सुप्रीम कोर्ट वीकली राउंड अप : सुप्रीम कोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

Shahadat

10 Sep 2023 6:30 AM GMT

  • सुप्रीम कोर्ट वीकली राउंड अप : सुप्रीम कोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

    सुप्रीम कोर्ट में पिछले सप्ताह (4 सितंबर 2023 से 8 सितंबर 2023 तक) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं सुप्रीम कोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह सुप्रीम कोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।

    बीएसएफ एक्ट | भले ही अधिकारी कदाचार का दोषी मानता हो, अदालत को संतुष्ट होना होगा कि स्वीकारोक्ति स्वैच्छिक है: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने सीमा सुरक्षा बल के एक कांस्टेबल (प्रतिवादी) के खिलाफ नहाते समय एक महिला डॉक्टर की तस्वीरें खींचने के आरोपों से जुड़े मामले में दोषी याचिका के आधार पर सजा पर गंभीर संदेह जताया है। कोर्ट ने कई महत्वपूर्ण कारकों पर प्रकाश डाला, जिन्होंने स्वीकारोक्ति की विश्वसनीयता के बारे में चिंताएं पैदा कीं, जिनमें एक चश्मदीद गवाह की अनुपस्थिति, किसी अन्य व्यक्ति के घर से कैमरे की बरामदगी और गवाहों के बयानों में विसंगतियां शामिल हैं।

    केस टाइटल : यूनियन ऑफ इं‌डिया बनाम जोगेश्वर स्वैन

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    निवारक हिरासत कानून असाधारण उपाय, जब साधारण आपराधिक कानून के तहत उपचार उपलब्ध हों तो इसे लागू नहीं किया जाना चाहिए: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में कहा कि प्रिवेंटिव डिटेंशन लॉ यानि निवारक हिरासत कानून'आपातकालीन स्थितियों से निपटने के आरक्षित एक असाधारण उपाय' है और इसे 'कानून और व्यवस्था' लागू करने के लिए एक उपकरण के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए। अदालत ने भारत के संविधान के तहत लोगों को दी गई स्वतंत्रता की गारंटी पर विचार किए बिना, बिना सोचे-समझे निवारक हिरासत के आदेश पारित करने की तेलंगाना राज्य में बढ़ती प्रवृत्ति की कड़ी निंदा की।

    केस टाइटलः अमीना बेगम बनाम तेलंगाना राज्य और अन्य। Criminal Appeal No _of 2023 (Arising Out of SLP (Criminal) No. 8510 Of 2023)

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    उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम | स्व-रोज़गार के माध्यम से आजीविका कमाने के उद्देश्य से व्यावसायिक वस्तुओं की खरीदारी करने वाला 'उपभोक्ता' की श्रेणी में : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया है कि कोई व्यक्ति पुनर्विक्रय के लिए या बड़े पैमाने पर लाभ कमाने वाली गतिविधि में उपयोग के लिए सामान खरीदता है, तो वह उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के संरक्षण का हकदार 'उपभोक्ता' नहीं होगा। हालांकि, यदि क्रेताओं द्वारा स्व-रोज़गार के माध्यम से अपनी आजीविका कमाने के उद्देश्य से व्यावसायिक उपयोग होता है तो वस्तुओं के ऐसे क्रेता 'उपभोक्ता' बने रहेंगे।

    अधिनियम के तहत अभिव्यक्ति "व्यावसायिक उद्देश्य" की व्याख्या करते हुए, जस्टिस एस रवींद्र भट और जस्टिस अरविंद कुमार की पीठ ने कहा कि यदि सामान या सेवाओं को खरीदने का प्रमुख उद्देश्य लाभ का उद्देश्य है और उक्त तथ्य रिकॉर्ड से स्पष्ट है, ऐसा क्रेता 'उपभोक्ता' के दायरे में नहीं आएगा, जैसा कि अधिनियम की धारा 2(1)(डी) (रोहित चौधरी एवं अन्य बनाम मेसर्स विपुल लिमिटेड) के तहत परिभाषित है।

    केस : रोहित चौधरी और अन्य बनाम मेसर्स विपुल लिमिटेड

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    विधायिका सीधे किसी फैसले को पलट नहीं सकती, लेकिन अदालती आदेश के आधार में बदलाव के लिए कानून बना सकती है : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया, जैसा कि एक संवैधानिक अदालत ने न्यायिक समीक्षा की अपनी शक्तियों का प्रयोग करते हुए बताया है, विधायिका के द्वारा पहले के कानून में किसी दोष को दूर करना स्वीकार्य है, अदालत ने कहा कि दोष को विधायी प्रक्रिया द्वारा भविष्य में संभावित (prospectively) या अतीत में बीत चुकी चीजों का फिर से अवलोकन कर के (retrospectively) दूर किया जा सकता है और इनसे पिछले कार्यों को भी मान्यता दी जा सकती है.

