सुप्रीम कोर्ट वीकली राउंड अप : सुप्रीम कोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र
Shahadat
12 Nov 2023 12:00 PM IST
सुप्रीम कोर्ट में पिछले सप्ताह (6 नवंबर 2023 से 10 नवंबर 2023 तक) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं सुप्रीम कोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह सुप्रीम कोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।
यदि सेवा मामलों में जनहित याचिका बिल्कुल भी सुनवाई योग्य नहीं है तो यह बहस योग्य है : सुप्रीम कोर्ट ने कानून के मुद्दे को खुला छोड़ा
सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में (03 नवंबर को), दिल्ली हाईकोर्ट द्वारा पारित फैसले से उत्पन्न एक अपील पर सुनवाई करते हुए संदेह व्यक्त किया कि जनहित याचिका सेवा मामलों में "बिल्कुल भी" चलने योग्य नहीं है, जबकि इसे " बहस योग्य मुद्दा” माना। तदनुसार, न्यायालय ने इस मुद्दे को खुला रखा है जिसका उचित मामले में निर्णय किया जाएगा।
केस टाइटल : प्रताप सिंह बिस्ट बनाम निदेशक, शिक्षा निदेशालय, भारत सरकार। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली एवं अन्य की, डायरी नंबर (एस.41779/2023)
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सुप्रीम कोर्ट ने सांसदों/विधायकों के खिलाफ मामलों के शीघ्र निपटान की निगरानी के लिए हाईकोर्ट्स को दिशानिर्देश जारी किए
सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार (9 नवंबर) को संसद सदस्यों और विधान सभा सदस्यों के खिलाफ लंबित आपराधिक मामलों के शीघ्र निपटान की निगरानी के लिए कई निर्देश जारी किए। चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के लिए राज्यों में लागू समान दिशानिर्देश बनाना मुश्किल था और अनुच्छेद 227 के तहत अपनी शक्तियों को लागू करके ऐसे मामलों में प्रभावी निगरानी के लिए उपाय विकसित करने का काम पर छोड़ दिया।
केस टाइटल: अश्विनी कुमार उपाध्याय बनाम यूओआई डब्ल्यूपी (सी) नंबर 699/2016
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ज़हर से हत्या के मामलों में साबित की जाने वाली 4 परिस्थितियां कौन-सी हैं?: सुप्रीम कोर्ट ने बताया
सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में कथित शराब विषाक्तता से जुड़े दो दशक पुराने मामले में आरोपी को बरी कर दिया, जिसके कारण व्यक्ति की मौत हो गई थी। न्यायालय ने ज़हर से हत्या के मामलों में साबित की जाने वाली परिस्थितियों को दोहराने के लिए शरद बिरधीचंद सारदा बनाम महाराष्ट्र राज्य (1984) 4 एससीसी 116 के ऐतिहासिक 1984 मामले को लागू किया, अर्थात् ज़हर देने का स्पष्ट मकसद, अभियुक्त द्वारा ज़हर का कब्जा, ज़हर देने का अवसर और ज़हर देने से मौत का कारण स्थापित करने के महत्व को रेखांकित किया।
केस टाइटल: हरिप्रसाद @किशन साहू बनाम छत्तीसगढ़ राज्य
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बैंक कर्मचारी द्वारा वास्तविक हानि साबित किए बना पीएफ और ग्रेच्युटी रोक नहीं सकता : सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक कर्मचारी (अपीलकर्ता) के पक्ष में फैसला सुनाया, जिसमें पंजाब नेशनल बैंक (पीएनबी) को अनिवार्य रूप से सेवानिवृत्त हुए कर्मचारी को भविष्य निधि (पीएफ) और ग्रेच्युटी जारी करने का निर्देश दिया। अदालत ने कहा कि पंजाब नेशनल बैंक (अधिकारी) सेवा विनियम, 1979 (1979 विनियम) के अनुसार, बैंक पीएफ राशि तभी रोक सकता है जब यह साबित हो जाए कि कर्मचारी के किसी कृत्य से उसे कोई नुकसान हुआ है। इस मामले में, बैंक न केवल कथित नुकसान को साबित करने में विफल रहा, बल्कि उसे निष्पक्ष सुनवाई से भी वंचित कर दिया।
केस: ज्योतिर्मय रे बनाम फील्ड महाप्रबंधक, पंजाब नेशनल बैंक
