फंडामेंटल राइट्स और स्टेट किसे कहते हैं? जानिए

Shadab Salim

7 Aug 2024 5:15 PM IST

  • फंडामेंटल राइट्स और स्टेट किसे कहते हैं? जानिए

    कांस्टीट्यूशन ऑफ इंडिया के पार्ट-3 के अंतर्गत मूल अधिकारों का उल्लेख किया गया है। फंडामेंटल राइट्स को हिंदी में मूल अधिकार कहा जाता है। यह मूल अधिकार नागरिकों और व्यक्तियों को स्टेट के अगेंस्ट प्राप्त होते हैं। मूल अधिकारों के संबंध में सबसे पहले यह देखा जाता है कि स्टेट कौन है।

    भारत के संविधान का अनुच्छेद 12 इस प्रश्न के उत्तर के संदर्भ में उल्लेख करता है।

    अनुच्छेद 12- (Article- 12)

    संविधान के अनुच्छेद 12 के अंतर्गत राज्य शब्द की परिभाषा प्राप्त होती है। यह परिभाषा संविधान के अन्य अनुच्छेद में प्रयुक्त राज्य शब्द पर लागू नहीं होती है अर्थात संविधान के अन्य अनुच्छेदों में भी राज्य शब्द का उपयोग किया गया है परंतु यहां पर अनुच्छेद 12 के अंतर्गत केवल मूल अधिकारों के संदर्भ में राज्य पर चर्चा की जा रही है। अनुच्छेद 12 के अंतर्गत जिस राज्य को बतलाया गया है वह अपने आप में एक विशेष प्रकार का राज्य है जो केवल मूल अधिकार के संबंध में ही राज्य है।

    अनुच्छेद 12 के अनुसार राज्य शब्द के अंतर्गत निम्नलिखित शामिल है-

    1) भारत सरकार और संसद

    2) राज्य सरकार और विधानमंडल

    3) सभी स्थानीय प्राधिकारी

    4) अन्य प्राधिकारी

    भारत की सरकार और संसद तथा राज्य की सरकार और विधानमंडल इन शब्दों से तो यह स्पष्ट ज्ञात होता है कि भारत की केंद्र सरकार तथा अलग-अलग राज्यों की राज्य सरकार है संविधान के मूल अधिकारों के अंतर्गत यह राज्य मानी जाएगी। परंतु अन्य स्थानीय प्राधिकारी तथा अन्य प्राधिकारी इन दो शब्दो के संदर्भ में यह स्पष्ट नहीं हो पाता है कि राज्य किसे माना जाए।

    समय-समय पर सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया तथा राज्यों के हाई कोर्ट द्वारा मुकदमों में अन्य प्राधिकारी तथा सभी स्थानीय प्राधिकारी शब्द को विस्तृत किया गया है तथा यह बतलाया गया है कि क्या-क्या चीजें राज्य में समावेश होंगी किसे राज्य माना जाएगा।

    कुछ महत्वपूर्ण मुकदमें अग्रलिखित हैं-

    अनुच्छेद 12 के संदर्भ में स्थानीय प्राधिकारी शब्द का अर्थ है जिन्हें विधि, उपविधि, आदेश, अधिसूचना आदि के निर्माण में यह जारी करने की शक्ति होती है और साथ ही साथ उन्हें इनफोर्स करने की भी शक्ति होती है। यदि किसी अधिकारी को ऐसी शक्ति प्राप्त है तो वह राज्य की परिभाषा के अंतर्गत आता है। स्थानीय पदाधिकारियों के अंतर्गत नगर पालिका, नगर निगम, डिस्ट्रिक्ट बोर्ड, ग्राम पंचायत इस प्रकार की आदि संस्थाएं आती हैं।

    अन्य प्राधिकारी

    अनुच्छेद 12 के अंतर्गत अन्य पदाधिकारी शब्द अधिक संकट में डालने वाला शब्द है जिससे यह स्पष्ट नहीं हो पाता है कि अन्य अधिकारी के अंतर्गत किसे राज्य माना जाए लेकिन सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए साइटेशन के माध्यम से समय समय के भीतर अन्य प्राधिकारी शब्द के अंतर्गत राज्य की परिभाषा विस्तृत होती चली गयी है।

    यूनिवर्सिटी ऑफ मद्रास बनाम शांताबाई एआईआर 1953 मद्रास 67 के मामले में उक्त निर्वाचन के आधार पर मद्रास हाई कोर्ट ने अभिनिर्धारित किया था कि अन्य पदाधिकारी पदावली में केवल वह प्राधिकारी ही सम्मिलित किए जा सकते हैं जो शासकीय संप्रभु शक्ति (sovereign power) का प्रयोग करते हैं।

