सुप्रीम कोर्ट वीकली राउंड अप : सुप्रीम कोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

LiveLaw News Network

14 Nov 2021 6:15 AM GMT

  • सुप्रीम कोर्ट वीकली राउंड अप : सुप्रीम कोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

    सुप्रीम कोर्ट में पिछले सप्ताह (आठ नवंबर, 2021 से 12 नवंबर, 2021) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं, सुप्रीम कोर्ट वीकली राउंड अप।

    पिछले सप्ताह सुप्रीम कोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।

    भले ही अनुशासनात्मक प्राधिकारी द्वारा लगाया गया दंड आनुपातिक न हो, कोर्ट को सामान्य रूप से सजा का निर्धारण नहीं करना चाहिए; मामला वापस भेजा जाए : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर कहा है कि अनुशासनात्मक कार्यवाही में लगाए गए दंड की मात्रा पर न्यायिक समीक्षा का दायरा सीमित है।

    न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी और न्यायमूर्ति अभय एस ओका की खंडपीठ ने कहा, "यहां तक कि ऐसे मामलों में जहां अनुशासनात्मक प्राधिकारी द्वारा लगाया गया दंड न्यायालय के विवेक को चौंकाने वाला पाया जाता है, आमतौर पर अनुशासनात्मक प्राधिकारी या अपीलीय प्राधिकारी को दंड के सवाल पर पुनर्विचार करने के लिए निर्देशित किया जाना चाहिए।''

    कोर्ट ने कहा कि यह केवल दुर्लभ और असाधारण मामलों में है जहां अदालत मुकदमे को छोटा करने के लिए सक्षम प्राधिकारी द्वारा दी गई सजा क स्थान पर सजा की मात्रा के बारे में अपने स्वयं के विचार को प्रतिस्थापित करने के बारे में सोच सकती है, वह भी ठोस कारण बताने के बाद ही।

    केस का नाम और साइटेशन: भारत सरकार बनाम पूर्व कांस्टेबल राम करण | एलएल 2021 एससी 640

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    मध्यस्थता - 2015 संशोधन धारा 34 के उन आवेदनों पर लागू नहीं होगा जो इससे पहले दाखिल किए गए : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि मध्यस्थता और सुलह अधिनियम 1996 की धारा 34 में 2015 का संशोधन केवल उन धारा 34 आवेदनों पर लागू होगा जो संशोधन की तारीख के बाद किए गए हैं।

    "संशोधित धारा 34 केवल धारा 34 आवेदनों पर लागू होगी जो न्यायालय में 23.10.2015 को या उसके बाद किए गए हैं, इस तथ्य के बावजूद कि मध्यस्थता की कार्यवाही उससे पहले शुरू हो सकती है।"

    न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति एम एम सुंदरेश की पीठ ने एक ऐसे मामले में उपरोक्त टिप्पणियां कीं, जहां अंतरराष्ट्रीय वाणिज्यिक विवाद के लिए धारा 34 की प्रयोज्यता सवालों के घेरे में थी।

    केस का नाम: रत्नम सुदेश अय्यर बनाम जैकी काकुभाई श्रॉफ

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    मुआवजे / जुर्माने को अवैध रूप से खनन किए गए खनिज के मूल्य तक सीमित नहीं किया जा सकता; पर्यावरण की बहाली की लागत पर भी विचार हो : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अवैध रेत खनन में लिप्त लोगों द्वारा भुगतान किए जाने वाले मुआवजे / जुर्माने को अवैध रूप से खनन किए गए खनिज के मूल्य तक सीमित नहीं किया जा सकता है।

    जस्टिस एल नागेश्वर राव, जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस बीआर गवई की पीठ ने कहा कि पर्यावरण की बहाली की लागत के साथ-साथ पारिस्थितिक सेवाओं की लागत भी मुआवजे का हिस्सा होनी चाहिए। अदालत के अनुसार, प्रदूषक व्यक्तिगत रूप से पीड़ित व्यक्ति को मुआवजे का भुगतान करने के साथ-साथ क्षतिग्रस्त पारिस्थितिकी को बदलने के जुर्माने का भुगतान करने के लिए उत्तरदायी है।

