लीगल इंटर्नशिप सक्रिय कानूनी अभ्यास के बराबर नहीं: दिल्ली हाईकोर्ट

Amir Ahmad

10 Oct 2024 3:26 PM IST

  • लीगल इंटर्नशिप सक्रिय कानूनी अभ्यास के बराबर नहीं: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने हाल ही में देखा कि लॉ स्टूडेंट के रूप में की गई लीगल इंटर्नशिप, एडवोकेट के रूप में नामांकित होने के बाद सक्रिय लॉ प्रैक्टिस के बराबर नहीं है।

    जस्टिस संजीव नरूला ने कहा,

    “लॉ एजुकेशन के हिस्से के रूप में की गई इंटर्नशिप, व्यावहारिक अनुभव प्रदान करने में मूल्यवान होने के बावजूद लॉ प्रैक्टिस करने के लिए पेशेवर अनुभव की आवश्यकता को पूरा नहीं करती।”

    न्यायालय ने वकील उज्ज्वल घई की याचिका खारिज करते हुए ये टिप्पणियां कीं, जिसमें जेल विजिटिंग पैनल के पैनल में शामिल होने के लिए आगामी इंटरव्यू के लिए शॉर्टलिस्ट किए गए उम्मीदवारों की सूची में अपना नाम शामिल करने की मांग की गई थी।

    घई ने 13 अगस्त 2021 को एडवोकेट के रूप में नामांकन कराया। जून में दिल्ली हाईकोर्ट लीगल सर्विस कमेटी ने विभिन्न पैनलों के लिए वकीलों और मध्यस्थों के पैनल में शामिल होने के लिए ऑनलाइन आवेदन आमंत्रित करते हुए नोटिस जारी किया। जेल विजिटिंग पैनल में शामिल होने के लिए ऑनलाइन आवेदन प्रस्तुत किया। हालांकि उनका नाम DHCLSC द्वारा 24 सितंबर को प्रकाशित उम्मीदवारों की शॉर्टलिस्ट में शामिल नहीं किया गया।

    मौखिक पूछताछ के बाद उन्होंने पाया कि कट-ऑफ तिथि 31 मई तक लॉ प्रैक्टिस के तीन वर्षों की न्यूनतम अनुभव आवश्यकता को पूरा नहीं करने के कारण उनका आवेदन अस्वीकार किया जा सकता है।

    घई ने प्रस्तुत किया कि उन्होंने अपने लॉ स्कूल के दौरान काफी समय तक विभिन्न वकीलों के साथ सक्रिय रूप से इंटर्नशिप की थी। इस प्रकार, उनके इंटर्नशिप अनुभव को 3 साल की पात्रता मानदंड की पूर्ति के लिए शामिल किया जाना चाहिए, जो उन्हें साक्षात्कार प्रक्रिया में भाग लेने के लिए पात्र बनाता है।

    जस्टिस नरूला ने घई के इंटर्नशिप और अप्रेंटिसशिप शब्दों को समान मानने का तर्क खारिज कर दिया, जिसमें सुझाव दिया गया कि वकील के रूप में औपचारिक रूप से नामांकित होने से पहले प्राप्त इंटर्नशिप अनुभव को कानूनी शब्दावली के तहत अप्रेंटिसशिप के बराबर माना जाना चाहिए।

    यह देखते हुए कि व्याख्या ने महत्वपूर्ण अंतर को नजरअंदाज कर दिया, न्यायालय ने कहा,

    “स्टूडेंट के रूप में “इंटर्नशिप” की अवधि पात्रता मानदंड के तहत परिकल्पित सक्रिय लॉ प्रैक्टिस के बराबर नहीं है। इस तरह, इसे पैनल में शामिल होने के लिए आवश्यक तीन साल के अनुभव में नहीं गिना जा सकता।”

    कोर्ट ने नोट किया कि कुछ सरकारी निकाय भी अपने कानूनी विभागों में निश्चित समय के लिए ट्रेनी के रूप में लॉ ग्रेजुएट की सेवाएं लेते हैं। वहीं ऐसे अवसर उन लोगों के लिए उपलब्ध हैं, जिन्होंने एलएलबी की डिग्री के साथ ग्रेजुएट किया है।

    न्यायालय ने याचिका खारिज करते हुए कहा,

    “एक लॉ स्टूडेंट की इंटर्नशिप को नामांकन के बाद के प्रैक्टिस के बराबर मानने से शैक्षणिक प्रशिक्षण और पेशेवर कानूनी अनुभव के बीच का अंतर धुंधला हो जाएगा, जिससे पात्रता आवश्यकता के स्पष्ट इरादे को कमज़ोर किया जा सकेगा। इसलिए याचिकाकर्ता की प्रैक्टिस की गणना बार काउंसिल में उसके नामांकन की तारीख से की जानी चाहिए, न कि उसके कानूनी अध्ययन के दौरान किसी इंटर्नशिप अवधि से।”

    केस टाइटल: उज्ज्वल घई बनाम दिल्ली हाईकोर्ट लीगल सर्विस कमेटी

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