सुप्रीम कोर्ट वीकली राउंड अप : सुप्रीम कोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र
Shahadat
18 Aug 2024 12:00 PM IST
सुप्रीम कोर्ट में पिछले सप्ताह (12 जुलाई, 2024 से 16 अगस्त, 2024 तक) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं सुप्रीम कोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह सुप्रीम कोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।
पहली SLP बिना किसी कारण के खारिज कर दी गई या वापस ले ली गई हो तो दूसरी SLP दायर नहीं की जा सकती: सुप्रीम कोर्ट
जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा की सुप्रीम कोर्ट की खंडपीठ ने अपने प्रथम दृष्टया दृष्टिकोण को दोहराया कि ऐसे मामलों में जहां विशेष अनुमति याचिका (एसएलपी) को बिना किसी कारण के या वापस लिए जाने के माध्यम से खारिज कर दिया गया हो, वहां नई एसएलपी दायर करने का उपाय मौजूद नहीं है।
खंडपीठ ने मेसर्स उपाध्याय एंड कंपनी बनाम उत्तर प्रदेश राज्य के मामले का हवाला देते हुए एस नरहरि और अन्य बनाम एसआर कुमार और अन्य में सुप्रीम कोर्ट की खंडपीठ द्वारा लिए गए विचारों से अपनी असहमति दोहराई। खंडपीठ ने कहा कि इस मामले ने स्पष्ट रूप से स्थापित किया कि सीपीसी के आदेश 23 नियम 1 के तहत सिद्धांत, जो मुकदमों की वापसी को नियंत्रित करते हैं, सुप्रीम कोर्ट के समक्ष दायर एसएलपी पर भी लागू होते हैं।
केस टाइटल: एनएफ रेलवे वेंडिंग एंड कैटरिंग कॉन्ट्रैक्टर्स एसोसिएशन लुमडिंग डिवीजन बनाम यूनियन ऑफ इंडिया और अन्य।
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किशोर को बिना यह दर्ज किए जमानत देने से इनकार नहीं किया जा सकता कि धारा 12(1) JJ Act के प्रावधान लागू होते हैं: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार (14 अगस्त) को किशोर को जमानत दे दी, जो एक साल से अधिक समय से हिरासत में था। कोर्ट ने यह देखते हुए जमानत दी कि किशोर न्याय बोर्ड (JJB) ट्रायल कोर्ट और राजस्थान हाईकोर्ट विशिष्ट निष्कर्ष दर्ज करने में विफल रहे कि धारा 12(1) किशोर न्याय अधिनियम (JJ Act) के प्रावधान मामले पर लागू होते हैं।
JJ Act की धारा 12(1) के अनुसार कानून का उल्लंघन करने वाले किशोर को जमानत पर रिहा किया जाना चाहिए, चाहे वह जमानतदार हो या उसके बिना। इस धारा के प्रावधान के अनुसार, ऐसे व्यक्ति को रिहा नहीं किया जाएगा यदि यह मानने के लिए उचित आधार हैं कि रिहाई से किशोर ज्ञात अपराधियों के साथ जुड़ जाएगा। किशोर को नैतिक, शारीरिक या मनोवैज्ञानिक खतरे में डाल देगा, या न्याय के उद्देश्यों को विफल कर देगा।
केस टाइटल- कानून के साथ संघर्षरत किशोर बनाम राजस्थान राज्य एवं अन्य।
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S. 138 NI Act | एक बार चेक का निष्पादन स्वीकार कर लिया जाए तो ऋण की ब्याज दर के बारे में विवाद बचाव का विषय नहीं रह जाता: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने माना कि एक बार जब कोई व्यक्ति हस्ताक्षरित चेक सौंपने की बात स्वीकार कर लेता है, जिस पर राशि लिखी होती है, तो वह परक्राम्य लिखत अधिनियम, 1881 (NI Act) की धारा 138 के तहत चेक के अनादर के अपराध के लिए अभियोजन पक्ष में बचाव के रूप में ब्याज दर के बारे में विवाद नहीं उठा सकता।
इस मामले में प्रतिवादी ने बकाया राशि के लिए चिट फंड कंपनी के पक्ष में 19 लाख रुपये की राशि का चेक निष्पादित किया था। जब चेक प्रस्तुत किया गया तो यह "अकाउंट बंद" के समर्थन के साथ वापस आ गया। प्रतिवादी को धारा 138 NI Act के तहत अपराध के लिए ट्रायल कोर्ट द्वारा दोषी ठहराया गया। हालांकि, अपीलीय अदालत ने उसे बरी कर दिया, जिसे हाईकोर्ट ने भी पुष्टि की। इसलिए चिट कंपनी ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की।
केस टाइटल: सुजीज बेनिफिट फंड्स लिमिटेड बनाम एम. जगनाथन, आपराधिक अपील नंबर 3369/2024
