदेश को रद्द कर दिया।

    केस टाइटल: लोक सूचना अधिकारी और राज्य सूचना आयुक्त व अन्य

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    मीडिया और सरकारी एजेंसी बिना किसी वजह के नागरिकों के जीवन में ताकझांक नहीं कर सकतीं: केरल हाईकोर्ट

    "मीडिया और सरकारी एजेंसी को बिना किसी वजह के नागरिकों के निजी जीवन में ताकझांक करने का अधिकार नहीं है।" ये टिप्पणी केरल हाईकोर्ट ने एक न्यूज चैनल के दो मीडियाकर्मियों की अग्रिम जमानत याचिका खारिज करते हुए की। जस्टिस वीजी अरुण की सिंगल बेंच ने कहा कि कुछ मामलों में लोकतंत्र का चौथा स्तंभ यानी मीडिया अपनी शक्ति का दुरुपयोग कर रहा है।

    बेंच ने आगे कहा कि कुछ मीडिया चैनलों को न्यूज से ज्यादा अनैतिक चीजें पब्लिश करने की आदत है। हो सकता है समाज का एक तबका ऐसी सनसनी और गंदी खबरें देखता हो। ऐसे न्यूज को रोकने की कोई व्यवस्था न होने पर खुद न्यूज चैनलों को अपने भीतर झांकना चाहिए। कुछ मीडिया चैनलों की इन हरकतों की वजह से लोकतंत्र के चौथे स्तंभ में लोगों का विश्वास कम हो रहा है।

    केस टाइटल: सुमेश जीएस @ सुमेश मार्कोपोलो वी केरल राज्य

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    मातृत्व लाभ अधिनियम 1961 के मु‌ताबिक बच्चे के जन्म के बाद भी महिला मातृत्व अवकाश की हकदार: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि मातृत्व लाभ अधिनियम 1961 के प्रावधान, जिसके तहत किसी महिला को लाभ प्रदान किए जाता है, बच्चे के जन्म के बाद भी लागू होंगे। जस्टिस आशुतोष श्रीवास्तव की पीठ ने यह भी कहा कि एक महिला बच्चे के जन्म के बाद भी मातृत्व अवकाश का लाभ उठा सकती है और इस प्रकार के लाभ को तीन महीने से कम के बच्चे को कानूनी रूप से गोद लेने के मामले में भी बढ़ाया जा सकता है।

    केस टाइटल- सरोज कुमारी बनाम यूपी राज्य और 5 अन्य [WRIT - A No- 2211 of 2023]

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    माल वाहक वाहन में यात्रा कर रहे यात्री की मौत के लिए बीमा कंपनी मुआवजे का भुगतान करने के लिए उत्तरदायी नहीं: गुवाहाटी हाईकोर्ट

    गुवाहाटी हाईकोर्ट ने हाल ही में दोहराया कि माल वाहक वाहन में यात्रा करने वाले अकारण यात्रियों की मौत के लिए बीमा कंपनी को मुआवजे का भुगतान करने के लिए उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता। जस्टिस पार्थिव ज्योति सैकिया की एकल न्यायाधीश पीठ ने बीमा कंपनी द्वारा दायर अपील को स्वीकार करते हुए कहा, "बीमा कंपनी दावेदार को मुआवजे का भुगतान करने के लिए उत्तरदायी नहीं है। दावेदार वाहन के मालिक से ट्रिब्यूनल द्वारा उनके पक्ष में दिए गए मुआवजे की वसूली के लिए स्वतंत्र है।"

    केस टाइटल: न्यू इंडिया एश्योरेंस कंपनी लिमिटेड बनाम मारामी दास और 3 अन्य।

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    जब लोन चुका दिया गया तो बैंक टाइटल डॉक्यूमेंट्स को केवल इसलिए रोक नहीं सकता, क्योंकि उधारकर्ता ने गिरवी संपत्ति स्थानांतरित कर दी: केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि बैंक गिरवी रखी गई संपत्ति से संबंधित लोन सिक्योरिटी को अपने पास नहीं रख सकता, यदि उधारकर्ता द्वारा पूरी तरह से लोन राशि का भुगतान किया गया हो, केवल इसलिए कि बंधक की अवधि के दौरान, यह लोन लेने वाले किसी तीसरे पक्ष को हस्तांतरित कर दिया गया।

    जस्टिस शाजी पी शैली की एकल पीठ ने कहा, "केवल इसलिए कि संपत्ति को बंधक के अस्तित्व के दौरान याचिकाकर्ता द्वारा स्थानांतरित किया गया, हालांकि लोन अकाउंट बंद करके बैंक के हित की रक्षा की जाती है, बैंक इस आधार पर लोन सिक्योरिटी को वापस लेने का हकदार नहीं है कि याचिकाकर्ता ने बंधक के निर्वाह के दौरान संपत्ति को स्थानांतरित कर दिया।

    केस टाइटल: विनू माधवन बनाम स्टेट बैंक ऑफ इंडिया

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