हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र
Shahadat
13 Oct 2024 10:00 AM IST
देश के विभिन्न हाईकोर्ट में पिछले सप्ताह (07 अक्टूबर, 2024 से 11 अक्टूबर, 2024) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं हाईकोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह हाईकोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।
'लेनदेन की प्रकृति' का निर्धारण किए बिना संपत्ति के हस्तांतरण को शून्य घोषित करने के लिए CGST Act की धारा 81 का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता: आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट
आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने प्रथम दृष्टया माना है कि केंद्रीय वस्तु एवं सेवा कर अधिनियम, 2017 की धारा 81 को संपत्ति के हस्तांतरण को शून्य घोषित करने के लिए लागू नहीं किया जा सकता है, जब तक कि लेनदेन की नकली प्रकृति के बारे में कोई विशिष्ट निष्कर्ष न हो। धारा 81 में यह प्रावधान है कि जहां कोई व्यक्ति अधिनियम के तहत उससे कोई राशि देय होने के बाद सरकारी राजस्व को धोखा देने के इरादे से अपनी संपत्ति के साथ भाग लेता है, तो ऐसा हस्तांतरण शून्य होगा।
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सीजीएसटी अधिनियम की धारा 129(3) | माल मालिक/ट्रांसपोर्टर को नोटिस देने के बाद जुर्माना आदेश पारित करने के लिए 7 दिनों की सीमा अवधि अनिवार्य: पटना हाईकोर्ट
पटना हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया है कि सीजीएसटी अधिनियम के उल्लंघन के लिए माल मालिक/ट्रांसपोर्टर को नोटिस जारी किए जाने के बाद जुर्माना आदेश पारित करने के लिए केंद्रीय माल एवं सेवा कर अधिनियम की धारा 129(3) के तहत निर्धारित सात दिनों की सीमा अवधि अनिवार्य प्रकृति की है।
सीजीएसटी अधिनियम की धारा 129(3) में प्रावधान है कि माल या वाहनों को हिरासत में लेने या जब्त करने वाला उचित अधिकारी ऐसी हिरासत या जब्ती के सात दिनों के भीतर 'फॉर्म जीएसटी एमओवी-07' में एक नोटिस जारी करेगा, जिसमें देय कर और जुर्माना निर्दिष्ट किया जाएगा। इसके बाद, उचित अधिकारी जुर्माना के भुगतान के लिए ऐसी नोटिस की सेवा की तारीख से सात दिनों की अवधि के भीतर 'फॉर्म जीएसटी एमओवी-06' में एक आदेश पारित करेगा।
केस टाइटलः मेसर्स केडिया एंटरप्राइजेज बनाम बिहार राज्य
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लीगल इंटर्नशिप सक्रिय कानूनी अभ्यास के बराबर नहीं: दिल्ली हाईकोर्ट
दिल्ली हाईकोर्ट ने हाल ही में देखा कि लॉ स्टूडेंट के रूप में की गई लीगल इंटर्नशिप, एडवोकेट के रूप में नामांकित होने के बाद सक्रिय लॉ प्रैक्टिस के बराबर नहीं है। जस्टिस संजीव नरूला ने कहा, “लॉ एजुकेशन के हिस्से के रूप में की गई इंटर्नशिप, व्यावहारिक अनुभव प्रदान करने में मूल्यवान होने के बावजूद लॉ प्रैक्टिस करने के लिए पेशेवर अनुभव की आवश्यकता को पूरा नहीं करती।”
केस टाइटल: उज्ज्वल घई बनाम दिल्ली हाईकोर्ट लीगल सर्विस कमेटी
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S. 156 (3) CrPC | आवेदक के पास तथ्य होने मात्र से मजिस्ट्रेट केवल इसलिए एफआईआर दर्ज करने के निर्देश से इनकार नहीं कर सकते: इलाहाबाद हाईकोर्ट
इलाहाबाद हाीकोर्ट ने कहा कि केवल इसलिए कि कथित अपराध के तथ्य आवेदक के पास हैं, जो धारा 156 (3) CrPC के तहत आवेदन करता है, मजिस्ट्रेट पुलिस को एफआईआर दर्ज करने के निर्देश से इनकार नहीं कर सकता।
जस्टिस मंजू रानी चौहान की पीठ ने कहा कि अपराध की गंभीरता, सफल अभियोजन शुरू करने के लिए साक्ष्य की आवश्यकता और न्याय का हित, प्रत्येक मामले के तथ्यों के आधार पर ऐसे कारक हैं, जिन्हें धारा 156 (3) CrPC के तहत आदेश पारित करने में विचार किया जाना चाहिए।
