वेतन संशोधन योजना को अपनाने से नियोक्ता स्वतः ही उसकी पूर्वव्यापी तिथि से आबद्ध नहीं हो जाता: कलकत्ता हाईकोर्ट

Shahadat

18 Oct 2025 9:48 PM IST

  • वेतन संशोधन योजना को अपनाने से नियोक्ता स्वतः ही उसकी पूर्वव्यापी तिथि से आबद्ध नहीं हो जाता: कलकत्ता हाईकोर्ट

    कलकत्ता हाईकोर्ट की जस्टिस देबांगसु बसाक और जस्टिस मोहम्मद शब्बर रशीदी की खंडपीठ ने माना कि सहकारी समिति का अगस्त, 2014 से बिना बकाया के ROPA 2009 को लागू करने का निर्णय वैध है, और वह 1 जनवरी, 2006 से लाभ प्रदान करने के लिए बाध्य नहीं है।

    पृष्ठभूमि तथ्य

    अपीलकर्ता को कलकत्ता कॉर्पोरेशन कोऑपरेटिव क्रेडिट सोसाइटी लिमिटेड (प्रतिवादी) के निदेशक मंडल द्वारा कनिष्ठ लिपिक के पद पर नियुक्त किया गया था। वह 10 फ़रवरी, 1987 से कार्यरत थी। 3 जून, 2004 को जारी निलंबन आदेश के कारण उसकी सेवा प्रभावित हुई। एक लंबी अनुशासनात्मक प्रक्रिया के बाद उसे सेवा से बर्खास्त कर दिया गया। हालांकि, व्यापक मुकदमेबाजी के बाद 4 अप्रैल, 2014 के एक आदेश द्वारा उन्हें सेवा में बहाल कर दिया गया। उन्होंने 11 अप्रैल, 2014 को अपना कार्यभार पुनः ग्रहण कर लिया।

    पश्चिम बंगाल सहकारी समितियों के रजिस्ट्रार ने समिति को कोलकाता नगर निगम की ROPA, 2009 योजना के अनुसार अपने कर्मचारियों के वेतनमानों में संशोधन करने का निर्देश दिया, जो अगस्त 2014 से प्रभावी होगा।

    हालांकि, यह कार्यान्वयन दो प्रमुख शर्तों के अधीन था:

    1. बकाया वेतन नहीं दिया जाएगा।

    2. कर्मचारियों को सभी लंबित कार्य पूरे करने का वचन देना होगा।

    अपीलकर्ता ने आवश्यक वचन देने से इनकार कर दिया। यह तर्क दिया गया कि किसी अनुभाग में नियुक्ति से पहले की अवधि के बकाया कार्य को पूरा करने के लिए उसे ज़िम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता। इसलिए ROPA, 2009 के तहत उसका वेतन संशोधित नहीं किया गया। उसने तर्क दिया कि वह ROPA, 2009 के लाभों की हकदार थी, इसकी मूल प्रभावी तिथि 1 जनवरी, 2006 से, न कि अगस्त 2014 से।

    व्यथित होकर अपीलकर्ता ने वेतन संशोधन लाभों से इनकार करने को चुनौती देते हुए रिट याचिका दायर की। सिंगल जज ने सोसाइटी को ROPA, 2009 के अनुसार उसके बकाया की गणना और भुगतान 1 अगस्त, 2014 से करने का निर्देश दिया, न कि 2006 से।

    मूल तिथि 2006 से बकाया राशि देने से इनकार करने से व्यथित होकर अपीलकर्ता ने अपील दायर की।

    अपीलकर्ता ने दलील दी कि सिंगल जज ने यह विचार न करके कानूनी गलती की कि न तो रजिस्ट्रार और न ही उप-रजिस्ट्रार के पास ROPA, 2009 से मिलने वाले लाभों में कटौती करने का अधिकार है। यह भी तर्क दिया गया कि अपीलकर्ता ROPA, 2009 की अधिसूचित तिथि 1 जनवरी, 2006 से कानूनी रूप से इसके पूर्ण लाभों का हकदार है। सिंगल जज द्वारा इन लाभों को केवल 1 अगस्त, 2014 की बाद की तिथि से ही अनुमति देने का कोई कानूनी या अन्यथा औचित्य नहीं है। ROPA, 2009 के तहत याचिकाकर्ता को बढ़े हुए वेतन का अधिकार उसकी शुरुआत से ही दिया गया।

