मजिस्ट्रेट की सजा देने की शक्ति के बारे में जानिए
Shadab Salim
5 Nov 2024 11:15 AM IST
सज़ा सिर्फ सेशन जज द्वारा ही नहीं दी जाती है बल्कि मजिस्ट्रेट की कोर्ट भी अलग अलग मामलों में विचारण सुनते हैं और विचारण सुनने के बाद सज़ा देते हैं। भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता धारा 23 के अंतर्गत मजिस्ट्रेट को दंड देने की शक्तियां दी गई है तथा या उल्लेख किया गया है कि मजिस्ट्रेट कितना दंड दे सकेंगे।
चीफ ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट
चीफ ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट के कोर्ट का महत्वपूर्ण कोर्ट होती है। यह पद किसी भी जिले के मजिस्ट्रेट के पद का सर्वोच्च पद होता है तथा जिले के समस्त न्यायिक मजिस्ट्रेट को मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट नियंत्रित करता है।
बीएनएसएस के अंतर्गत चीफ ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट मृत्युदंड,आजीवन कारावास एवं 7 वर्ष से अधिक की अवधि के कारावास के अलावा कोई भी ऐसा दंड दे सकता है जो विधि द्वारा प्राधिकृत है।
मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट को केवल 3 तरह के दंडादेश नहीं देने से बाध्य किया गया है। कोई भी मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट मृत्यु दंड नहीं दे सकता, आजीवन कारावास नहीं दे सकता और ऐसा दंड नहीं दे सकता जो 7 साल से ज्यादा की कारावास की अवधि का है पर वह सभी दंड दे सकता है जिसे विधि द्वारा प्राधिकृत किया गया है।
मजिस्ट्रेट फर्स्ट क्लास
मजिस्ट्रेट का यह पद समस्त न्यायपालिका को अपने कंधों पर लेकर चलता है। मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी किसी भी मामले को प्रारंभिक रूप से सुनता है। कोई भी मामला प्रारंभिक रूप से प्रथम श्रेणी मजिस्ट्रेट के पास ही जाता है। यह न्यायालय भारतीय न्यायपालिका का अत्यंत अहम अंग है, यह न्यायालय न्यायपालिका के भार को संभाल रहा है।
प्रथम श्रेणी मजिस्ट्रेट 3 वर्ष तक का कारावास और पचास हजार रुपये का जुर्माना दे सकता है। किसी भी मामले में यदि उसकी अदालत में कोई आरोपी से दोषसिद्ध होता है तो वह उस आरोपी को किसी भी अपराध के अंतर्गत 3 वर्ष तक की सज़ा दे सकता है।
पचास हजार रुपये तक का जुर्माना दे सकता है या दोनों को एक साथ भी दे सकता है। कोई भी फर्स्ट क्लॉस मजिस्ट्रेट 3 साल से ऊपर का कारावास देने की अधिकारिता नहीं रखता है एवं पचास हजार से अधिक के जुर्माना देने की अधिकारिता नहीं रखता है।
मजिस्ट्रेट सेकंड क्लॉस
मजिस्ट्रेट सेकंड क्लॉस न्यायपालिका का सबसे निम्न पद है तथा इसी पद से न्यायपालिका के पदों की पदों का क्रम शुरू होता है। यह न्यायालय न्यायपालिका का निम्न स्तर कहा जाता है एवं जब प्रारंभिक चरण भी कहा जा सकता है।
आपराधिक मामलों में द्वित्तीय श्रेणी मजिस्ट्रेट का कोर्ट 1 साल से अधिक अवधि के कारावास और दस हजार रुपये तक का जुर्माना या इन दोनों को एक साथ किसी भी सिद्ध दोष आरोपी को दे सकता है।
मुख्य महानगर मजिस्ट्रेट और महानगर मजिस्ट्रेट-
भारत के महानगरों के लिए महानगर मजिस्ट्रेट जैसे पद रखे गए है। इन पदों में मुख्य महानगर मजिस्ट्रेट एवं महानगर मजिस्ट्रेट को रखा गया है। मुख्य महानगर मजिस्ट्रेट को वही सब शक्तियां प्राप्त होती है जो मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट को प्राप्त होती है एवं महानगर मजिस्ट्रेट को वही सब शक्तियां प्राप्त होती है जो प्रथम श्रेणी मजिस्ट्रेट को प्राप्त होती है।
एक ही विचारण में अलग अलग अपराधों के लिए दंड-
जब दंड न्यायालय एक ही विचारण में अलग-अलग अपराधों के लिए दंड देता है तब ऐसी परिस्थिति में दंड की अवधि उसी समय में एक साथ चलेगी जिस परिस्थिति में मजिस्ट्रेट के द्वारा दंड की अवधि को एक साथ चलने का लिख दिया जाता है। यदि मजिस्ट्रेट या जज अलग-अलग दंड अलग-अलग अपराधों में देता है तथा सभी दंड एक के बाद एक शुरू करने का निर्णय देता है तो ऐसी परिस्थिति में एक दंड खत्म होने के बाद दूसरे दंड की अवधी शुरू होगी।
यह दंड का प्रकार कारावास होता है। एक कारावास काट लेने के बाद दूसरा कारावास प्रारंभ होता है लेकिन ऐसी परिस्थिति में कोई भी कारावास 14 वर्ष से अधिक नहीं होगा अर्थात यदि कारावास की अवधि अलग-अलग चलने का निर्णय दिया गया है तो कोई भी कारावास 14 वर्षों से अधिक नहीं होगा।अधिकांश दंड की अवधि को एक साथ चलने का निर्णय न्यायाधीश द्वारा दिया जाता है।