जस्टिस सीटी रविकुमारः एक बेंच क्लर्क का बेटा जिसने सुप्रीम कोर्ट के जज के पद तक का सफर तय किया

Update: 2021-08-27 15:15 GMT

न्यायमूर्ति सीटी रविकुमार, जिन्हें केरल हाईकोर्ट से सर्वोच्च न्यायालय में पदोन्नत किया गया है, वह सादगीपूर्ण जीवन से संबंध रखते हैं।

केरल हाईकोर्ट द्वारा आयोजित एक विदाई समारोह में, न्यायमूर्ति रविकुमार ने अपने पिता को याद किया, जो एक न्यायिक प्रथम श्रेणी मजिस्ट्रेट कोर्ट में एक बेंच क्लर्क थे। अपने दिवंगत माता-पिता के बारे में बात करते हुए वह अश्रुपूर्ण हो गए। उन्होंने भावनाओं से भरे हुए कांपते हुए स्वर में कहा कि ''उनके स्वर्गीय निवास से मिल रहे आशीर्वाद ने इस पोजिशन तक पहुंचने में मदद की है।''

न्यायमूर्ति रविकुमार ने अपने विदाई भाषण में बार के कनिष्ठ सदस्यों को सलाह देने के रूप में कहा कि,''इस पेशे में कोई शार्ट कट नहीं है,परंतु यह रोमांचक, सटीक और एक ही समय में पदोन्नति की पेशकश करता है।''

न्यायमूर्ति रविकुमार को 2009 में हाईकोर्ट के न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया गया था। उन्होंने 1986 में मवेलिककारा में प्रैक्टिस शुरू की थी। बाद में, वह पूर्व महाधिवक्ता वरिष्ठ अधिवक्ता एम के दामोदरन, बार के एक प्रमुख के चैंबर में शामिल हो गए। उन्होंने एक सरकारी वकील के रूप में भी काम किया है।

कानूनी सर्कल में ''सीटीआर'' के रूप में बुलाए जाने वाले, हाईकोर्ट के दूसरे वरिष्ठ न्यायाधीश, न्यायमूर्ति रविकुमार ने सभी प्रमुख क्षेत्राधिकार को संभाला है - रिट याचिकाएं, सेवा विवाद, आपराधिक मामले, सिविल अपील, मोटर दुर्घटना मुआवजा, फैमिली कानून, प्रीवेंटिव डिटेंशन, देवासवोम मुद्दे आदि। बार के सदस्य इस बात से सहमत होते हैं कि न्यायमूर्ति रविकुमार को पूर्व निर्णयों और वैधानिक प्रावधानों की दृढ़ समझ है, और उन्हें कानून के मुद्दों पर शायद ही कभी गुमराह किया जा सकता है।

2014 में, न्यायमूर्ति रविकुमार ने तब सुर्खियां बटोरीं जब उन्होंने बार लाइसेंस से संबंधित याचिकाओं के एक बैच की सुनवाई करने से यह कहते हुए इनकार कर दिया कि मामले से जुड़े एक वकील ने उन्हें प्रभावित करने की कोशिश की है।

न्यायमूर्ति रविकुमार द्वारा दिए गए एक उल्लेखनीय निर्णय में कहा गया है कि राज्य सड़क दुर्घटनाओं के लिए उत्तरदायी है क्योंकि वह सड़क कर वसूलता है। पिछले साल, उनके नेतृत्व वाली पीठ ने एकल पीठ के उस निर्देश को बरकरार रखा था,जिसमें राजनीतिक रूप से संवेदनशील ''पेरिया दोहरे हत्याकांड'' मामले की जांच सीबीआई को सौंपी गई थी। उनके नेतृत्व वाली एक खंडपीठ ने राज्य सरकार को सबरीमाला तीर्थयात्रा के लिए तीर्थयात्रियों की दैनिक सीमा बढ़ाने का निर्देश देते हुए कहा था कि सरकार द्वारा लगाए गए प्रतिबंध मनमाने हैं। वह उस फुल बेंच में भी शामिल रहे हैं,जिसने निर्देश दिया था कि पुलिस को लॉकडाउन के दौरान अनावश्यक गिरफ्तारी से बचना चाहिए।

न्यायमूर्ति रविकुमार ने एसएनसी लवलिन मामले में एक आरोपी के खिलाफ चल रहे मुकदमे को अलग चलाने की अनुमति देते हुए त्वरित सुनवाई के महत्व पर प्रकाश डाला है। अपने फैसले में आपराधिक मुकदमे की जटिल प्रक्रियाओं के बारे में टिप्पणी करते हुए उन्होंने कहा है कि ''कानून लंबा है लेकिन जीवन छोटा है।''

