बिजली के झटके से मौत | दावेदारों द्वारा समय-सीमा अवधि के बाद दावा करने मात्र से मुआवजा देने से इनकार नहीं किया जा सकता: छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट

Update: 2024-02-12 09:33 GMT

 Chhattisgarh High Court

छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने माना कि बिजली के झटके से मरने वाले व्यक्ति के दावेदारों को केवल इसलिए मुआवजे से वंचित नहीं किया जा सकता, क्योंकि उन्होंने समय-सीमा अवधि समाप्त होने के बाद दावा याचिका दायर की, खासकर तब जब बिजली विभाग की ओर से लापरवाही स्पष्ट हो।

जस्टिस गौतम भादुड़ी और जस्टिस राधाकिशन अग्रवाल की खंडपीठ ने विभाग की जिम्मेदारी तय करते हुए कहा-

“जब ऐसी मौत बिजली के झटके के कारण हुई और पीडब्लू-1 रामेश्वरी और पीडब्लू-2 परमेश्वर के बयान से पता चलेगा कि मृतक बिजली के तार के संपर्क में आया और उसे करंट लग गया। किसी अन्य सबूत के अभाव में, वही स्वीकार्य होगा, जिससे सख्त दायित्व की उपमा दी जाएगी।”

न्यायालय की टिप्पणियां

2019 में मुकदमा दायर किया गया तो छह में से चार दावेदार नाबालिग थे। इस प्रकार, यह माना गया कि जब दावा याचिका दायर करने की तारीख पर अधिकांश दावेदार नाबालिग थे तो यह 'कार्रवाई के निरंतर कारण' का मामला होगा।

कोर्ट ने यह जोड़ा,

"कार्रवाई का कारण आम तौर पर तब उत्पन्न होता है, जब अस्तित्व में व्यक्ति होता है, जो मुकदमा कर सकता है। दूसरा, जिस पर मुकदमा चलाया जा सकता है और वर्तमान मामले में जब नोटिस वर्ष में भेजा गया तो मुकदमा करने का अधिकार केवल वादी के पक्ष में जमा हुआ है। इसलिए वर्तमान मामला समय-सीमा से बाधित नहीं है।”

न्यायालय ने यह भी देखा कि मौजूदा मामले में नाबालिग दावेदारों ने प्रतिवादी को नोटिस की सेवा के बाद मामला दायर किया। इसलिए अधिक से अधिक यह कहा जा सकता है कि कार्रवाई का कारण तब शुरू हुआ, जब पहला नोटिस 12.01.2019 को दिया गया। मुकदमा 25.9.2019 को दायर किया गया, इसे समय-सीमा से बाधित नहीं माना जा सकता।

इसके बाद बेंच ने गवाहों द्वारा पेश किए गए सबूतों पर गौर किया, जिनमें से दो ने लगातार कहा कि मृतक बिजली के तार के संपर्क में आ गया, जिससे उसकी मौत हो गई। इस आशय के सभी सुझावों से इनकार किया कि उसकी मौत खुद की लापरवाही के कारण हुई थी।

कोर्ट ने यह भी कहा कि बिजली विभाग ने घटना के पांच साल बाद 04.11.2019 को पंचनामा तैयार किया, जिसमें बताया गया कि मृतक की मृत्यु तब हुई, जब वह बिजली के खंभे पर चढ़कर डीओ लगाने की कोशिश कर रहा था। खंडपीठ इस बात से आश्चर्यचकित है कि मृतक की मृत्यु के पांच साल बाद विभाग को ऐसा पंचनामा तैयार करने की क्या जरूरत पड़ी।

गवाहों द्वारा दिए गए बयानों पर भरोसा करने के बाद न्यायालय का विचार था कि इसके विपरीत किसी भी सबूत के अभाव में गवाहों का संस्करण स्वीकार्य होगा। इससे दोषी विभाग के खिलाफ सख्त दायित्व तय किया जाएगा।

बिजली विभाग द्वारा अपने दायित्व के खिलाफ किए गए बचाव को खारिज करते हुए न्यायालय ने छत्तीसगढ़ राज्य विद्युत वितरण कंपनी लिमिटेड और अन्य बनाम भगवती बाई और इसी तरह म. प्र. विद्युत बोर्ड बनाम शैल कुमारी एवं अन्य मामले में हाईकोर्ट के फैसले पर भरोसा किया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट द्वारा की गई टिप्पणियों पर भरोसा किया।

तदनुसार, उपरोक्त उदाहरणों को ध्यान में रखते हुए न्यायालय ने मृतक की मृत्यु के लिए विभाग को सख्ती से उत्तरदायी ठहराया। नतीजतन, इसने दावेदारों के पक्ष में 10,78,000/- रुपये की मुआवजा राशि का आदेश दिया।

केस टाइटल: रामेश्वरी और अन्य बनाम कनिष्ठ/सहायक अभियंता, छत्तीसगढ़ राज्य विद्युत मंडल कार्यालय, बलौदाबाजार एवं अन्य।

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