कोई भी हिंदू यह दावा नहीं कर सकता कि वे व्यक्तिगत रूप से ऐसी सेवाएं करना चाहते हैं, जो अर्चक अकेले कर सकते हैं: केरल हाईकोर्ट

Update: 2024-02-29 06:41 GMT

केरल हाईकोर्ट ने सबरीमाला देवस्वोम और मलिकप्पुरम देवस्वोम के मेल्संथियों की नियुक्ति के लिए वर्ष 2017-18, 2021-22 के लिए त्रावणकोर देवस्वोम बोर्ड के देवस्वोम आयुक्त द्वारा जारी अधिसूचना को चुनौती देने वाली याचिकाओं का बैच खारिज कर दिया। उक्त याचिकाएं अधिसूचनाओं में दिए गए पात्रता मानदंड के खिलाफ की गई थीं, जिनमें कहा गया कि आवेदक केवल 'मलयाला ब्राह्मण' होगा।

जस्टिस अनिल के. पूजा या समारोह (अगमस) और इसे भारत के संविधान के अनुच्छेद 25 के तहत संरक्षित अभिन्न और आवश्यक धार्मिक अभ्यास माना जाता है।

कहा गया,

“जैसा कि श्री वेंकटरमण देवारू [एआईआर 1985 एससी 255] मामले में सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 25(2)(बी) द्वारा संरक्षित अधिकार पूजा के उद्देश्य से मंदिर में प्रवेश करने का अधिकार है। इससे यह निष्कर्ष नहीं निकलता कि यह अधिकार पूर्ण और असीमित है। हिंदू जनता का कोई भी सदस्य अनुच्छेद 25(2)(बी) द्वारा संरक्षित अधिकारों के हिस्से के रूप में यह दावा नहीं कर सकता कि किसी मंदिर को दिन और रात के सभी घंटों में पूजा के लिए खुला रखा जाना चाहिए या उसे व्यक्तिगत रूप से उन सेवाओं को करना चाहिए, जो कि अर्चक अकेले ही प्रदर्शन कर सकते हैं।''

मामले की पृष्ठभूमि

याचिकाकर्ताओं का आरोप है कि मलयाला ब्राह्मण के पास कोई विशेष विशेषाधिकार नहीं है और ऐसे प्रतिबंध मनमाने और अवैध हैं। साथ ही भारत के संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 16 और 17 का उल्लंघन हैं।

अदित्यन बनाम त्रावणकोर देवासम बोर्ड (2002) पर भरोसा करते हुए यह तर्क दिया गया कि नियुक्ति जाति या वंशावली या किसी अन्य मानदंड के आधार पर नहीं होनी चाहिए।

सेशम्मल बनाम तमिलनाडु राज्य (1972) पर भरोसा करते हुए यह प्रस्तुत किया गया कि ऐसा कोई कानून नहीं है, जो यह कहता हो कि ऐसी नियुक्तियां वंशानुगत उत्तराधिकार के उपयोग द्वारा शासित होंगी। उनका मानना है कि जब तक लोग पूरी तरह से पारंगत हैं, योग्य पूजा करते हैं, कर्तव्यों, मंत्रों, तंत्रों, आवश्यक वेदों में प्रशिक्षित है, चाहे उनकी जाति कुछ भी हो, अनुच्छेद 25 और 26 के तहत धर्म की स्वतंत्रता का कोई उल्लंघन नहीं है।

दूसरी ओर, त्रावणकोर देवस्वओम बोर्ड और देवस्वोम आयुक्त ने प्रस्तुत किया कि चयन प्रक्रिया विभिन्न निर्णयों में सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के निर्देशों के अनुसार आयोजित की गई। उन्होंने कहा कि मेलसैंथीज़ की नियुक्ति जाति-आधारित चयन या सार्वजनिक रोजगार का मामला नहीं है, बल्कि प्राचीन काल से धार्मिक प्रथा है। इस प्रकार भेदभाव का आरोप नहीं लगाया जा सकता। इसमें कहा गया कि यह धार्मिक अभ्यास का मामला है, केरल देवास्वोम भर्ती बोर्ड अधिनियम, 2015 और उसके तहत बनाए गए नियम लागू नहीं होंगे और मंदिर के तंत्री की राय अंतिम और बाध्यकारी है।

केस टाइटल: विष्णुनारायणन बनाम सचिव और संबंधित मामले

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