हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र
Shahadat
5 July 2025 11:15 PM IST

देश के विभिन्न हाईकोर्ट में पिछले सप्ताह (30 जून, 2025 से 04 जुलाई, 2025) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं हाईकोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह हाईकोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।
केवल केंद्र सरकार की नौकरियों के लिए जारी OBC प्रमाणपत्र दिल्ली सरकार की नौकरियों में आरक्षण के लिए मान्य नहीं : दिल्ली हाईकोर्ट
दिल्ली हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि यदि किसी व्यक्ति को पिछड़ा वर्ग प्रमाणपत्र (OBC सर्टिफिकेट) केवल केंद्र सरकार की नौकरियों में आवेदन के लिए जारी किया गया तो उस प्रमाणपत्र के आधार पर दिल्ली सरकार की नौकरियों में आरक्षण का दावा नहीं किया जा सकता।
जस्टिस सी. हरि शंकर और जस्टिस अजय दिगपाल की खंडपीठ दिल्ली सरकार की उस अपील पर सुनवाई कर रही थी, जो CAT के आदेश के खिलाफ दायर की गई। CAT ने उम्मीदवार ज्योति को आरक्षण का लाभ देने का आदेश दिया था। ज्योति उत्तर प्रदेश की नाई जाति से हैं जिसे वहां OBC वर्ग में माना गया।
केस टाइटल: GNCTD बनाम ज्योति
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BNSS ने मृत्युदंड या आजीवन कारावास वाले अपराधों में अग्रिम जमानत पर उत्तर प्रदेश संशोधन (CrPC) की रोक हटाई: इलाहाबाद हाईकोर्ट
एक महत्वपूर्ण फैसले में, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने माना है कि 1 जुलाई, 2024 से भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (BNSS) के लागू होने के साथ, जिसने सीआरपीसी को निरस्त कर दिया, CrPC की धारा 438 (6) के तहत निहित प्रतिबंध (जैसा कि यूपी राज्य में लागू था) मृत्यु या आजीवन कारावास के दंडनीय मामलों में अग्रिम जमानत देने पर, अब लागू नहीं होता है।
दूसरे शब्दों में, न्यायालय ने स्पष्ट किया कि चूंकि BNSS की धारा 482, जो अब अग्रिम जमानत को नियंत्रित करती है, CrPC की धारा 438 (6) के तहत निहित किसी भी निषेध को बरकरार नहीं रखती है, इसलिए मृत्यु या आजीवन कारावास के दंडनीय मामलों में अग्रिम जमानत देने पर कोई रोक नहीं है।
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शादीशुदा महिला शादी के झूठे वादे पर यौन शोषण का आरोप नहीं लगा सकती: केरल हाईकोर्ट
केरल हाईकोर्ट ने हाल ही में एक व्यक्ति को नियमित जमानत दी, जिस पर एक शादीशुदा महिला को झूठे शादी के वादे पर यौन संबंध बनाने के लिए फुसलाने का आरोप लगा था। आरोपी के खिलाफ भारतीय न्याय संहिता (BNS), 2023 की धारा 84 (शादीशुदा महिला को आपराधिक इरादे से बहलाना या बंधक बनाना) और धारा 69 (छलपूर्वक यौन संबंध बनाना आदि) के तहत मामला दर्ज किया गया था।
अभियोग पक्ष का कहना था कि आरोपी ने शिकायतकर्ता (जो कि शादीशुदा महिला थी) को झूठे शादी के वादे पर यौन संबंध बनाने के लिए फुसलाया। बाद में आरोपी ने उसकी तस्वीरें और वीडियो सार्वजनिक करने की धमकी दी और 2.5 लाख रुपये उधार लिए।
टाइटल: XXX बनाम केरल राज्य व अन्य
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पक्षकार के पास विरोध करने के लिए पर्याप्त समय होने पर समन की तामील में अनियमितता के आधार पर एकपक्षीय डिक्री रद्द नहीं की जा सकती: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट
हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट का आदेश रद्द कर दिया, जिसमें एकपक्षीय डिक्री रद्द कर दी गई, जबकि यह माना गया कि एकपक्षीय डिक्री को केवल समन की तामील में अनियमितता के आधार पर रद्द नहीं किया जा सकता है, यदि यह स्थापित हो जाता है कि दूसरे पक्ष को सुनवाई की तारीख की सूचना थी और दावे का विरोध करने के लिए पर्याप्त समय था।
जस्टिस सत्येन वैद्य ने कहा: "संहिता के आदेश 9 के नियम 13 में संलग्न दूसरा प्रावधान अपवाद बनाता है कि कोई भी न्यायालय केवल इस आधार पर एकपक्षीय रूप से पारित डिक्री रद्द नहीं करेगा कि समन की तामील में अनियमितता हुई है, यदि वह संतुष्ट है कि प्रतिवादी को सुनवाई की तारीख की सूचना थी और उसके पास उपस्थित होने और वादी के दावे का जवाब देने के लिए पर्याप्त समय था।"
Case Name: Devi Dass v/s M/s Ginni Global Pvt. Ltd. & another
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HAMA | विधवा बहू ससुर और देवर से भरण-पोषण मांग सकती है: झारखंड हाईकोर्ट
झारखंड हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि विधवा बहू और उसके नाबालिग बच्चे हिंदू दत्तक ग्रहण और भरण-पोषण अधिनियम, 1956 (HAMA) की धारा 19 और 22 के तहत अपने ससुर और देवर से भरण-पोषण का दावा करने के हकदार हैं, बशर्ते कि वे खुद का भरण-पोषण करने में असमर्थ हों और ससुराल वालों के पास सहदायिक संपत्ति हो।
जस्टिस सुजीत नारायण प्रसाद और जस्टिस राजेश कुमार की खंडपीठ ने ससुर और देवर द्वारा फैमिली कोर्ट के खिलाफ दायर अपील खारिज की, जिसमें उन्हें विधवा को 3000 रुपये और उसके दो नाबालिग बच्चों को 1000 रुपये प्रति माह भरण-पोषण देने का निर्देश दिया गया था।
Case Title: Surendra Das & Anr. v. Anita Das & Ors.
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S.483(3) BNSS | सेशन कोर्ट द्वारा शर्तों के उल्लंघन के अभाव में दी गई जमानत हाईकोर्ट रद्द नहीं कर सकता: कर्नाटक हाईकोर्ट
कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा कि जमानत की शर्तों के उल्लंघन के अभाव में किसी आरोपी को जमानत देने वाले सेशन कोर्ट के आदेश को भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS), 2023 की धारा 483(3) के तहत आवेदन दायर करके हाईकोर्ट के समक्ष रद्द करने की मांग नहीं की जा सकती।
एकल जज जस्टिस वी श्रीशानंद ने बलात्कार पीड़िता की मां द्वारा दायर याचिका खारिज करते हुए यह फैसला सुनाया, जिसमें यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण अधिनियम (POCSO Act) के प्रावधानों के तहत आरोपी को जमानत दिए जाने को चुनौती दी गई। उनका कहना था कि इस तरह के गंभीर अपराध के लिए जमानत दिए जाने से न्याय का हनन हुआ है।
Case Title: Devibai AND State of Karnataka & ANR
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व्हाट्सएप और ईमेल के जरिए पक्षों के बीच हुआ संवाद वैध मध्यस्थता समझौता हो सकता है: दिल्ली हाईकोर्ट
दिल्ली हाईकोर्ट ने व्यवस्था दी है कि व्हाट्सएप और ईमेल के माध्यम से पार्टियों के बीच संचार एक वैध मध्यस्थता समझौते हो सकता है। जस्टिस जसमीत सिंह ने मध्यस्थता अधिनियम की धारा 7 (4) (b) का अवलोकन किया और कहा कि पक्षों के बीच एक वैध मध्यस्थता समझौते के अस्तित्व में होने के लिए एक संपन्न अनुबंध के अस्तित्व में होना आवश्यक नहीं है।