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भारतीय कानून का उल्लंघन करने वाला विदेशी निर्णय भारतीय न्यायालयों पर बाध्यकारी नहीं : सुप्रीम कोर्ट
हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि भारतीय कानून के विरुद्ध जाने वाला विदेशी निर्णय संबंधित पक्षों के बीच निर्णायक नहीं है तथा भारतीय न्यायालयों पर बाध्यकारी नहीं है।
जस्टिस सूर्यकांत तथा जस्टिस उज्जल भुइयां की खंडपीठ गुजरात हाईकोर्ट के उस आदेश के विरुद्ध एक चुनौती पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें अमेरिकी न्यायालय के आदेश के आधार पर नाबालिग बेटी को वापस भेजने की मांग करने वाली याचिकाकर्ता की बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका खारिज कर दी गई थी।
केस टाइटल: विशेष अपील अनुमति (सीआरएल) नंबर 1722/2024
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Railway Accident| दावेदार घटना की तिथि के बाद निर्धारित उच्च मुआवजे का लाभ पाने का हकदार: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया कि रेलवे दुर्घटना मुआवजा दावेदारों में यदि दावा किया गया मुआवजा निर्णय की तिथि पर निर्धारित मुआवजे से कम है, तो वे उच्च राशि के हकदार हैं। दावेदारों ने रेलवे दुर्घटना (मुआवजा) नियम 1990 की अनुसूची I के अनुसार घटना की तिथि (वर्ष 2003) पर लागू 4 लाख रुपये मुआवजे का दावा किया। हालांकि, रेलवे ने 2016 में मुआवजे को बढ़ाकर 8 लाख रुपये कर दिया।
केस टाइटल: डोली रानी साहा बनाम भारत संघ, सिविल अपील संख्या 8605/2024
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BREAKING| राज्य खनिज अधिकारों पर पिछले कर बकाया की वसूली कर सकते हैं: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने इस तर्क को खारिज कर दिया कि 25 जुलाई को दिए गए उसके फैसले में खनिज अधिकारों और खनिज युक्त भूमि पर कर लगाने की राज्यों की शक्तियों को बरकरार रखा गया था, लेकिन इसे फैसले की तारीख से ही संभावित प्रभाव दिया जाना चाहिए।
इसका मतलब यह है कि कोर्ट ने मिनरल एरिया डेवलपमेंट अथॉरिटी बनाम मेसर्स स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया एंड ऑर्स के फैसले के आधार पर राज्यों को पिछली अवधि के लिए कर बकाया वसूलने की अनुमति दी है।
केस टाइटल: मिनरल एरिया डेवलपमेंट अथॉरिटी बनाम मेसर्स स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया एवं अन्य (सीए नं. 4056/1999)
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जमानत नियम है, जेल अपवाद, यहां तक कि UAPA जैसे विशेष कानूनों में भी: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जमानत नियम है, जेल अपवाद' यहां तक कि गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम 1967 (UAPA Act) जैसे विशेष कानूनों में भी। जस्टिस अभय ओक और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की खंडपीठ ने प्रतिबंधित संगठन पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) के कथित सदस्यों को कथित तौर पर PFI प्रशिक्षण सत्र आयोजित करने के लिए अपनी संपत्ति किराए पर देने के आरोपी व्यक्ति को जमानत दी।
कोर्ट ने कहा, “जब जमानत देने का मामला हो तो अदालत को जमानत देने में संकोच नहीं करना चाहिए। अभियोजन पक्ष के आरोप बहुत गंभीर हो सकते हैं, लेकिन न्यायालय का कर्तव्य है कि वह कानून के अनुसार जमानत के मामले पर विचार करे। अब हमने कहा कि जमानत नियम है और जेल अपवाद, यह विशेष क़ानूनों पर भी लागू होता है।
केस टाइटल - जलालुद्दीन खान बनाम भारत संघ
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आरोपी को केवल विदेशी होने के आधार पर जमानत देने से मना नहीं किया जा सकता: सुप्रीम कोर्ट
हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट द्वारा जमानत देने से मना किए गए विदेशी नागरिक की जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने इस दृष्टिकोण पर आपत्ति व्यक्त की कि किसी आरोपी को केवल इसलिए जमानत देने से मना किया जा सकता है, क्योंकि वह एक विदेशी नागरिक है।
जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस आर महादेवन की पीठ ने विवादित फैसले में हस्तक्षेप करने से इनकार किया। हालांकि हाईकोर्ट के तर्क को गलत बताया।
केस टाइटल: ओनीका सैमुअल बनाम हिमाचल प्रदेश राज्य, डायरी नंबर 26692-2024
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Article 226 | विभागीय जांच में पेश किए गए साक्ष्यों का हाईकोर्ट को पुनर्मूल्यांकन नहीं करना चाहिए : सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान हाईकोर्ट के एकल न्यायाधीश के फैसले को इस आधार पर खारिज की कि विभागीय जांच निष्पक्ष और उचित तरीके से किए जाने के बावजूद न्यायालय ने साक्ष्यों का पुनर्मूल्यांकन किया।
जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की खंडपीठ ने कहा, "एकल न्यायाधीश ने माना कि जांच में दिए गए निष्कर्ष साक्ष्य रहित और रिकॉर्ड के विपरीत है। चूंकि उसी के आधार पर निष्कासन आदेश तर्कपूर्ण नहीं है, इसलिए उसे खारिज कर दिया गया। एकल न्यायाधीश द्वारा अपनाई गई इस कार्यवाही की पुष्टि खंडपीठ ने की है।"
केस टाइटल: राजस्थान राज्य और अन्य बनाम भूपेंद्र सिंह, सिविल अपील नंबर 8546-8549/2024
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विशिष्ट निष्पादन वाद की सीमा अवधि निष्पादन की तिथि से शुरू होगी, न कि अनुबंध की वैधता की समाप्ति से: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने माना कि विशिष्ट निष्पादन वाद की सीमा अवधि निष्पादन के लिए निर्धारित तिथि से शुरू होगी, न कि अनुबंध की वैधता की समाप्ति से।
हाईकोर्ट और अपीलीय न्यायालय के सहमत निष्कर्षों को दरकिनार करते हुए जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस प्रसन्ना बी वराले की खंडपीठ ने कहा: “प्रथम अपीलीय न्यायालय और हाईकोर्ट ने इस बात पर विचार किया कि समझौते में आगे यह दर्ज किया गया कि यह समझौता आज की तिथि यानी बिक्री के लिए अनुबंध के निष्पादन की तिथि से पांच वर्ष की अवधि के लिए वैध रहेगा। हमारी सुविचारित राय में इस खंड पर भरोसा करना पूरी तरह से अप्रासंगिक है। निष्पादन एक महीने के भीतर होना था। अनुबंध की वैधता कुछ अलग है और निष्पादन की तिथि को नहीं बदलती है। पांच साल के लिए समझौते को वैध करने के इस खंड को शामिल करने का क्या कारण था, यह समझौते में स्पष्ट नहीं है, लेकिन किसी भी मामले में यह प्रदर्शन के लिए निर्धारित तिथि को नहीं बदलता है।''
केस टाइटल: उषा देवी और अन्य बनाम राम कुमार सिंह और अन्य, सिविल अपील नंबर 2024 में से 8446
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जमानत के अधिकार को PMLA की धारा 45 में पढ़ा जाना चाहिए, जब आरोपी ने हिरासत में लंबा समय बिताया हो और मुकदमे में देरी हुई हो : सुप्रीम कोर्ट
शराब नीति मामले के संबंध में दिल्ली के पूर्व उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया की जमानत याचिका स्वीकार करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में टिप्पणी की कि ऐसे मामलों में जहां मुकदमे में देरी हुई है और आरोपी ने हिरासत में लंबा समय बिताया है, जमानत के अधिकार को सीआरपीसी की धारा 439 और धन शोधन निवारण अधिनियम (PMLA Act) की धारा 45 में पढ़ा जाना चाहिए। हालांकि यह आरोपों की प्रकृति पर भी निर्भर करेगा।
जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस केवी विश्वनाथन की खंडपीठ ने कहा, "लंबे समय तक कारावास के साथ देरी के मामले में और आरोपों की प्रकृति के आधार पर जमानत के अधिकार को PMLA Act की धारा 45 में पढ़ा जाना चाहिए।"
केस टाइटल:
[1] मनीष सिसोदिया बनाम प्रवर्तन निदेशालय, एसएलपी (सीआरएल) संख्या 8781/2024;
[2] मनीष सिसोदिया बनाम केंद्रीय जांच ब्यूरो, एसएलपी (सीआरएल) संख्या 8772/2024