हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

Shahadat

19 Oct 2025 10:00 AM IST

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    देश के विभिन्न हाईकोर्ट में पिछले सप्ताह (13 अक्टूबर, 2025 से 17 अक्टूबर, 2025) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं हाईकोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह हाईकोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।

    आपराधिक मामले के लंबित रहने से विभागीय कार्यवाही स्वतः जारी रहने या समाप्त होने पर रोक नहीं लगती: छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट

    चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस बिभु दत्ता गुरु की छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट की खंडपीठ ने कहा कि किसी आपराधिक मामले के लंबित रहने से विभागीय कार्यवाही स्वतः जारी रहने या समाप्त होने पर रोक नहीं लगती। इसके अलावा, आपराधिक मुकदमे के लंबित रहने तक अनुशासनात्मक कार्यवाही पर रोक केवल एक उचित अवधि के लिए ही होनी चाहिए। साथ ही किसी कर्मचारी द्वारा आपराधिक मुकदमे की लंबी अवधि का उपयोग विभागीय कार्यवाही को अनिश्चित काल के लिए विलंबित करने के लिए नहीं किया जा सकता।

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    वेतन संशोधन योजना को अपनाने से नियोक्ता स्वतः ही उसकी पूर्वव्यापी तिथि से आबद्ध नहीं हो जाता: कलकत्ता हाईकोर्ट

    कलकत्ता हाईकोर्ट की जस्टिस देबांगसु बसाक और जस्टिस मोहम्मद शब्बर रशीदी की खंडपीठ ने माना कि सहकारी समिति का अगस्त, 2014 से बिना बकाया के ROPA 2009 को लागू करने का निर्णय वैध है, और वह 1 जनवरी, 2006 से लाभ प्रदान करने के लिए बाध्य नहीं है।

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    'सामाजिक दबाव में स्वतंत्रता पर अंकुश नहीं लगाया जा सकता': इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अंतरधार्मिक जोड़े को रिहा किया

    पुलिस द्वारा अंतरधार्मिक जोड़े को हिरासत में लिए जाने को 'अवैध' और "संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन" बताते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक अंतरधार्मिक जोड़े (मुस्लिम पुरुष और हिंदू महिला) को रिहा कर दिया, जो इस सप्ताह की शुरुआत में अदालती सुनवाई में शामिल होने के बाद लापता हो गए थे और पुलिस द्वारा हिरासत में लिए गए थे।

    जस्टिस सलिल कुमार राय और जस्टिस दिवेश चंद्र सामंत की खंडपीठ ने अधिकारियों को अलीगढ़ तक सुरक्षित पहुँच सुनिश्चित करने और जोड़े की निरंतर सुरक्षा सुनिश्चित करने का निर्देश दिया। बता दें, उक्त खंडपीठ ने ने व्यक्ति के भाई द्वारा दायर बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर सुनवाई के लिए एक गैर-कार्य दिवस पर विशेष बैठक बुलाई थी।

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    पति के बेदखल किए जाने के बावजूद पत्नी को साझा घर में रहने का अधिकार: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने घरेलू हिंसा अधिनियम (DV Act) के तहत महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए यह दोहराया कि एक पत्नी शादी के तुरंत बाद जिस घर में रहने लगती है, वह 'साझा घर' माना जाएगा और उसे उस घर में रहने का अधिकार है। भले ही बाद में उसके पति को उसके माता-पिता द्वारा संपत्ति से बेदखल कर दिया गया हो।

    जस्टिस संजीव नरूला की एकल पीठ ने सास-ससुर और बहू के बीच एक संपत्ति विवाद पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि विवाह के बाद पति और ससुराल वालों के साथ रहने से ही वह निवास स्थान 'घरेलू संबंध' के तहत आ जाता है। उसे साझा घर का दर्जा मिल जाता है।

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    HP Excise Act | अवैध शराब रखने परलाइसेंस निलंबन जुर्माना अदा करने के बाद हटाया जा सकता है: हाईकोर्ट

    हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने कहा कि आबकारी अधिनियम की धारा 66(2) के तहत यदि लाइसेंस शर्तों के उल्लंघन या शुल्क का भुगतान न करने पर लाइसेंस रद्द या निलंबित किया जाता है तो जुर्माना अदा करने के बाद निलंबन को बाद में रद्द किया जा सकता है।

    जस्टिस विवेक सिंह ठाकुर और जस्टिस सुशील कुकरेजा की खंडपीठ ने टिप्पणी की: "...धारा 29 के खंड (क), (ख) या (ग) के तहत लाइसेंस रद्द या निलंबित किए जाने की स्थिति में ऐसा रद्दीकरण या निलंबन जुर्माना अदा करने के बाद रद्द या छोड़ा जा सकता है... इसलिए निलंबन... समझौता योग्य था... और लगाया गया जुर्माना... अत्यधिक अनुपातहीन है।"