    केस और उद्धरण: बजरी लीज एलओआई होल्डर्स वेलफेयर सोसाइटी बनाम राजस्थान राज्य | LL 2021 SC 638

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    केस हार जाना वकील की ओर से 'सेवा में कमी' नहीं है कि उपभोक्ता शिकायत दर्ज कराई जाए : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि केस हारने वाले वकील को उसकी ओर से सेवा में कमी नहीं कहा जा सकता है।

    जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस बीवी नागरत्ना की पीठ ने कहा, "हर मुकदमे में किसी भी पक्ष को हारना तय है और ऐसी स्थिति में जो पक्ष मुकदमे में हारेगा, वह सेवा में कमी का आरोप लगाते हुए मुआवजे के लिए उपभोक्ता मंच से संपर्क कर सकता है, जो बिल्कुल भी स्वीकार्य नहीं है।"

    पीठ राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग के एक आदेश के खिलाफ दायर विशेष अनुमति याचिका पर विचार कर रही थी। अदालत ने कहा कि ऐसी शिकायतें केवल उस मामले में हो सकती हैं, जहां यह पाया जाता है कि वकील द्वारा सेवा में कोई कमी थी।

    केस शीर्षक और उद्धरण: नंदलाल लोहरिया बनाम जगदीश चंद्र पुरोहित एलएन 2021 एससी 636

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    एनआई एक्ट की धारा 138 : सिर्फ इसलिए कि शिकायत में पहले प्रबंध निदेशक का नाम दिया गया है, ये नहीं माना जा सकता कि शिकायत कंपनी की ओर से नहीं की गई : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट की धारा 138 के तहत एक कंपनी की ओर से दायर की गई शिकायत एकमात्र कारण से खारिज करने के लिए उत्तरदायी नहीं है, क्योंकि इसमें कंपनी के नाम से पहले प्रबंध निदेशक का नाम बताया गया है।

    जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस एमएम सुंदरेश पीठ ने कहा कि हालांकि यह प्रारूप सही नहीं हो सकता है, इसे दोषपूर्ण नहीं कहा जा सकता है। पीठ ने कहा, "एक प्रारूप हो सकता है जहां कंपनी का नाम पहले वर्णित किया गया हो, प्रबंध निदेशक के माध्यम से मुकदमा किया गया हो, लेकिन केवल ये एक मौलिक दोष नहीं हो सकता क्योंकि क्रम में कंपनी से पहले प्रबंध निदेशक का नाम और बाद में पद बताया गया है।"

    केस : भूपेश राठौड़ बनाम दयाशंकर प्रसाद चौरसिया और अन्य | आपराधिक अपील संख्या 1105/2021

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    'तिहाड़ जेल में खेदजनक स्थिति': सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को जेल प्रबंधन में सुधार के लिए तुंरत कदम उठाने के निर्देश दिए

    सुप्रीम कोर्ट ने यूनिटेक मामले में आरोपियों के साथ जेल अधिकारियों की मिलीभगत के मद्देनजर तिहाड़ जेल की स्थिति का हवाला देते हुए बुधवार को कहा कि जेल प्रबंधन में सुधार के लिए तत्काल कदम उठाने की आवश्यकता है।

    न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति एम आर शाह की पीठ ने गृह मंत्रालय के सचिव को अदालत के 6 अक्टूबर 2021 के पिछले आदेश के पैरा 3 और 4 के अनुसरण में आवश्यक कदम उठाने का निर्देश दिया। गृह मंत्रालय के सचिव को 3 सप्ताह की अवधि के भीतर सुधारों के कार्यान्वयन के संबंध में उठाए गए कदमों का एक हलफनामा दाखिल करने के लिए निर्देश भी जारी किए गए।

    केस टाइटल: भूपिंदर सिंह बनाम यूनिटेक | सिविल अपील संख्या(एस).10856/2016

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    बलात्कार पीड़िता की कम उम्र मौत की सजा देने के लिए एकमात्र या पर्याप्त कारक नहीं : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बलात्कार पीड़िता की कम उम्र को मौत की सजा देने के लिए एकमात्र या पर्याप्त कारक नहीं माना जाता है।