केस टाइटल- मुकेश खरवार बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और 3 अन्य
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शिरडी साईं बाबा संस्थान धार्मिक और धर्मार्थ ट्रस्ट, इसके गुमनाम दान पर कर नहीं लगाया जा सकता: बॉम्बे हाईकोर्ट
बॉम्बे हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि श्री साईं बाबा संस्थान ट्रस्ट, शिरडी निश्चित रूप से एक धार्मिक और धर्मार्थ ट्रस्ट है और इस प्रकार 2015 से 2019 के दौरान हुंडी (नकद संग्रह बॉक्स) में प्राप्त 159.12 करोड़ रुपये के 'गुमनाम' दान को आयकर से छूट दी जा सकती है।
जस्टिस गिरीश कुलकर्णी और जस्टिस सोमशेखर सुंदरसन की खंडपीठ ने आयकर अपीलीय न्यायाधिकरण (आईटीएटी) के 25 अक्टूबर, 2023 के आदेश को बरकरार रखा, जिसमें कहा गया था कि ट्रस्ट धर्मार्थ और धार्मिक दोनों है और इस प्रकार अपने गुमनाम दान पर आयकर से छूट के लिए पात्र है।
केस टाइटलः आयकर आयुक्त (छूट) बनाम श्री साईं बाबा संस्थान ट्रस्ट, शिरडी (आयकर अपील 598/2024)
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दूसरों के सामने किसी महिला को वेश्या कहना आईपीसी की धारा 509 के तहत 'शील का अपमान' करने का अपराध नहीं: केरल हाईकोर्ट
केरल हाईकोर्ट ने माना कि दूसरों के सामने किसी महिला को वेश्या कहना भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 509 के तहत परिभाषित महिला की शील का अपमान नहीं है।
याचिकाकर्ता जो शिकायतकर्ता के फ्लैट की इमारत में रहते हैं, उन पर आरोप है कि उन्होंने फ्लैट की इमारत में रहने वाले अन्य लोगों और आस-पास के दुकान मालिकों से कहा कि शिकायतकर्ता वेश्या है। पुलिस ने अंतिम रिपोर्ट दायर की, जिसमें आरोप लगाया गया कि आरोपी ने आईपीसी की धारा 509 के तहत दंडनीय अपराध किया। याचिकाकर्ता ने मामले में आगे की कार्यवाही रद्द करने के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाया।
केस टाइटल: एन्सन आई.जे. और अन्य बनाम केरल राज्य और अन्य
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उपासक बिना किसी व्यक्तिगत हित के सरकारी भूमि पर मंदिर के विध्वंस को रोकने के लिए निषेधाज्ञा का दावा नहीं कर सकते: दिल्ली हाईकोर्ट
दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि मंदिर के उपासक, जिसका मंदिर की संपत्ति पर कोई व्यक्तिगत हित नहीं है, उसको दिल्ली विकास प्राधिकरण (DDA) की भूमि पर अवैध रूप से निर्मित मंदिर के विध्वंस को रोकने के लिए राहत नहीं दी जा सकती।
जस्टिस तारा वितस्ता गंजू की एकल पीठ ट्रायल कोर्ट के आदेश को अपीलकर्ता की चुनौती पर विचार कर रही थी, जिसने DDA के खिलाफ स्थायी और अनिवार्य निषेधाज्ञा के साथ-साथ हर्जाने के लिए उनका मुकदमा खारिज कर दिया। अपीलकर्ता ने दावा किया कि वह स्थानीय निवासी है और पार्क में स्थित शिव मंदिर का उपासक है।
केस टाइटल: अवनीश कुमार बनाम दिल्ली विकास प्राधिकरण और अन्य। (आरएफए 403/2023 और सीएम आवेदन 37124/2024)
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[S.419(4) BNSS] केवल तभी जब शिकायतकर्ता अपराध का पीड़ित न हो, बरी किए जाने के विरुद्ध अपील करने की अनुमति आवश्यक: राजस्थान हाईकोर्ट
राजस्थान हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि ऐसे मामलों में जहां शिकायतकर्ता अपराध का पीड़ित है, जैसा कि BNSS की धारा 2(Y) के तहत परिभाषित किया गया, उसे बरी किए जाने के विरुद्ध अपील करने की अनुमति मांगने के लिए हाईकोर्ट के समक्ष आवेदन प्रस्तुत करने की आवश्यकता नहीं है, जैसा कि BNSS की धारा 419(4) के तहत प्रावधान किया गया।
धारा 419(4), BNSS यह प्रावधान करती है कि ऐसी स्थिति में जहां किसी मामले में बरी किए जाने का आदेश पारित किया जाता है, शिकायतकर्ता हाईकोर्ट द्वारा उस प्रभाव के लिए अपील करने की विशेष अनुमति दिए जाने के बाद हाईकोर्ट में उसके विरुद्ध अपील कर सकता है।