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    धोखाधड़ी से मिला कोयला ब्लॉक आवंटन मनी लॉन्ड्रिंग से जुड़ी 'संपत्ति' माना जा सकता है: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि धोखाधड़ी या भ्रामक जानकारी देकर प्राप्त किया गया कोयला ब्लॉक आवंटन, जिससे अपराध से प्राप्त आय (proceeds of crime) उत्पन्न होती है, धनशोधन निवारण अधिनियम (PMLA) के तहत मनी लॉन्ड्रिंग का अपराध बनता है। जस्टिस अनिल क्षेत्रपाल और जस्टिस हरीश वैद्यनाथन शंकर की खंडपीठ ने कहा कि कोयले के खनन और बिक्री से हुई कमाई या उससे प्राप्त वित्तीय लाभों का उपयोग करके संपत्ति अर्जित करना 'अपराध से प्राप्त आय' के अंतर्गत आता है।

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    सेशन कोर्ट केवल पुनर्विचार याचिका दायर करने के लिए अभियुक्त की सज़ा निलंबित नहीं कर सकता: गुजरात हाईकोर्ट

    गुजरात हाईकोर्ट ने कहा कि CrPC/BNSS में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है, जो प्रथम अपीलीय कोर्ट को किसी अभियुक्त की सज़ा निलंबित करने या उसे केवल इस आधार पर रिहा करने का अधिकार देता हो कि वह हाईकोर्ट में दोषसिद्धि को चुनौती देने के लिए पुनर्विचार याचिका दायर कर सके। अदालत ने कहा कि विधायिका का इरादा अपीलीय कोर्ट को सज़ा स्थगित करने या निलंबित करने या अभियुक्त को आत्मसमर्पण करने के लिए दी गई समय सीमा बढ़ाने का अधिकार देने का नहीं है ताकि वह पुनरीक्षण याचिका दायर कर सके।

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    आरोपी का केवल मृतका को परेशान करना आत्महत्या के लिए उकसाने का मामला साबित करने के लिए पर्याप्त नहीं: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट

    पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने कहा कि आरोपी के खिलाफ केवल उत्पीड़न का आरोप भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 306 के तहत आत्महत्या के लिए उकसाने के अपराध को साबित करने के लिए पर्याप्त नहीं है। अदालत ने मृतका की सास को बरी कर दिया, जिसे आत्महत्या के लिए उकसाने के आरोप में दोषी ठहराया गया। आरोप लगाया गया कि सास और ननद दहेज के अभाव और बच्चे न होने के कारण उसे परेशान कर रही थीं और ट्रायल कोर्ट ने उसे IPC की धारा 306 के तहत दोषी ठहराया था।

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    मोटर एक्सीडेंट ट्रिब्यूनल मृतक के साथी को मुआवजा दे सकता है: एमपी हाईकोर्ट

    मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने यह कहा है कि मोटर एक्सीडेंट क्लेम्स ट्रिब्यूनल (Motor Accident Claims Tribunal) ऐसे सहवासिता (cohabitant) को मुआवजा प्रदान कर सकता है जो मृतक के साथ पति-पत्नी की तरह जीवन व्यतीत करता था, बशर्ते कि दावा करने वाला यह साबित कर सके कि उनका संबंध दीर्घकालिक, स्थिर और विवाह जैसी प्रकृति का था और वह आर्थिक रूप से मृतक पर निर्भर था, भले ही उनका विवाह औपचारिक रूप से नहीं हुआ हो।

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    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मॉब लिंचिंग रोकने के सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों पर उत्तर प्रदेश सरकार की 'निष्क्रियता' पर उठाए सवाल

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने तहसीन एस. पूनावाला बनाम भारत संघ (2018) मामले में सुप्रीम कोर्ट के बाध्यकारी निर्देशों को लागू करने में उत्तर प्रदेश सरकार की स्पष्ट निष्क्रियता पर सवाल उठाया। इन निर्देशों में देश भर में मॉब लिंचिंग रोकने के लिए निवारक, उपचारात्मक और दंडात्मक उपाय निर्धारित किए गए। यह देखते हुए कि इन निर्देशों के सात साल बाद भी राज्य द्वारा क्या कार्रवाई की गई, इस पर कोई स्पष्टता नहीं है, कोर्ट ने कहा कि जुलाई 2018 में पुलिस महानिदेशक (DGP) द्वारा जारी परिपत्र, सरकार की नीति और प्रशासनिक रुख को दर्शाने वाला औपचारिक सरकारी आदेश (GO) जारी करने के संवैधानिक दायित्व का स्थान नहीं ले सकता।

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    पिछड़ा वर्ग श्रेणी के अंतर्गत आरक्षण का दावा केवल मूल राज्य में ही किया जा सकता है, जन्म या निवास स्थान में नहीं: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट

    पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने कहा कि पिछड़ा वर्ग (बीसी) श्रेणी के अंतर्गत आरक्षण का लाभ केवल मूल राज्य में ही लिया जा सकता है, जन्म या उसके बाद के निवास स्थान में नहीं। यह निर्णय पंजाब राज्य विद्युत निगम लिमिटेड (PSPCL) में पिछड़ा वर्ग कोटे के तहत भर्ती के लिए इच्छुक अभ्यर्थी की याचिका खारिज करते हुए लिया गया। इस अभ्यर्थी ने कहा था कि वह हिमाचल प्रदेश में आरक्षण का दावा कर सकता है, जो अधिसूचना के समय उसका स्थायी निवास है, न कि पंजाब में।

