जानिए हमारा कानून
एक गिरफ्तार किए गए व्यक्ति को कानून ने क्या संरक्षण दिए हैं
किसी भी अपराध में गिरफ्तारी करना उस अपराध से संबंधित अन्वेषण करने के लिए आवश्यक होता है। कुछ अपराध ऐसे हैं जिन्हें जमानती अपराध बनाया गया है उनमे जमानत उपलब्ध हो जाती है। कुछ अपराध ऐसे हैं जो अजमानतीय होते हैं और उनमे जमानत उपलब्ध नहीं होती है। ऐसे अपराधों में व्यक्ति को गिरफ्तार किया जाता है। ऐसी गिरफ्तारी एक मजिस्ट्रेट प्राइवेट व्यक्ति और पुलिस द्वारा की जाती है। आमतौर पर यह गिरफ्तारी पुलिस द्वारा ही की जाती है तथा ऐसी गिरफ्तारी में यातनाएं देखी जाना एक आम बात हो चली है। कानून में ऐसे अनेक...
क्यों होते हैं बार बार अपराध और क्या है अभ्यस्त अपराधी
अपराध पर नियंत्रण और अपराधियों के पुनर्वास के लिए दंडशास्त्रियों के लिए लगातार बढ़ती पुनरावृत्ति एक बड़ी समस्या है। अधिकांश सभ्य देशों की जेलें कैदियों से भरी हुई हैं और अदालती कमरे अंडर-ट्रायल से भरे हुए हैं। अपराधियों को बंद कर दिया जाता है, रिहा कर दिया जाता है, फिर से गिरफ्तार किया जाता है और फिर से सजा सुनाई जाती है। उनमें से कई का पता नहीं चल पाता है और उन्हें कभी भी दोषी करार नहीं दिया जाता या सजा नहीं दी जाती है। अपराध से निपटने के लिए जेलों और अन्य सुधारात्मक संस्थानों पर जनता का काफी...
पॉवर ऑफ़ अटॉर्नी क्या है और कब दी जाती है
कानून की दुनिया में पॉवर ऑफ अटॉर्नी एक बेहद प्रसिद्ध शब्द है। हमें यह जानकारी होनी चाहिए कि पॉवर ऑफ अटॉर्नी क्या है और कब दी जाती है क्योंकि यह अत्यंत महत्वपूर्ण दस्तावेज है।पॉवर ऑफ अटॉर्नी एक विधिक दस्तावेज है जिसे किसी एक व्यक्ति द्वारा दूसरे व्यक्ति को अपनी संपत्ति के संबंध में दिया जाता है। आमतौर पर ऐसी पॉवर ऑफ अटॉर्नी संपत्ति के संबंध में ही दी जाती है। अन्य मामलों में भी पॉवर ऑफ अटॉर्नी दी जा सकती है।कानून द्वारा एक व्यक्ति को अनेक अधिकार दिए गए हैं, उन अधिकारों को उपयोग करने के लिए ऐसा...
संपत्ति खरीदने का सौदा करने के बाद मालिक रजिस्ट्री नहीं करे तब क्या है खरीददार के अधिकार
स्वयं की संपत्ति खरीदना हर व्यक्ति का सपना होता है। भारत भर में मकान जमीन खरीदने के सैकड़ों सौदे प्रतिदिन किए जाते हैं। अधिकांश तो इन सौदों में किसी प्रकार की समस्या नहीं आती है पर कुछ प्रकरण ऐसे होते हैं जिनमें कुछ समस्याएं हो जाती हैं। ऐसी समस्या होने पर खरीददार सबसे पहले अपने विधिक अधिकारों को तलाशता है। कोई ऐसी प्रक्रिया जानना चाहता है जिससे उसको राहत मिल सके।अमूमन देखने में आता है कि किन समस्याओं में सबसे बड़ी समस्या है कि विक्रेता अपनी संपत्ति को बेचने का सौदा तो कर देता है परंतु सौदे के...
समाज में अब तक कितने प्रकार के दंड दिए गए हैं और कितने दिए जा रहे हैं
यह सर्वविदित है कि दंड अपराध और अपराध को नियंत्रित करने के सबसे पुराने तरीकों में से एक है। हालाँकि, दंड के तौर-तरीकों में भिन्नता, अर्थात् गंभीरता, एकरूपता और निश्चितता, कानून तोड़ने के लिए सामान्य सामाजिक प्रतिक्रिया में भिन्नता के कारण ध्यान देने योग्य हैं। कुछ समाजों में दंड तुलनात्मक रूप से कठोर, एकसमान, शीघ्र और निश्चित हो सकते हैं जबकि अन्य में ऐसा नहीं हो सकता है।विभिन्न समाजों में सदियों से प्रचलित दंडों के विभिन्न रूपों की जांच से पता चलता है कि सजा के रूप मुख्य रूप प्रतिशोध पर आधारित...