    अपीलकर्ता ने यह भी तर्क दिया कि सिंगल जज ने ROPA, 2009 के नियम I और नियम II खंड 2(a) के प्रावधानों पर विचार नहीं किया, जो कोलकाता नगर निगम से संबंधित हैं। इन नियमों को लागू न करके अपीलकर्ता को ROPA 2009 के तहत मिलने वाले सभी लाभ प्राप्त करने से रोका गया।

    दूसरी ओर, प्रतिवादियों ने तर्क दिया कि प्रतिवादी सोसाइटी अपनी सेवा शर्तों और वेतन संरचना को कोलकाता नगर निगम के कार्यों के अनुरूप बनाती है। हालांकि, कलकत्ता कॉर्पोरेशन कोऑपरेटिव क्रेडिट सोसाइटी लिमिटेड एक अलग कानूनी इकाई है। यह नगर निगम के निर्णयों से स्वतः बाध्य नहीं है। इसके अलावा, अपने कर्मचारियों के सेवा लाभों और पारिश्रमिकों के संबंध में स्वतंत्र निर्णय लेना उसके अधिकार क्षेत्र में है।

    यह भी तर्क दिया गया कि कोलकाता नगर निगम के दिशानिर्देशों का पालन करते हुए प्रतिवादी प्राधिकारी अगस्त 2014 से अपने कर्मचारियों को ROPA 2009 के लाभ प्रदान करने पर सहमत हुए। यह निर्णय कोलकाता नगर निगम के ROPA नियमों के नियम 7 या नियम 11 के प्रावधानों का उल्लंघन नहीं करता है। इसके अलावा, वेतन संशोधन पर बकाया वेतन न देने के प्रशासनिक निर्णय को गलत नहीं ठहराया जा सकता।

    प्रतिवादियों ने तर्क दिया कि वेतन संशोधन का कार्यान्वयन एक प्रबंधकीय कार्य है। उप-पंजीयक की रिपोर्ट और अपनी वित्तीय स्थिरता पर विचार करते हुए सोसाइटी ने जानबूझकर अगस्त 2014 की प्रभावी तिथि और 'कोई बकाया नहीं' की शर्त चुनी। यह निर्णय सभी कर्मचारियों पर समान रूप से लागू होता है और किसी भी प्रकार की मनमानी या मौलिक अधिकारों के उल्लंघन के अभाव में अदालत को अपने रिट क्षेत्राधिकार में इसमें हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए।

    अदालत के निष्कर्ष

    अदालत ने पाया कि मुख्य मुद्दा अपीलकर्ता द्वारा ROPA, 2009 के लाभों के लिए उसकी मूल प्रभावी तिथि 1 जनवरी, 2006 से दावा करना था, न कि अगस्त 2014 से, जैसा कि प्रतिवादी सोसाइटी ने तय किया था।

    अदालत ने इस बात की पुष्टि की कि सिंगल जज द्वारा इस वचनबद्धता के संबंध में दिया गया निष्कर्ष सही था। यह भी उल्लेख किया गया कि अपीलकर्ता पहले ही सेवानिवृत्त हो चुका है, इसलिए बकाया कार्य के भुगतान हेतु वचनबद्धता की मांग अप्रासंगिक हो गई।

    अदालत ने यह माना कि ROPA, 2009 का खंड 7 केवल 1 जनवरी, 2006 को या उसके बाद नियुक्त नए कर्मचारियों पर लागू होता है। अपीलकर्ता की नियुक्ति 1986 में हुई और वह एक मौजूदा कर्मचारी है, इसलिए यह खंड उसके मामले पर लागू नहीं होता। अदालत ने खंड 11 (बकाया भुगतान) के संबंध में यह भी माना कि ROPA, 2009 को अपनाते समय प्रतिवादी सहकारी समिति अपने बकाया भुगतान कार्यक्रम को दोहराने के लिए बाध्य नहीं थी। यह देखा गया कि समिति ने उप-पंजीयक की रिपोर्ट और अपनी वित्तीय स्थिरता को ध्यान में रखते हुए पूर्व अवधियों का बकाया भुगतान किए बिना अगस्त 2014 से वेतन संशोधन लागू करने का निर्णय लिया। यह निर्णय उसके सभी कर्मचारियों पर समान रूप से लागू हुआ।

    अदालत ने पाया कि इसमें कोई मनमानी या उल्लंघन नहीं हुआ, क्योंकि निर्णय प्रासंगिक विचारों पर आधारित था और सभी पर समान रूप से लागू होता है। उपरोक्त टिप्पणियों के साथ अपीलकर्ता कर्मचारी द्वारा दायर अपील कर दी गई।

    Case Name : Keya Kar vs. The State of West Bengal & Others

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