    केस : एनएचपीसी लिमिटेड बनाम हिमाचल प्रदेश राज्य सचिव एवं अन्य।

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    किसी महिला के लिए जो क्रूरता है, वह किसी पुरुष के लिए क्रूरता शायद न हो, जब पत्नी तलाक चाहती है तो अधिक व्यापक दृष्टिकोण की आवश्यकता : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार (06.09.2023) को एक अलग रह रही पत्नी द्वारा तलाक की मांग को लेकर दायर याचिका को अनुमति देते हुए कहा कि हिंदू विवाह अधिनियम अधिनियम की धारा 13(1)(ia) के तहत 'क्रूरता' शब्द अदालतों को इसे उदारतापूर्वक और प्रासंगिक रूप से लागू करने के लिए व्यापक विवेक देता है।

    न्यायालय ने क्रूरता के अर्थ की व्याख्या करते हुए कहा कि जो एक व्यक्ति के लिए क्रूरता है, वह दूसरे के लिए क्रूरता नहीं हो सकती और इसका अर्थ इसके संदर्भ में सुनिश्चित किया जाना चाहिए। शीर्ष अदालत ने कहा, ''इसे मौजूद परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए किसी व्यक्ति पर लागू किया जाना चाहिए।''

    केस टाइटल: केस का शीर्षक: XXX बनाम YYY, 2023 की सिविल अपील नंबर__ (2014 की एसएलपी (सी) नंबर 15793 से उत्पन्न)

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    चेक बाउंस मामले को धारा 482 के तहत केवल तभी रद्द किया जा सकता है, जब राशि पूरी तरह से वसूली योग्य ना हो; कर्ज टाइम बार्ड है या नहीं, यह साक्ष्य का प्रश्न: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह सवाल कि क्या क्या चेक को टाइम बार्ड डेट (ऋण) के लिए जारी किया गया, का ‌निर्धारण साक्ष्य के आधार पर किया जाना चाहिए। जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा की पीठ ने कहा, "यह केवल उन मामलों में है, जहां वह राशि, जिसके लिए चेक जारी किया गया है और वह बाउंस हो गया है और वह राशि बिल्कुल भी वसूली योग्य नहीं है, और उसकी वसूली के लिए आपराधिक कार्रवाई शुरू की गई है, सीमा क्षेत्राधिकार (threshold jurisdiction) का सवाल उठेगा।

    केस टाइटलः के. ह्यमावती बनाम आंध्र प्रदेश राज्य 2023- लाइव लॉ (एससी) 752 - 2023 आईएनएससी 811

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    हाईकोर्ट सुप्रीम कोर्ट के किसी फैसले का पालन करने से इस आधार पर इनकार नहीं कर सकते कि उस फैसले के खिलाफ पुनर्विचार लंबित है: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि हाईकोर्ट इस आधार पर उसके किसी बाध्यकारी फैसले का पालन करने से इनकार नहीं कर सकते कि उस फैसले को या तो बड़ी बेंच को भेजा गया है, या उसके खिलाफ पुनर्विचार लंबित है।

    इसमें कहा गया, “हम अपने सामने हाईकोर्ट के निर्णयों और आदेशों को देख रहे हैं, जो इस आधार पर मामलों का निर्णय नहीं कर रहे हैं कि इस विषय पर इस न्यायालय का प्रमुख निर्णय या तो बड़ी बेंच को भेजा गया है, या उससे संबंधित पुनर्विचार याचिका लंबित है। हमने ऐसे उदाहरण भी देखे हैं कि हाईकोर्ट ने इस न्यायालय के निर्णयों को इस आधार पर मानने से इनकार कर दिया कि बाद की समन्वय पीठ ने इसकी शुद्धता पर संदेह किया है।''