सफेदपोश अपराध क्या होते हैंं? जानिए सफेदपोश अपराध की अवधारणा
अपराध जगत में सफेदपोश अपराध की भी एक अवधारणा है। कुछ पेशे आपराधिक कृत्यों और अनैतिक प्रथाओं के लिए आकर्षक अवसर प्रदान करते हैं। व्यापार, विभिन्न पेशों और यहां तक कि सार्वजनिक जीवन में भी बदमाश और अनैतिक व्यक्ति रह रहे हैं। इन अपराध करने वालों में ईमानदारी और अन्य नैतिक मूल्यों के लिए बहुत कम सम्मान है। इसलिए, वे प्रतिष्ठा या सामाजिक स्थिति के नुकसान के डर के बिना अपनी अवैध गतिविधियों को बिना किसी भय के करते हैं। उन्हें कानून और समाज किसी का भय नहीं होता है। ऐसे अपराध जिन्हें स्वच्छ छवि के पीछे...
संगठित अपराध क्या है?
समय की प्रगति और ज्ञान और प्रौद्योगिकी के विकास के साथ जीवन की जटिलताएं बढ़ गई। कई असामाजिक तत्व अपनी आजीविका कमाने के लिए अपराध को एक पेशे के रूप में अपनाना लाभदायक समझते हैं। इससे अपराधियों को खुद को आपराधिक गिरोहों में संगठित करने का अवसर मिला है। विज्ञान और प्रौद्योगिकी के आधुनिक युग में, अपराधियों द्वारा अपराध की नई तकनीकों का उपयोग अपराधों को अंजाम देने के लिए किया जाता है। उन सभी में से एक है संगठित अपराध।सामान्यतः संगठित अपराध एक ऐसा कार्य है जो दो या दो लोगों द्वारा किया जाता...
साइबर क्राइम क्या है भाग 3: सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 के अंतर्गत अपराध घोषित किए गए कार्य
सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 (Information Technology Act, 2000) इंटरनेट और कंप्यूटर से जुड़ी हुई चीजों के लिए भारत में अधिनियमित एक महत्वपूर्ण अधिनियम है। जैसा कि इससे पूर्व के आलेख में विश्व भर द्वारा घोषित किए गए ऐसे कार्यों का उल्लेख किया गया था जिन्हें सायबर अपराध पर माना जाता है। भारत में सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 उन सायबर कामों का उल्लेख करते हैं जिन्हें भारत अपराध बनाकर प्रतिबंधित किया गया है। इस आलेख में इनफॉरमेशन टेक्नोलॉजी एक्ट में घोषित किए गए उन सभी अपराधों का उल्लेख किया...
साइबर क्राइम क्या है भाग 2: कौन से काम साइबर अपराध माने जाते हैं
प्रौद्योगिकी के इस युग में सारा विश्व सायबर अपराध से निपट रहा है। इससे पूर्व के आलेख में सायबर अपराध का परिचय प्रस्तुत किया गया था। इस आलेख के अंतर्गत उन कार्यों का उल्लेख किया जा रहा है जिन्हें सारे विश्व में सायबर अपराध की श्रेणी में रखा है। भारत में भी इन कामों को सायबर अपराध बनाया गया है और सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 में उन्हें अपराध के रूप में उल्लेखित किया गया है जिसका उल्लेख अगले भाग में किया जाएगा।इस आलेख में अपराधों का एक सामान्य वर्गीकरण प्रस्तुत किया जा रहा है जिन्हें सारे विश्व...
साइबर क्राइम क्या है भाग 1: जानिए अधिनियम का परिचय
मनुष्यता के इतिहास के साथ अपराध भी जुड़े रहे हैं।एक सभ्य समाज के साथ-साथ अपराध भी निरंतर बने रहे है। समय और परिस्थितियों के अनुसार अपराधों में भी परिवर्तन होता रहा है। आज वर्तमान समय में साइबर अपराध जैसा शब्द सामने आता है। विश्व के लगभग सभी देशों ने साइबर अपराध से निपटने हेतु कानून बनाए हैं। इस आलेख के अंतर्गत उन जानकारियों को प्रस्तुत किया जा रहा है जो साइबर अपराध को स्पष्ट करती है।प्रौद्योगिकी और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के विकास के बाद कंप्यूटर से संबंधित अपराधों का जन्म हुआ है जिसे आमतौर पर...
राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम, 1980 (NSA) भाग: 3 अधिनियम के महत्वपूर्ण प्रावधान
राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम (National Security Act) की धारा 3 के अंतर्गत व्यक्तियों के विरुद्ध निरोध का आदेश बनाने की शक्ति दी गई है। इस अधिनियम के अंतर्गत धारा 3 के अतिरिक्त कुछ और महत्वपूर्ण धाराएं हैं जो इस अधिनियम की प्रक्रिया से संबंधित है। इस आलेख के अंतर्गत उन सभी महत्वपूर्ण धाराओं को प्रस्तुत किया जा रहा है जो इस अधिनियम को संपूर्ण करती हैं।धारा 5:-अधिनियम में धारा 5 को इस प्रकार प्रस्तुत किया गया है-"निरोधादेश की परिस्थितियों और स्थान को नियंत्रित करने की शक्ति:-प्रत्येक व्यक्ति जिसके लिए...
राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम, 1980 (NSA) भाग:2 निरोध आदेश बनाने की शक्ति (धारा 3)
राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम (National Security Act) एक केंद्रीय कानून है। यह कानून भारत की सुरक्षा के उद्देश्य से बनाया गया है जिसके अंतर्गत यदि कार्यपालिका को कहीं भी यह प्रतीत होता है कि किसी व्यक्ति द्वारा भारत की सुरक्षा को खतरा है ऐसे व्यक्ति के विरुद्ध निरोध का आदेश कार्यपालिका द्वारा किया जा सकता है। अलग-अलग राज्यों ने अपने राज्यों के लिए भी राज्य सुरक्षा अधिनियम बनाए हैं वे अधिनियम राज्य के भीतर होने वाले आपराधिक क्रियाकलापों को रोकने के उद्देश्य से बनाए गए हैं जैसे मध्य प्रदेश राज्य...
सुप्रीम कोर्ट ने समझाया 'मौन स्वीकृति' और 'विलंब' के बीच भेद
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार (16 नवंबर 2021) को दिए एक फैसले में 'मौन स्वीकृति' (Acquiescence)और 'विलंब' (Delay and Laches) के बीच के अंतर को समझाया। अदालत ने कहा कि विलंब और स्वीकृति का सिद्धांत उन वादियों पर लागू होता है, जिन्होंने अनुचित विलंब के बाद कार्रवाई के लिए बिना किसी उचित स्पष्टीकरण के अदालत/अपील प्राधिकारियों से संपर्क किया है।जस्टिस एल नागेश्वर राव और जस्टिस संजीव खन्ना की पीठ ने कहा, "मौन स्वीकृतियों जैसे विलंब न्यायसंगत विचारों पर आधारित होते हैं, जबकि ऐसे विलंब जिनमें मौन स्वीकृति...
राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम, 1980 (NSA) भाग:1 अधिनियम का परिचय
राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम (National Security Act) एक निवारक अधिनियम है। इस आलेख के अंतर्गत इस अधिनियम का एक सारगर्भित परिचय दिया जा रहा है। अधिनियम को अपराध नामक रोग होने के पूर्व टीके के समान माना जा सकता है। यह अधिनियम एक वैक्सीन है जो अपराध को होने के पहले ही रोकने का प्रयास करती है। इस प्रकार के अधिनियम मूल अधिकारों के संबंध में खतरनाक तो होते हैं परंतु एक शांत समाज, स्वच्छ वातावरण हेतु इस प्रकार के अधिनियमों की आवश्यकता भी है।जब कोई व्यक्ति किसी समाज या राष्ट्र हेतु खतरा बनकर उभरता है,...
सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 (RTI Act) भाग: 12 यह अधिनियम कुछ संगठनों को लागू नहीं होना (धारा- 24)
सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 (RTI Act) के अंतर्गत कुछ संगठनों को इस अधिनियम से छूट प्रदान की गई है जिनका उल्लेख इस अधिनियम की दूसरी अनुसूची के अंतर्गत किया गया है। धारा 24 में इस बात का उल्लेख किया गया है कि कुछ संगठन ऐसे हैं जिन्हें इस अधिनियम से छूट प्रदान की गई। यह अधिनियम की महत्वपूर्ण धाराओं में से एक धारा है।यहां इस आलेख में इस धारा पर टिका प्रस्तुत किया जा रहा है और उससे संबंधित कुछ अदालतों के न्याय निर्णय भी प्रस्तुत किए जा रहे हैं।अधिनियम का कतिपय संगठनों को लागू न होना:-(1) इस अधिनियम...
सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 (RTI Act) भाग: 11 अधिनियम के अंतर्गत शास्ति (दंड) (धारा- 20)
सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 (RTI Act) के अंतर्गत धारा 20 शास्ति का उल्लेख करती है। इसका अर्थ है दंड। यह अधिनियम सूचना के अधिकार को अत्यधिक समृद्ध करता है। इस अधिनियम के अंतर्गत वे सभी व्यवस्था कर दी गई है जो सूचना प्राप्त करने में सहायक हो। नागरिकों को सूचना प्राप्त करने हेतु स्थान बताया गया है, वहां सुनवाई नहीं होने पर उसकी शिकायत करने का स्थान बताया गया है, वहां भी सुनवाई नहीं होने पर अपील करने का निर्देश दिया गया है। इस अधिनियम के अंतर्गत लोक अधिकारियों को सूचना नहीं देने यह सूचना मांगने...
सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 (RTI Act) भाग: 10 अधिनियम के अंतर्गत अपील (धारा- 19)
सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 (RTI Act) के अंतर्गत धारा 19 में अपील का प्रावधान दिया गया है। किसी भी अधिकार को दिए जाते समय इस बात का ध्यान रखना आवश्यक होता है कि यदि उस व्यक्ति को जिसे वह अधिकार दिया गया है अधिकार प्राप्त नहीं हो तब वे कहां और किसके समक्ष अपील कर सकता है और अपील का महत्व इसलिए भी है क्योंकि निचले स्तर से यदि कोई व्यक्ति व्यथित है तो उसे ऊपरी स्तर के अधिकारियों को इसका संज्ञान देकर न्याय प्राप्त करने का अधिकार होना चाहिए।सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 भारत के संविधान में उल्लेखित...
सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 (RTI Act) भाग: 9 सूचना आयोगों की शक्तियां (धारा- 18)
सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 (RTI Act) के अंतर्गत धारा 18 भी महत्वपूर्ण धाराओं में से एक है। इस धारा में सूचना आयोगों की शक्तियां और उनके कार्यों का उल्लेख किया गया है। जैसा कि पूर्व में उल्लेख किया गया है इस अधिनियम के अंतर्गत सूचना आयोगों का गठन किया गया है जो इस अधिनियम को नियंत्रण में रखते हैं तथा इस अधिनियम के अंतर्गत एक महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं इसलिए इस अधिनियम के अंतर्गत सूचना आयोग की शक्तियों का भी महत्वपूर्ण स्थान है और उनका उल्लेख किया जाना भी आवश्यक था।इस ही उद्देश्य से इस अधिनियम...
सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 (RTI Act) भाग: 7 वह विषय जिन से संबंधित सूचनाओं को नहीं दिया जाएगा (धारा-8)
सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 (RTI Act) के अंतर्गत धारा 8 कुछ ऐसे विषय को उल्लेखित करती है जिन पर मांगी गई सूचनाओं को नहीं दिया जा सकता है। ऐसे विषय देश हित में और किसी व्यक्ति के हित में होते हैं जिन से संबंधित सूचनाओं को नहीं दिया जा सकता। यदि इन विषयों से संबंधित सूचनाओं को दे दिया जाए तो समस्या खड़ी हो सकती है और देश की एकता अखंडता तथा किसी व्यक्ति के अधिकारों को क्षति हो सकती है।इस उद्देश्य से इस अधिनियम के अंतर्गत धारा 8 को गढ़ा गया है। इस आलेख के अंतर्गत इस धारा 8 की व्याख्या प्रस्तुत की...
सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 (RTI Act) भाग: 8 पर व्यक्ति को सूचना (धारा-11)
सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 (RTI Act) के अंतर्गत धारा 8 पर व्यक्ति सूचना से संबंधित है। यह धारा पर व्यक्ति द्वारा सूचना लिए जाने संबंधित प्रावधानों को व्यवस्थित करती है। इस आलेख के अंतर्गत इस धारा 8 पर व्याख्या प्रस्तुत की जा रही है।यह इस धारा का अधिनियम में दिया गया मूल स्वरूप है:-पर व्यक्ति सूचना - (1) जहाँ, यथास्थिति, किसी केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी या राज्य लोक सूचना अधिकारी का, इस अधिनियम के अधीन किए गए अनुरोध पर कोई ऐसी सूचना या अभिलेख या उसके किसी भाग को प्रकट करने का आशय है, जो किसी...