अदालत यूएई स्थित कंपनी, बेल्वेडियर रिसोर्सेज डीएमसीसी द्वारा दायर एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें ओसीएल आयरन एंड स्टील लिमिटेड, ओरिएंटल आयरन कास्टिंग लिमिटेड और एरॉन ऑटो लिमिटेड से लगभग 23.34 करोड़ रुपये की मौद्रिक सुरक्षा की मांग की गई थी।
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रोग होने पर भी सैन्यकर्मियों को मिलेगा विकलांगता पेंशन: दिल्ली हाईकोर्ट
दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि भारतीय सशस्त्र बलों के कर्मियों को विकलांगता पेंशन देना किसी प्रकार की उदारता नहीं है, बल्कि यह उनकी सेवाओं और बलिदानों की न्यायसंगत स्वीकृति है, जो उनकी विकलांगता या बीमारियों के रूप में सामने आती है। जस्टिस नवीन चावला और जस्टिस शालिंदर कौर की खंडपीठ ने कहा कि विकलांगता पेंशन देने का लाभ उदारतापूर्वक व्याख्यायित किया जाना चाहिए और पात्र लाभार्थियों को दिया जाना चाहिए।
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परिवार पेंशन के लिए नाम परिवर्तन की मान्यता हेतु राजपत्र अधिसूचना अनिवार्य: कलकत्ता हाईकोर्ट
कलकत्ता हाईकोर्ट की जस्टिस शम्पा दत्त (पॉल) की एकल पीठ ने कहा कि पेंशन लाभ के लिए किसी सरकारी कर्मचारी या उनके परिवार के सदस्य के नाम परिवर्तन की मान्यता के लिए राजपत्र अधिसूचना अनिवार्य है। आगे के हलफनामे और समाचार पत्र प्रकाशन अकेले इस प्रक्रियात्मक आवश्यकता को पूरा करने के लिए अपर्याप्त हैं।
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प्रत्यर्पण अधिनियम | विदेश में कथित अपराध के लिए गिरफ्तारी की आशंका वाले भारतीय नागरिक को अग्रिम जमानत उपलब्ध: दिल्ली हाईकोर्ट
दिल्ली हाईकोर्ट ने एक फैसले में कहा कि CrPC की धारा 438 के तहत अग्रिम जमानत का संरक्षण प्रत्यर्पण अधिनियम, 1962 के तहत कार्यवाही का सामना कर रहे 'भगोड़े अपराधी' द्वारा लागू किया जा सकता है। जस्टिस संजीव नरूला ने कहा कि विदेश में किए गए कथित अपराध के लिए भारत में गिरफ्तारी की आशंका वाले भारतीय नागरिक को संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत गारंटीकृत सुरक्षा से वंचित नहीं किया जाता है।
न्यायालय ने कहा, "CrPC की धारा 438 केवल एक वैधानिक उपाय नहीं है, यह एक प्रक्रियात्मक सुरक्षा है जो संवैधानिक आदेश से सीधे प्रवाहित होती है कि किसी भी व्यक्ति को कानून द्वारा स्थापित न्यायसंगत, निष्पक्ष और उचित प्रक्रिया के अलावा स्वतंत्रता से वंचित नहीं किया जाएगा।"
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कलकत्ता हाईकोर्ट ने क्रिकेटर मोहम्मद शमी को अलग रह रही पत्नी और बेटी के लिए हर महीने 4 लाख रुपये गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया
कलकत्ता हाईकोर्ट ने भारतीय क्रिकेटर मोहम्मद शमी से कहा है कि वह अपनी अलग हो चुकी पत्नी हसीन जहां के खिलाफ जारी कानूनी विवाद में उन्हें और बेटी को 4 लाख रुपए प्रतिमाह भरण-पोषण के रूप में दें। जस्टिस अजय कुमार मुखर्जी ने कहा, "...अधीन न्यायालय द्वारा निर्धारित अंतरिम मौद्रिक राहत में संशोधन की आवश्यकता है। विपक्षी/पति की आय, वित्तीय प्रकटीकरण और आय से यह स्थापित होता है कि वह अधिक राशि का भुगतान करने की स्थिति में है। याचिकाकर्ता पत्नी जो अविवाहित है और बच्चे के साथ स्वतंत्र रूप से रह रही है, वह समान भरण-पोषण की हकदार है, जिसका उसने विवाह के दौरान आनंद लिया और जो उसके और बच्चे के भविष्य को उचित रूप से सुरक्षित करता है। मेरी सुविचारित राय में याचिकाकर्ता संख्या 1 (पत्नी) को 1,50,000/- रुपए प्रतिमाह और उसकी बेटी को 2,50,000/- रुपए प्रतिमाह की राशि मुख्य आवेदन के निपटान तक दोनों याचिकाकर्ताओं के लिए वित्तीय स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए उचित होगी।"