    केस टाइटल: यूटी लद्दाख बनाम जम्मू और कश्मीर नेशनल कॉन्फ्रेंस

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    सरकारी सेवकों का 'ग्रहणाधिकार' तभी समाप्त होता है, जब उन्हें किसी अन्य पद पर 'मौलिक' रूप से नियुक्त किया जाता है/पुष्ट किया जाता है या स्थायी रूप से शामिल किया जाता है: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक फैसले में कहा कि किसी सरकारी कर्मचारी का 'ग्रहणाधिकार' (Lien) केवल तभी समाप्त होता है, जब उसे किसी अन्य पद पर 'मौलिक रूप से' नियुक्त किया जाता है/पुष्टि की जाती है या स्थायी रूप से शाामिल किया जाता है, अन्यथा, उनका ग्रहणाधिकार पिछले पद पर जारी रहेगा। जस्टिस जेके माहेश्वरी और केवी विश्वनाथन की पीठ मामले पर सुनवाई कर रही थी।

    केस टाइटलः एलआर पाटिल बनाम गुलबर्गा यूनिवर्सिटी 2023 लाइव लॉ (एससी) 748 - 2023 आईएनएससी 796

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    जज सिर्फ एक रिकार्डिंग मशीन नहीं है, उसे ट्रायल में सच्चाई का पता लगाने के लिए चौकन्ना होना चाहिए : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने 4 सितंबर को पटना हाईकोर्ट के फैसले को पलट दिया, जिसमें हाईकोर्ट के दृष्टिकोण में कई खामियां पाए जाने के बाद, 10 वर्षीय लड़की के बलात्कार और हत्या के अपराध के लिए एक दोषी की मौत की सजा की पुष्टि की गई थी। हाईकोर्ट द्वारा मामले को पुनर्विचार के लिए भेजते समय, सुप्रीम कोर्ट ने निष्पक्ष सुनवाई की अवधारणा के बारे में कड़ी टिप्पणियां कीं।

    केस : मुन्ना पांडे बनाम बिहार राज्य - 2023 लाइव लॉ (SC) 744- 2023 INSC 793

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    सुप्रीम कोर्ट में असम एनआरसी, विधानसभाओं में आरक्षण, रिश्वत मामलों में सांसदों/विधायकों को छूट से संबंधित मुद्दों पर सुनवाई के लिए नई संविधान पीठ का गठन

    सुप्रीम कोर्ट की एक संविधान पीठ संवैधानिक महत्व के तीन मामलों की सुनवाई 20 सितंबर, 2023 से शुरू करेगी। हालिया सूचना के अनुसार, संविधान पीठ में चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस एएस बोपन्ना, जस्टिस एमएम सुंदरेश, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा शामिल होंगे। जिन तीन महत्वपूर्ण मामलों पर चर्चा होनी है, वह असम लोक निर्माण बनाम यूनियन ऑफ इंडिया, अशोक कुमार जैन बनाम यूनियन ऑफ इंडिया और सीता सोरेन बनाम यूनियन ऑफ इंडिया है।

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    सुप्रीम कोर्ट ने 16 दिन की सुनवाई के बाद अनुच्छेद 370 मामले में फैसला सुरक्षित रखा

    सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार (5 सितंबर) को एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम में संविधान के अनुच्छेद 370 के तहत जम्मू-कश्मीर की विशेष स्थिति को रद्द करने के केंद्र सरकार के 2019 के फैसले को चुनौती देने वाले लंबे समय से लंबित मामले में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया। याचिकाकर्ताओं ने जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम को भी चुनौती दी, जिसने राज्य को जम्मू-कश्मीर और लद्दाख के केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित कर दिया। 2 अगस्त, 2023 को शुरू हुई सुनवाई में सोलह दिनों की अवधि में व्यापक बहस और चर्चा हुई। यह ऐतिहासिक मामला तीन साल से अधिक समय तक निष्क्रिय रहा, इसकी आखिरी लिस्टिंग मार्च 2020 में हुई थी।

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    याचिका में विशिष्ट चुनौती के बिना वैधानिक प्रावधान को अल्ट्रा वायर्स घोषित नहीं किया जा सकता: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में दोहराया कि किसी कानून के प्रावधानों को रद्द करने या कुछ नियमों को अल्ट्रा वायर्स घोषित करने के लिए एक विशिष्ट दलील और ऐसी राहत के लिए अनुरोध होना चाहिए। न्यायालय ने कहा, "कानून के प्रावधानों को खत्म करने या नियमों को अल्ट्रा वायर्स घोषित करने के लिए विशिष्ट दलील दी जानी चाहिए और ऐसी राहत का अनुरोध किया जाना चाहिए, हालांकि वर्तमान मामले में यह स्पष्ट रूप से गायब है।