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Evidence Act की धारा 65B सर्टिफिकेट ट्रायल के किसी भी चरण में प्रस्तुत किया जा सकता है: सुप्रीम कोर्ट ने 2008 बेंगलुरु विस्फोट मामले में अभियोजन याचिका की अनुमति दी
सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया कि इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य साबित करने के लिए भारतीय साक्ष्य अधिनियम (Evidence Act) की धारा 65बी के तहत सर्टिफिकेट ट्रायल के किसी भी चरण में प्रस्तुत किया जा सकता है।
जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस राजेश बिंदल की खंडपीठ ने कर्नाटक हाईकोर्ट के उस फैसले को रद्द कर दिया, जिसने 2008 के बेंगलुरु विस्फोट मामले से संबंधित मुकदमे में अभियोजन पक्ष को एक्ट की धारा 65बी सर्टिफिकेट पेश करने की अनुमति देने से इनकार कर दिया था।
केस टाइटल: कर्नाटक राज्य बनाम टी.नसीर @ थडियानटाविडा नसीर
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Evidence Act की धारा 27 | सभी के लिए सुलभ खुले स्थान से हथियार की बरामदगी विश्वसनीय नहीं: सुप्रीम कोर्ट
न्यायालय ने हाल ही में माना कि जब जनता के लिए सुलभ स्थानों पर आपत्तिजनक वस्तुएं पाई जाती हैं तो आरोपी व्यक्तियों के अपराध को स्थापित करने के लिए केवल उस पर भरोसा नहीं किया जा सकता। उल्लेखनीय है कि साक्ष्य अधिनियम (Evidence Act) की धारा 27 के तहत स्वीकार्यता के लिए खोजा गया तथ्य हिरासत में किसी व्यक्ति से प्राप्त जानकारी का प्रत्यक्ष परिणाम होना चाहिए।
केस टाइटल: मंजूनाथ बनाम कर्नाटक राज्य
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मृत्यु पूर्व बयान दर्ज करने वाले व्यक्ति की जांच जरूरी: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में पूछे जाने वाले सभी प्रश्नों और मृत्युपूर्व बयान को दिए जाने वाले महत्व का निर्णय करते समय ध्यान में रखे जाने वाले विचार निर्धारित किए हैं। न्यायालय ने मृत्युपूर्व घोषणा के अंतर्निहित मूल्य को मान्यता दी, लेकिन कई गंभीर मुद्दे पाए जो इस विशेष मामले में साक्ष्य के रूप में उपयोग की गई घोषणा की विश्वसनीयता पर संदेह पैदा करते हैं।
केस टाइटलः मंजूनाथ बनाम कर्नाटक राज्य
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पटाखों को रेगुलेट करने के निर्देश सिर्फ दिल्ली ही नहीं, देश के सभी राज्यों पर लागू होते हैं: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार (07.11.2023) को स्पष्ट किया कि पटाखों में बेरियम और प्रतिबंधित रसायनों के इस्तेमाल के खिलाफ उसके पहले के निर्देश पूरे देश में लागू हैं, जो सभी राज्यों के लिए बाध्यकारी हैं, न कि केवल दिल्ली-राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के लिए।
न्यायालय ने यह स्पष्टीकरण एक आवेदन पर सुनवाई करते हुए दिया। उक्त आवेदन में त्योहारी सीजन के दौरान बेरियम पटाखों पर प्रतिबंध और वायु और ध्वनि प्रदूषण को कम करने के संबंध में सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का पालन करने के लिए राजस्थान राज्य को निर्देश देने की मांग की गई थी। यह कहते हुए कि किसी नए निर्देश की आवश्यकता नहीं है, न्यायालय ने राजस्थान राज्य को पिछले आदेशों पर विशेष ध्यान देने का निर्देश दिया और दोहराया कि उसके आदेश देश के सभी राज्यों के लिए बाध्यकारी हैं।
केस टाइटल: अर्जुन गोपाल बनाम भारत संघ, डब्ल्यू.पी.(सी) नंबर 728/2015 और संबंधित मामले
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यौन उत्पीड़न मामलों में अदालतें ' अति-तकनीकी ' कारणों से प्रभावित ना हों, समग्र रूप से विचार करें : सुप्रीम कोर्ट
कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न से संबंधित एक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अदालतों को महत्वहीन खामियों और अति-तकनीकी कारणोंसे प्रभावित नहीं होना चाहिए और जांच की समग्र निष्पक्षता के खिलाफ प्रक्रियात्मक उल्लंघन के प्रभाव का आकलन करना चाहिए। सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ द्वारा सुनाए गए फैसले में कहा गया कि यौन उत्पीड़न या ऐसी प्रकृति के अपराधों के आरोपों पर विचार किया जाना चाहिए और केवल प्रक्रियात्मक उल्लंघन के आधार पर निर्णय नहीं लिया जाना चाहिए।
केस: भारत संघ एवं अन्य बनाम दिलीप पॉल | सिविल अपील संख्या 6190/ 2023
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मिड-टर्म में रिटायरमेंट की आयु प्राप्त करने के बावजूद शैक्षणिक वर्ष के अंत तक किए गए काम के लिए प्रोफेसर वेतन का हकदार: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में कहा कि जो प्रोफेसर मिड-टर्म में रिटायरमेंट की आयु प्राप्त करने के बावजूद शैक्षणिक वर्ष के अंत तक छात्रों को पढ़ाते रहे, वे अपनी रिटायरमेंट की आयु के बाद किए गए काम के लिए भुगतान पाने के हकदार हैं।
जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस दीपांकर दत्ता की खंडपीठ कालीकट यूनिवर्सिटी के चार प्रोफेसरों द्वारा दायर अपील पर सुनवाई कर रही थी, जिन्हें उनके रिटायरमेंट के बाद सेवा की अवधि के लिए उनका वेतन देने से इनकार कर दिया गया था।
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ऐसा कोई सख्त नियम नहीं कि दोषी को निलंबन की मांग से पहले सजा की एक विशेष अवधि से गुजरना होगा: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में स्पष्ट किया कि ऐसा कोई सख्त नियम नहीं है कि किसी दोषी की ओर से सजा निलंबित करने के लिए दिए गए आवेदन पर विचार करने से पहले उसे एक विशेष अवधि के लिए सजा काटनी होगी।
जस्टिस अभय एस ओक और जस्टिस पंकज मिथल की पीठ सजा को निलंबित करने से इनकार करने के गुजरात हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ दायर एक विशेष अनुमति याचिका पर विचार कर रही थी।
केस टाइटल: विष्णुभाई गणपतभाई पटेल और अन्य बनाम गुजरात राज्य।
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मर्डर ट्रायल | अभियुक्तों की चोटों के बारे में स्पष्टीकरण न देने से अभियोजन पक्ष पर संदेह पैदा होगा: सुप्रीम कोर्ट
हत्या के मामले में दोषसिद्धि के खिलाफ आपराधिक अपील में सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में कहा कि अभियुक्तों पर चोटों के बारे में स्पष्टीकरण न देना यह दर्शाता है कि अभियोजन पक्ष ने वास्तविक घटना को छुपाया होगा।
जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा की तीन जजों वाली पीठ मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ अपील पर सुनवाई कर रही थी, जिसने अपीलकर्ताओं को भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 302 और 149 के तहत आजीवन कारावास की सजा को बरकरार रखा था।
केस टाइटल: परशुराम बनाम मध्य प्रदेश राज्य
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आईपीसी की धारा 149 में सजा के लिए प्रत्यक्ष गैरकानूनी कार्य की जरूरत नहीं, गैरकानूनी जमावड़े की सदस्यता पर्याप्त : सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में कहा है कि भारतीय दंड संहिता की धारा 149 के लिए यह प्रदर्शित करना आवश्यक नहीं है कि किसी व्यक्ति ने प्रत्यक्ष गैरकानूनी कार्य किया है या गैरकानूनी जमावड़े का सदस्य बनाए जाने के लिए अवैध चूक का दोषी है। धारा 149 द्वारा निर्धारित सज़ा, एक अर्थ में, परोक्ष है, और यह अनिवार्य नहीं करती है कि गैरकानूनी जमावड़े के प्रत्येक सदस्य ने व्यक्तिगत रूप से अपराध किया है।
केस : परशुराम बनाम मध्य प्रदेश राज्य