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बिना किसी यौन इरादे के केवल I Love You कहना यौन उत्पीड़न नहीं: बॉम्बे हाईकोर्ट
बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर पीठ ने 30 जून को कहा कि केवल I Love You कहना यौन उत्पीड़न का अपराध नहीं है, अगर इसके साथ यौन इरादे को दर्शाने वाले शब्द या कृत्य न हों। एकल जज जस्टिस उर्मिला जोशी-फाल्के ने कहा कि इस मामले में आरोपी ने नाबालिग लड़की से केवल I Love You कहा था जब वह ट्यूशन क्लास से घर जा रही थी और एक बार उसने उससे अपना नाम बताने के लिए भी कहा था।
जस्टिस जोशी-फाल्के ने आदेश में कहा, "बोले गए शब्द 'यौन इरादे' से जुड़े होने चाहिए, जो सेक्स या शारीरिक संपर्क या यौन इच्छाओं को व्यक्त करने के संकेत के साथ जुड़े हों। 'I Love You' कहे गए शब्द अपने आप में 'यौन इरादे' नहीं होंगे, जैसा कि विधानमंडल द्वारा माना जाता है। कुछ और भी होना चाहिए जो यह सुझाव दे कि वास्तविक इरादा सेक्स के कोण को घसीटना है, अगर बोले गए शब्दों को यौन इरादे के रूप में लिया जाना है। यह कृत्य से परिलक्षित होना चाहिए।"
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पीड़िता के कपड़े उतारना लेकिन विरोध के कारण संभोग न कर पाना बलात्कार के प्रयास की श्रेणी में आता है: इलाहाबाद हाईकोर्ट
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि किसी महिला के कपड़े उतारना लेकिन उसके विरोध के चलते संभोग न कर पाना भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 376 सहपठित धारा 511 के तहत बलात्कार के प्रयास की श्रेणी में आता है। जस्टिस रजनीश कुमार की एकल पीठ ने आरोपी प्रदीप कुमार @ पप्पू @ भूरिया की सजा बरकरार रखी। उक्त आरोपी को नाबालिग पीड़िता (आयु लगभग 16-18 वर्ष) के अपहरण और उसके साथ बलात्कार का प्रयास करने के लिए 10 वर्ष की सजा दी गई थी।
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'राज्य की स्थानांतरण नीति के बावजूद राजनीतिक संपर्क रखने वाले सरकारी कर्मचारियों को कठोर/आदिवासी इलाकों की पोस्टिंग नहीं दी जा रही': हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट
हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया है कि स्थानांतरण हिमाचल प्रदेश सरकार की स्थानांतरण नीति के अनुसार ही किए जाएं। न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि प्रत्येक सरकारी कर्मचारी को अपनी सेवा के दौरान एक बार दुर्गम क्षेत्र में तैनात किया जाना चाहिए और ऐसी पोस्टिंग राजनीतिक संबंधों से प्रभावित नहीं होनी चाहिए।
जस्टिस संदीप शर्मा ने कहा, “हिमाचल प्रदेश सरकार द्वारा तैयार की गई स्थानांतरण नीति से स्पष्ट है कि प्रत्येक कर्मचारी को अपने जीवन के दौरान उप-संवर्ग/कठोर/जनजातीय क्षेत्र में भेजा जाना चाहिए, लेकिन इस न्यायालय ने कई मामलों में देखा है कि अच्छे राजनीतिक संबंध और प्रभाव वाले कर्मचारियों को शायद ही दुर्गम/जनजातीय क्षेत्र में भेजा जाता है, और जिन कर्मचारियों की सरकार के गलियारों में कोई भूमिका नहीं होती, उन्हें बार-बार दुर्गम/जनजातीय क्षेत्रों में भेजा जाता है, जिसके परिणामस्वरूप असंतोष होता है।”