    उपरोक्त परिभाषा के अनुसार प्राकृतिक और विधिक निगमों जैसे कि विश्वविद्यालय या कंपनी आदि पदावली के अंतर्गत राज्य नहीं माने जा सकते हैं किंतु समय आने पर सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया ने उजमा बाई बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एआईआर 1962 (एस सी 1621) के मामले में संकुचित निर्वचन को मानने से इंकार कर दिया था और यह निर्णय दिया कि प्राधिकारियो की ऐसी कोई सामान्य श्रेणी नहीं है जो अनुच्छेद 12 में उल्लेखित निकायों की श्रेणी में आते हो और ना ही इन निकायों की श्रेणी में रखना न्याय संगत होगा। इस मामले में यूनिवर्सिटी ऑफ मद्रास को स्टेट माना गया।

    एक महत्वपूर्ण फैसला इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड ऑफ राजस्थान बनाम मदनलाल एआईआर 1967 (एस सी 1857) के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अभिनिर्धारित किया कि अनुच्छेद 12 में प्रयुक्त अन्य प्राधिकारी शब्द में वह सभी प्राधिकारी आते हैं जो संविधान या किसी परिनियम ( statute) द्वारा स्थापित किए जाते हैं। जिन्हें विधि, उपविधि आदि निर्मित करने की शक्ति प्राप्त होती है। यह आवश्यक नहीं कि ऐसे कानूनी प्राधिकारी शासकीय प्रभुत्व संपन्न शक्ति का प्रयोग करते हो।

    इस निर्णय के बाद राज्य शब्द के निर्वाचन के अनुसार अन्य प्राधिकारी शब्द के अंतर्गत इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड, नोट प्रेस, कोऑपरेटिव सोसाइटी जैसी संस्थाएं राज्य में सम्मिलित हो गयी।

    सुखदेव सिंह बनाम भगतराम एआईआर 1975 सुप्रीम कोर्ट 1331 के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड के संदर्भ में दिए गए निर्णय को आगे और विस्तार दिया तथा जीवन बीमा निगम, तेल और प्राकृतिक गैस आयोग तथा कारखाना वित्त निगम अनुच्छेद 12 के अंतर्गत राज्य प्राधिकारी मान लिए गए।

    सुखदेव सिंह के मामले में भारत के सुप्रीम कोर्ट ने राज्य के कल्याणकारी (Welfare state) स्वरूप को ध्यान में रखते हुए अनुच्छेद 12 ( article 12) में प्रयुक्त अन्य प्राधिकारी शब्दावली के क्षेत्र को विस्तृत करना उचित माना है एवं यह कहा है कि क्योंकि राज्य मानव जीवन के हर पहलू में प्रवेश कर रहा है और ऐसे अभिकरणों के माध्यम से कार्य कर रहा है जो न तो संविधान और न ही किसी अधिनियम द्वारा सीधे स्थापित किए जाते हैं इसलिए राज्य शब्द की परिभाषा समय-समय पर विस्तृत होती रहेगी।

    सुखदेव सिंह के मामले को आगे बढ़ाते हुए रमन्ना दयाराम शेट्टी बनाम अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया एआईआर 1979 एस सी 1628 के मामले में यह कहा गया है कि एक कानूनी निगम एक सरकारी कंपनी या रजिस्टर्ड सोसाइटी सरकार की अभिकर्ता है और अनुच्छेद 12 में प्रयुक्त अन्य प्राधिकारी शब्दावली के अंतर्गत राज्य है।

    इस मामले में निर्णय लिया गया कि इंटरनेशनल एयरपोर्ट अथॉरिटी एक्ट 1971 के अधीन स्थापित इंटरनेशनल एयरपोर्ट अथॉरिटी अनुच्छेद 12 में राज्य शब्द के अंतर्गत आता है। इसके बोर्ड के सदस्यों की नियुक्ति केंद्र सरकार करती है वही उन्हें पदच्युत करती है।

    इस मुकदमे में इस बात का निर्धारण करने के लिए कि क्या कोई निकाय राज्य का अभिकर्ता अथवा अभिकरण है इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने निम्नलिखित कसौटियों को निर्धारित कर दिया है-

    निकाय का वित्त स्त्रोत क्या है अर्थात क्या निगम की संपूर्ण पूंजी राज धारित किए हुए है!

    क्या राज्य का निकाय पर व्यापक नियंत्रण है!

    क्या कार्य की प्रकृति सार्वजनिक महत्व की है और अभिन्न रूप से राज्य से संबंध है!

    क्या कोई राजकीय विभाग निगम को हस्तांतरित कर दिया गया है!

