FIR में जमानत प्राप्त आरोपी को अनुचित देरी के बाद उसी मामले में अलग अपराध के लिए दोबारा गिरफ्तार नहीं किया जा सकता: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट

जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने कहा कि अगर किसी आरोपी को पहले ही FIR में जमानत मिल चुकी है और उसे 15 साल की अवधि के बाद किसी दूसरे अपराध के लिए आरोपित और गिरफ्तार किया जाता है तो यह उसकी स्वतंत्रता का घोर हनन होगा।
निचली अदालत ने अंतिम रिपोर्ट को कानून के अनुसार नहीं बताते हुए लौटा दिया। इसने इस बात पर जोर दिया था कि मामले की जांच ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट (NDPS Act) के तहत आने वाले अपराधों के तहत शुरू हुई थी। पंद्रह साल की अवधि तक जारी रही और अब जांच के अंतिम चरण में NDPS Act की धारा 8/21 के तहत अपराध को मामले की FIR में जोड़ दिया गया।
जस्टिस मोहम्मद यूसुफ वानी की पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता-आरोपी की इस स्तर पर NDPS Act की धारा 21 के तहत गिरफ्तारी, जबकि उसे पहले ही उसी FIR में गिरफ्तार किया जा चुका है, उसके जीवन और स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार का घोर हनन होगा।
अदालत ने यह भी कहा कि याचिकाकर्ता से 100 मिली कोडीन फॉस्फेट मिश्रण की 35 बोतलों की कथित बरामदगी "छोटी मात्रा" की श्रेणी में आती है, जिससे NDPS Act के तहत आरोपों की गंभीरता कम हो जाती है। अदालत ने कहा कि FIR दर्ज करने के समय कानून की स्थिति यह है कि मिश्रण में मादक पदार्थ की वास्तविक मात्रा को यह निर्धारित करने के उद्देश्य से माना जाना चाहिए कि मात्रा वाणिज्यिक है या अन्यथा।
अदालत ने याचिकाकर्ता-आरोपी को अग्रिम जमानत देते हुए कहा कि यदि अधिकारी को 15 साल तक NDPS Act के तहत याचिकाकर्ता को गिरफ्तार करने की आवश्यकता महसूस नहीं हुई तो रिकॉर्ड पर ऐसा कुछ भी नहीं है, जिससे यह पता चले कि वह जमानत की रियायतों से बच सकता है।
अदालत ने संबंधित एसएचओ को निर्देश दिया कि NDPS Act की धारा 8/21 के तहत FIR मामले में याचिकाकर्ता-आरोपी की गिरफ्तारी की स्थिति में उसे अदालत की संतुष्टि के अनुसार 20,000/- रुपये की जमानत और व्यक्तिगत बांड प्रस्तुत करने पर हिरासत से रिहा किया जाएगा।
केस-टाइटल: मोहम्मद अब्बास माग्रे बनाम केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर, 2025, लाइवलॉ (जेकेएल)