स्थायी लोक अदालत बीमा जैसे सार्वजनिक उपयोगिता सेवा विवादों का फैसला कर सकती है, जो किसी अपराध से संबंधित नहीं: झारखंड हाइकोर्ट
झारखंड हाइकोर्ट ने दोहराया कि स्थायी लोक अदालतों के पास बीमा दावों से संबंधित विवादों का निपटारा करने का अधिकार है।
इस मामले की अध्यक्षता करते हुए जस्टिस नवनीत कुमार ने जोर देकर कहा,
"स्थायी लोक अदालत को ऐसे विवाद का फैसला करने का अधिकार है, जो पक्षों के बीच सुलह समझौते से नहीं सुलझाया जा सका और विवाद किसी अपराध से संबंधित नहीं है। ऐसा अधिकार स्थायी लोक अदालत को सार्वजनिक उपयोगिता सेवाओं जैसे हवाई, सड़क या जलमार्ग से यात्री या माल की ढुलाई के लिए परिवहन सेवा, डाक, टेलीग्राफ या टेलीफोन सेवाएं, किसी प्रतिष्ठान द्वारा जनता को बिजली, प्रकाश या पानी की आपूर्ति, सार्वजनिक सफाई या स्वच्छता की व्यवस्था, अस्पताल या डिस्पेंसरी में सेवा, या बीमा सेवा आदि को तत्काल निपटाने की आवश्यकता हw, जिससे लोगों को बिना देरी के न्याय मिल सके।''
जस्टिस कुमार ने कहा,
''स्थायी लोक अदालत अपने अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करते समय या तो सुलह और निपटान की प्रक्रिया में या कानूनी सेवा प्राधिकरण अधिनियम 1987 (Legal Services Authorities Act 1987) के तहत योग्यता के आधार पर विवाद तय करने में प्राकृतिक न्याय, निष्पक्षता, निष्पक्ष खेल समानता और प्राकृतिक न्याय के अन्य सिद्धांतों के सिद्धांतों द्वारा निर्देशित होगी और नागरिक प्रक्रिया संहिता 1908 (Code of Civil Procedure 1908) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 (Indian Evidence Act 1872)से बाध्य नहीं होगी।''
यह फैसला बीमा दावा विवाद के संबंध में स्थायी लोक अदालत, साहिबगंज के फैसले को चुनौती देने वाली रिट याचिका से निकला है। याचिकाकर्ता नेशनल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड ने दावेदार-प्रतिवादी नंबर 1 के निर्णय को चुनौती दी, जिसके पति ने व्यक्तिगत दुर्घटना बीमा पॉलिसी प्राप्त की थी। प्रस्तुत तथ्यों के अनुसारदावेदार के पति की दुखद मृत्यु हो गई, जिससे दावेदार को निर्धारित समय सीमा से परे बीमा दावा दायर करने के लिए प्रेरित किया।
बीमा कंपनी ने पॉलिसी की शर्तों का हवाला देते हुए दावे को खारिज कर दिया। इसके बाद दावेदार ने साहिबगंज स्थित स्थायी लोक अदालत से मदद मांगी, जिसने उसके पक्ष में फैसला सुनाया और बीमा कंपनी को ब्याज और जुर्माना के साथ दावा राशि का भुगतान करने का निर्देश दिया।
याचिकाकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि स्थायी लोक अदालत ने बीमा कंपनी की लिखित सहमति के बिना और विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम 1987 में उल्लिखित सुलह प्रक्रियाओं का पालन किए बिना विवाद का निपटारा करके अपने अधिकार का अतिक्रमण किया।
जवाब में हाइकोर्ट ने बार काउंसिल ऑफ इंडिया बनाम यूनियन ऑफ इंडिया (2012) 8 एससीसी 243 और केनरा बैंक बनाम जी.एस. जयराम (2022) 7 एससीसी 776 सहित पूर्ववर्ती मामलों का हवाला दिया, जिसमें बीमा सेवाओं सहित सार्वजनिक उपयोगिता सेवाओं से संबंधित विवादों को सुलझाने में स्थायी लोक अदालत के अधिकार क्षेत्र की पुष्टि की गई।
न्यायालय ने कहा,
"स्थायी लोक अदालत के अधिकार क्षेत्र और शक्ति के संबंध में माननीय सुप्रीम कोर्ट की उपरोक्त टिप्पणियों से यह स्पष्ट है कि विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम 1987 के अध्याय VI-A के तहत विधिक सेवा प्राधिकरण (संशोधन अधिनियम 2002) के तहत गठित स्थायी लोक अदालत को उस विवाद का निपटारा करने का अधिकार है, जिसका समाधान पक्षकारों के बीच समझौता करके नहीं किया जा सकता और विवाद किसी अपराध से संबंधित नहीं है।"
न्यायालय ने अधिनियम की धारा 22-सी पर प्रकाश डाला, जो स्थायी लोक अदालत को उन विवादों को निपटाने का अधिकार देता है, जिनमें पक्षकारों के बीच समझौता नहीं हो पाता। न्यायालय ने कहा कि ऐसे मामलों में जहां सुलह के प्रयास विफल हो जाते हैं, स्थायी लोक अदालत को विवादों का गुण-दोष के आधार पर निपटारा करने का अधिकार है, बशर्ते कि वे किसी अपराध से संबंधित न हों।
न्यायालय ने रिट आवेदन को खारिज करते हुए कहा,
"वर्तमान मामले में यह पाया गया कि स्थायी लोक अदालत ने विवाद का निर्णय गुण-दोष के आधार पर किया है, जबकि पक्षों के बीच सुलह और समाधान विफल हो गया। इसलिए स्थायी लोक अदालत ने अपने अधिकार क्षेत्र का सही ढंग से प्रयोग किया। इस न्यायालय को स्थायी लोक अदालत द्वारा सी. केस नंबर 171/2008 में पारित दिनांक 03.08.2010 के विवादित आदेश में कोई अवैधता नहीं दिखती।"
केस टाइटल- अध्यक्ष-सह-प्रबंध निदेशक, नेशनल इंश्योरेंस कंपनी और अन्य बनाम किशा देवी और अन्य