    क्या निगम को एकाधिकार की स्थिति प्राप्त है जो अन्य राज्य प्रदत और राज्य संरक्षित है।

    इन कसौटियों को देते हुए भी कोर्ट ने स्पष्ट किया कि उक्त कसौटियां केवल दृष्टांत के लिए हैं यही एकमात्र कसौटियां नहीं है।

    अजय हसिया बनाम खालिद मुजीब एआईआर 1981 सुप्रीम कोर्ट 435 के मामले में राज्य के संदर्भ में बतायी गयी कसौटियों को और अधिक विस्तार दिया गया। स्पष्तः कह गया कि निगम निकाय का सृजन कैसे किया जाता है यह आवश्यक नियम नहीं है बल्कि यह है कि उसकी स्थापना का प्रयोजन क्या है।

    यदि कोई निकाय राज्य का अभिकर्ता (agent) है अनुच्छेद 12 के अंतर्गत राज्य माना जाएगा। निगम विधि द्वारा स्थापित किया जाता है। यह कंपनी अधिनियम के अधीन रजिस्टर करके बनाया जा सकता है अथवा सोसाइटीज एक्ट के अधीन बनाया जा सकता है।

    उत्तर प्रदेश स्टेट कोऑपरेटिव लैंड डेवलपमेंट बैंक लिमिटेड बनाम चंद्रभान दुबे एआईआर 1999 सुप्रीम कोर्ट 753 के मामले में बैंक अधिनियम1964 के अंतर्गत स्थापित किए गए बैंक राज्य माने जाएंगे तथा इनके विरुद्ध रिट की अधिकारिक प्राप्त होगी।

    एम सी मेहता बनाम भारत संघ 1987 सुप्रीम कोर्ट 395 के मामले में प्राइवेट निगम या कंपनी को अनुच्छेद 12 के अधीन राज्य माना जाए या नहीं इस के संदर्भ में प्रश्न आया था। इस प्रश्न पर सुप्रीम कोर्ट ने प्राइवेट निगम और कंपनी को राज्य तो नहीं माना किंतु राज्य शब्द के अंतर्गत शामिल किए जाने पर अपना सहमति आशय तो जताया था।

    अब तक प्राइवेट निगम यह कंपनी के कर्मचारियों को वह मूल अधिकार जिन की ग्यारंटी संविधान के भाग 3 के अंतर्गत राज्य के विरुद्ध की गयी है नहीं प्राप्त है क्योंकि प्राइवेट कंपनी या निगम राज्य शब्द के अंतर्गत राज्य नहीं माने गए।

    वैज्ञानिक और औद्योगिक परिषद 'सीएसआईआर' (CSIR)राज्य है। एक महत्वपूर्ण मामले में सुप्रीम कोर्ट ने बहुमत से 1975 में दिए निर्णय को उलट कर यह अभिनिर्धारित कर दिया है कि सीएसआईआर राज्य है।

    तरसीम सिंह बनाम भारत संचार निगम लिमिटेड के मामले में विनिश्चय किया गया है कि भारत संचार निगम अनुच्छेद 12 के अंतर्गत राज्य है क्योंकि संचार विभाग की संपत्ति उठायी तो भारत संचार को स्थानांतरित कर दी गयी थी। उसके सभी कर्मचारी केवल ए और बी श्रेणी को छोड़कर भारत संचार निगम को स्थानांतरित कर दिए गए थे।

    सतिम्बला शर्मा बनाम सेंट पॉल सीनियर सेकेंडरी स्कूल एआईआर 2011 सुप्रीम कोर्ट 2926 के मामले में गैर सहायता प्राप्त अल्पसंख्यक विद्यालय जिन पर सरकार का कोई प्रशासनिक नियंत्रण नहीं होता है संविधान के अनुच्छेद 301 के अधीन उनकी स्वययत्ता के कारण संविधान के अनुच्छेद 12 के अर्थ के अंतर्गत राज्य नहीं हैं।

    समता का अधिकार जो राज्य के विरुद्ध उपलब्ध है का दावा गैर सहायता प्राप्त अल्पसंख्यक विद्यालयों के विरुद्ध नहीं किया जा सकता तथा किसी संवैधानिक प्रावधान का प्रशासनिक निर्देश की अनुपस्थिति में निजी गैर सहायता प्राप्त विश्वविद्यालयों से अपने अध्यापकों को वही वेतन और भत्ते देने की अपेक्षा नहीं की जा सकती जो निजी सहायता प्राप्त विद्यालयों में सरकारी संस्थाओं की तरह से किए जाते हैं। गैर सहायता प्राप्त अल्पसंख्यक विद्यालय अपने अध्यापकों को समान कार्य के लिए समान वेतन के लिए किसी बाध्यता के अधीन नहीं है।

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