    केस टाइटल: यूनियन ऑफ इंडिया बनाम मंजूरानी राउत्रे

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    धारा 162 सीआरपीसी किसी ट्रायल कोर्ट को स्वत: संज्ञान लेकर गवाह के बयानों से विरोध के लिए सवाल करने से नहीं रोकती : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सीआरपीसी की धारा 162 दस्तावेजों पर गौर करने या गवाहों से बयानों का विरोध करने के लिए स्वत: संज्ञान लेने की अदालत की शक्ति को प्रभावित नहीं करती है। जस्टिस बी आर गवई, जस्टिस जे बी पारदीवाला और जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा की पीठ ने कहा, "हमारी राय में सीआरपीसी की धारा 162 में ऐसा कुछ भी नहीं है जो एक ट्रायल जज को स्वत: संज्ञान लेते हुए चार्जशीट के कागजात को देखने और पुलिस द्वारा जांच किए गए किसी व्यक्ति के बयान का इस्तेमाल ऐसे व्यक्ति के बयानों का खंडन करने के उद्देश्य से करने से रोकता है। वह अभियोजन पक्ष के गवाह के रूप में राज्य के पक्ष में साक्ष्य देते हैं।"

    मुन्ना पांडे बनाम बिहार राज्य - 2023 लाइव लॉ (SC) 744 - 2023 INSC 793

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    अनुच्छेद 370| ये दलील कि अनुच्छेद 370 को पुनर्जीवित करना मूल संरचना का उल्लंघन होगा, " दूर की कौड़ी" है : सुप्रीम कोर्ट [ दिन 15]

    सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ के समक्ष अनुच्छेद 370 की कार्यवाही के 15 वें दिन, केंद्र सरकार और अन्य उत्तरदाताओं ने भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस सूर्यकांत की पीठ के समक्ष अपनी दलीलें समाप्त कीं। पीठ ने प्रतिवादी पक्ष की दलीलों पर सुनवाई बंद कर दी। सुनवाई के दौरान पीठ ने सीनियर एडवोकेट वी गिरी के इस तर्क पर असहमति जताई कि यदि अनुच्छेद 370 को पुनर्जीवित किया गया तो यह भारतीय संविधान की मूल संरचना का उल्लंघन होगा।

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    धारा 323 सीआरपीसी| गवाही/गवाह की मुख्य जांच के बाद भी शक्ति का प्रयोग किया जा सकता है: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सीआरपीसी की धारा 323 के तहत शक्ति का प्रयोग मजिस्ट्रेट किसी गवाह की गवाही या मुख्य परीक्षण के बाद भी कर सकता है। जस्टिस एमएम सुंदरेश और जस्टिस जेबी पारदीवाला की पीठ ने कहा कि धारा 323 के तहत शक्ति के प्रयोग के ‌लिए मुख्य आवश्यकता यह है कि संबंधित विद्वान मजिस्ट्रेट को यह महसूस होना चाहिए कि मामला ऐसा है, जिसकी सुनवाई सत्र न्यायालय द्वारा की जानी चाहिए। धारा 323 उस प्रक्रिया से संबंधित है, जब जांच या सुनवाई शुरू होने के बाद मजिस्ट्रेट को लगता है कि मामला कमिट किया जाना चाहिए।

    केस टाइटलः अर्चना बनाम पश्चिम बंगाल राज्य | 2023 लाइव लॉ (एससी) 742 | सीआरए 2655/2023

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    वकील का रियल एस्टेट एजेंट के रूप में काम करना और क्लाइंट की संपत्ति बेचना कदाचार : सुप्रीम कोर्ट ने वकील पर बीसीआई का जुर्माना बरकरार रखा

    सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक वकील को घोर पेशेवर कदाचार (professional misconduct) के लिए 5 साल के लिए लॉ प्रैक्टिस से निलंबित करने के बार काउंसिल ऑफ इंडिया के फैसले को बरकरार रखा, क्योंकि यह पता चला था कि वकील ने संपत्ति से संबंधित मामले में अपने ही क्लाइंट से जनरल पावर ऑफ अटॉर्नी हासिल की थी और बाद में संपत्ति बेच दी।