    जस्टिस एल नागेश्वर राव, जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस बीआर गवई की बेंच ने इरप्पा सिद्दप्पा मुर्गन्नावर को दी गई मौत की सजा को कम करते हुए इस प्रकार कहा, जिसे पांच साल की बच्ची (आर) के साथ बलात्कार करने, गला घोंटकर उसकी हत्या करने और फिर उसके शरीर को बेनिहल्ला नामक नहर में एक बोरी में बांधकर फेंकने का का दोषी पाया गया था।

    केस और उद्धरण: इरप्पा सिद्दप्पा मुर्गन्नावर बनाम कर्नाटक राज्य | LL 2021 SC 632

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    'अयोग्यता के बारे में चुनाव आयोग की राय पर निर्णय में राज्यपाल देरी नहीं कर सकते': मणिपुर विधायक मामले में सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को मौखिक रूप से कहा कि मणिपुर के राज्यपाल "लाभ के पद" के मुद्दे पर मणिपुर विधानसभा के 12 भाजपा विधायकों की अयोग्यता के संबंध में चुनाव आयोग द्वारा दी गई राय पर निर्णय लेने में देरी नहीं कर सकते।

    जस्टिस एल नागेश्वर राव, जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस बीवी नागरत्ना की पीठ ने कहा कि राज्यपाल को चुनाव आयोग द्वारा 13 जनवरी, 2021 को दी गई राय पर अभी निर्णय लेना है।

    पीठ मणिपुर के कांग्रेस विधायक डीडी थैसी द्वारा दायर एक रिट याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिन्होंने इन 12 विधायकों को इस आधार पर अयोग्य घोषित करने की मांग की थी कि वे संसदीय सचिवों के पदों पर हैं, जो "लाभ के पद" के बराबर है।

    केस शीर्षक: डीडी थायसि बनाम भारतीय चुनाव आयोग| डब्ल्यूपी(सी)151/2021

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    प्रकटीकरण वक्तव्य के आधार पर दोषसिद्धि को तभी कायम रखा जा सकता है जब परिणामी रिकवरी दोषरहित हो: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि किसी आरोपी को विशेष रूप से उसके प्रकटीकरण बयान और परिणामस्वरूप अभियोगात्मक सामग्री की बरामदगी के आधार पर दोषी ठहराने के लिए, बरामदगी पूरी तरह दोषरहित होनी चाहिए और संदेह के तत्वों से आच्छादित नहीं होनी चाहिए।

    इस मामले में, पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के फैसले को बरकरार रखा था जिसमें एक आरोपी बिजेंदर उर्फ मंदार को भारतीय दंड संहिता की धारा 392 और 397 के तहत दोषी ठहराया गया था। शीर्ष अदालत ने अपील में जिस मुद्दे पर विचार किया वह यह था कि क्या कथित प्रकटीकरण बयान और रिकवरी ज्ञापन के आधार पर दोषसिद्धि किसी सम्बद्ध सबूत के अभाव में कायम रह सकती है?

    केस का नाम और उद्धरण: बिजेंदर @ मंदार बनाम हरियाणा सरकार | एलएल 2021 एससी 630

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    मध्यस्थता- किसी पक्ष को धारा 37 के तहत मध्यस्थता अवार्ड को रद्द करने के लिए अतिरिक्त आधार उठाने से प्रतिबंधित नहीं किया गया है : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मध्यस्थता सुलह अधिनियम, 1996 की धारा 37 के तहत मध्यस्थता अपील में किसी पक्ष को एक मध्यस्थता अवार्ड को रद्द करने के लिए एक अतिरिक्त आधार उठाने से केवल इसलिए प्रतिबंधित नहीं किया गया है कि उक्त आधार को धारा 34 के तहत मध्यस्थता अवार्ड रद्द करने की याचिका में नहीं उठाया गया था।

    इस मामले में, छत्तीसगढ़ राज्य और मैसर्स साल उद्योग प्राइवेट लिमिटेड के बीच एक मामले में मध्यस्थता अवार्ड पारित किया गया था।। उक्त अधिनिर्णय को जिला न्यायाधीश के समक्ष (धारा 34 याचिका दायर कर) चुनौती दी गई थी।