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    किरायेदारी के दौरान जालसाजी के आरोप पर भी किरायेदार मकानमालिक के स्वामित्व से इनकार नहीं कर सकता: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने यह टिप्पणी की है कि किराएदारी की अवधि के दौरान किरायेदार मकानमालिक के स्वामित्व (टाइटल) से इनकार नहीं कर सकता, भले ही जालसाजी (forgery) के आरोप लगाए गए हों।

    जस्टिस प्रतिभा एम. सिंह और जस्टिस शैल जैन की खंडपीठ ने कहा, “एक बार जब किरायेदार को कब्जे में लिया गया हो, तो वह किराएदारी की अवधि के दौरान मकानमालिक के स्वामित्व से इनकार नहीं कर सकता। यहां तक कि जब जालसाजी के आरोप लगाए जाते हैं, तब भी विश्वसनीय साक्ष्य की अनुपस्थिति या अन्य कानूनी उत्तराधिकारियों द्वारा चुनौती न दिए जाने की स्थिति में मुकदमे योग्य विवाद (triable issue) नहीं बनता।”

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    हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 7 के तहत संपन्न न हुए विवाह को अमान्य घोषित नहीं किया जा सकता: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि दो व्यक्तियों के बीच विवाह को इस आधार पर अमान्य घोषित नहीं किया जा सकता कि वह हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 7 के अनुसार संपन्न ही नहीं हुआ। जस्टिस अनिल क्षेत्रपाल और जस्टिस हरीश वैद्यनाथन शंकर की खंडपीठ ने कहा: "हमारे लिए यह स्पष्ट है कि हिंदू विवाह अधिनियम में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है, जो किसी पक्ष को यह घोषित करने का अधिकार देता हो कि कोई विवाह इस आधार पर प्रारंभ से ही अमान्य है कि वह हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 7 के अनुसार संपन्न ही नहीं हुआ। हिंदू विवाह अधिनियम के सभी प्रावधान, जो घोषणाओं से संबंधित हैं, चाहे वे विवाह के अमान्य होने, अमान्यकरणीय होने या तलाक के आधार से संबंधित हों, केवल उन्हीं विवाहों पर लागू होते हैं जो संपन्न हो चुके हैं।"

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    'संपत्तियों की बिक्री के लिए नियुक्त रिसीवर को साझेदारी फर्म चलाने के लिए नियोक्ता नहीं माना जा सकता': बॉम्बे हाईकोर्ट

    बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा कि किसी विघटित साझेदारी फर्म की संपत्ति बेचने के लिए नियुक्त कोर्ट रिसीवर को औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1947 की धारा 25-O के तहत व्यवसाय चलाने या बंद करने के लिए आवेदन करने के उद्देश्य से "नियोक्ता" नहीं माना जा सकता। न्यायालय ने कहा कि एक बार जब रिसीवर को संपत्ति बेचने के लिए नियुक्त कर दिया जाता है तो फर्म का व्यवसाय बंद हो जाता है। फ़ैक्टरी को फिर से खोलने या श्रमिकों को वेतन देने के निर्देश कानूनी रूप से अस्थिर होते हैं।

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    कोई कर्मचारी पात्र होने के बाद मर जाता है तो नियमितीकरण का अधिकार उसकी मृत्यु के बाद भी बना रहता है: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट

    पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने कहा कि यदि कोई कर्मचारी नियमितीकरण के लिए पात्र होने के बाद मर जाता है तो यह लाभ उसके कानूनी उत्तराधिकारियों के माध्यम से निहित माना जाना चाहिए और बना रहेगा। हाईकोर्ट ने यह देखते हुए कि "न्याय, भले ही विलंबित हो, न केवल वैधानिक रूप से बल्कि सैद्धांतिक रूप से भी, जो टूटा है उसे ठीक करता हुआ दिखना चाहिए," कहा कि सेवा के नियमितीकरण का अधिकार एक बार अर्जित हो जाने पर कर्मचारी की मृत्यु पर समाप्त नहीं होता।

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    जांच में शिकायतकर्ता की संलिप्तता उजागर होने पर उसे आरोपी बनाया जा सकता है, अलग से FIR दर्ज करने की आवश्यकता नहीं: उड़ीसा हाईकोर्ट

    उड़ीसा हाईकोर्ट ने हाल ही में स्पष्ट किया कि यदि जांच में उसकी संलिप्तता या अपराध में उसकी संलिप्तता की ओर इशारा करने वाले किसी भी साक्ष्य का पता चलता है तो FIR दर्ज करने वाले को आरोपी बनाया जा सकता है। जस्टिस संगम कुमार साहू और जस्टिस चित्तरंजन दाश की खंडपीठ ने यह भी स्पष्ट किया कि जांच अधिकारी (IO) को केवल मूल शिकायतकर्ता को आरोपी बनाने या उसके खिलाफ आरोप-पत्र दाखिल करने के लिए अलग से FIR दर्ज करने की कोई आवश्यकता नहीं है।

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