    जस्टिस अभय एस. ओक और जस्टिस पंकज मित्तल की पीठ बीसीआई के फैसले के खिलाफ एक अपील पर सुनवाई कर रही थी, जिसने पेशेवर कदाचार के कारण वकील को प्रैक्टिस से 5 साल के लिए निलंबित कर दिया था।

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    मोटर एक्सीडेंट क्लेम- आय का कोई निश्चित प्रमाण न होने पर मृतक की सामाजिक स्थिति पर विचार किया जाएगा: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने मोटर एक्सीडेंट क्लेम ट्रिब्यूनल (MACT) द्वारा दिए गए उस अवार्ड को बहाल कर दिया, जिस पर हाईकोर्ट ने रोक लगा दी थी। सुप्रीम कोर्ट ने साक्ष्यों के मूल्यांकन में हाईकोर्ट द्वारा अपनाए गए दृष्टिकोण पर निराशा व्यक्त की और MACT का फैसले बहाल कर दिया।

    कोर्ट ने कहा, “यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि वर्तमान प्रकृति के मामले में हाईकोर्ट ने रिकॉर्ड पर उपलब्ध साक्ष्य का आकलन करते हुए मृतक की आय के संबंध में सख्त सबूत की मांग की। वर्तमान प्रकृति के मामले में जहां मुआवजे की मांग की जाती है, वहां आय के निश्चित प्रमाण के अभाव में मृतक की सामाजिक स्थिति को परिप्रेक्ष्य में रखा जाना चाहिए। ऐसे व्यक्ति जो असंगठित क्षेत्र में कार्यरत हैं और जिनकी आय काल्पनिक है, ऐसी परिस्थिति में किसी भी क्षेत्र में घटित हुई घटना को ध्यान में रखना आवश्यक है। इस स्थिति में एमएसीटी ने जहां रिकॉर्ड पर उपलब्ध साक्ष्यों का उल्लेख किया और फिर अपने निष्कर्ष पर पहुंचा, वहां हाईकोर्ट द्वारा साक्ष्यों की पुनः सराहना उसके समक्ष दर्ज मामले की प्रकृति के प्रति संवेदनशील हुए बिना है।''

    केस टाइटल: कुबरा बीबी बनाम ओरिएंटल इंश्योरेंस

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    सीआरपीसी की धारा 311 - गवाह को वापस बुलाने की शक्ति का इस्तेमाल तब किया जाना चाहिए जब उचित फैसले के लिए आवश्यक हो : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 311 के तहत एक गवाह द्वारा दायर एक आवेदन को अनुमति दी, जिसमें उसे पूछताछ के लिए फिर से बुलाने की मांग की गई थी। अदालत ने इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए याचिका को स्वीकार कर लिया कि उनके प्रारंभिक बयान में, उनके पास कुछ तथ्य लाने का कोई अवसर नहीं था, जो विशेषज्ञ गवाह की जांच के बाद प्रासंगिक हो गए। कोर्ट ने एक मिसाल का हवाला दिया जिसमें कहा गया था कि सीआरपीसी की धारा 311 के तहत शक्ति का इस्तेमाल तब किया जाना चाहिए जब '...यह मामले के उचित निर्णय के लिए आवश्यक हो।'

    केस : सतबीर सिंह बनाम हरियाणा राज्य एवं अन्य

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    हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम - संपत्ति में उत्तराधिकारियों के हिस्से का पता लगाने के लिए, पहला कदम यह है कि सहदायिक संपत्ति में मृत्यु की तारीख पर मृतक का हिस्सा निर्धारित करे : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने एक सिविल अपील (1 सितंबर 2023) का निपटारा करते हुए टिप्पणी की कि कई बार आज़माया और परखा गया, मिताक्षरा सहदायिक संपत्ति के उत्तराधिकार का मुद्दा लर्ना झील के अमर दैत्य की तरह बार-बार अपना सिर उठाता रहता है।

    इस मामले में, एक विभाजन वाद वर्ष 1991 में दायर किया गया था और ट्रायल कोर्ट ने वर्ष 1996 में उस पर फैसला सुनाया था। प्रथम अपीलीय अदालत ने 1999 में अपील खारिज कर दी थी। हालांकि, हाईकोर्ट ने 2009 में आंशिक रूप से दूसरी अपील की अनुमति दी थी।

    केस टाइटल- डेरहा बनाम विशाल 2023 लाइवलॉ (SC) 740 | 2023 INSC 785

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