'अयोग्यता के बारे में चुनाव आयोग की राय पर निर्णय में राज्यपाल देरी नहीं कर सकते': मणिपुर विधायक मामले में सुप्रीम कोर्ट

LiveLaw News Network

9 Nov 2021 9:52 AM GMT

  • सुप्रीम कोर्ट, दिल्ली

    सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को मौखिक रूप से कहा कि मणिपुर के राज्यपाल "लाभ के पद" के मुद्दे पर मणिपुर विधानसभा के 12 भाजपा विधायकों की अयोग्यता के संबंध में चुनाव आयोग द्वारा दी गई राय पर निर्णय लेने में देरी नहीं कर सकते।

    जस्टिस एल नागेश्वर राव, जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस बीवी नागरत्ना की पीठ ने कहा कि राज्यपाल को चुनाव आयोग द्वारा 13 जनवरी, 2021 को दी गई राय पर अभी निर्णय लेना है।

    पीठ मणिपुर के कांग्रेस विधायक डीडी थैसी द्वारा दायर एक रिट याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिन्होंने इन 12 विधायकों को इस आधार पर अयोग्य घोषित करने की मांग की थी कि वे संसदीय सचिवों के पदों पर हैं, जो "लाभ के पद" के बराबर है।

    याचिकाकर्ता की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल ने कहा कि राज्यपाल निर्णय को लंबित नहीं रख सकते। उन्होंने बताया कि विधानसभा का कार्यकाल एक महीने के भीतर समाप्त हो रहा है।

    कपिल सिब्बल ने कहा,

    "चुनाव आयोग द्वारा बाध्य संवैधानिक प्राधिकरण यह नहीं कह सकता कि वह राय नहीं देगा। यदि वह संदेश नहीं दे रहा है तो वह संवैधानिक दायित्व का निर्वहन नहीं कर रहा है। एक महीना बीत जाएगा और खेल खत्म हो जाएगा। हम यह जानने के हकदार हैं कि क्या है राय है... हमें पता होना चाहिए कि संवैधानिक प्राधिकरण देश में क्या कर रहा है।"

    पीठासीन जज जस्टिस राव ने कहा, "हम आपसे सहमत हैं... वह फैसले को छोड़ नहीं सकते।"

    चुनाव आयोग की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट राजीव धवन ने भारत के संविधान के अनुच्छेद 192 पर भरोसा करते हुए कहा कि चुनाव आयोग की राय राज्यपाल पर बाध्यकारी है।

    वरिष्ठ वकील ने कहा, "चुनाव आयोग की राय राज्यपाल पर बाध्यकारी है। केवल एक महीना बचा है। आप राज्यपाल के फैसले को चुनौती नहीं दे सकते। आप चुनाव आयोग की राय पर हमला नहीं कर सकते। "

    जस्टिस राव ने कहा कि ऐसे कई उदाहरण हैं, जहां न्यायालय ने राज्यपाल को समयबद्ध निर्णय लेने के लिए कहा है। उन्होंने राजीव गांधी हत्याकांड के दोषी पेरारिवलन के मामले का उल्लेख किया, जहां तमिलनाडु के राज्यपाल को राज्य सरकार द्वारा उनकी सजा में छूट के लिए की गई सिफारिश पर निर्णय लेने के लिए कहा गया था ।

    राज्य सरकार की ओर से पेश वकील ने यह कहते हुए स्थगन की मांग की कि सॉलिसिटर जनरल एक अन्य पीठ के समक्ष व्यस्‍त हैं।

    जस्टिस राव ने इस पर नाराजगी व्यक्त करते हुए कहा,

    "आप स्थगन लेकर इस याचिका को निष्फल नहीं बना सकते, केवल एक महीना बचा है...कोई भी राज्य का प्रतिनिधित्व नहीं कर रहा है!" हालांकि मामला दोपहर दो बजे तक चला, लेकिन सॉलिसिटर जनरल पेश नहीं हुए। एसजी के सहयोगी ने बताया कि दूसरी पीठ के समक्ष उनकी सुनवाई चल रही है। इसलिए, पीठ ने मामले को गुरुवार, 11 नवंबर के लिए पोस्ट कर दिया।

    पीठ ने याचिकाकर्ता द्वारा दायर एक आवेदन पर राज्यपाल के सचिव को नोटिस जारी कर अदालत के समक्ष राज्यपाल के फैसले को पेश करने की मांग की।

    रिट याचिका में कहा गया है कि मणिपुर विधानसभा के 12 सदस्यों को संसदीय सचिव के रूप में नियुक्त किया गया था। जबकि यह कार्यालय लाभ के कार्यालय हैं, क्योंकि उक्त नियुक्ति‌यों ने मणिपुर विधान सभा के 12 सदस्यों को राज्यमंत्री के पद और दर्जे का फायदा दिया और उन्हें उच्च वेतन और भत्ते प्राप्त करने का भी अधिकार दिया। विधान सभा के 12 सदस्यों ने लाभ के पद पर कब्जा किया और इस प्रकार संविधान के अनुच्छेद 191 के तहत स्वतः ही अयोग्य हो गए और विधानसभा सदस्य के रूप में बने रहने के हकदार नहीं हैं।

    केस शीर्षक: डीडी थायसि बनाम भारतीय चुनाव आयोग| डब्ल्यूपी(सी)151/2021

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