    केस और उद्धरण: छत्तीसगढ़ राज्य बनाम साल उद्योग प्राइवेट लिमिटेड | LL 2021 SC 631

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    NEET-UG : सुप्रीम कोर्ट ने शैक्षणिक वर्ष 2021-22 के लिए काउंसलिंग में " सभी ओसीआई उम्मीदवारों" को सामान्य वर्ग में भाग लेने की अनुमति दी

    सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को भारत के सभी प्रवासी नागरिक (ओसीआई) उम्मीदवारों को एनईईटी-यूजी काउंसलिंग में शैक्षणिक वर्ष 2021-22 के लिए सामान्य वर्ग में भाग लेने की अनुमति दी।

    न्यायमूर्ति एस अब्दुल नज़ीर और न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी की पीठ ने आदेश में कहा कि अदालत के समक्ष आवेदकों और "इसी तरह के अन्य उम्मीदवारों" को शैक्षणिक वर्ष 2021-22 के लिए राहत दी जाती है। 29 सितंबर को, पीठ ने एक अंतरिम आदेश पारित किया था, जिसमें ओसीआई श्रेणी से संबंधित कुछ याचिकाकर्ताओं को सामान्य श्रेणी में एनईईटी-यूजी काउंसलिंग में भाग लेने की अनुमति दी गई थी।

    यह आदेश ओसीआई उम्मीदवारों द्वारा दायर एक रिट याचिका में पारित किया गया था जिसमें गृह मंत्रालय द्वारा कॉलेज में प्रवेश के उद्देश्य से अनिवासी भारतीयों (एनआरआई) के समान व्यवहार करने के लिए जारी एक अधिसूचना को चुनौती दी गई थी।

    केस : डॉ. राधिका थापेट्टा और अन्य बनाम भारत संघ और अन्य ( डब्लूपी( सी) संख्या 1397/2020); अनुष्का रेनगुनथवार और अन्य बनाम भारत संघ और अन्य (डब्लूपी( सी) संख्या 891/2021)

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    70 साल से फिजिकल हियरिंग हो रही है, अगर इस पर वापस जाएं तो कोई नुकसान नहीं: सुप्रीम कोर्ट में वर्चुअल कोर्ट को जारी रखने की मांग वाली याचिका दायर

    भारतीय सुप्रीम कोर्ट सोमवार को दिसंबर 2021 में वर्चुअल कोर्ट और हाइब्रिड मोड को जारी रखने की मांग करने वाली याचिकाओं पर सुनवाई के लिए सहमत हो गया।

    न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव और न्यायमूर्ति अभय एस ओका की पीठ के समक्ष इस मामले का उल्लेख वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ लूथरा ने किया। उन्होंने लूथरा से हल्के-फुल्के अंदाज में पूछा कि प्रभावी रूप से रिट याचिकाएं सभी के फिजिकल कोर्ट में उद्घाटन के साथ निष्फल हैं।

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    कर्मचारी के तबादले से यदि सेवा शर्तों में बदलाव होता है,तो आईडी अधिनियम की धारा 9ए लागू होगी: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि यदि कामगारों के स्थानांतरण के परिणामस्वरूप सेवा की शर्तों और काम की प्रकृति में परिवर्तन होता है तो औद्योगिक विवाद (आईडी) अधिनियम, 1947 की चौथी अनुसूची और धारा 9ए लागू होगी।

    आईडी अधिनियम की धारा 9ए में कहा गया है कि चौथी अनुसूची में निर्दिष्ट किसी भी मामले के संबंध में किसी भी कर्मचारी पर लागू सेवा की शर्तों में किसी भी बदलाव के संबंध में नियोक्ता को कर्मचारी को नोटिस देना चाहिए।

    केस का नाम: कपारो इंजीनियरिंग इंडिया लिमिटेड बनाम उम्मेद सिंह लोधी और अन्य. बनाम उम्मेद सिंह लोधी एवं अन्य | सिविल अपील संख्या 5829-5830/2021

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