न्यायमूर्ति रविकुमार ने उक्त मामले (सिद्धार्थ मेनन पी बनाम डिप्टी एसपी चेन्नई) में अवलोकन किया कि,''जीवन के अधिकार का अर्थ है पूर्ण मानवीय गरिमा के साथ, बिना किसी अपमान और अभाव या किसी भी प्रकार की गिरावट के साथ जीने का अधिकार। इसमें कोई संदेह नहीं है कि 'आरोपी' का टैग किसी व्यक्ति को पूर्ण मानवीय गरिमा के साथ जीने के अधिकार से वंचित करेगा। त्वरित सुनवाई का अधिकार भी एक मानव अधिकार है और कोई भी सभ्य समाज आरोपी को इससे वंचित नहीं कर सकता है। इसके अलावा, यह हमेशा समाज की चिंता होनी चाहिए कि एक असली अपराधी को जल्द से जल्द सजा दी जाए और आरोपी को अपने चारों ओर घिरे संदेह के बादल को साफ करने और 'आरोपी' का टैग हटाने का एक प्रारंभिक अवसर मिले। सामाजिक हित पर आधारित उक्त उद्देश्य को प्राप्त नहीं किया जा सकता है यदि मुकदमे में अनावश्यक रूप से देरी हो क्योंकि मुकदमा ही अभियुक्त के दोष या निर्दोषता को तय करने का एकमात्र उपकरण है... कोई भी इस पोजिशन पर विवाद नहीं कर सकता है कि न्यायालयों का यह कर्तव्य है कि आपराधिक मामलों को उचित गति से आगे बढ़ाएं।''

कुछ अन्य उल्लेखनीय निर्णयः

अतिरिक्त जिला न्यायाधीश,मध्यस्थता और सुलह अधिनियम की धारा 34 के तहत अपील सुनने के लिए सक्षम है। 

सीपीसी के नियम 8 के आदेश 1 के तहत प्रक्रिया अपीलीय स्तर पर अनिवार्य नहीं है। यह परस्पर विरोधी निर्णयों को देखते हुए एक संदर्भ का उत्तर देते हुए माना गया था। 

गैर-वंशानुगत मंदिर ट्रस्टी के पद पर बने रहने के लिए राजनीतिक झुकाव बाधक नहींः इस फैसले में, न्यायमूर्ति रविकुमार ने कहा कि शायद ही कोई केरल में अराजनैतिक होगा क्योंकि यह राजनीतिक रूप से संवेदनशील राज्य है।

विलंब अनुशासनात्मक कार्यवाही को रद्द करने का एकमात्र आधार नहीं है ।

पीएससी अपनी आधिकारिक वेबसाइट की तकनीकी गड़बड़ियों के कारण अपूर्ण आवेदनों को अस्वीकार नहीं कर सकता है ।

शुक्रवार के विदाई समोराह में, महाधिवक्ता के गोपालकृष्ण कुरुप ने कहा कि न्यायमूर्ति रविकुमार द्वारा दिए गए निर्णय ''कानून के शासन में उनके पूर्ण विश्वास और कम विशेषाधिकार प्राप्त लोगों के लिए करुणा के प्रमाण हैं।''

केरल हाई कोर्ट एडवोकेट्स एसोसिएशन के अध्यक्ष एडवोकेट थॉमस अब्राहम ने केरल लीगल सर्विसेज अथॉरिटी में जस्टिस रविकुमार द्वारा पेश किए गए नेतृत्व की सराहना की।

मुख्य न्यायाधीश एस मणिकुमार ने कहा कि न्यायमूर्ति रविकुमार ने कई ऐतिहासिक निर्णय दिए हैं जो कानून की किसी भी शाखा तक सीमित नहीं हैं। मुख्य न्यायाधीश ने कहा, ''जस्टिस रविकुमार केरल हाईकोर्ट के 5वें न्यायाधीश हैं जिन्हें हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश का पद ग्रहण किए बिना सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत किया गया है।''

मुख्य न्यायाधीश ने केरल न्यायिक अकादमी के अध्यक्ष, केरल राज्य मध्यस्थता और सुलह केंद्र के अध्यक्ष और केरल राज्य कानूनी सेवा प्राधिकरण के कार्यकारी अध्यक्ष के रूप में न्यायमूर्ति रविकुमार द्वारा किए गए प्रयासों की भी सराहना की।

मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि,''भाई न्यायमूर्ति रविकुमार की विभिन्न क्षमताओं के प्रयासों का विश्लेषण करते हुए, मुझे यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि उनके पास संस्थानों के भविष्य को देखने की क्षमता है। उनके कार्यकाल के दौरान, न्याय तक पहुंच सुनिश्चित करने के लिए समितियां गरीबों और कमजोर तबके तक पहुंच गई।''

सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस रविकुमार का कार्यकाल 6 जनवरी 2025 तक रहेगा।

(हन्ना मैरी वर्गीज से इनपुट्स के साथ)

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