केस टाइटल: अशराज स्टोन प्राइवेट लिमिटेड बनाम कारव इंटरनेशनल
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सेवा विवाद का निपटारा करते समय केंद्रीय प्रशासनिक ट्रिब्यूनल सिविल न्यायालय का विकल्प: इलाहाबाद हाईकोर्ट
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पाया कि केंद्रीय प्रशासनिक ट्रिब्यूनल सिविल न्यायालयों के विकल्प हैं, क्योंकि पहले सिविल कोर्ट में निहित अधिकार क्षेत्र को उन ट्रिब्यूनल को ट्रांसफर कर दिया गया, जिनके पास सिविल कोर्ट के लिए निर्धारित समान शक्तिया और प्रक्रियाएं हैं।
जस्टिस राजन रॉय और जस्टिस ओम प्रकाश शुक्ला की पीठ ने कहा, “अधिनियम 1985 के तहत केंद्रीय प्रशासनिक ट्रिब्यूनल के गठन से पहले उपाय सिविल कोर्ट के समक्ष था। इसलिए भारत के संविधान के अनुच्छेद 323-ए के तहत वैकल्पिक मंच प्रदान किया गया। यह साक्ष्य ले सकता है, उसका मूल्यांकन कर सकता है और तथ्यों के निष्कर्षों को दर्ज कर सकता है।
केस टाइटल: अरुण कुमार गुप्ता बनाम भारत संघ के माध्यम से सचिव, रसायन एवं उर्वरक मंत्रालय विभाग, रसायन पेट्रो रसायन एवं अन्य
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S. 188 CrPC | CBI भारतीयों द्वारा विदेश में किए गए अपराधों की जांच के लिए केवल केंद्र की मंजूरी की आवश्यकता, राज्य की सहमति की आवश्यकता नहीं: इलाहाबाद हाईकोर्ट
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने माना कि केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) को किसी भारतीय नागरिक द्वारा देश के बाहर किए गए अपराध की जांच के लिए दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना (DSPE) अधिनियम 1946 की धारा 6 के तहत राज्य सरकार की सहमति लेने की आवश्यकता नहीं है। ऐसे मामलों में केवल केंद्र सरकार की मंजूरी की आवश्यकता है।
जस्टिस विवेक कुमार बिड़ला और जस्टिस अरुण कुमार सिंह देशवाल की पीठ ने कहा कि DSPE एक्ट की धारा 6 के अनुसार राज्य सरकार के किसी भी क्षेत्र में जांच के लिए राज्य सरकार की सहमति आवश्यक है। फिर भी यदि किसी भारतीय नागरिक द्वारा भारत के बाहर किए गए अपराध की जांच की जानी है तो राज्य सरकार की सहमति लेने की कोई आवश्यकता नहीं है।
केस टाइटल- कल्पना माहेश्वरी बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और अन्य
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Indian Succession Act- निष्पादक की कैद मृतक की बड़ी सम्पत्तियों के प्रबंधन और प्रशासन को प्रभावित करती है: बॉम्बे हाईकोर्ट
बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा कि वसीयत के निष्पादक की कैद, जिसे 'बड़ी' सम्पत्तियों और व्यावसायिक उपक्रमों का प्रशासन और प्रबंधन करना होता है, निष्पादक के लिए ऐसी सम्पत्तियों के प्रबंधन में 'कानूनी अक्षमता' के रूप में कार्य करेगी।
"यदि सम्पत्ति ऐसी है कि उसे निष्क्रिय निवेश के मामले में सक्रिय प्रबंधन की आवश्यकता नहीं है तो निष्पादक की कैद का कोई असर नहीं हो सकता। हालांकि, चाहे सम्पत्ति बड़ी हो और उसमें व्यवसायिक उपक्रम शामिल हों, जिसके लिए दिन-प्रतिदिन प्रबंधन की आवश्यकता होती है। इस दलील को स्वीकार करना मुश्किल होगा कि कैद कानूनी अक्षमता के रूप में कार्य नहीं करती है।"
केस टाइटल: लौरा डिसूजा बनाम ललित टिमोथी डिसूजा (अंतरिम आवेदन नंबर 2827/2022 वसीयतनामा वाद नंबर 16/2004 वसीयतनामा याचिका संख्या 491/2003 में)
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पुलिस स्टेशन में अधिकारी के साथ बातचीत रिकॉर्ड करना Official Secrets Act के तहत अपराध नहीं: बॉम्बे हाईकोर्ट
बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा कि पुलिस स्टेशन में ऑडियो रिकॉर्ड करना सख्त आधिकारिक गोपनीयता अधिनियम (Official Secrets Act) के तहत अपराध नहीं होगा।
जस्टिस विभा कंकनवाड़ी और जस्टिस संतोष चपलगांवकर की खंडपीठ ने दो भाइयों के खिलाफ दर्ज एफआईआर खारिज की, जिनमें से एक मुंबई पुलिस में कांस्टेबल के रूप में काम करता है, जिन पर अहमदनगर के पाथर्डी में पुलिस स्टेशन के भीतर पुलिस अधिकारी के साथ बातचीत रिकॉर्ड करने के लिए Official Secrets Act के तहत मामला दर्ज किया गया।
केस टाइटल: सुभाष अठारे बनाम महाराष्ट्र राज्य (आपराधिक आवेदन 3421/2022)
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धारा 19 PMLA के तहत अच्छी तरह से प्रलेखित 'विश्वास करने का कारण' पर आधारित नहीं होने पर ED गिरफ्तारी अवैध: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट
पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने मनी लॉन्ड्रिंग के आरोपी उद्योगपति की याचिका खारिज की, जिसमें ED गिरफ्तारी को चुनौती दी गई थी। कोर्ट यह देखते हुए याचिका खारिज की कि गिरफ्तारी के आधार स्पष्ट रूप से प्रकट करते हैं। इस बात की ओर इशारा करते हैं कि गिरफ्तारी अधिकारी ने याचिकाकर्ता को गिरफ्तार करने के अपने इरादे, कारण, आधार और विश्वास को व्यक्त किया। नीरज सलूजा पर ऋण राशि से 1,500 करोड़ रुपये से अधिक की राशि को स्वीकृत उद्देश्य के अलावा किसी अन्य उद्देश्य के लिए अवैध रूप से डायवर्ट करने का आरोप लगाया गया था।
जस्टिस अनूप चितकारा ने स्पष्ट किया, "कोई भी गिरफ्तारी अवैध होगी, जब वह सीधे PMLA द्वारा अनिवार्य कानूनी आवश्यकताओं का खंडन करती है, विशेष रूप से धारा 19 के तहत। इस धारा के लिए भौतिक साक्ष्य और एक अच्छी तरह से प्रलेखित 'विश्वास करने का कारण' की आवश्यकता होती है कि व्यक्ति मनी लॉन्ड्रिंग गतिविधियों में शामिल है। इन आवश्यकताओं का उल्लंघन गंभीर कानूनी उल्लंघन को दर्शाता है, जिससे गिरफ्तारी शुरू से ही अमान्य हो जाती है।"
केस टाइटल: नीरज सलूजा बनाम भारत संघ और अन्य
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धारा 145 CrPC के तहत मजिस्ट्रेट की भूमिका सार्वजनिक शांति सुनिश्चित करना है, न कि सिविल कोर्ट की तरह संपत्ति विवादों का निपटारा करना: राजस्थान हाईकोर्ट
राजस्थान हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि धारा 145 CrPC के तहत मजिस्ट्रेट की भूमिका संपत्ति के कब्जे को लेकर विवाद होने पर सार्वजनिक शांति सुनिश्चित करना है और संपत्ति विवादों को निपटाने का आदेश नहीं देना है, जो सिविल न्यायालयों के दायरे में आते हैं।
अदालत ने यह टिप्पणी इस बात पर गौर करने के बाद की कि वर्तमान मामले में विवादित भूमि को लेकर संबंधित न्यायालय के समक्ष पक्षों के बीच पहले से ही दीवानी कार्यवाही चल रही थी और इसलिए मजिस्ट्रेट की भूमिका सीमित थी।
केस टाइटल: मुंशी राम बनाम राजस्थान राज्य
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एक बार स्वीकार की गई आपराधिक अपील को गैर-प्रतिनिधित्व/गैर-अभियोजन के कारण खारिज नहीं किया जा सकता: केरल हाईकोर्ट
केरल हाईकोर्ट ने माना कि यदि आपराधिक अपील को दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 384 के तहत सरसरी तौर पर खारिज नहीं किया जाता है, तो इसे गैर-प्रतिनिधित्व या गैर-अभियोजन के लिए खारिज नहीं किया जा सकता है।
जस्टिस ए बदरुद्दीन ने कहा, "इस प्रकार कानूनी स्थिति यह उभरती है कि जब सीआरपीसी की धारा 384 के तहत अपील को सरसरी तौर पर खारिज नहीं किया जाता है और अपीलीय अदालत अपील को स्वीकार कर लेती है, तो अपील के गुण-दोष पर विचार किए बिना इसे गैर-प्रतिनिधित्व या गैर-अभियोजन के लिए खारिज नहीं किया जा सकता है।"
केस टाइटल: अनिल बनाम केरल राज्य