त्वरित ट्रायल के अधिकार का उल्लंघन होने पर संवैधानिक न्यायालय वैधानिक प्रतिबंधों के बावजूद जमानत दे सकते हैं: UAPA मामले में सुप्रीम कोर्ट
गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम, 1967 (UAPA Act) के तहत आरोपों का सामना कर रहे विचाराधीन कैदी को जमानत देने वाले महत्वपूर्ण फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यदि कोई संवैधानिक न्यायालय पाता है कि संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत त्वरित सुनवाई के अधिकार का उल्लंघन किया गया है तो वह वैधानिक प्रतिबंधों के बावजूद जमानत दे सकता है।
जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस उज्ज्वल भुयान की खंडपीठ ने मुकदमे में ज्यादा प्रगति के बिना नौ साल की लंबी कैद के आधार पर शेख जावेद इकबाल नामक व्यक्ति को जमानत दी।
न्यायालय ने कहा,
“यदि कोई संवैधानिक न्यायालय पाता है कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत विचाराधीन आरोपी के अधिकार का उल्लंघन किया गया है तो उसे दंडात्मक कानून में प्रतिबंधात्मक वैधानिक प्रावधानों के आधार पर जमानत देने से नहीं रोका जा सकता। ऐसी स्थिति में इस तरह के वैधानिक प्रतिबंध आड़े नहीं आएंगे। यहां तक कि दंड विधान की व्याख्या के मामले में, चाहे वह कितना भी कठोर क्यों न हो, संवैधानिक न्यायालय को संवैधानिकता और कानून के शासन के पक्ष में झुकना होगा, जिसका स्वतंत्रता एक अभिन्न अंग है।”
न्यायालय ने इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा 03 अप्रैल, 2023 को पारित आदेश पलट दिया, जिसमें अपीलकर्ता को जमानत देने से इनकार किया गया था।
जस्टिस भुयान द्वारा लिखे गए निर्णय में संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत त्वरित सुनवाई के अधिकार पर जोर दिया गया।
न्यायालय ने कहा,
“यदि कथित अपराध गंभीर है तो अभियोजन पक्ष के लिए यह सुनिश्चित करना और भी अधिक आवश्यक है कि मुकदमा शीघ्रता से समाप्त हो। जब मुकदमा लंबा चलता है तो अभियोजन पक्ष के लिए इस आधार पर आरोपी-अंडरट्रायल की जमानत का विरोध करना उचित नहीं है कि आरोप बहुत गंभीर हैं। केवल इस आधार पर जमानत से इनकार नहीं किया जा सकता कि आरोप बहुत गंभीर हैं। हालांकि मुकदमे के समाप्त होने का कोई अंत नहीं दिखता।”
अभियोजन पक्ष के अनुसार, अपीलकर्ता शेख जावेद इकबाल को 22 फरवरी, 2015 को भारत-नेपाल सीमा के पास 26,03,500 रुपये के जाली भारतीय नोटों के साथ पकड़ा गया। आईपीसी की धारा 121ए, 489बी और 489सी के तहत एफआईआर दर्ज की गई थी। आगे की जांच में UAPA Act की धारा 16 को शामिल किया गया और अपीलकर्ता पर तदनुसार आरोप लगाए गए।
अपीलकर्ता की प्रारंभिक जमानत अर्जी को एडिशनल सेशन जज, स्पेशल जज, लखनऊ ने 24 अगस्त, 2016 को खारिज कर दिया। हाईकोर्ट के समक्ष जमानत अर्जी दायर की गई, जिसे 03 अप्रैल, 2023 को आरोपित आदेश द्वारा खारिज कर दिया गया।
हाईकोर्ट ने अपीलकर्ता के खिलाफ गंभीर आरोपों और नेपाल से होने के कारण उसके फरार होने की संभावना को जमानत खारिज करने के कारणों के रूप में उद्धृत किया। इस प्रकार अपीलकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
सुप्रीम कोर्ट ने उल्लेख किया कि अपीलकर्ता 23 फरवरी, 2015 से हिरासत में है और मुकदमा धीमी गति से आगे बढ़ रहा है, जिसमें अब तक केवल दो गवाहों की जांच की गई। न तो अभियोजन पक्ष और न ही बचाव पक्ष अदालत को मुकदमे के चरण या अभी तक जांच किए जाने वाले गवाहों की संख्या के बारे में विशिष्ट जानकारी दे सके। लंबे समय तक हिरासत में रहने और मुकदमे की धीमी गति को देखते हुए अदालत ने कहा कि मुकदमे के जल्द समाप्त होने की संभावना नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट ने UAPA में प्रतिबंधात्मक शर्तों के बजाय त्वरित सुनवाई के अधिकार को प्राथमिकता दी
UAPA Act की धारा 43डी में प्रावधान है कि UAPA Act के अध्याय IV और VI के तहत अपराधों के आरोपी व्यक्ति को सरकारी वकील को सुनवाई का अवसर दिए बिना जमानत पर रिहा नहीं किया जा सकता। इसके अतिरिक्त, यदि न्यायालय केस डायरी की समीक्षा करने के बाद आरोप को प्रथम दृष्टया सत्य पाता है तो आरोपी को रिहा नहीं किया जा सकता।
न्यायालय ने जावेद गुलाम नबी शेख बनाम महाराष्ट्र राज्य 2024 लाइव लॉ (एससी) 437 और भारत संघ बनाम केए नजीब के मामलों सहित अपने पिछले फैसलों का हवाला देते हुए आरोपों की गंभीरता और ट्रायल-पूर्व कारावास की अवधि के बीच संतुलन बनाने की आवश्यकता पर जोर दिया।
सुप्रीम कोर्ट ने इस बात पर प्रकाश डाला कि मुकदमे के निष्कर्ष के बिना लंबे समय तक हिरासत में रखना त्वरित सुनवाई के मौलिक अधिकार का उल्लंघन है।
केस टाइटल- शेख जावेद इकबाल @ अशफाक अंसारी @ जावेद अंसारी बनाम उत्तर प्रदेश राज्य